SPEECH OF HONURABLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARI LAL PUROHIT ON THE OCCASION OF GANDHI JAYANTI AT GANDHI SMARAK BHAWAN, SECTOR 16, CHANDIGARH ON 2ND OCTOBER 2023 AT 5.00 PM

  • PRB
  • 2023-10-02 19:30

आज मुझे पुनः इस गांधी स्मारक भवन में आने का अवसर प्राप्त हुआ है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
गत वर्ष इस संस्थान में कुछ अप्रिय घटनाएं हुईं थीं। परन्तु अब सब ठीक है। कानून अपना कार्य कर रहा है।
आज दो महान विभूतियों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एंव भारत रत्न श्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती है। मैं उन्हें नमन करता हूं।
गांधीजी न केवल एक संत, समाज सुधारक, राजनितिज्ञ एवं दूरदृष्टिता थे बल्कि वे युगपरिवर्तक भी थे।
दक्षिण अफ्रीका का रंग-विरोधी आंदोलन गांधीजी से प्रभावित था।
नेल्सन मंडेला ने भी गांधीजी को प्रेरणा स्रोत बताया था।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमरीकी नागरिक अधिकार आंदोलन का नेतृत्व गांधीजी के अहिंसात्मक सक्रियता से प्रभावित होकर किया था।
श्रीलंका का स्वतंत्रता आंदोलन भी गांधीजी से प्रेरित था। गांधीजी ने श्रीलंका में कई भाषण दिये जिनका वहां काफी प्रभाव पड़ा। 
दलाई लामा, आईन्सटाईन से लेकर बाराक ओबामा तक गांधी जी से प्रेरित रहे हैं।
गांधीजी का सम्पूर्ण जीवन ऐसे आदेर्शों से भरा पड़ा है जिनसे हमें मार्गदर्शन लेकर अपना जीवन सार्थक बना सकते हैं।
समय की कीमत गांधीजी भलिभांति जानते थेः
एक बार दांडी यात्रा के दौरान बापू एक स्थान पर ठहरे हुए थे, तभी वहां पर एक अंग्रेजी प्रशंसक उनके पास आया और बोला ‘हेलो मेरा नाम वाकर’ है।
उन्होंने अपनी प्रशंसा सुनने में समय नहीं गंवाया और  चलते-चलते कहा, ‘मैं भी तो Walk-er हूं’
यह कहकर गांधी जी वहां से चले गए। ऐसा करते देख एक शख्स ने उनसे कहा कि आप उससे मिले क्यों नहीं आपकी प्रसिद्धि होती।
तभी गांधी जी ने कहा मेरे लिए ‘प्रसिद्धि/सम्मान’ से ज्यादा ‘समय’ की कीमत है।
गांधीजी के जीवन के अनेक प्रेरणादायक किस्से हैं।
जब गांधीजी ने दी कर्म बोने की सलाहः-
एक बार गांधीजी एक गांव में गए और उन्होंने गांव वालो से पूछा कि इस वक्त किस अन्न की कटाई हो रही है और किस अन्न को बोया जा रहा है।
इस पर एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि आप इतने ज्ञानी हैं क्या आपको ये नहीं पता जेठ मास में कोई फसल लगाई नहीं जाती।
इस पर गांधी जी ने कहा कि तो क्या इस वक्त आप खाली हैं। आप चाहे तो कुछ बो सकते हैं कुछ भी काट सकते हैं।
इस पर, लोगों ने कहा कि आप ही बता दिजिए क्या बोना और क्या काटना चाहिए?
इस पर गांधीजी ने कहा कि.....
आप लोग कर्म बोइए और आदत को काटिए,
आदत को बोइए और चरित्र को काटिए,
चरित्र को बोइए और भाग्य को काटिए,
तभी आपका जीवन सार्थक हो पाएगा।
जहां तक हो सके हमें गांधीजी के विचारों, उनके फलसफे को अपने जीवन संघर्ष का हिस्सा बनाना चाहिए।
उन्होंने कहा था कि केवल अंग्रेजों की वापसी ही स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता का मतलब है, लोगों में इस चेतना का होना की वह स्वयं के भाग्यनिर्माता हैं।
उनका सोचना था कि लोगों को स्वावलंबी होना चाहिए और गांवों को भी स्वावलंबी बनना चाहिए। वे ग्राम स्वराज्य का सपना साकार करना चाहते थे।
इसीलिए, उन्होंने 1925 में अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना की जिसके द्वारा खादी और ग्रामोद्योग के माध्यम से रोज़गार देने का काम किया गया।
अगर हम खादी की बात करें तो यह सिर्फ एक कपड़ा ही नहीं है, बल्कि गांधीजी की विचारधारा का प्रतीक भी है।
बन्धुओं,
हम हमारे देश में रहते हैं तो हमारा कर्तव्य होता है कि हम देश को आर्थिक रूप से मजबूत करने में भूमिका निभाएं।
यह हम तभी कर सकते हैं जब हम सब मिलकर स्वदेशी अपनाएं।
जब हम स्वदेशी वस्तुएं खरीदते हैं तो उसका पैसा हमारे देश में ही रहता है जिससे देश तेजी से विकास करता है और देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।
देश के लोगों को स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की आदत पड़ना हमारे देश के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।
इसलिए, हमें चाहिए कि हम स्वदेशी का प्रचार-प्रसार करें और स्वदेशी अपनाएं जिससे हमारे देश में उद्यमिता को प्रोत्साहन मिले और हम आर्थिक रूप से और मजबूत हों।
गांधीजी मानते थे कि सत्य का आचरण ही व्यक्ति को सत्याग्रही बनाता है।
वे कहा करते थे, ‘‘पहले मैं समझता था कि ईश्वर ही सत्य है, अब समझ गया हूं कि सत्य ही ईश्वर है’’।
गांधीजी सामाजिक समानता और अस्पृश्यता के खिलाफ थे।
आज विश्व में हिंसात्मक गतिविधियों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो सभी देशों के लिए चिंता का विषय है। इस दृष्टि से महात्मा गांधीजी की सत्य एवं अहिंसावादी नीति को विश्व को अपनाना होगा।
यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधीजी के जन्म दिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।
गांधीजी के जीवन का एक और संस्मरण सांझा करता हूं। गांधीजी सवेरे जल्दी उठकर हाथ-मुंह धोने के लिए साबरमति जाते थे।
नदी से पानी लेने के लिए एक छोटी सी लुटिया का इस्तेमाल करते थे।
एक बार उनके एक सहयोगी, श्री मोहनलाल पाण्ड्या ने गांधीजी से पूछा, ‘‘आप इतनी किफायत क्यों करते हैं जबकि नदी में भरपूर पानी है?’’ 
गांधीजी ने उनसे पूछा, ‘‘मेरा चेहरा साफ हुआ, या नहीं?’’
इस पर पाण्ड्या जी ने कहा कि हां, चेहरा तो साफ हो गया है।
तब गांधीजी ने कहा, ‘‘फिर क्या समस्या है? क्या यह जरूरी है कि हम कई लोटा पानी बरबाद करें? इस नदी का पानी केवल मेरे लिए ही नहीं, बल्कि सभी के लिए है।
यह पानी मनुष्यों, पशु-पक्षियों और सभी प्राणियों के लिए है।
प्राकृतिक संपदा पर सबका अधिकार है उस संपदा में से, अपनी जरूरत से तनिक भी ज्यादा लेना अनुचित होगा।’’
गांधीजी की यह शिक्षा आज और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
शास्त्री जी की बात करूं तो वे सच्चे गांधीवादी थे।
उन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और गरीबों की सेवा में लगाया।
तकरीबन 18 महीनों के लिए वह भारत के प्रधानमंत्री रहे परन्तु इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।
विनम्रता, सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व में एक विशेष आकर्षण पैदा करती थी।
शास्त्री जी ने हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में तब प्रवेश किया था जब उनकी आयु मात्र 17 वर्ष की थी। 
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही जिसके परिणामस्वरूप उन्हें तकरीबन सात वर्ष ब्रिटिश जेलों में रहना पड़ा।
‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देने वाले शास्त्री जी अविस्मरणीय हैं।
अगर हमारे देश की वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी इन महान शख़्सियतों के विचारों पर चले तो हमारा भारत एक सुनहरा भारत बन सकता है।
उनके आदर्श हमारी अंतरात्मा में सदैव विद्यमान रहें!
उनकी शिक्षाएँ हमारा सतत मार्गदर्शन करती रहें!
इसी कामना के साथ मैं आप सबका धन्यवाद करता हूं।
जय हिन्द!