SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR OF PUNJAB & ADMINISTRATOR U.T. CHANDIGARH SH. BANWARILAL PUROHIT ON THE OCCASION OF MAHAVIR JAYANTI AT CHANDIGARH ON 14 APRIL, 2022

  • PRB
  • 2022-04-14 18:45

महावीर जयंती के इस पावन अवसर पर मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। साथ ही मेरी ओर से आप सभी को बैसाखी एवं अम्बेडकर जयंती की भी बधाई।

ऐसे समय में जब दुनिया विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रही है और हम उनसे निपटने के तरीके और साधन तलाश रहे हैं, तो भगवान महावीर जी की शिक्षाओं और जीवन-दर्शन का महत्व बहुत बढ़ जाता है।

वर्तमान समय हमारे लिए उनके संदेश और शिक्षाओं को आत्मसात करने का समय है ताकि हम मौजूदा संकट और समस्याओं से बेहतर ढंग से निपट पाएं।

महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। हिंसा , पशुबलि , जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़़ गया , उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य , अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

भगवान महावीर जी ने एक ऐसे जीवन-दर्शन का प्रतिपादन किया जिसका एकमात्र उद्देश्य मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना था। उन्होंने कर्म के सिद्धांत का दृढ़ता से पालन किया और बताया कि यह हमारे कर्म ही हैं, जो हमारे भाग्य का निर्धारण करते हैं। उनके इस संदेश का अर्थ यह है कि, कैसे कोई जन्म, जीवन, दुख, दर्द और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने मुक्ति प्राप्त करने के लिए हमेशा सम्यक दर्शन या सही आस्था, सम्यक ज्ञान यानि सही ज्ञान और सम्यक चरित्र भाव सही आचरण की वकालत की। सही आचरण को निरूपित करने के लिए, उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा लोगों, स्थानों व भौतिक वस्तुओं से पूर्ण अलगाव या अपरिग्रह के पांच आवश्यक सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझाया। अपने जीवन काल में उन्होंने कई सामाजिक बुराइयों को दूर करने और समाज को सुधारने के लिए इन्हीं सिद्धांतों का इस्तेमाल किया।

भगवान महावीर जी ने धर्म को जटिल कर्मकांडों से मुक्त कर इसे सरल बनाया। उन्होंने सिखाया कि मानव जीवन सर्वोच्च है और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण का होना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने करूणा के सार्वभौमिक सिद्धांत का प्रचार किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी प्राणी एक समान हैं फिर चाहे उनका आकार और रूप कुछ भी हो और वे एक समान प्रेम और सम्मान के पात्र हैं।

भगवान महावीर जी के जीवन-दर्शन और शिक्षा का सार्वभौमिक सत्य आज भी आधुनिक दुनिया के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की उनके जीवन काल में था। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का पतन, युद्ध और आतंकवाद के माध्यम से हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता और गरीबों के आर्थिक शोषण जैसी समकालीन समस्याओं के उत्तर उनकी शिक्षाओं में मिल सकते हैं।

पर्यावरण के प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के पतन जैसी समस्याओं ने आज पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।भगवान महावीर जी के ‘‘शतजीवनिकाय’’ और ‘‘अहिंसा’’ के सिद्धांत इस बढ़ते संकट को दूर करने के लिए सार्थक उपाय हैं। शतजीवनिकाय ने प्राणियों को छह प्रकार की शारीरिक रचना के रूप में दर्शाया है जिसमें 2 से 5 इंद्रियों वाले चलने-फिरने वाले प्राणी, तथा जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और पौधे जैसे एक इंद्री वाले प्राणी शामिल हैं। अहिंसा का व्यवहार केवल मनुष्यों के प्रति ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के प्राणियों के प्रति होना चाहिए।

क्या खूबसूरत व अनुकरणीय विचार व विचारधारा है!

इस प्रकार की विचारधारा मानव को प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय अत्यधिक सावधानी बरतने और पर्यावरण को प्रदूषित करने से रोकने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

महावीर स्वामी की शिक्षाएं आर्थिक असमानता को कम करने की आवश्यकता के अनुरूप हैं। उन्होंने बताया कि अनुपलब्धता और अधिक उपलब्धता दोनों ही खतरनाक हैं। थोड़े से लोगों के हाथों में धन का होना आज बढ़ती असहिष्णुता का एक कारण है।

उन्होंने स्वामित्व की भावना को समाप्त करने और इसे धन की अमानतदारी की अवधारणा से बदलने का विचार दिया। महावीर स्वामी ने इस आदर्श के गुण को स्वयं के उदाहरण द्वारा दर्शाया। उन्होंने अपना धन-दौलत पूरी तरह से त्याग दिया और सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए वैरागी का जीवन व्यतीत किया।

भगवान महावीर जी समझते थे कि व्यक्तिगत क्षमताओं और जरूरतों में अंतर मौजूद है। इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों को उनकी अपनी बेहतरी पर ध्यान केंद्रित करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए करुणा, समता, प्रेम और सहिष्णुता रूपी ‘‘सामाजिक-अहिंसा’’ का प्रचार किया।

उनकी शिक्षाएँ आज भी बहुत उपयुक्त और प्रासंगिक हैं। उनका मानना था कि व्यक्ति न तो दलित होता है और न ही जन्म से धन्य होता है। उन्होंने बताया कि मनुष्य को उसके जन्म से नहीं बल्कि उसके कार्यों से जाना जाना चाहिए। आधुनिक समाज के निर्माताओं द्वारा इस तरह के सिद्धांतों का पालन करने से एक न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होगा।

दुर्भाग्यवश आज दुनिया नस्ल, धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर बंटी हुई है। यह इस तरह के अलगाव से उत्पन्न होने वाले कई टकरावों से भी प्रभावित है। भगवान महावीर जी ने अनेकान्तवाद या विचारों की बहुलता का सिद्धांत दिया और कहा कि परस्पर विरोधीयों का सह-अस्तित्व होता है , जैसे सफेद और काले या अमीर और गरीब। उन्होंने सामाजिक अहिंसा और आपसी बातचीत के माध्यम से मतभेदों और भिन्नताओं को दूर करने का संदेश दिया। आज के समय में इससे ज्यादा प्रासंगिक और कुछ नहीं हो सकता।

इसलिए जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश यही होता है- अहिंसा ही परम धर्म है। अहिंसा की परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है। अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म है। यही मानव का सच्चा कर्म है।

महावीर स्वामी ने अपने समय में जिस अहिंसा के सिद्धांत का प्रचार किया, वह निर्बलता और कायरता उत्पन्न करने के बजाय राष्ट्र का निर्माण और संगठन करके उसे सब प्रकार से सशक्त और विकासित बनाने वाली थी। उसका उद्देश्य मनुष्य मात्र के बीच शांति और प्रेम का व्यवहार स्थापित करना था, जिसके बिना समाज कल्याण और प्रगति की कोई आशा नहीं रखी जा सकती।

यद्यपि अहिंसा का प्रतिपादन सभी धर्मोपदेशकों ने अपने-अपने ढंग से किया है, पर जिस प्रकार महावीर जी ने अहिंसा पर सबसे अधिक बल देकर उसी को अपने धर्म का मूलमंत्र बनाया, ऐसा शायद ही किसी और ने किया हो।

वो कहते हैं न कि जहां अहिंसा है, वहां एकता है। जहां एकता है, वहां अखंडता है; जहां अखंडता है, वहां उत्कृष्टता है।

बन्धुओं,

भारत तो एक ऐसा देश है जिसने अहिंसा का सहारा लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी।

भगवान महावीर जी के सिद्धांत बहुआयामी विकास की बात करते हैं। उन्होंने कहा था, ‘‘सभी प्राणियों की प्रकृति खुश रहना है। हर कोई दुख-दर्द को खत्म करना चाहता है ताकि वह हमेशा के लिए खुश रह सके’’। व्यापक स्तर पर देखें तो, एक देश या समुदाय की खुशी सतत विकास, सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण व संवर्धन, प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण और सुशासन की स्थापना के स्तंभ पर टिकी होती है। ये आज किसी भी लोकतांत्रिक राजनीति के अनिवार्य लक्ष्य हैं, जिन्हें भगवान महावीर जी की शिक्षाओं का पालन करके हासिल किया जा सकता है।

भगवान महावीर जी के जीवन-दर्शन से जुड़े तीन ‘‘अ’’ हिंसा, नेकान्त और परिग्रह आधुनिक समय की कई समस्याओं के उत्तर प्रदान कर सकते हैं।

आज के समय में जहाँ हर समय मनुष्य को विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और जीवन निर्वाह करने के लिए शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक तकलीफों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में हमें भगवान् महावीर जी की शिक्षा को खुद के अंदर धारण करना चाहिए, और उनके सिखाये हुए सिद्धांतों को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।

आशा है कि जैन समाज की ओर से भगवान महावीर जी के जीवन को प्रचारित व प्रसारित करने के लिए आयोजित कार्यक्रमों से सत्य, अहिंसा और शांति के आदर्शों के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

मैं एक बार फिर अपने सभी जैन भाइयों और बहनों को महावीर जयंती पर शुभकामनाएं देता हूं।

भगवान महावीर हमें आशीर्वाद दें।

धन्यवाद,

जय हिन्द!