SPEECH OF HONOURABLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH SHRI BANWARI LAL PUROHIT ON THE OCCASION OF AROGYA BHARTI AKHIL BHARTIYA PRATINIDHI MANDAL SAMMELAN 2023 AT CHANDIGARH UNIVERSITY, MOHALI, PUNJAB ON 05TH NOV,2023 AT 11.00 AM

  • PRB
  • 2023-11-05 17:00

• स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित आरोग्य भारती के प्रतिनिधि मंडल सम्मेलन में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता और संतोष का अनुभव हो रहा है। 
• मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि समाज में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अखिल भारतीय स्तर पर एक ऐसा संगठन भी है, जो रोग प्रतिबन्धन अर्थात सामान्य व्यक्ति रोगी न बने इसके लिए कार्य कर रहा है। 
• दूरगामी दृष्टि से यह एक सही दिशा में बढ़ता हुआ स्वागत योग्य प्रयास है क्योंकि अधिकांश संगठन स्वास्थ्य सेवा के नाम पर रोगी की निःशुल्क चिकित्सा करते हुए ही दिखाई देते हैं।
• मुझे बताया गया है कि यह संगठन विगत 21 वर्षों में देश के सभी छोटे-बड़े राज्यों में पहुंच गया है। साथ ही इस कार्य के लिए 90 प्रतिशत जिलों में कोई न कोई कार्यकर्ता भी उपलबध हो गया है।
• मैं आरोग्य भारती के राष्ट्रीय स्तर पर हुए प्रसार व कार्य-कलापों व आपके कर्मठ कार्यकर्ताओं की सराहना करता हूं।
• आपकी सोच बहुत साफ़ और सरल है। जब प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ रहेगा तो सभी परिवार स्वस्थ रहेंगे और परिवार स्वस्थ रहेंगे तो गांव और शहर स्वस्थ रहेंगे और इस प्रकार पूरा देश स्वस्थ रहेगा। 
• ऐसा करते हुए हम ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः’ की उस प्रार्थना को कार्य रूप दे सकेंगे जिसमें कामना की गई है कि सभी सुखी रहें सभी रोगमुक्त रहें।
• राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत हमारा लक्ष्य है कि सभी व्यक्तियों को गुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं किफायती खर्च पर सुलभ हों। व्यापक तथा समग्र रूप से सबके आरोग्य की व्यवस्था करना भी इस नीति का लक्ष्य है।
• इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकारी तथा निजी क्षेत्र के संस्थानों की भागीदारी के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों, विशेषकर प्रबुद्ध नागरिकों का सहयोग आवश्यक है। 
बन्धुओं,
• वर्तमान समय विज्ञान और तकनीकी का युग होने के कारण प्रतिदिन होने वाले अविष्कारों से मनुष्य की सुख-सुविधायें बड़ी हैं, वहीं दूसरी ओर उन सुविधाओं के अति उपयोग के कारण असुविधायें भी हो रही हैं। 
• लोगों के कार्य का समय अव्यवस्थित हो गया है। अधिकांश विद्यार्थीयों द्वारा रात भर पढ़ने के कारण उनकी दिनचर्या में बदलाव होने से उनके स्वास्थ्य पर दुष्परिणाम दिखाई दे रहे हैं। 
• प्रत्येक ऋतु में प्रकृति से प्राप्त फल, सब्जियों के स्थान पर अखाद्य वस्तुओं के सेवन तथा जलवायु विरूद्ध पदार्थों के सेवन से व्यक्ति अपना पेट तो भर रहा है और विभिन्न रसायनों के कारण उसे स्वाद भी मिल रहा है, परन्तु स्वास्थ्य नहीं मिलने के कारण नये-नये रोग उत्पन्न हो रहे हैं। 
• प्राचीन समय में प्रकृति आधारित दिनचर्या, ऋतु आधारित खान-पान एवं परिश्रमशील जीवन शैली होने के कारण जीवन शैली जनित रोग बहुत कम होते थे, परन्तु आज यह संख्या बढ़कर लगभग 83 प्रतिशत तक पहुँच गई है। 
• स्वाभाविक रूप से जैसा इनका नाम है, अर्थात जीवनशैली जनित रोग - इनको व्यवस्थित करने से ही समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग बिना दवा के भी स्वस्थ रह सकता है।
• जीवन शैली से जनित अस्वस्थता की रोकथाम पर विशेष ध्यान देना, यानि कि ‘preventive and promotive’ हेल्थ केयर को प्राथमिकता देना समय की मांग है।
• मेरा मानना है कि लोग अपने दायित्वों का निर्वहन करने के साथ-साथ प्रकृति के अनुरूप तथा सरल जीवन शैली अपना सकते हैं। आचार-विचार तथा खान-पान में सरलता के साथ-साथ शारीरिक श्रम करते रहने से अधिकांश लोग रोग मुक्त हो सकते हैं।
• किसी ने सत्य ही कहा हैः
‘‘जब खान-पान गलत हो तो दवा किसी काम की नहीं होती
और जब खान-पान सही हो तो दवा की कोई आवश्यकता नहीं होती’’।
(“When diet is wrong, medicine is of no use. When diet is correct, medicine is of no need.”)
• ऐसी ही समुचित जीवन शैली को अपनाने का सुझाव देने वाली परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों की उपयोगिता को, आज विश्व स्तर पर अपनाया जा रहा है।
• अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा योग को बड़े पैमाने पर उत्साहपूर्वक अपनाया जा रहा है। 21 जून को वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाना इसका प्रमाण है।
• संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को “International Day of Millets” घोषित करना भी इसी दिशा में होने वाले प्रयास हैं।
• विगत 03 वर्ष के कोरोना काल खण्ड ने हमें यह सीख दे दी है कि यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक रोग की कोई सटीक औषधि उपलब्ध होगी अर्थात नहीं भी हो सकती है।
o दूसरा- कोरोना ने हमें सिखाया है कि स्वास्थ्य को पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। 
o तीसरा- व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए स्वयं ही प्रयत्न करना पड़ता है, अन्य दूसरे व्यक्ति या संसाधन केवल सहायक हो सकते हैं।
o चौथा- रोग प्रतिबन्धन (Preventive Aspects) से जुड़े छोटे-छोटे उपक्रम यदि नियमित रूप से किये जायें, वे भी अत्यंत प्रभावी होते हैं।
• केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें बढ़ते हुए रोगियों की संख्या को देखते हुए नये-नये Medical Colleges, Civil Hospitals, PHC, CHC, AIIMS जैसी संस्थायें खड़ी कर रहे हैं, जिससे बढ़ते हुए रोगियों की संख्या का उपचार हो रहा है। 
• इसके साथ ही प्राइवेट सेक्टर में भी Clinics और Hospitals की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। 
• परन्तु इस प्रकार के बढ़ते हुए संसाधनों के साथ ही रोगियों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ रही है। 
• वास्तव में हमारे भविष्य की दिशा होनी चाहिए कि रोगी उपचार के साथ-साथ जन सामान्य स्वस्थ जीवनशैली का पालन करते हुए स्वयं स्वस्थ रहने का प्रयास करें।
• भारतीय जीवन पद्धति में केवल रोग की अनुपस्थिति को ही स्वास्थ्य नहीं माना है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को हर समय प्रसन्नता की अनुभूति हो, आनंद के साथ सकारात्मक जीवन व्यतीत करे, इसकी भी कल्पना की गई है। 
• यह सब कुछ हमको जीवन में अलग-अलग प्रकार से आध्यात्मिक भाव के विकास से ही सम्भव हो सकता है।
• मेरा अनुमान है कि आध्यात्मिक भाव (Spirituality) विकसित करना इस दिशा में सम्पूर्ण विश्व के Health Index एवं Happiness Index को बढ़ाने में सहायक होगा।
• वर्तमान में आवश्यकता अनुभव होती है कि भारतीय आरोग्य सम्पदा को, आज की युवा पीढ़ी में उसको समझ में आने वाली शब्दावली में समझाया जाये। 
• प्रत्येक परिवार के वरिष्ठ सदस्य स्वयं के जीवन में स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करते हुए युवा पीढ़ी को अभ्यास कराये, जिससे कि वह उनके स्वभाव का अंग बन सके और जीवन भर वे स्वस्थ रहकर आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकें।
• आशा है, आरोग्य भारती संस्थान स्वस्थ भारत के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान देता रहेगा।
• ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ एक सूत्रवाक्य जो गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को जनसामान्य के कल्याण एवं सुख के लिए कार्य करने का उपदेश दिया, की कामना करते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!