SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARI LAL PUROHIT ON THE OCCASION OF PRAKASH UTSAV OF SRI GURU RAVIDAS JI AT SRI GURU RAVI DASS GURDWARA, SECTOR 30 CHANDIGARH ON 24.02.2024 AT 12.30 PM.

  • PRB
  • 2024-02-24 14:15

श्री गुरु रविदास जी प्रकाश उत्सव (24.02.2024)

 श्री गुरु रविदास प्रकाश उत्सव की सभी को बधाई।

 15वीं सदी के आरंभ में गुरु रविदास का जन्म हुआ।

 कहते हैं कि जब उनका जन्म हुआ तो उनके चेहरे पर सूर्य समान तेज था; इसी के अनुरूप आपका नाम रविदास रखा गया।

 श्री गुरु रविदास जैसे महान संतों का आगमन सदियों में कभी-कभी होता है।

 उन्होंने केवल अपने समकालीन समाज का ही नहीं बल्कि भावी समाज के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया था।

 मैं जब गुरु रविदास के जीवन दर्शन, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों और उनकी प्रासंगिकता पर विचार करता हूं तो मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सामाजिक न्याय, स्वतन्त्रता, समता तथा बंधुता के हमारे संवैधानिक मूल्य भी उनके आदर्शों के अनुरूप ही हैं।

 हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने संत रविदास की, संत-वाणी में व्यक्त अनेक आदर्शों को संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया है।

 हम सब जानते हैं कि संत रविदास जी की सबसे प्रमुख शिक्षा यह थी कि हर कोई अच्छा और नेक इंसान बने तथा परिश्रम व ईमानदारी के साथ जीविकोपार्जन करे।

भाइयों और बहनों,

 अच्छा इंसान वही है जो संवेदनशील है, जो समाज की मर्यादाओं का सम्मान करता है, जो कायदे-कानून और संविधान का पालन करता है।

 संत रविदास की वाणी में ईमानदारी से कमाई गई जीविका का आदर्श भी दिखाई देता है।

 अध्यात्म और भक्ति के मार्ग पर चलते हुए भी संत रविदास ने श्रम पर बहुत बल दिया था।

 वे कहते थेः

श्रम कऊ ईसर जानि के, जऊ पूजहि दिन रैन।

‘रविदास’ तिन्हहिं संसार मह, सदा मिलहि सुख चैन।

यानि श्रम को ही ईश्वर जानकर जो लोग दिन-रात श्रम की पूजा करते हैं उन्हें संसार के सभी सुख-चैन प्राप्त होते हैं।

 संत रविदास जी की महिमा को अनेक तत्कालीन संतों व महाकवियों ने अपने-अपने शब्दों में व्यक्त किया है।

 कबीर साहब कहते हैं, ‘‘संतनमें रविदास संत हैं’’ अर्थात गुरु रविदास संतों में भी श्रेष्ठ संत हैं।

 श्री गुरुग्रंथ साहिब में संत रविदास के लगभग चालीस पद संकलित हैं।

 संत रविदास को अपना गुरु मानते हुए मीराबाई कहती थीं: मीरां ने गोविंद मिल्या जी, गुरु मिल्या रैदास।

 ऐसी मान्यता है कि चित्तौड़ में रविदासजी की छतरी तथा ‘रविदासजी के चरण-चिह्न’ का निर्माण मीराबाई के द्वारा कराया गया था।

 गुरु रविदास के अनुयायी आज भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

 मेरा मानना है कि जो मानव-मात्र की समानता और एकता में विश्वास रखता है और जो सभी प्राणियों के प्रति करुणा और सेवा का भाव रखता है, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति गुरु रविदास का अनुयायी होता है।

 संत रविदास यह कामना करते थे कि समाज में समता रहे तथा सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों। सबके हृदय को छूने वाले शब्दों में उन्होंने कहा हैः

ऐसा चाहूं राज मैं, जहं मिले सबन को अन्न।

छोट बड़ो सब समबसै, रविदास रहे प्रसन्न।

 इस पद के माध्यम से उनका अभिप्राय थाः जहां सबका पेट भरा हो, कोई भूखा न हो, जहां पूरी तरह से समानता हो और जहां सभी सुखी हों- ऐसी व्यवस्था में ही रविदास प्रसन्न रहते हैं।

 आप सभी लोग जानते हैं कि गुरु रविदास जी ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त सुखमय समाज की कल्पना की थी और उसे

‘‘बे-गमपुरा’’ नाम दिया था।

 उन्होंने कहा थाः

बेगमपुरा सहर को नांउ,

दुखु अंदोह नहीं तिहि ठांउ।

अर्थातः बे-गमपुरा उस शहर का नाम है जहां किसी भी तरह के दुख या भय के लिए कोई स्थान नहीं है।

 भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने, संत रविदास के बे-गमपुरा के वर्णन वाले पद को, समाजवाद की प्रस्तावना कहा था।

 सम्भवतः, संत शिरोमणि रविदास, बे-गमपुरा शहर के रूप में, भारत देश की परिकल्पना की अभिव्यक्ति कर रहे थे।

 वे समता और न्याय पर आधारित देश के निर्माण के लिए अपने समकालीन समाज को प्रेरित कर रहे थे।

 आज हम सभी देशवासियों का यह कर्तव्य है कि हम सब ऐसे ही समाज व राष्ट्र के निर्माण हेतु संकल्पबद्ध होकर कार्य करें और संत रविदास के सच्चे अनुयायी कहलाने के योग्य बनें।

 संत शिरोमणि रविदास जी की स्मृति को नमन करते हुए, मैं आप सभी को पुनः बधाई देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!