SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARI LAL PUROHIT ON THE OCCASION OF SAPT SINDHU – SH SURJIT PATAR YADGARI SAMAGAM AT PANJAB UNIVERSITY, CHANDIGARH ON JULY 20, 2024.

सप्त सिंधु - सुरजीत पातर यादगारी समागम (20.07.2024)

कुझ केहा तां हनेरा जरेगा किवें, चुप्प रेहा तां शमादान की कैहणगे।

गीत दी मौत इस रात जे हो गई, मेरा जीणा मेरे यार किंझ सैहणगे।

  • ये पंक्तियां ही काफी हैं स्व. पद्मश्री श्री सुरजीत पातर के स्वभाव, उनकी सोच, उनके किरदार को बयान करने के लिए।
  • स्व. पद्मश्री श्री सुरजीत पातर जी की स्मृति को समर्पित आज का यह समारोह उनको हमारी श्रद्धांजलि है।
  • सुरजीत पातर पंजाबी साहित्य के आज के दौर के सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध लेखक व कवि थे जिन्होंने कवियों की आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित किया।
  • 1980 के बाद का पंजाबी कविता का युग पातर साहब के नाम है। उन्होंने अपने लेखन द्वारा पंजाबी साहित्य व संस्कृति को समृद्धि की नई उंचाईयों तक पहुंचाया।
  • उनके लेखन को मान्यता प्रदान करते हुए उन्हें पद्मश्री और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
    • उन्होंने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर से "Transformation of Folklore in Guru Nanak Vani" विषय पर पीएचडी की।
    • पातर साहब ने पंजाबी साहित्य अकादमी और पंजाब कला परिषद के अध्यक्ष के रूप में लंबे समय तक कार्य किया।
    • जालंधर के पत्तड़ कलां गांव के रहने वाले थे, वो पहले अपने नाम के पीछे अपने गांव का सिरलेख पत्तड़ लगाते थे जो धीरे-धीरे पातर बन गया।
    • वे लुधियाना में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से पंजाबी के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए। 
    • पातर साहब की प्रख्यात काव्य रचनाओं में ‘हवा विच लिखे हर्फ’, ‘हनेरे विच सुलगदी वरनमाला’, ‘पतझड़ दी पाजेब’, ‘लफ्जां दी दरगाह‘ और ‘सुरजमीन’ शामिल हैं।
    • उन्होंने पंजाब के सामाजिक जीवन के भिन्न-भिन्न पक्षों को कविता में पिरो कर विश्व के कवियों, साहित्य प्रेमियों, शिक्षकों और विद्यार्थियों को साहित्य और सामाजिक विषयों से जोड़ा।
    • एक कवि के नाते उनकी कविता लोक गीत के समान लोकप्रिय हुई और उनकी बहुत सारी कविताएं पंजाब की लोक धारा का अभिन्न अंग बन गई हैं। 
    • कविता लेखन के लगभग सभी पुरस्कारों से उनको अलंकृत किया गया।
    • पातर साहब का स्थान इतना विशिष्ट हो गया था की पुरस्कार उनको पाकर पुरस्कृत होते थे।
    • सुरजीत पातर ने पंजाब के सन्दर्भ में बुरी नज़र से बचाने के लिए मिर्च वारने की लोक मान्यता का बहुत ही कलात्मक ढंग से प्रयोग किया है। उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ कई बार दोहराई जाती हैं।

लग्गी नज़र पंजाब नूं, इसदी नज़र उतारो,

लै के मिर्चां कौड़ियां, इसदे सिर तों वारो।

  • पंजाब की युवा पीढ़ी के प्रवास की समस्या के बारे में पातर साहब ने 1976 में ही अपनी कविता के माध्यम से दर्द बयां कर दिया था।

जो विदेशां विच रूलदे ने रोजी लई, ओ जदों देश परतनगे अपने कदी,

कुझ तां सेकणगे मां दे सिवे दी अगन, बाकी कबरां दे रूख हेठ जा बैणगे।

  • कविता के साथ भारत का रिश्ता पुराना है। प्राचीन भारत में काव्य का विकास हुआ। महान भारतीय महाकाव्य ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ को अब तक लिखे गए काव्यों के बेहतरीन प्रतिरूपों में से एक माना जाता है।
  • श्री गुरू नानक देव जी के समय के बारे में किसी कवि ने सुंदर वर्णन किया है किः ‘सतगुरू नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानण होया, जियो कर सूरज निकलिया, तारे छुपे हनेर पलोआ।’

अर्थातः जिस प्रकार सुबह सूर्य के प्रकाश से आकाश का अंधकार और तारे छिप जाते हैं, उसी प्रकार गुरू नानक देव जी के जन्म के साथ ही सामाजिक कुरीतियों का अज्ञान रूपी अंधकार समाप्त हो गया।

  • पंजाबी भाषा के संरक्षण व प्रचार के लिए उनके समर्पण को हमेशा याद रखा जाएगा।
  • सप्तसिन्धु साहित्य माला के अंतर्गत नवीन पीढ़ी को पंजाब के असीम अनंत सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने के लिए उनके प्रयास सराहनीय हैं।
  • आज हम सभी उनको श्रद्धांजलि देने के लिए जुड़े हैं, अपनी कविताओं के माध्यम से वह सदैव हमारे मन में जीवित रहेंगे।

धन्यवाद, 

जय हिन्द!