SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT, CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF FOUNDER’S DAY CELEBRATION OF SIDHWAN GROUP OF INSTITUTIONS AT LUDHIANA ON 21/10/2024
- by Admin
- 2024-10-21 17:15
दिनांकः 21.10. 2024 स्थानः सिधवां खुर्द, लुधियाना श्री गुरू हरगोबिन्द उजागर हरि ट्रस्ट का स्थापना दिवस समारोह श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
आज मुझे इस ऐतिहासिक शैक्षणिक संस्थान में उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। आप सभी को आज के इस स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई।
देवियों और सज्जनों,
मुझे बताया गया है कि सिधवां शैक्षणिक संस्थानों की एक समृद्ध विरासत रही है, जिसकी शुरुआत सन् 1909 में पंजाब के लुधियाना के सिधवां खुर्द गांव के एक दूरदर्शी भाई साहिब भाई नारायण सिंह जी से हुई है।
यह दिन इसके संस्थापकों भाई नारायण सिंह जी, बीबी राम कौर जी, बीबी हरप्रकाश कौर जी, बीबी अत्तर कौर जी और मोहिन्दर सिंह सिधवां जी की याद में मनाया जाता है। शिक्षा के प्रति उनके समर्पण ने ग्रामीण महिलाओं के शैक्षिक उत्थान की नींव रखी।
एक शहतूत के पेड़ की छाया के नीचे चार लड़कियों से शुरु हुआ यह स्कूल आज हज़ारों लड़कियों को शिक्षा प्रदान कर रहा है। इस स्कूल की पहली चार छात्राओं में से एक छात्रा बीबी हरप्रकाश कौर भी थी।
सन् 1957 में बीबी हरप्रकाश कौर जी ने विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में जीत हासिल की। शिक्षा के प्रसार के प्रति बीबी जी के समर्पण को देखते हुए भाई नारायण सिंह जी ने स्कूल प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंप दी थी।
उनके कठिन परिश्रम के कारण ही आज इस स्थान पर पाँच विभिन्न शिक्षा संस्थान कार्यरत हैं जिनमें लगभग 5 हजार से अधिक ग्रामीण विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि इन संस्थाओं की स्थापना विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी। आज भी 3 संस्थाएं - सिख गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल (1909), खालसा कॉलेज फॉर वूमन (1950) और जी.एच.जी. हरप्रकाश कॉलेज ऑफ एजूकेशन फॉर वूमन (1956) में सिर्फ लड़कियों को ही शिक्षा प्रदान की जा रही है।
इसके अलावा अन्य 2 संस्थाओं - गुरू हरगोबिन्द पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल (1976) और जी.एच.जी. इस्टीट्यूट ऑफ लॉ (2006) में लड़कियों और लड़कों दोनों को शिक्षा प्रदान की जा रही है।
मुझे बताया गया है कि भाई साहिब भाई नारायण सिंह जी ने 1934 में इन संस्थानों के लिए अपनी पूरी सम्पत्ति दान में दे दी थी जिसके लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘‘सरदार साहिब’’ और ‘‘कैसर-ए-हिन्द’’ से भी सम्मानित किया था।
लड़कियों की शिक्षा के प्रति बीबी हरप्रकाश कौर जी की उपलब्धियों और सेवाओं के लिए सन् 1961 में, भारत सरकार की ओर से माननीय राष्ट्रपति डॉ. राजिंदर प्रसाद जी ने उनको पद्मश्री से सम्मानित किया।
देवियों और सज्जनों,
हमारा देश भारत, गाँवों का देश है। आज भी देश की एक बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती है, और यही वजह है कि ग्रामीण शिक्षा का विकास हमारी सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
परंतु, आज भी ग्रामीण शिक्षा के क्षेत्र में अनेक चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनका समाधान करना हम सबकी जिम्मेदारी है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्कूल भवन, योग्य शिक्षक, शैक्षिक सामग्री और स्कूल आने-जाने के लिए साधनों का अभाव है।
मैं श्री गुरु हरगोबिंद उजागर हरि ट्रस्ट का आभार व्यक्त करता हूं जो ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थियों विशेषकर लड़कियों को हर प्रकार की सुविधा प्रदान करके गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
देवियों और सज्जनों,
स्थापना दिवस केवल एक तारीख नहीं है, बल्कि यह दिन हमें उन मूल्यों और सिद्धांतों की याद दिलाता है जिन पर यह संस्थान खड़ा हुआ है। हमारे संस्थापकों ने हमें सिखाया कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह हमारे चरित्र निर्माण, हमारे नैतिक मूल्यों और समाज की सेवा के प्रति हमारी जिम्मेदारी का बोध कराती है।
लेकिन जब हम महिलाओं की बात करते हैं, तो शिक्षा का महत्व और बढ़ जाता है। एक शिक्षित महिला न केवल अपना जीवन बेहतर बनाती है, बल्कि अपने परिवार, बच्चों और समाज को भी सशक्त करती है।
एक शिक्षित महिला अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देती है और उनके बेहतर भविष्य की नींव रखती है। यह कहा जाता है, ‘‘यदि आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं, तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन यदि आप एक महिला को शिक्षित करते हैं, तो आप एक पूरे परिवार को शिक्षित करते हैं।’’
इतिहास गवाह है कि जब महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा गया, तब समाज पीछे रह गया।
अशिक्षा के कारण महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया, और उन्हें समाज में उचित सम्मान नहीं मिला।
लेकिन आज, स्थिति बदल रही है। महिलाएँ शिक्षा प्राप्त कर हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं - चाहे वह विज्ञान हो, व्यापार, राजनीति, या खेल। महिलाओं की शिक्षा केवल उनके आर्थिक सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन्हें आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाती है।
मित्रों,
हमारी भारतीय संस्कृति में सदियों से नारी को देवी का रूप माना गया है। नारी को सम्मान, आदर और प्यार देने की शिक्षा हमें बचपन से दी जाती है। फिर भी, सच्चाई यह है कि समाज में महिलाओं के साथ कई प्रकार के भेदभाव होते हैं।
पंजाब में तो गुरू साहिबनों ने हमेशा ही महिलाओं को श्रेष्ठ स्थान दिया है। यदि हम श्री गुरू नानक देव जी की बात करें तो उस दौर में उन्होंने कहा थाः ‘‘सो क्यों मंदा आखिए, जित जम्मे राजान’’ अर्थात् उन्हें क्यों कम आंके जिन्होंने राजाओं को जन्म दिया।
यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम महिलाओं के प्रति भेदभाव को खत्म करें। हमें लड़कियों को समान अवसर देने होंगे, उन्हें शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बराबरी का अधिकार देना होगा।
लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा, उनके अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।
जैसे भारत के इतिहास में झांसी की रानी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है वहीं सिख इतिहास में भी ऐसी अनेक महिलाएं हुई हैं जिन्होंने अपनी वीरता का लोहा मनवाया।
इनमें माई भागो का नाम सबसे पहले आता है। 1705 में जब गुरु गोबिंद सिंह जी के खिलाफ मुग़ल सेना लगातार हमले कर रही थी, तब 40 सिखों का एक समूह गुरु जी का साथ छोड़कर चला गया था। माई भागो को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने न केवल उन सिखों को वापस लाने के लिए प्रेरित किया, बल्कि स्वयं युद्ध में भी शामिल हुईं। उन 40 सिखों को वापस लाकर माई भागो ने मुग़लों के खिलाफ युद्ध में भाग लिया और अपनी वीरता से इतिहास के पन्नों में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कर दिया।
सिख इतिहास में और भी कई ऐसी महिलाएं हुई हैं जिन्होंने अपने साहस और शौर्य का परिचय दिया है। हमें समझना होगा कि चाहे अतीत हो या फिर वर्तमान, भारतीय नारियों ने हमेशा अपने नेतृत्व कौशल का परिचय दिया है।
अगर हम इस संस्था की बात करें तो मुझे बताया गया है कि पंजाब की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती राजिंदर कौर भट्टल ने भी यहां से शिक्षा प्राप्त की है।
देवियों और सज्ज्नों,
शिक्षा वह साधन है, जो न केवल हमें व्यक्तिगत रूप से सफल बनाती है, बल्कि समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। आज की दुनिया में, जहाँ तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति हो रही है, शिक्षा का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है।
सभी संस्थानों को चाहिए कि वे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपने संस्थानों में लागू करें जो इक्कीसवीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है।
यह बहुत ही गर्व की बात है कि यह संस्थान भविष्य में युवा वर्ग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ भारतीय विरासत एवं मूल्यों की भी शिक्षा दे रहा है, ताकि देश की युवा पीढ़ी समाज में फैल रही नशा आदि जैसी चुनौतियों का सामना डटकर कर सके।
इस अवसर पर, मैं सभी विद्यार्थियों से आग्रह करता हूँ कि वे हमारे संस्थापकों की प्रेरणा को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने का संकल्प लें।
शिक्षकगणों से मेरा निवेदन है कि वे विद्यार्थियों को केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाएं, ताकि वे न केवल विद्वान बनें, बल्कि अच्छे इंसान भी बनें।
अंत में, मैं हमारे संस्थापकों को नमन करते हुए इस संस्थान के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। आइए, हम सभी मिलकर इस संस्थान को नए आयामों तक ले जाने के लिए कड़ी मेहनत और लगन से कार्य करें।
धन्यवाद,
जय हिन्द!