SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF FELICITATION CEREMONY ORGANISED BY ANUVRAT BHAVAN, SECTOR 24, CHANDIGARH ON SEPTEMBER 1, 2024

अणुव्रत समिति चंडीगढ़ द्वारा अयोजित किए जा रहे सम्मान समारोह दौरान माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का भाषण

(1 सितंबर 2024)

सप्रेम नमस्कार, सादर अभिवादन!

आज पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व नवाहिक कार्यक्रम की शुरूआत हो रही है और मुझे अणुव्रत समिति चंडीगढ़ द्वारा आयोजित इस समारोह में उपस्थित होकर अत्यंत हर्ष हो रहा है। 

मैं अणुव्रत समिति चंडीगढ़ को इस पावन अवसर पर अभिनंदन समारोह के माध्यम से मुझे सम्मानित करने के लिए अपने दिल की गहराईयों से धन्यवाद और आभार प्रकट करता हूं।

आप जैसी आत्मिक शांति प्रदान करने वाली चारित्रात्माओं से सम्मान हासिल करके स्वयं को भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। जैन दर्शन में त्याग, तप एवं अहिंसा को सर्वोपरि माना गया है, यही जैन धर्म का मुख्य सिद्धांत है।

पर्युषण महापर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। भगवान महावीर के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर हमें निरंतर और खासकर पर्युषण के दिनों में आत्मसाधना में लीन होकर धर्म के बताए गए रास्ते पर चलना चाहिए। 

पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है।

प्रत्येक मनुष्य का यह परम दायित्व होता है कि वह अपने घर, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के हित में अनुकरणीय कार्य करे। हमारे द्वारा किए गए कार्य से ही राष्ट्र निर्माण में सहयोग होगा। हमें यह अनुभूति होनी चाहिए कि हम राष्ट्र निर्माण के लिए सदैव तत्पर रहें। हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। हमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार, श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग, वैज्ञानिक सोच के साथ अग्रसर होना चाहिए। 

युवा शक्ति को सही दिशा देने के लिए हमें हमारे युवाओं को ऋषियों, बुद्धिजीवियों द्वारा सुझाए गए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमें एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करना होगा, जिसमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हो। नई पीढ़ी को अपने राष्ट्र भक्तों की जीवन शैली और उनके योगदान की जानकारी देने के लिए गंभीर प्रयास करें। 

आज का बालक कल का विद्यार्थी, कुशल चिकित्सक, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, इंजीनियर, शिक्षक, समाजसेवी, उद्योगपति, समर्पित नेता बनकर राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देगा। देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है। 

हमारे देश की पहचान वसुधैव कुटुंबकम् के रूप में है, जिस पर हर भारतीय गर्व करता है। विश्व बंधुत्व की भावना को प्रगाढ़ करने वाले इस सूत्र वाक्य के मूल तथा भारतीय दर्शन की गहराई को दुनिया ने समझ लिया है और इसे बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इन प्रयासों ने वसुधैव कुटुम्बकम् को विश्व भर में तेजी से लोकप्रिय बनाने का काम किया है। 

अखण्ड भारत में महापुरूषों को समय-समय पर विशिष्ट ज्ञान की प्राप्ति हुई, भगवान महावीर को ज्ञान की, बुद्ध को बोधि प्राप्त हुई और उसी श्रृंखला में आचार्य भिक्षु जी की चेतना का उदय सोई हुई सुस्त चेतना का जागरण ही बोधि है। हमारा ये भारत हजारों वर्षों से संतों की, ऋषियों की, मुनियों की, आचार्यों की एक महान परंपरा की धरती रहा है।

समाज का ध्यान रखने की जैन धर्म की शिक्षा देश की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। आचार्य भिक्षु ने अपने मौलिक चिंतन के आधार पर नये मूल्यों की स्थापना की। उनका मुख्य उद्देश्य था मानव समाज को धार्मिकता, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति सच्चाई और प्रेम की ओर प्रेरित करना।

उन्होंने विशेष रूप से अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, और ब्रह्मचर्य के महत्व को बताया और इन्हीं मूल्यों पर आधारित एक समाजसेवी समुदाय की नींव रखी। आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व उन्होंने जो मर्यादा से संबंधित संविधान लिखा वह आज भी प्रासंगिक है।

मुझे बताया गया है कि अणुव्रत समिति चंडीगढ़ समाज के धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक आदि हर पहलू पर निस्वार्थ ही आगे बढ़कर कार्य कर रही है।

मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि चंडीगढ़ अणुव्रत समिति समाज में बिजली संयम, पानी का अपव्यय, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारना, समाज में चरित्रता के पौधे को सींचना आदि अनेकों सामाजिक कार्यों में अग्रसर है।

अणुव्रत समिति द्वारा विगत कई वर्षों से जो सामाजिक व आर्थिक विकास के कार्य किए जा रहे हैं, वे सराहनीय हैं। परन्तु आधुनिकता की दौड़ में हमारी सैद्धांतिक, नैतिक और आध्यात्मिक नींव कमज़ोर हो रही है। लोग चिंता, असुरक्षा, अनिश्चितता और निराशा के दौर से गुज़र रहे हैं। जैसा कि, गुरू नानक जी ने कहा था, ‘‘नानक दुखिया सब संसार’’।

हम सभी जानते हैं कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय और आवश्यकता के अनुसार समाज में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है। सकारात्मक परिवर्तन के लिए जरूरी है कि जैसा विश्व हम चाहते हैं, वैसा ही हमें कर्म करने चाहिए। अर्थात, यदि हमें सुखमय दुनिया चाहिए तो हमें दूसरों को सुख देने वाले कर्म करने चाहिए।

धर्म और अध्यात्म हर मनुष्य के अंतरंग विकास मार्ग के आधार-स्तंभ हैं। सभी धर्म हमें नेकी व अच्छाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए निष्पक्ष होकर उन्हीं सिद्धान्तों को अपनाइयें जो आपको संतोष प्रदान करें। 

दूसरे लोग ऐसा कहते हैं, या मानते हैं, यह कोई कारण नहीं है जो आपको भी वैसा ही करने या मानने के लिए बाध्य करें। अपनी आत्मा में उठने वाले ईश्वरीय सन्देश को सुनिए और उसी के अनुरूप चलिए। धर्मों से बल प्राप्त कीजिए पर उन्हें भूल कर भी आत्मा का हनन करने वाला मत बनने दीजिये। ‘सरबत दा भला’ की प्रार्थना को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनायें। 

अध्यात्म हमें दूसरों के लिए और समाज की भलाई के लिए जीवन जीना सिखाता है। समाज के सम्पूर्ण विकास के लिए आध्यात्म का रास्ता अपनाना होगा, इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद भगवद गीता में अर्जुन से कहा था, ‘‘हे अर्जुन, हमेशा अपने कर्तव्य का कुशलता से और परिणामों के बंधन के बिना पालन कर, क्योंकि बंधनमुक्त होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है’’।

जैन समाज मित्रता, एकता, शांति और नैतिकता के मूल्यों को स्थापित करते हुए लोगों को अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित करने में एक महान सेवा कर रहा है।

जहां अहिंसा है, वहीं एकता है। जहां एकता है, वहीं अखंडता है। जहां अखंडता है, वहीं श्रेष्ठता है।

आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है।

आचार्य तुलसी जी कहते थे - ’’मैं सबसे पहले मानव हूं, फिर मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं। फिर मैं एक साधना करने वाला जैन मुनि हूं। उसके बाद मैं तेरा पंथ का आचार्य हूं’’।

आज हमारी आध्यात्मिक शक्तियां, हमारे आचार्य, हमारे संत सब मिलकर भारत के भविष्य को दिशा दे रहे हैं।

मेरी प्रार्थना है, आप देश की अपेक्षाओं को, देश के प्रयासों को भी जन-जन तक ले जाने का एक सक्रिय माध्यम बनें।

आज देश जिन संकल्पों पर आगे बढ़ रहा है, चाहे वो पर्यावरण का विषय हो, पोषण का प्रश्न हो, या फिर गरीबों के कल्याण के लिए प्रयास, इन सभी संकल्पों में आपकी बड़ी भूमिका है।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप संतों का आशीर्वाद देश के इन प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाएंगे, और अधिक सफल बनाएंगे।

इसी भावना के साथ, सभी संतों के चरणों में वंदन करते हुए आप सबका हृदयपूर्वक बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय हिन्द!