SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARILAL PUROHIT ON THE OCCASION OF 79TH BIRTH ANNIVERSARY OF SRI MUNI ABHAY KUMAR JI AT CHANDIGARH ON 11TH DECEMBER, 2022

· आज मुनि अभय कुमार जी 79वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, इस बात की मुझे खुशी है और मैं मंगल भाव अभिव्यक्त करता हूँ कि मुनि जी जल्द से जल्द बिमारी से स्वस्थ हों

· मुनि जी ने गुरूदेव आचार्य तुलसी से मुनि दीक्षा स्वीकार की। हिन्दी, संस्कृत आदि भाषाओं पर आधिपत्य कायम किया।हिन्दी और संस्कृत में अनेक काव्यों की रचना भी की।

  • मंत्र जाप इनकी विशेष साधना है। करोड़ों-करोड़ों मंत्रों का आलेखन भी किया है।
  • इनकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता रही है सेवा भावना की। सेवाभाव एक ऐसा औजार है जो दूसरों को अपने वश में कर लेता है।

बन्धुओं,

· हम अपने परिवारों, देशों, राजनीति, कार्यस्थलों और विभिन्न संबंधों के साथ बदलाव और संकट के एक अभूतपूर्व समय से गुज़र रहे हैं। आज लोग चिंता, असुरक्षा, अनिश्चितता और निराशा के जिस दौर से गुज़र रहे हैं पहले कभी नहीं गुज़रे।

  • दुनिया का यह बाहरी रूप हमारे अंदरूनी रूप का ही प्रतिबिंब है ; ऐसा लगता है जैसे हमारी सैद्धांतिक , नैतिक और आध्यात्मिक नींव कमजोर हो चुकी है। अहंकार, वासना और लालच की भावनाएं मानव जाति में गहराई तक समा चुकी हैं जो व्यक्तिगत संतुष्टि और लालच की संस्कृति को जन्म दे रही हैं। लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा रहे हैं। वे अपने साथ के लोगों की दुर्दशा के प्रति कठोर और उदासीन हो गए हैं।

· यदि आज हम समाज में कोई सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो वह आध्यात्मिकता के बिना संभव ही नहीं है।

  • आध्यात्मिकता से हमारे मन में शुद्ध व निर्मल विचार पैदा होते हैं । जिससे हमारे लिए सही व गलत का निर्णय कर पाना आसान हो जाता है।
  • सार्थक जीवन वही है जो दूसरों के काम आए । अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के जीवन में एक नई आशा की किरण पैदा कर सके, एक नई राह दिखा सके व सुख शांति का मार्ग प्रशस्त कर सके, वही महान है या यूं कहूं की वही इन्सान है।

देवियों और सज्जनों,

· मानव कल्याण के लिए प्रवर्तित जैन परम्परा के मूल में अहिंसा परमोधर्मः का सिद्धान्त प्रतिष्ठित है। ‘अहिंसा’ का अर्थ केवल इतना नहीं है कि किसी को मारा न जाए। अहिंसा का अर्थ है- मन , वचन या शरीर से किसी भी रूप में किसी भी जीवधारी को पीड़ा न पहुँचाना यानि कि हमारे विचार, वाणी और व्यवहार में भी किसी प्रकार की हिंसा के लिए स्थान न हो, बल्कि प्राणीमात्र के प्रति प्रेम, दया, करुणा, सौहार्द और सम्मान का भाव हो। अहिंसा और करुणा साथ-साथ चलते हैं। करुणाभाव के बिना कोई अहिंसा धर्म का पालन नहीं कर सकता।

  • भारत अनादि काल से शान्ति और अहिंसा का अनुगामी और प्रणेता रहा है। यहां सभी धर्मों में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और शान्ति की स्थापना के लिए मैत्री, संतुलन और सहिष्णुता का मार्ग सुझाया गया है। हमें यह सिखाया गया है कि पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के साथ भी हिंसा नहीं करनी है। और यह भी बताया गया है कि नदियों, तालाबों एवं अन्य जल स्रोतों को गंदा नहीं करना है। भारत में हिंसा के स्थान पर अहिंसा को मानव व्यवहार के केन्द्र में रखा गया है

· भगवान महावीर ने अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों के साथ-साथ अपरिग्रह को विशेष महत्व दिया था।अपरिग्रह का अर्थ है- जीवन निर्वाह के लिए अति आवश्यक वस्तुओं के अलावा और कुछ ग्रहण न करना। मानव-जाति अपनी निरन्तर बढ़ती जरूरतों के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रही है। संचय की प्रवृत्ति और संसाधनों का निर्मम उपभोग बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन हो रहा है , प्रदूषण बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन जैसी अनिष्टकारी स्थितियां पैदा हो रही हैं । इनसे बचने के लिए केवल मनुष्यों और प्राणियों के साथ ही नहीं बल्कि प्रकृति के साथ भी सम्यक व्यवहार करना होगा , ये सीख हमें जैन परम्परा से मिलती है

· भारत एक बड़ी युवा आबादी वाला देश है। युवा शक्ति राष्ट्र का प्राण तत्व है। वही उनकी गति है, स्फूर्ति है, चेतना है, राष्ट्र का ज्ञान है।

बन्धुओं,

· किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी दौलत और ताकत उसके युवा होते हैं। सशक्त युवा राष्ट्र को सफलता और समृद्धि की ओर ले जाते हैं। राष्ट्र का भविष्य उसकी भावी पीढ़ी के हाथों में होता है।

· युवा आयु जोश और ऊर्जा से भरे सपने को संजोने का सुनहरा दौर होता है। यह जीवन का वो समय होता है, जहां हम लोग समाज के आर्थिक विकास के लिए अपने विचारों को आकार प्रदान कर सकते हैं। युवा आयु गंतव्य की ओर बढ़ने का समय होता है, जिसेव्यावसायिक जागरूकता और व्यक्तिगत मतभेदों के महत्वपूर्ण अध्ययन के माध्यम से संभव बनाया जा सकता है।

· हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे समृद्ध सभ्यता के मूल्य हमारे युवाओं में मौजूद हों। जिस प्रकार हम अपने सामाजिक और आर्थिक विकास के उच्च स्तर को पाने के लिए प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हमें यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि हम अपने मूल्यों और गुणों से जुड़े रहें।

· तेरापंथ में युवकों की विशेष भूमिका सदा से रही है। देश में सैकड़ों तेरापंथ ‘‘युवक परिषद’’ के नाम से कार्य कर रही है। पंजाब में भी अनेकों जगह पर युवक परिषद कार्यरत है। समाज सेवा, संघ सेवा आदि में कार्यरत है।

· आज मेरे सामने अनेक युवक पंजाब के बैठे हैं। इन्हेंदेखकर प्रसन्नता हो रही है, क्योंकि यह जागरूक समाज, जागरूक परिषद का संदेश देती है। तेरापंथ जैसी जागरूकता यदि देश के युवकों में आए तो देश का निर्माण होते व बुराईयों को दूर करने में समय नहीं लगेगा।

· युवा मित्रों, मैं आपसे अपने जीवन अनुभव से एक बात सांझी करना चाहुंगा।

मित्रों,

आपका विश्वास आपकी सोच बन जाती है,

आपकी सोच आपके शब्द बन जाते हैं,

आपके शब्द आपके कर्म बन जाते हैं,

आपके कर्म आपकी आदत बन जाती है,

आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं,

आपके मूल्य आपकी नियति बन जाती है।

· आज दुनिया युद्ध, आतंक और हिंसा के संकट का सामना कर रही है। इस दुष्चक्र से बाहर निकलने में आपकी भूमिका निस्संदेह अत्यन्त महत्वपूर्ण है; सद्मार्ग पर अग्रसर रहिए, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए अनुशासित जीवन व्यतीत कीजिए।

· मुझे बहुत खुशी है कि चंडीगढ़ में जैन धर्म का एक मजबूत आधार स्थापित है। एक बात मैं अवश्य कहूंगा कि जैन समाज मित्रता , एकता, शांति और नैतिकता के मूल्यों को स्थापित करते हुए लोगों को अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित करने में एक महान सेवा कर रहा है । यदि हम एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन करना होगा।

· मैं आपके साथ हूँ; मनीषी संत मुनिश्रीविनयकुमारजी ‘आलोक’ के साथ मेरा व्यक्तिगत संबंध है और मुनिश्री जो भी आज्ञा देंगे मैं कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढूंगा।

· नागरिक कर्तव्यों को सशक्त बनाने में संतों का मार्गदर्शन हमेशा महत्वपूर्ण होता है।

धन्यवाद,

जय हिन्द।