SPEECH OF HONOURABLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH SHRI BANWARI LAL PUROHIT ON THE OCCASION OF 9th CONVOCATION OF ARMY INSTITUTE OF LAW, MOHALI ON 2nd DECEMBER, 2023 AT 12.00 Noon

  • PRB
  • 2023-12-02 17:00

मुझे आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली के 9वें दीक्षांत समारोह में आकर बहुत हर्ष की अनूभूती हो रही है।
यह प्रतिष्ठित संस्थान देश के प्रमुख लॉ स्कूलों में से एक के रूप में पहचाना जाता है। कानूनी शिक्षा के क्षेत्र में इस संस्थान की unique position है।
यहां के छात्र को कॉर्पोरेट क्षेत्र, बीमा क्षेत्र और प्रतिष्ठित लॉ फर्मों में नौकरी कर रहें है। कुछ छात्र न्यायिक सेवाओं में शामिल हो गए हैं और कुछ सेना की J.A.G शाखा में हैं। 
मुझे यकीन है कि सभी समर्पण के साथ अपनी-अपनी भूमिकाएँ और कर्तव्य निभा रहे होंगे।
My Dear Young Friends,
कानूनी पेशे को हर समाज में एक Noble Profession माना जाता है। 
ऐसा इसलिए है क्योंकि, वकील न्याय तक जनता की पहुंच को सक्षम बनाने और संविधान को एक जीवित वास्तविकता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आपको शायद मालूम हो, भारत में, महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, देशबन्धु सी.आर. दास, सैफुद्दीन किचलू, सरदार पटेल और भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद सहित बड़ी संख्या में हमारे राष्ट्रीय नेता वकील थे। 
वकील के रूप में मिले प्रशिक्षण और हमारे नेताओं को भारत और विदेशों में कानूनी प्रणालियों से मिले अनुभव ने हमारे अद्वितीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आज़ादी के बाद हमारा संविधान बना। भारत का संविधान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संविधानों में से एक है जो न्याय, स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांत पर आधारित है।
हमारा संविधान second liberation (दूसरी आज़ादी) को represent करता है। पहले आज़ादी हमें अंग्रेज़ साम्राज्य से मिली फिर संविधान के माध्यम से लिंग, जाति, समुदाय में असमानता और अन्य भेदभाव की बेड़ियों से मुक्ति का रास्ता प्रश्स्त हुआ।
आप कानून के प्रहरी है। देश के संविधान का अच्छे से अध्ययन करें। हमारी राजनीतिक व्यवस्था, इसकी संस्थाओं और प्रक्रियाओं को समझें। उन विकल्पों का विश्लेषण करें जो देश को उसके मौजूदा रूप में बनाने के लिए किए गए थे। यह पहचानें कि इस देश को अपनी अधिकतम क्षमता तक पहुंचने में सक्षम बनाने के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण विकल्पों की आवश्यकता होगी।
आप इस देश के प्रतिभाशाली युवा दिमागों में से हैं। नीति निर्माताओं को सही नीतियां बनाने में मदद करें। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से दूर न जाएं। राष्ट्रीय मुद्दों पर पढ़ने, सीखने और विचार तैयार करने के लिए तत्पर रहें।
हमारे कानूनी और राजनीतिक संस्थानों को मजबूत और परिष्कृत करने में मदद करें। आपने यहां जो सीखा है उसे आगे बढ़ाएं और दूसरों को उनके अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारियों को समझने में मदद करें।
नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक बनें।
मुझे पता है कि आप में से कुछ कॉर्पोरेट वकील बनेंगे, कुछ मुकदमेबाजी करेंगे, कुछ अकादमिक क्षेत्र में काम करेंगे। लेकिन करियर के जिस पथ पर चाहे आप हों, जो भी विकल्प चुने, न्याय के लक्ष्यों (goals of justice) को बढ़ावा देते रहें।
कानूनी पेशे को अधिक inclusive (समावेशी) और accessible (सुलभ) बनाने का प्रयास करें।
यकीन मानों, आपके पास ऐसी Super-power है कि आप वंचित लोगों को सशक्त बना सकते हैं।
आज आप आधा दशक की कड़ी मेहनत के बाद अपनी यात्रा के अगले पड़ाव में प्रवेश कर रहे हैं। आपको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और नई जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ेंगी।
लेकिन मुझे यकीन है कि पांच साल के प्रशिक्षण में आपको न केवल अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बल्कि चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए भी अच्छी तरह से तैयार किया होगा।
प्रिय छात्रों, 
समाज में कानून और न्याय के रक्षकों के रूप में, समाज के वंचितों और गरीब वर्गों को न्याय दिलाना आपका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है, जिससे समाज में शांति और सद्भाव आएगा।
याद रखें कि कानूनी पेशेवरों के रूप में आप समाज पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।
परन्तु, त्रुटि और कमी के बिना कोई प्रयास नहीं होता; ‘‘गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।’’ (मतलब युद्ध के मैदान में लड़ते समय योद्धा ही गिरता है। जो घुटनों के बल चलते हैं वो क्या गिरेंगे।)
इसलिए, असफलताओं से भयभीत न होना, पराजय से निराश न होना। यह कानूनी पेशेवर होने का अभिन्न अंग है। हर दिन सीखने और विकसित होने का एक अवसर होता है।
महिला वकीलों को relatively male dominated profession में काम करना अधिक चुनौतीपूर्ण लग सकता है।
ऐसे में न्यायमूर्ति एम.फातिमा बीबी को जिन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं के लिए बंद दरवाजे खोले, को याद रखें।
जब उन्होंने त्रिवेन्द्रम के सरकारी लॉ कॉलेज में कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, तो वह अपनी कक्षा की पाँच छात्राओं में से एक थीं। 
एक मुस्लिम महिला होने के नाते, जब उन्होंने पुरुष प्रधान अदालत परिसर में वकालत शुरू की, यह वर्ष 1950 की बात है। 
बाद में वह न्यायिक सेवाओं में शामिल हो गईं और 1958 में केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ के रूप में नियुक्त हुईं। 
अपने धैर्य, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से, वह रैंकों में आगे बढ़ीं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होने वाली पहली महिला न्यायाधीश बनीं।
अंत में, मैं आप सब को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी द्वारा Young India Weekly Journal में 1925 में अपने लेख में जिन 7 sins से आगाह किया था, उनसे अवगत करवाना चाहूँगा । महात्मा गांधी ने कहा था किः-
Wealth without work (कर्म के बिना धन)
Pleasure without conscience (विवेक के बिना आनंद)
Knowledge without character (चरित्र के बिना ज्ञान)
Commerce without morality (नैतिकता के बिना व्यापार)
Science without humanity (मानवीयता के बिना विज्ञान)
Religion without sacrifice (त्याग के बिना धर्म)
Politics without principle (सिद्धांत के बिना राजनीति)
ये 7 sins हैं, इन्हें आजीवन याद रखें।
दीक्षांत समारोह के इस अवसर पर, मैं आज डिग्री प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मैं बधाई देता हूं और आप सभी से हमारे महान राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का नेतृत्व करने का आह्वान करता हूं।
आइए हम सब मिलकर अपने देश के प्रत्येक नागरिक के लिए ‘‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय ’’ को एक जीवंत वास्तविकता बनाएं।
मैं आप सभी की सफलता की कामना करता हूं। भगवान आप पर कृपा करें।
धन्यवाद
जय हिन्द!