SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARILAL PUROHIT ON THE OCCASION OF SAMVIDHAN MAHOTSAV AT LAW BHAWAN, SEC-37, CHANDIGARH ON 07TH JANUARY, 2023 AT 5.00 PM
- by Admin
- 2023-01-07 18:20
नमस्कार,
· मुझे आज यहां आप सभी के बीच इस ‘‘ संविधान महोत्सव’’ में उपस्थित होकर अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है।
मित्रों,
- संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में संविधान दिवस मनाया जाता है। भारत का संविधान दिवस पहली बार वर्ष 2015 में मनाया गया जो डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जी की 125वीं जयंती थी। संविधान दिवस मनाने की घोषणा हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ही की थी।
· संविधान दिवस मनाने का निर्णय भारत सरकार द्वारा एक स्वागत योग्य निर्णय है। इस दिन स्वतंत्र भारत ने अपने नये भविष्य की आधारशिला रखी थी। यह न केवल संविधान को अपनाने का स्मरण कराता है बल्कि उन लोगों का भी सम्मान करता है जो इसे तैयार करने के श्रमसाध्य कार्य में शामिल थे ।
- खुशी की बात है कि डॉ. अंबेडकर प्रतिष्ठान द्वारा प्रति वर्ष ‘‘ संविधान महोत्सव ’’ कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
· भारत के संविधान को बनाने में डॉ. अंबेडकर का योगदान अद्वितीय है। वह संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष भी थे। संविधान के प्रारूपण में उनकी जबरदस्त मेहनत के चलते ही उन्हें ‘संविधान का पिता ’ कहा जाता है।
· आज के इस अवसर पर मैं बाबा साहेब अंबेडकर और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे दूरअंदेशी महानुभावों को नमन करता हूं। संविधान सभा के सभी सदस्यों को भी नमन करता हूं। महीनों तक भारत के जिन विद्वतजनों ने, एक्टिविस्टों ने देश के उज्जवल भविष्य के लिए व्यवस्थाओं को निर्धारित करने के लिए मंथन किया था, उन्हें नमन करता हूं क्योंकि इस मंथन से संविधान रुपी अमृत हमें प्राप्त हुआ है जिसने आजादी के इतने लंबे कालखंड के बाद हमे यहां पहुंचाया है।
· आजादी के आंदोलन की छाया, देशभक्ति की ज्वाला, भारत विभाजन की विभिषका इन सबके बावजूद भी देशहित सर्वोच्च! विविधताओं से भरा हुआ यह देश, अनेक भाषाएं, अनेक बोलियां, अनेक पंथ, अनेक राजे रजवाड़े इन सबके बावजूद भी संविधान के माध्यम से पूरे देश को एक बंधन में बांध करके आगे बढ़ाने के लिए योजना बनाना आज के संदर्भ में देखें तो असंभव सा प्रतीत होता है ।
· मैं उन महानुभावों को प्रणाम इसलिए करना चाहता हूं क्योंकि उनके भी अपने विचार होंगे, उनके विचारों की भी अपनी धारा होगी, उस धारा में धार भी होगी। लेकिन फिर भी राष्ट्रहित सर्वोपरि होने के नाते सबने मिल बैठकर के एक संविधान दिया।
· बाल गंगाधर ‘तिलक’, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी और सुभाष चन्द्र बोस जैसे अनेक महान जन-नायकों और विचारकों ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया था। मातृभूमि के स्वर्णिम भविष्य की उनकी परिकल्पनाएं अलग-अलग थीं परंतुन्याय, स्वतंत्रता , समता और बंधुता के मूल्यों ने उनके सपनों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
· संविधान की उद्देशिका में भी न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के ये जीवन-मूल्य रेखांकित हैं; हम सबके लिए ये पुनीत आदर्श हैं। यह उम्मीद की जाती है कि केवल शासन की ज़िम्मेदारी निभाने वाले लोग ही नहीं, बल्कि हम सभी सामान्य नागरिक भी इन आदर्शों का दृढ़ता व निष्ठापूर्वक पालन करें।
· मैं सोचता हूं कि हम सबको, अतीत में और भी पीछे जाकर, यह जानने का प्रयास करना चाहिए कियही मूल्य हमारे राष्ट्र-निर्माताओं के लिए आदर्श क्यों बने ? इसका उत्तर स्पष्ट है कि अनादि-काल से, यह धरती और यहां की सभ्यता, इन जीवन-मूल्यों को संजोती रही है। न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता हमारे जीवन-दर्शन के शाश्वत सिद्धांत हैं। इनका अनवरत प्रवाह, हमारी सभ्यता के आरंभ से ही, हम सबके जीवन को समृद्ध करता रहा है। हर नई पीढ़ी का यह दायित्व है कि समय के अनुरूप, इन मूल्यों की सार्थकता स्थापित करे। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने यह दायित्व, अपने समय में, बखूबी निभाया था। उसी प्रकार, आज के संदर्भ में, हमें भी उन मूल्यों को सार्थक और उपयोगी बनाना है। इन्हीं सिद्धांतों से आलोकित पथ पर , हमारी विकास यात्रा को निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
बन्धुओं,
- हमारा संविधान यह सिर्फ अनेक धाराओं का संग्रह नहीं है। हमारा संविधान सहस्त्रो वर्ष की भारत की महान पंरपरा व अखंड धारा की आधुनिक अभिव्यक्ति है।
· डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में, ‘‘ हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक या कानूनी दस्तावेज है बल्कि एक भावनात्मक , सांस्कृतिक और सामाजिक अनुबंध भी है ’’ ।
· प्रस्तावना के पहले तीन शब्द ‘वी द पीपुल’ एक आह्वान है, एक प्रतिज्ञा है, एक विश्वास है। संविधान की यह भावना, उस भारत की मूल भावना है, जो दुनिया में लोकतंत्र की जननी रही है।
· हमें संविधान के letter and spirit को समर्पित भाव से हमेशा सज्य रखना होगा।
· इसलिए संविधान महोत्सव मनाया जाना चाहिए ताकि हम विश्लेषण कर सकें कि जो कुछ भी कर रहे हैं क्या वो संविधान के प्रकाश में है? सही है कि गलत है? हमारा रास्ता सही है कि गलत है? हर वर्ष संविधान दिवस/महोत्सव मनाकर हमें अपना मूल्यांकन स्वयं करना चाहिए।
- भारत की विकास-यात्रा में युवा शक्ति के योगदान व उसकी भूमिका अहम हैं।
- युवाओं में समानता और सशक्तिकरण जैसे विषयों पर बेहतर समझ पैदा करने के लिये संविधान के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। जब हमारे संविधान का मसौदा लिखा गया था तथा देश के सामने कैसी परिस्थितियां थीं। उस काल में संविधान सभा की बहस में क्या होता था, हमारे युवाओं को इन सभी विषयों के प्रति जागरूक होना चाहिये। इससे संविधान के प्रति उनकी रुचि बढ़ेगी।
· संविधान सभा के 389 सदस्यों में 15 महिला सदस्य थीं। जब पश्चिम के कुछ प्रमुख राष्ट्र अभी भी महिलाओं के अधिकारों पर बहस कर रहे थे, भारत में महिलाएं संविधान के निर्माण में भाग ले रही थीं। दक्षिणायणी वेलायुधन जैसी महिलायें उनमें शामिल थीं, जो वंचित समाज से निकलकर वहां तक पहुंची थीं। खेद है कि दक्षिणायणी वेलायुधन जैसी महिलाओं के योगदानों पर शायद ही कभी चर्चा की जाती है। दक्षिणायणी वेलायुधन ने दलितों और श्रमिकों से जुड़े कई मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण विचार दिये हैं। हंसाबेन मेहता ने भी मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के प्रारूपण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दुर्गाबाई देशमुख, सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी और राजकुमारी अमृत कौर तथा अन्य महिला सदस्यों ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण योगदान किये हैं। जब हमारे युवाओं को इन तथ्यों का पता चलेगा, तोइससे उनकी संविधान के प्रति निष्ठा बढ़ेगी, जिससे हमारा लोकतंत्र, हमारा संविधान और देश का भविष्य मजबूत होगा।
बन्धुओं,
- कर्तव्य संविधान की भावना का प्रकटीकरण है। अमृतकाल ‘कर्तव्यकाल’ है! आजादी के अमृत काल में जब देश ने अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए हैं और हम विकास के अगले 25 वर्षों की यात्रा पर निकल रहे हैं, तब राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का मंत्र ही सर्वोपरि है।
· आजादी का अमृत काल देश के प्रति कर्तव्य का काल है।चाहे वह लोग हों या संस्थायें, हमारे दायित्व ही हमारी पहली प्राथमिकता हैं। अपने ‘कर्तव्य पथ’ पर चलते हुये ही हम देश को विकास की नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं।
· कृपया अपने कर्तव्यों का पालन करें और ‘‘मैं क्यों करूं’’ की मानसिकता को त्याग कर समाज और देश के बारे में सोचें।
· साथियो, यदि हम अपने कर्तव्यों से पीछे हटेंगे तो देश आगे नहीं बढ़ पाएगा। देश की प्रगति ही हमारी प्रगति है।
· संविधान के महोत्सव पर, संविधान में विश्वास करने वाले, संविधान को समझने वाले, संविधान को समर्पित सभी देशवासियों से मैं यही आग्रह करुँगा कि कर्तव्यों के माध्यम से अधिकारों की रक्षा करने के रास्ते पर चल पड़ें।
· कर्तव्य का वो पथ है जिसमें अधिकार की गारंटी है, कर्तव्य का वो पथ है, जो अधिकार सम्मान के साथ दूसरे को स्वकृत करता है उसके हक को दे देता है।
· आज जब हम संविधान महोत्सव को मना रहे हैं, तब हमारे भीतर भी यहीं भाव निरंतर जगता रहे कि हम कर्तव्य पथ पर चलते रहे। कर्तव्य को जितनी अधिक मात्रा में निष्ठा और तपस्या के साथ हम निभाएंगे हर किसी के अधिकारों की उतनी ही रक्षा होगी।
· बाबा साहेब अंबेडकर का गौरव बनाए रखे और संविधान का गौरव बनाए रखे। इसी अपेक्षा के साथ आप सभी का बहुत- बहुत धन्यवाद।
जय हिन्द!