SPEECH DELIVERED BY HON'BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARILAL PUROHIT ON THE OCCASION OF CONFERENCE ON

  • PRB
  • 2021-11-28 13:20

मुझे आज यहां आपके बीच ‘सामाजिक बदलाव हेतु आध्यात्मिकता’ के विषय पर करवाए जा रहे इस सम्मेलन में उपस्थित होकर बहुत प्रसन्नता हो रही है।

सबसे पहले, मैं आज यहां और पूरी दुनिया में मौजूद ब्रह्म कुमारीयों की सराहना करना चाहता हूं जो मानवता की सेवा के लिए शानदार प्रयास कर रही हैं।

माननीय अतिथिगण, देवियो और सज्जनो,

ब्रह्म कुमारी समुदाय के 142 देशों में 8,500 केंद्र हैं जो कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी इन्हें एक प्रभावशाली गैर सरकारी संगठन के तौर पर मान्यता दी है। मुझे इस बातर पर बहुत ही गर्व है कि इनकी उत्पत्ति हमारे देश से ही हुई है।

आज की कॉन्फ्रेंस का विषय ‘Spirituality for Social Transformation’, एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है।

हम अपने परिवारों, देशों, राजनीति, कार्यस्थलों और विभिन्न संबंधों के साथ बदलाव और संकट के एक अभूतपूर्व समय से गुज़र रहे हैं। आज लोग चिंता, असुरक्षा, अनिश्चितता और निराशा के जिस दौर से गुज़र रहे हैं पहले कभी नहीं गुज़रे। यह वास्तव में एक संकटपूर्ण और कठिनाईयों से भरा समय है। ऐसा लगता है कि जैसे हम सभ मानव जाति के रूप में बिना विचार और चिंतन के एक संकट के बाद दूसरे संकट से गुज़र रहे हों।

दुनिया का यह बाहरी रूप हमारे अंदरूनी रूप का ही प्रतिबिंब है; ऐसा लगता है जैसे हमारी सैद्धांतिक, नैतिक और आध्यात्मिक नींव कमजोर हो चुकी है। अहंकार, वासना और लालच की भावनाएं मानव जाति में गहराई तक समा चुकी हैं जो व्यक्तिगत संतुष्टि और लालच की संस्कृति को जन्म दे रही हैं। लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा रहे हैं। अपने साथ के लोगों की दुर्दशा के प्रति लोग कठोर और उदासीन हो गए हैं और उनका ध्यान और कार्य केवल उस चीज़ को प्राप्त करने पर केंद्रित होता है जो वे हासिल करना चाहते हैं, फिर चाहे इसके लिए दूसरों के सम्मान और अधिकारों को नुकसान ही क्यों न पहुंचता हो।

अब समय आ गया है जब हम अपना ध्यान अपने जीवन के सैद्धांतिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की ओर लगाएं और इनको मजबूत करें। यही वे मूल्य हैं जो वास्तव में एक उन्नत और खुशहाल समाज के आधार का निर्माण करते हैं।

यदि आज हम समाज में कोई सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो वह आध्यात्मिकता के बिना संभव ही नहीं है। समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मैं तो कहूंगा कि एक आध्यात्मिक क्रांति की जरूरत है।

आध्यात्मिकता से हमारे मन में शुद्ध व निर्मल विचार पैदा होते हैं। जिससे हमें सही व गलत का निर्णय कर पाना आसान हो जाता है। आध्यात्मिक शिक्षा से हम लगभग सभी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं।

सार्थक जीवन वही है जो दूसरों के काम आए। अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के जीवन में एक नई आशा की किरण पैदा कर सके, एक नई राह दिखा सके व सुख शांति का मार्ग प्रशस्त कर सके, वही महान है या यूं कहूं की वही इन्सान है।

आध्यात्म हमें दूसरों के लिए और समाज की भलाई के लिए जीवन जीना सिखाता है। आध्यात्मिकता के बिना जीवन मूल्यों की धारणा नहीं हो सकती है। समाज के सम्पूर्ण विकास के लिए आध्यात्म का रास्ता अपनाना होगा, इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। बिना आध्यात्मिक विकास किए हम केवल भौतिक विकास करने से ही अपने जीवन व समाज को शांतिमय और सुखमय नहीं बना सकते। इसलिए हमें भौतिकता के साथ आध्यात्मिक विकास की ओर भी ध्यान देना होगा।

हम आज जीवन में इतना दौड़ रहे हैं कि हमारे पास पीछे मुड़कर देखने का भी समय नहीं है कि हम कहाँ दौड़ रहे हैं और क्यों दौड़ रहे हैं? क्या बाहरी प्रगति करना ही हमारा लक्ष्य है? आज हमें अपने भीतर देखने का समय ही नहीं है। आध्यात्मिकता हमें अपने अन्दर झाँकने के लिए प्रेरित करती है। जीवन में परिपूर्णता, संतुष्टि और ख़ुशी केवल आध्यात्मिकता से ही आ सकती है।

किसी भी व्यक्ति के लिए अध्यात्म बहुत महत्वपूर्ण है। कभी-कभी, आध्यात्मिकता को धर्म के साथ जुड़ा समझा जाता है, लेकिन आध्यात्मिकता का अर्थ बहुत गहरा है और यह हमारे दैनिक जीवन के साथ एक मजबूत संबंध रखती है। आध्यात्मिक होने का अर्थ समर्पित होना है।राष्ट्र के विकास के लिए कड़ी मेहनत करना अपने आप में भक्ति और समर्पण का एक कार्य है। देश की प्रगति में योगदान देने और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए कड़ी मेहनत करना भी भक्ति और समर्पण का एक कार्य है। बच्चों के लिए अपने शिक्षकों और माता-पिता की बात सुनना भी भक्ति और समर्पण का एक कार्य है। बिना ध्यान भटकाए पढ़ाई करना और किसी भी गतिविधि के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना भी भक्ति और समर्पण का ही कार्य है।

आध्यात्मिकता नैतिक और सामाजिक सिद्धांतों के आधार का निर्माण करती है जिसने मानव जाति को सभ्य बनाया है। हम एक ऐसे देश और सभ्यता से संबंध रखते हैं जिसने हमेशा आध्यात्मिक विचारों को बहुत महत्व दिया है। यह भारत द्वारा दुनिया को दिए गए कई उपहारों में से एक है। जब आध्यात्मिक नेतृत्व की बात आती है तो प्राचीन काल से लेकर अब तक, भारत ने अन्य देशों के लिए मार्गदर्शक का कार्य किया है। हमें हमारे पूरे इतिहास में और वर्तमान में भगवान कृष्ण, भगवान राम, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, सम्राट अशोक, कबीर, गुरु नानक, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी जैसे महान आध्यात्मिक गुरूओं और शिक्षकों का आशीर्वाद मिला है। यह एक ऐसी भूमि है जहां 'धर्म राज्य' का अस्तित्व रहा है। यह एक ऐसा देश भी है जिसने अहिंसा का सहारा लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी। अध्यात्म की भारतीय विचारधारा तर्कयुक्त है। इसने कभी भी किसी प्रकार की राय या मतभेद पर रोक नहीं लगाई है। यह एक ऐसी विचारधारा है जिसने हमेशा विविधता में एकता का उपदेश दिया है। ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’, ये शब्द महा उपनिषद से हैं जिसका अर्थ विभिन्न मतभेदों के साथ दुनिया का एक परिवार के समान होना है! यह हमेशा से भारतीय जीवन शैली का एक हिस्सा रहा है और यह समृद्ध विरासत हमारी सबसे बड़ी ताकत है।

तो आज के दौर में हम भारतवासियों के लिए अध्यात्म का अर्थ क्या है?

मेरा मानना है कि इसका अर्थ एक ऐसा भारत है जो उन मूल्यों के साथ जीता है जिन्हें हमने हमेशा अपने इतिहास के माध्यम से कायम रखा हुआ है; एक ऐसा भारत जो विविधता को समाय हुए है, जो खुला और समावेशी है, जहां लोग समावेश और सहिष्णुता के मूल्यों के साथ रहते हैं। यह एक ऐसा भारत भी है जहां लोग उपलब्धि, व्यक्तिगत विकास और जीवन में संतुलन के लिए प्रयास करते हैं।

हमारे दार्शनिकों और आध्यात्मिक गुरूओं ने उच्च स्तर के जीवन को प्राप्त करने की आवश्यकता के बारे में बात की है। अध्यात्म मनुष्य में उस आंतरिक शक्ति को जगाता है जो लोगों को उनके जीवन में कठिनाइयों का सामना करने में मदद करती है।

देवियो और सज्जनों,

हम जो कुछ भी करते हैं अध्यात्म उसे एक श्रेष्ठ अर्थ प्रदान करता है। यदि हम अपने जीवन और संकट की स्थिति का उसी पवित्रता के साथ मुकाबला करें जैसा हम भगवान की पूजा करते हैं, तो हमें अपने जीवन में उत्थान की भावना के साथ-साथ एक बड़ी शक्ति से जुड़ा होने का अनुभव होगा। जरूरत है कि हम अपने लोगों के बीच प्रतिबद्धता और सकारात्मकता के दृष्टिकोण को बढ़ावा दें । भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद भगवद गीता के एक छंद के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन किया है जो कुछ इस तरह हैः

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।

असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः।।

जिसका अर्थ है कि, ‘‘हे अर्जुन, हमेशा अपने कर्तव्य का कुशलता से और परिणामों के बंधन के बिना पालन कर, क्योंकि बंधनमुक्त होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है’’।

आज की दुनिया में जो अब दिन प्रतिदिन अलग-थलग होती जा रही है, यह जरूरी है कि हम अपने विचारों, कर्मों और कार्यों में मार्गदर्शन के लिए आध्यात्मिकता का सहारा लें। अध्यात्म हमें यह सिखाता है कि दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। सभी धर्म मनुष्य की बुराइयों के खात्मे संबंधी मूल्यों को स्वीकार करते हैं। गीता कहती है कि ‘‘करुणा के मार्गदर्शन में सभी कार्य सावधानी से करें ’’।

अध्यात्म का अर्थ है दया, करुणा और निस्वार्थता का प्रदर्शन। यदि हमारे नागरिकों में ये मूल्य विकसित हो जाएं, तो समाज रहने के लिए एक अधिक खुशहाल और अधिक शांतिपूर्ण स्थान बन जाएगा और यह प्रभाव एक व्यापक समुदाय, समाज से राष्ट्र तक और अंत में पूरे विश्व में व्यापक रूप से देखने को मिलेगा।

दुनिया के हर एक हिस्से की अपनी खास विशेषताएं और महानता होती है। जर्मन लोगों के लिए समय की पाबंदी, जापानियों के लिए टीम वर्क, बर्तानवीयों के लिए शिष्टाचार और अमेरिकियों के लिए बिक्री कौशल ऐसे विशेष गुण हैं जो इन क्षेत्रों के लोगों में पाए जाते हैं और इसी तरह, आध्यात्मिकता भारत के लिए एक विशेष गुण है। अध्यात्म सहिष्णुता पर आधारित होने के साथ-साथ अन्य लोगों के विचारों की स्वीकृति पर आधारित होता है। आध्यात्मिकता समाज को एक ऐसे लक्ष्य की ओर ले जाने पर आधारित होता है जो स्वयं से परे है।

भारत एक बड़ी युवा आबादी वाला देश है। युवा हमारी सबसे बड़ी ताकत है और एक उज्जवल भविष्य के लिए हमारी आशा की किरण भी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे समृद्ध सभ्यता के मूल्य हमारे युवाओं में मौजूद हों। जिस प्रकार हम अपने सामाजिक और आर्थिक विकास के उच्च स्तर को पाने के लिए प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हमें यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि हम अपने मूल्यों और गुणों से जुड़े रहें।

आध्यात्मिकता हमें विकास के उस पथ पर ले जाएगी जो आत्मा और ज्ञान से समृद्ध है। मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन हमें इस लक्ष्य के करीब लाएगा।

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं और आप सभी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं!

धन्यवाद

जय हिन्द।