SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF OPENING SESSION OF TWO DAYS SANSKRIT CONFERENCE AT PATIALA ON AUGUST 19, 2025.
- PRB
- 2025-08-20 11:10
‘संस्कृत विचार-संगोष्ठी’ के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 19.08.2025, मंगलवार समयः सुबह 11:30 बजे स्थानः पटियाला
नमस्कार!
आज इस ‘संस्कृत विचार संगोष्ठी’ में सम्मिलित होकर मैं स्वयं को अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ। मैं ‘संस्कृत भारती पंजाब’ के साथ-साथ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली और पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के संस्कृत विभाग को इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए बधाई देता हूँ।
वर्ष 1981 में स्थापित संस्कृत भारती की समर्पित स्वयंसेवकों की विशाल टीम संस्कृत भाषा, साहित्य, परंपरा और ज्ञान को समाज के हर वर्ग तक पहुँचा रही है। इसने 1981 से लेकर अब तक 1 करोड़ लोगों को संस्कृत बोलने से परिचित कराने का काम किया है, 1 लाख से अधिक संस्कृत सिखाने वाले लोगों को प्रशिक्षित किया, 6 हज़ार परिवार ऐसे बने हैं जो आपस में सिर्फ संस्कृत में बात करते हैं।
संस्कृत भारती के 26 देशों में 4 हजार 5 सौ केन्द्र बने हैं और 2011 में विश्व के सबसे पहले विश्व संस्कृत पुस्तक मेले का आयोजन भी संस्कृत भारती ने किया था। उज्जैन में 2013 में साहित्योत्सव को भी संस्कृत भारती ने ही आयोजित किया था।
संस्कृत भारती की पंजाब इकाई की शुरूआत वर्ष 2011 में हुई और इस छोटे से कालखण्ड में सभी लोगों का विश्वास तथा स्नेह अर्जित करते हुए यह विभिन्न कार्यक्रमों को सफतापूर्वक चला रही है।
वर्ष 1970 में स्थापित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली आज संस्कृत भाषा, साहित्य और भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण एवं प्रसार का एक प्रमुख केंद्र है।
वहीं यदि हम वर्ष 1962 में स्थापित अपनी इस पंजाबी युनिवर्सिटी की बात करें, तो इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य पंजाबी भाषा, कला और साहित्य का संरक्षण तथा संवर्धन करना रहा है।
यह गौरव का विषय है कि यह विश्वविद्यालय विश्व का दूसरा विश्वविद्यालय है, जिसका नाम किसी भाषा पर आधारित है; इससे पहले केवल इज़राइल का हिब्रू विश्वविद्यालय ही इस श्रेणी में आता है।
इसका संस्कृत विभाग विश्वविद्यालय के प्रारंभिक विभागों में से एक है और अपने आरंभ से ही संस्कृत भाषा, साहित्य तथा भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण, अध्ययन और अनुसंधान हेतु निरंतर कार्यरत है।
पंजाबी विश्वविद्यालय हाल ही में ‘आउटलुक-आई.सी.ए.आर.आई. रैंकिंग 2025’ में 47वां स्थान प्राप्त कर देश के शीर्ष 50 विश्वविद्यालयों में शामिल हो गया है, जो हम सभी के लिए गर्व का विषय है।
देवियो और सज्जनो,
संस्कृत हमारी संस्कृति, परंपरा और ज्ञान-विज्ञान की जननी है। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता जैसे कालजयी ग्रंथों से लेकर आयुर्वेद, गणित, खगोल, दर्शन और नीतिशास्त्र तक, ये सब हमारे संस्कृत भाषा में ही निहित है। यहाँ तक कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भी संस्कृत भाषा का प्रयोग देखने को मिलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि संस्कृत केवल एक भाषा भर नहीं है, बल्कि भारतीय आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धारा का अभिन्न अंग रही है।
वेदों में पंजाब की इस भूमि को सप्तसिंधु कहा गया है। सिंधु का अर्थ है नदी और भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में फैलीं सिंधु, सरस्वती, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास नदियों वाला एक क्षेत्र हुआ, यह पुण्य क्षेत्र जिस पर आप आज बैठे हैं।
इसी सप्तसिंधु क्षेत्र को वैदिक संस्कृति का जन्मस्थल माना जाता है, जो कश्मीर, पाकिस्तान और पंजाब के अधिकांश भागों में फैला था। यहीं पर विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत जन्मी।
पंजाब की भूमि ने संस्कृत भाषा में हमें वेद दिए, शास्त्र दिए और ऋषि पाणिनि जैसे रत्न दिए जिन्होंने व्याकरण का अद्वितीय ग्रंथ अष्टाध्यायी की रचना की, जो आज भी विश्व के सबसे व्यवस्थित और वैज्ञानिक व्याकरणों में गिना जाता है।
संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो न सिर्फ सबसे अधिक वैज्ञानिक है बल्कि इसके व्याकरण का भी कोई जोड़ नहीं है। दुनिया में छंद और मात्रा सबसे पहले अगर किसी भाषा में संशोधित किए गए तो वो संस्कृत में ही किए गए और इसी कारण आज भी संस्कृत ज़िंदा है।
संस्कृत की महिमा को हमारे आचार्यों ने भी बड़े सुंदर ढंग से व्यक्त किया हैः
“संस्कृतं नाम दैवी वाक्, अन्वाख्याता महर्षिभिः।
ऋषिभिः पालिता चौव, स्वर्गे अपि प्रयुज्यते।।”
अर्थात् संस्कृत दिव्य वाणी है, जिसे महर्षियों ने प्रचारित किया, ऋषियों ने संरक्षित किया और जिसका प्रयोग स्वर्ग में भी होता है।
देवियो और सज्जनो,
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में आज देश में संस्कृत के उत्थान के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध है। केन्द्र सरकार की अष्टादशी योजना के तहत लगभग 18 परियोजनाओं को लागू किया गया है, दुर्लभ संस्कृत पुस्तकों के प्रकाशन, थोक खरीद और उन्हें दोबारा प्रिंट करने के लिए भी भारत सरकार वित्तीय सहायता देती है। प्रख्यात संस्कृत पंडितों की सम्मान राशि में भी वृद्धि की गई है।
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान को केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में अपग्रेड किया गया है। शास्त्र चूड़ामणि योजना के माध्यम से सेवानिवृत्त हो चुके प्रख्यात संस्कृत विद्वानों को अध्यापन के लिए नियुक्त किया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रूपए के आधार कोष के साथ ज्ञान भारतम मिशन की शुरूआत की है और हर बजट में इसके लिए एक निश्चित राशि आवंटित की जाएगी।
अब तक 52 लाख से अधिक पांडुलिपियों का डॉक्यूमेंटेशन, साढ़े तीन लाख पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया गया है औऱ namami.gov.in पर 1 लाख 37 हजार पांडुलिपियां उपलब्ध कराई गई हैं। दुर्लभ पांडुलिपियों का अनुवाद और उनके संरक्षण के लिए हर विषय और भाषा के विद्वानों की टीम गठित की गई है।
देवियो और सज्जनो,
हम किसी भी भाषा का विरोध नहीं करते लेकिन कोई अपनी मां से कटकर नहीं रह सकता और देश की लगभग सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है। संस्कृत जितनी समृद्ध औऱ सशक्त होगी, उतनी ही देश की हर भाषा औऱ बोली को ताकत मिलेगी।
भारत की अधिकतर भाषाओं की जननी संस्कृत ही है और इसीलिए संस्कृत को आगे बढ़ाने का काम न सिर्फ संस्कृत के बल्कि भारत के उत्थान के साथ भी जुड़ा है। अनेक विषयों में हज़ारों सालों से जो चिंतन मंथन हुआ और अमृत निकला है, उसे संस्कृत में ही संग्रहित कर रखा गया है। हर क्षेत्र में संस्कृत में ज्ञान का भंडार उपलब्ध है जिसका लाभ पूरे विश्व को मिलना चाहिए।
आज जब हम 21वीं शताब्दी में विज्ञान और तकनीक की नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं, तब भी संस्कृत का महत्व और भी बढ़ जाता है। दुनिया के अनेक विश्वविद्यालय संस्कृत पर शोध कर रहे हैं, क्योंकि यह भाषा तार्किक संरचना और वैज्ञानिक दृष्टि से समृद्ध है।
बच्चों में संस्कृत के प्रति रुचि जागृत करना, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इसे आधुनिक तरीके से पढ़ाना, और संवाद की भाषा के रूप में प्रयोग करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
हम सभी संस्कृत-प्रेमियों का यह दायित्व है कि हम एक मंच पर एकत्र होकर गहन चिंतन-मनन करें और ठोस, व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास करें, जिससे संस्कृत के संरक्षण, संवर्धन और पुनर्जीवन की दिशा में सार्थक कदम उठाए जा सकें।
मैं इस संगोष्ठी के माध्यम से यह आग्रह करना चाहूँगा कि हम सब मिलकर संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने का संकल्प लें। नई शिक्षा नीति 2020 ने भी भारतीय भाषाओं, विशेषकर संस्कृत, के प्रोत्साहन पर विशेष बल दिया है।
इस अवसर पर मैं यह भी कहना चाहूँगा कि केवल संस्कृत ही नहीं, बल्कि हमारी सभी क्षेत्रीय भाषाएँ हमारे लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें हमारी संस्कृति, परंपरा और अस्मिता सुरक्षित है। यदि हम इन्हें नज़रअंदाज़ करेंगे तो हमारी जड़ें ही कमजोर हो जाएँगी।
आज यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि आने वाले समय में दुनिया सहित हमारे देश की अनेकों भाषाएं लुप्त होने के खतरे से जूझ सकती हैं। यह पूरे भारत के लिए चिंताजनक है, क्योंकि हर भाषा अपने भीतर एक अनमोल सांस्कृतिक धरोहर समेटे हुए है।
अतः यदि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है तो भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन अनिवार्य है। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी पहचान और विरासत है। संस्कृत, पंजाबी, हिंदी या कोई अन्य भारतीय भाषा–सभी का संरक्षण हमारे सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए आवश्यक है।
यहाँ मैं एक और महत्त्वपूर्ण बात कहना चाहूँगा कि यदि हम अपनी भाषाओं को रोज़गार और व्यावहारिक जीवन से जोड़ दें, तो न केवल उनका संरक्षण और संवर्धन संभव होगा, बल्कि युवाओं के लिए नए अवसर भी उत्पन्न होंगे।
इस प्रकार भाषा केवल परंपरा तक सीमित न रहकर विकास और आत्मनिर्भरता का साधन भी बन सकती है। जब हमारी भाषाएँ जीवित रहेंगी, तभी हमारी भारतीय संस्कृति और परंपराएँ भी जीवित और सशक्त बनी रहेंगी।
अंत में, मैं पुनः संस्कृत भारती, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली और पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के संस्कृत विभाग को इस सफल आयोजन के लिए बधाई देता हूँ।
आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि “संस्कृतं जननी, संस्कृतं चेतना, संस्कृतं भविष्यस्य आधारः।” संस्कृत हमारी जननी है, संस्कृत हमारी चेतना है और संस्कृत हमारे उज्ज्वल भविष्य का आधार है।
इसी शुभकामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
धन्यवाद,जय हिंद!