SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR OF PUNJAB AND ADMINISTRATOR UNION TERRITORY OF CHANDIGARH, SHRI BANWARILAL PUROHIT ON THE OCCASION OF GANDHI JAYANTI AT GANDHI SMARAK BHAWAN, SEC-16, CHANDIGARH AT 11.00 AM ON 2ND OCTOBER, 2022

  • PRB
  • 2022-10-02 12:25

गांधी जयंती सभी भारतीयों के लिए एक विशेष दिन है। यह हमारे लिएगांधीजी के संघर्ष और त्याग को स्मरण करने का अवसर है।

प्रत्येक वर्ष 2 अक्तूबर के दिन, भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में गांधी जी का पावन स्मरण किया जाता है। गांधीजी संपूर्ण मानवता के प्रेरणा-स्त्रोत हैं।

उनकी अमर-गाथा, समाज के कमजोर से कमजोर व्यक्ति को शक्ति और संबल प्रदान करने वाली है। सत्य, अहिंसा और प्रेम का उनका संदेश समाज में समरसता और सौहार्द लाकर , विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

विश्व में गांधीजी को उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है और उनके जन्म-दिवस को अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। गांधीजी कहते थे किअहिंसा एक दर्शन है, एक सिद्धांत है और एक अनुभव है, जिसके आधार पर समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।

सभी राष्ट्र और सभी लोग अब यह बात अच्छी तरह से समझने लगे हैं किहिंसा और हथियार, किसी भी समस्या का समाधान नहीं हैं।

आज विश्व में हिंसात्मक गतिविधियों में तेजी से हो रही वृद्धि, सभी देशों के लिए गहन चिंता का विषय है। इस दृष्टि से महात्मा गांधी की सत्य एवं अहिंसावादी नीति को विश्व को अपनाना होगा और यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने सत्य एवं अहिंसा की उपादेयता को समझ कर गांधीजी के जन्म दिवस को अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।

अलगाववाद एवं आतंकवाद की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने के लिएवैचारिक क्रांति लाने की ऐतिहासिक आवश्यकता है।यह क्रांति राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के विचारों , सिद्धांतों और आदर्शों को आत्मसात करने से ही मूर्तरूप ले सकती है।

हम सब जानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से मुक्ति के संघर्ष का नेतृत्व नेल्सन मंडेला और आर्कबिशप डेसमंड टूटू ने किया था, जिन्होंने गांधीजी की अहिंसक विरोध की अवधारणा को स्वीकार किया था। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने हथियारों के इस्तेमाल के बिना ही अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकियों के लिए समान अधिकारों की लड़ाई का नेतृत्व किया, यूनियन लीडर लेच वालेसा ने पोलैंड को इसी तरह से लोकतंत्र की ओर अग्रसर किया। बर्मा में, आंग सान सू की ने गांधीजी के सिद्धांतो का अनुसरण करते हुए अपने लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं का नेतृत्व किया।

मित्रों,

जो सत्य का अनुसरण करते हैं,जो सत्य को भगवान का रूप मानते हैं, जो सत्य नारायण के भक्त हैं, वे दूसरों की जान नहीं लेते, बल्कि अपना बलिदान देते हैं। गांधीजी ने अपने हत्यारे की गोलियों को अपने होठों पर राम नाम रखकर स्वीकार करते हुए हमारे समक्ष अहिंसा का एक ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया।

मित्रों,

हमारे स्वतंत्रता संग्राम में 1857 की क्रांति सबसेमहान घटना है और महात्मा गांधी सबसेमहान व्यक्तित्व हैं। सन् 1919 से 1947 का काल तो गांधी-युग के नाम से ही जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में चलाए गए प्रत्येक जन-आन्दोलन में उनके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने एक स्थान पर उनकी लोकप्रियता का उदाहरण देते हुए लिखा था:-

‘‘गांधीजी ने बारी-बारी से एक-एक प्रान्त का भ्रमण किया। वह उसके हर जिले और करीब-करीब हर महत्वपूर्ण कस्बे में गए और दूर के देहाती हिस्सों में भी गए। हर जगह उनके लिए भारी भीड़ जमा होती थी। उनके लिए इकट्ठी हुई भीड़ों को देखकर ताज्जुब किये बगैर न रहता। आदमियों का मजमा देखकर टिड्डी दल की याद आती थी। जब हम देहात में मोटर से गुजरते थे, तो कुछ-कुछ मीलों के फासले पर ही दस हजार से लेकर पच्चीस हजार तक की भीड़ हमें मिला करती थी और सभाओं में तो अक्सर लाख-लाख से भी ज्यादा तादाद हो जाती थी। सिवाय किसी बड़े शहर के, सभाओं में तो लाउड-स्पीकरों का इन्तजाम नहीं होता था। अतः सब आदमियों को भाषण सुनाई देना नामुमकिन था। शयाद वे कुछ सुनने की उम्मीद भी नहीं करते थे , वे तो महात्माजी के दर्शन करके ही सन्तुष्ट हो जाते थे। ’’ ऐसी शख़्सियत थे बापू!

गांधीजी सिर्फ हमारे राष्ट्रपिता नहीं हैं, वह हमारे राष्ट्र के निर्माता भी हैं। उन्होंने हमें हमारे कर्मों को सही दिशा प्रदान करने हेतु नैतिकता का मार्ग दिखाया , एक ऐसा पैमाना जिसके द्वारा हमें आंका जाता है।

ऐसे समय में जब पूरा देश अंग्रेजों से आजादी की दिशा में काम कर रहा था, गांधीजी राजनीतिक आजादी के लक्ष्य से आगे निकल गए। उन्होंने भलि भांति इस बात को समझा कि गरीबी , अज्ञानता , असहिष्णुता , बीमारी भी ऐसी बेड़ियां हैं जिनसे भारत को मुक्त होना होगा। वह समझते थे कि सच्ची स्वतंत्रता केवल मन और आत्मा की स्वतंत्रता के साथ ही मिल सकती है। उन्होंने कहा था कि, ‘‘ केवल अंग्रेजों की वापसी ही स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता का मतलब ग्रामीणों में इस चेतना का होना है कि वह स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं ; वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से अपने स्वयं के विधायक हैं। ’’

बापू ने स्वंय को अपने अन्तिम समय तक मानवता के कल्याण के प्रति समर्पित रखा। उन्होंने नैतिक और आध्यात्मिक मानकों के स्तर को ऊपर उठाया। उन्होंनेअपने जीवन के उदाहरण से सत्य, प्रेम, करुणा , श्रम की गरिमा, विनम्रता, निडरता, मानव अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान , व्यक्तिगत बलिदानों द्वारा ईश्वर और मानवता की सेवा के गुणों को पोषित किया और फैलाया। आज हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां हमें उनके बताए रास्ते पर चलने की अपनी प्रतिज्ञा को पुनः दोहराने की जरूरत है। भारतीयों के रूप में हमारी वास्तविक पहचान को बनाए रखने के लिए यह न केवल आवश्यक है बल्कि अनिवार्य भी है।

यह वास्तव में किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि 150 साल पहले पैदा हुए एक व्यक्ति को आज भी इतने बड़े सम्मान व श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। कुछ तो बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी!

मैं उस घटना को याद करना चाहता हूं जब एक पत्रकार ने राष्ट्रपति बराक ओबामा से उनके चुनाव पर पूछा था कि, एक ऐसे व्यक्ति का नाम बताएं जो अब नहीं हैं और जिसके साथ वह रात्री भोज कर पाते, तो इसके जवाब में उन्होंने तुरंत गांधीजी का नाम लिया।महात्मा गांधीजी वास्तव में एक सार्वभौमिक व्यक्ति थे।

उन्होंने सादा जीवन और उच्च विचार का उपदेश दिया। उन्होंने हमेशा कहा,‘‘दुनिया में हर किसी की जरूरत के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन हर किसी के लालच के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ’’ उनका दृढ़ विश्वास था कि अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए हमें जमीनी स्तर को मजबूत करना होगा। मैं युवा पीढ़ी, छात्रों, नवप्रवर्तनकर्ताओं, व्यापारियों, शिक्षकों, नीति निर्माताओं और हमारे लोकतंत्र के ध्वजवाहकों से हमारे समृद्ध संसाधनों - मानव और प्राकृतिक - की क्षमता का उचित उपयोग करने का आग्रह करता हूं। गांधीजी के पदचिन्हों पर चलने के लिए, हमें ऐसे इंसान बनने का प्रयास करना चाहिए जो एक दूसरे के साथ सम्मान के साथ पेश आएं।

उनके विचारों, वचनों और कार्यों का सुमेल हमारे लिए एक प्रेरणा है। मानव जीवन का एक भी पहलू ऐसा नहीं है जिसे उन्होंने ना समझ हो, ना सुधारा हो, ना आचरण किया हो और ना ही दुनिया के सामने प्रस्तुत किया हो। उनका जीवन हमें निरंतर स्वयं को परखने और सत्य की खोज करना सिखाता है। उनके दर्शन और सिद्धांत हमारे लिए नैतिक तरीके से जीवन जीने का स्रोत हैं, जो हमें एक अच्छा इंसान बनना सिखाते हैं।

गांधीजी अक्सर कहा करते थे, ‘‘ मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’’। यह वास्तव में एक संदेश है जिसका हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के कल्याण हेतु सम्मानपूर्वक पालन और प्रचार करना चाहिए। हमारे लिए यह जरूरी है कि हम अपने जीवन में गांधीजी के आदर्शों को अपनाएं और आजमाएं। आने वाले हजारों वर्षों तक गांधीजी के जीवन और संदेश को याद किया जाएगा जो लाखों लोगों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करता रहेगा।गांधीवादी आदर्शों का अनुसरण ही हमारे समाज को शांति, प्रगति और समृद्धि की ओर ले जाएगा।

जुलाई 1944 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा सम्पादित गांधीजी के अभिनन्दन-ग्रंथ में आधुनिक युग के विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधीजी के असाधारण योगदान को मद्देनज़र रखते हुए शायद ठीक ही लिखा है कि, भावी पीढ़ियों को विश्वास ही न होगा कि इस धरती पर हाड़-मांस का कोई गांधी कभी जन्मा भी था! ’’

उनके जीवन-मूल्य कल भी प्रासंगिक थे , आज भी प्रासंगिक हैं और भविष्य में भी बने रहेंगे।

आइए, गांधी जयंती के इस शुभ अवसर पर हम सब पुनः यह संकल्प लें कि हम सत्य और अहिंसा के मंत्र का अनुसरण करते हुए , राष्ट्र के कल्याण और प्रगति के लिए समर्पित रहेंगे और एक स्वच्छ, समर्थ, सशक्त व समृद्ध भारत का निर्माण करके गांधीजी के सपनों को साकार करेंगे।

धन्यवाद!

जय हिन्द।