SPEECH OF HONURABLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARI LAL PUROHIT ON THE OCCASION OF INAUGURATION OF COMPUTER CENTRE AND VISIT LIBRARY AT LAJPAT RAI BHAWAN, SECTOR-15, CHANDIGARH ON 07TH AUGUST 2023 AT 5.00 PM

  • PRB
  • 2023-08-07 18:00

मुझे Servants of People Society, के लाजपत राय भवन चंडीगढ़ का दौरा करके खुशी हुई है।
यहां की लाईब्रेरी की दुर्लभ पुस्तकें देखीं, शहीद-ए-आज़म भगत सिंह द्वारा पढ़ी गई पुस्तकें देखीं और लाला लाजपत राय जी की यादगारें भी देखीं। मन आनन्द विभोर हो उठा।
मुझे बताया गया है कि 1921 में Servants of People Society की शुरुआत श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी द्वारा की गई थी।
युवाओं को शिक्षित करने के लिए उन्होंने अपने प्रिय मित्र द्वारका दास द्वारा पुस्तकों के दान से लाजपत भवन लाहौर में द्वारका दास पुस्तकालय की शुरुआत की। 
उन्होंने नवयुवकों को प्रोत्साहित किया और उन्हें दूसरे देशों के स्वतंत्रता संग्राम पर पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए केबिन उपलब्ध कराये।
भारत के विभाजन के बाद, 1948 में लाइब्रेरी की पुस्तकों को भारत में स्थानांतरित कर दिया। पहले शिमला और फिर चंडीगढ़।
मुझे ख़ुशी है कि यह संस्था बहुत लगन से चंडीगढ़ के लोगों की सेवा कर रही है।
मैं इसकी सफलता की कामना करता हूं।
मित्रों,
किताबों और साहित्य के साथ भारत का रिश्ता, लगभग 5000 साल पुरानी सभ्यता जितना ही पुराना है। हमने हमेशा ज्ञान को संभाल कर रखने को सर्वोपरि महत्व दिया है।
हड़प्पा के लोग लिखना जानते थे; दुर्भाग्य से, उनकी लिपि को समझा नहीं जा सका है। 
भारत में साहित्य के सबसे प्राचीन रूप माने जाने वाले वेदों से लेकर हमारे महान महाकाव्यों, रामायण और महाभारत तथा चरकसंहिता और आर्यभटीय जैसे हमारे वैज्ञानिक ग्रंथों तक, हमारे पास लिखित शब्दों की आश्चर्यजनक संपदा का भंडार है।
प्राचीन भारतीय साहित्य से लेकर समकालीन विधाओं तक, भारत सैकड़ों प्रतिभाशाली लेखकों और प्रतिभाशाली कवियों का घर रहा है।
मुझे यकीन है कि साहित्यिक प्रतिभा की इस विरासत को साहित्यकारों की आने वाली पीढ़ियों द्वारा जीवित रखा जाएगा। 
बन्धुओं,
पुस्तकें जानकारीपूर्ण, ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक होती हैं और वे हमारी सबसे अच्छी साथी, परामर्शदाता और मार्गदर्शक होती हैं।
किताबें हमारे ज्ञान की सीमा को व्यापक बनाने में मदद करती हैं। जितना अधिक हम किताबें पढ़ते हैं, उतना ही अधिक हम अपने आस-पास की दुनिया को समझते हैं।
पढ़ने से हमारी भाषा कौशल बढ़ता है और प्रवाह विकसित होता है, जिससे हम अपने विचारों को बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाते हैं और इस प्रकार हम बेहतर वक्ता बन जाते हैं।
किताबें हमारी ज्ञान की प्यास बुझाती हैं। पुस्तकों के माध्यम से, हम इतिहास को समझते हैं, विभिन्न संस्कृतियों और जीवनशैलीयों को समझते हैं और यहां तक कि नई भाषाएँ भी सीख पाते हैं। किताबें हमारे दिमाग में नए विचारों के द्वारा खोलती हैं।
यह फोकस को बेहतर बनाने में मदद करती है और विश्लेषणात्मक कौशल के विकास में सहायता करती है।
किताबों में हमें उन लोगों की कहानियों के द्वारा प्रेरित करने की शक्ति है, जिन्होंने सफल होने के लिए कठिन से कठिन बाधाओं को पार किया है। चाहे वह किसी काल्पनिक चरित्र की यात्रा हो या किसी ऐतिहासिक व्यक्ति की वास्तविक जीवन की उपलब्धियाँ, किताबें हमें सकारात्मक रहने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
यह अत्यंत चिंता का विषय है कि मैं पुस्तकें पढ़ने के प्रति रुचि में गिरावट देख रहा हूं, विशेषकर हमारे देश के युवाओं में। 
इंटरनेट के आगमन के साथ, बच्चे अब किताबों पर निर्भर रहने के बजाय ऑनलाइन जानकारी खोजना पसंद करते हैं।
किताबें, विशेषकर कहानियाँ पढ़ना अब सामान्य बात नहीं रह गई है। बच्चे ऑनलाइन वीडियो देखना पसंद करते हैं। इसका प्रमुख कारण तेजी से भागती दुनिया में ध्यान का कम होता दायरा है। 
दुर्भाग्य से, ऑनलाइन उपलब्ध बहुत सारी सामग्री अधूरी या अपर्याप्त प्रकृति की है और गहरे चिंतन और आत्मनिरीक्षण को बढ़ावा नहीं देती है।
हाल के एक सर्वे में पाया गया है कि केवल 32 प्रतिशत बच्चे ही सालाना 24 गैर-शैक्षणिक किताबें पढ़ते हैं जो वाकई परेशान करने वाली बात है।
इस समस्या से निपटने का एक तरीका यह है कि बहुत कम उम्र से ही बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित की जाए।
माता-पिता को भी अपने बच्चों के लिए आदर्श बनना चाहिए और स्वयं किताबें पढ़नी चाहिए ताकि बच्चे उनका अनुसरण कर सकें।
स्कूलों को भी पठन शिविर और कार्यशालाएँ स्थापित करके और उत्कृष्ट पुस्तकालयों का रख-रखाव करके बच्चों को पढ़ने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करना चाहिए। 
उन्हें बच्चों को विभिन्न महापुरुषों के जीवन से परिचित कराने और उन्हें भारत की संस्कृति की महिमा, मूर्त और अमूर्त विरासत से अवगत कराने का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
यदि हम अपनी साक्षरता दर और अच्छे पाठकों की संख्या में सुधार नहीं करते हैं तो demographic dividend हासिल नहीं कर सकते।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए, जिसकी विविध आवश्यकताएं और आकांक्षाएं हैं, पुस्तकें और डिजिटल मीडिया एक दूसरे के पूरक होने चाहिएं न कि एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी।
हमें लोगों के बीच पढ़ने की संस्कृति को पुनर्जीवित करना है। 
हमें भौतिक और डिजिटल पुस्तकालयों का संतुलन बनाए रखना होगा और पुस्तकालयों में पढ़ने का आनंद लेने के लिए वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगजनों के लिए विशेष स्थान भी बनाने होंगे।
भारत आज दुनिया के शीर्ष छह प्रकाशन देशों में से एक है। अंग्रेजी भाषा की पुस्तकों के मामले में, यह अमेरिका और ब्रिटेन के बाद तीसरा सबसे बड़ा है। 
अनुमान है कि भारत में प्रकाशित होने वाली पुस्तकों की संख्या हर साल 25-30 प्रतिशत बढ़ रही है। 
यह जनता के बीच किताबों के प्रति बढ़ती भूख को दर्शाता है।
यह दर्शाता है कि knowledge economy भारत के विकास से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। 
इसलिए, एक राष्ट्र के रूप में हमारा आदर्श वाक्य "All for knowledge, and Knowledge for all" अर्थात ‘‘सभी ज्ञान के लिए, और ज्ञान सभी के लिए’’ होना चाहिए।
आप सभी के बीच आकर अच्छा लगा। अपना नेक कार्य जारी रखें।
धन्यवाद,
जय हिन्द!