SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF PROGRAMME FOR AWARDING FAMILY MEMBERS OF ORGAN DONORS AT GMSH, SECTOR 16, CHANDIGARH ON SEPTEMBER 17, 2025.

  • PRB
  • 2025-09-18 12:45

अंग दाताओं के पारिवारिक सदस्यों के सम्मान समारोह के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 17.09.2025, बुधवार

समयः शाम 5:00 बजे

स्थानः चंडीगढ़

नमस्कार!

आज का यह अवसर अत्यंत विशेष और भावनात्मक है। हम सभी यहां उन 5 परिवारों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एकत्र हुए हैं, जिनके प्रियजनों ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी दूसरों को नया जीवन देने का अद्वितीय और अमूल्य उपहार दिया।

यह सिर्फ़ दान नहीं, बल्कि जीवन के सबसे कठिन समय में भी निस्वार्थ सेवा और करुणा का अद्वितीय उदाहरण है। इन परिवारों ने दर्द और पीड़ा के बीच भी जिस साहस और उदारता का परिचय दिया है, वह हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। इनकी इस अमूल्य भेंट ने न केवल कई व्यक्तियों को जीवनदान दिया है, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया है कि सच्ची महानता वही है जो अपनी अंतिम सांस तक दूसरों की भलाई के लिए समर्पित हो।

आज हम इन महान आत्माओं को नमन कर रहे हैं और उनके परिवारों का हार्दिक सम्मान कर रहे हैं, जिन्होंने अपनी गहरी व्यक्तिगत क्षति को मानवता की सेवा का अवसर बनाया।

आज जब हम आपको यह सम्मान पत्र प्रदान कर रहे हैं, तो यह केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि हमारे गहरे आभार और सम्मान का प्रतीक है। आपके प्रियजन भले ही हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनके अंगों के माध्यम से कई जीवन धड़क रहे हैं।

मैं स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सक समुदाय के अथक और समर्पित प्रयासों की हृदय से सराहना करता हूँ। किन्तु मेरा सबसे गहरा आभार आप सभी परिवारों के प्रति है, जिन्होंने अपने अमूल्य त्याग से सच्चे अर्थों में मानवता की ज्योति प्रज्वलित रखी।

देवियो और सज्जनो,

हमारे देश की परंपरा अद्वितीय है। हमने असंख्य ऐसे महानुभाव देखे हैं, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया। कोई ऐसे हैं जो अपनी पूरी पेंशन बेटियों की शिक्षा पर लगा देते हैं, तो कोई अपने जीवन की कमाई का हर अंश पर्यावरण और जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए अर्पित कर देते हैं। यह कोई साधारण बात नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक आत्मा का परिचायक है।

भारत की परंपरा में निस्वार्थ दान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। यही कारण है कि हमारे देशवासी दूसरों की मुस्कान और उनकी भलाई के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। यह भावना किसी उपदेश से पैदा नहीं हुई है, यह हमारी मिट्टी में रची-बसी है।

इसीलिए तो बचपन से हमें हमारे घर-परिवार में उन कथाओं से अवगत कराया जाता है जो त्याग और बलिदान के उत्तम उदाहरण हैं। हमें ऋषि दधीचि की गाथा सुनाई जाती है जिन्होंने असुरों के नाश और देवताओं के कल्याण के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया। हमें राजा शिवि की कथा सुनाई जाती है जिन्होंने किसी पक्षी की रक्षा हेतु अपने शरीर का मांस काटकर अर्पित कर दिया। 

ये कथाएँ केवल अतीत की स्मृतियाँ नहीं हैं, बल्कि वे हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा परोपकार कैसा होता है। यह एक ऐसा परोपकार है, जहाँ अपना स्वार्थ शून्य हो जाता है और दूसरों की भलाई ही जीवन का ध्येय बन जाता है।

देवियो और सज्जनो,

आज जब हम अंगदान की बात करते हैं, तो यह कोई नई अवधारणा नहीं है। वास्तव में यह हमारी उसी समृद्ध परंपरा की आधुनिक अभिव्यक्ति है। जो आत्मा हमारे पूर्वजों को प्रेरित करती रही, वही आत्मा आज हमें अंगदान की दिशा में आगे बढ़ाती है।

अंगदान वह पुण्य है, जो जीवन से परे जाकर भी अनेक जीवनों को धड़कन और साँसों का उपहार देता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री कई अवसरों पर इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि ‘‘जीवन का सबसे बड़ा दान, अंगदान है।‘’

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के इस युग में अंगदान किसी को जीवन देने का अत्यंत महत्वपूर्ण साधन बन चुका है। कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद शरीर का दान करता है, तो आठ से नौ लोगों को नया जीवन मिलने की संभावना बनती है। 

यह संतोष का विषय है कि आज हमारे देश में अंगदान के प्रति जागरूकता निरंतर बढ़ रही है। वर्ष 2013 में हमारे देश में अंगदान के 5 हजार से भी कम मामले थे, लेकिन 2024 में यह संख्या बढ़कर 18 हजार से अधिक हो गई। जिन्होंने यह पुण्य कार्य किया है, वे और उनका परिवार वास्तव में महान पुण्य के भागीदार बने हैं।

आज के इस अवसर पर मैं एक ऐसे ही प्रेरणादायक परिवार की बात करना चाहता हूं जिसका उल्लेख हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने मन की बात के 99वें ऐपीसोड में भी किया था। 

यह परिवार अमृतसर, पंजाब का रहने वाला है। पिता का नाम सुखबीर सिंह संधू है और माँ का नाम सुप्रीत कौर है। न जाने कितनी प्रार्थनाओं के बाद इस दंपत्ति के घर एक बहुत ही सुंदर कन्या का जन्म हुआ। परिवार ने प्यार से उसका नाम अबाबत कौर रखा। ‘अबाबत’ शब्द का अर्थ है दूसरों की सेवा करना, उनके दुःख को दूर करना।

लेकिन केवल 39 दिन की आयु में ही वह नन्हीं परी हमें छोड़कर चली गई। उस कठिन समय में भी सुखबीर सिंह जी, सुप्रीत कौर जी और उनके पूरे परिवार ने एक अत्यंत प्रेरणादायक निर्णय लिया। उन्होंने अपनी मात्र 39 दिन की बेटी का अंगदान करने का संकल्प लिया।

उनका यह निर्णय केवल साहस नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का एक उज्ज्वल उदाहरण है। यह संदेश देता है कि जीवन की आयु चाहे छोटी हो या बड़ी, उसका उद्देश्य मानवता की सेवा से ही महान बनता है।

साथियो,

संख्या की दृष्टि से देखें तो हमारे देश में प्रतिवर्ष लाखों ऐसे मरीज हैं जिन्हें हृदय, किडनी, लिवर, और अन्य महत्वपूर्ण अंगों की आवश्यकता होती है। परंतु दानदाताओं की कमी के कारण केवल कुछ ही लोगों को नया जीवन मिल पाता है। यह कमी तभी पूरी हो सकती है जब अधिक से अधिक लोग इस पुण्यकार्य से जुड़ें।

हमारे वेद और शास्त्र, ज्ञान और विवेक के भंडार हैं। उनमें भी बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि परोपकार ही सच्चा धर्म है। प्रश्न यह है कि यदि भारत, जिसकी जड़ें ही त्याग और सेवा की संस्कृति में हैं, अंगदान जैसे कार्य में विश्व का अग्रदूत नहीं बनेगा, तो कहीं न कहीं हमारी श्रद्धा और निष्ठा में कमी प्रतीत होती है।

साथियो, जब बीमार व्यक्ति का महंगा उपचार कारगर नहीं होता, तब न केवल मरीज टूट जाता है बल्कि परिवार भी आर्थिक बोझ और मानसिक संघर्ष से गुजरता है। अंगदान इसका सरल और व्यावहारिक उपाय है। जैसे-जैसे अंगदान बढ़ेगा, वैसे-वैसे हमारे समाज में स्वस्थ और सक्षम लोग बढ़ेंगे। हमारी चिकित्सा बिरादरी और अधिक मजबूत होगी; उसमें और विशेषज्ञता आएगी।

कभी सोचा था, कि इस भारत में हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल होगा? पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन आज गाँव का साधारण व्यक्ति भी मोबाइल से लेन-देन करता है। क्यों? क्योंकि यह उसकी आवश्यकता बन चुका है। जैसे रिमोट टेलीविज़न के लिए आवश्यकता है, वैसे ही अंगदान आज समाज की आवश्यकता है।

हमारी अमर संस्कृति क्या कहती हैः सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।। यही वह भावना है जो हमें रक्तदान, नेत्रदान, त्वचा दान, लिवर, किडनी, मस्तिष्क जैसे मृत्युपरांत अंगदान के लिए प्रेरित करती है। यह सेवा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक स्तर की क्रिया है।

अब भी समाज में एक गहरी मानसिक बाधा बनी हुई है। जाने वाला दान करना चाहता है, पर परिवार भावनाओं में डगमगा जाता है। यही समय है इस मानसिक रुकावट को समाप्त करने का। अंगदान मानवीय करुणा की सबसे उच्चतम अभिव्यक्ति है। अंगदान कोई लेन-देन नहीं, यह तो पुण्य की साधना है। यह कभी पैसों के लिए नहीं होना चाहिए। न ही रोजगार या किसी लालच के लिए। यह आत्मा की प्रेरणा है, करुणा का संकल्प है।

दुर्भाग्यवश, कुछ एक जगहों पर चिकित्सा पेशे में भी व्यावसायिकता का एक विकार उत्पन्न हुआ है। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह पेशा ईश्वरतुल्य है। मरीज अपने डॉक्टर को भगवान मानता है। कोविड के कठिन समय में हमारे डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य योद्धाओं ने अपने प्राणों का जोखिम लेकर मानवता की रक्षा की है। यदि कुछ गिने-चुने लोग इस महान पेशे पर कलंक लगाने का प्रयास करते हैं, तो हमें उन्हें उजागर भी करना होगा। वे दिलहीन हैं और समाज की सहानुभूति के योग्य नहीं हो सकते।

अंगदान का कार्य किसी शोषण का क्षेत्र नहीं बन सकता। यह मानवता की सबसे पवित्र साधना है। हमें इस विकार को समाप्त करना है ताकि अंगदान केवल और केवल सेवा और त्याग का प्रतीक बनकर ही आगे बढ़े।

मेरी आप सभी नागरिकों से हार्दिक अपील है कि हम इन महान दाता परिवारों से प्रेरणा लें और स्वयं भी अंगदान का संकल्प करें, ताकि अनगिनत जीवन बच सकें और अनेक घरों में नई रोशनी पहुँच सके।

चंडीगढ़ प्रशासन और यहाँ की जनता की ओर से मैं आप सभी दाता परिवारों को अपनी गहरी श्रद्धांजलि और हृदय से आभार प्रकट करता हूँ। आप सभी का यह त्याग हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का दीपस्तंभ बनेगा।

आइए, मिलकर संकल्प लें कि अंगदान को एक सामाजिक आंदोलन का रूप देंगे और भारत को इस वैश्विक मानवीय पहल में अग्रणी बनाएँगे।

धन्यवाद,

जय हिंद!