SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF GOLDEN JUBILEE CELEBRATION OF SD COLLEGE FOR WOMEN AT JALANDHAR ON OCTOBER 23, 2024.
- by Admin
- 2024-10-23 17:10
दिनांकः 23.10.2024 स्थानः एस.डी. कॉलेज, जालंधर एस.डी. कॉलेज फॉर वूमन का स्वर्ण जयंती समारोह श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
माननीय प्रबंधन समिति के सदस्यगण, आदरणीय प्राचार्य, सम्मानित शिक्षकगण, विशिष्ट अतिथिगण और मेरी प्यारी छात्राओं,
आज इस ऐतिहासिक अवसर पर, प्रेम चंद मारकंडा एस.डी. महिला महाविद्यालय, जालंधर के स्वर्ण जयंती समारोह में उपस्थित होकर मैं अत्यंत सम्मानित महसूस कर रहा हूँ।
पीसीएम एस.डी. महिला महाविद्यालय ने इन पचास वर्षों में उत्कृष्टता, सशक्तिकरण और ज्ञान का पर्याय बनकर समाज में अपनी अद्वितीय पहचान स्थापित की है।
यह महाविद्यालय मात्र एक शैक्षणिक संस्थान नहीं है, बल्कि यह एक ज्ञान का मंदिर है, सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और सामाजिक परिवर्तन का उत्प्रेरक है।
पंजाब के राज्यपाल के रूप में, मैं इस महाविद्यालय के आदर्शों से गहराई से प्रभावित हूँ। नैक (NAAC) द्वारा ‘ए+’ ग्रेड से पुनः मान्यता प्राप्त यह महाविद्यालय उत्तरी भारत में शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रतीक बन गया है।
महिलाओं को सुलभ और किफायती शिक्षा प्रदान करने के प्रति महाविद्यालय की प्रतिबद्धता अत्यंत सराहनीय है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण एक उज्ज्वल और समान भविष्य की कुंजी है।
इस संस्थान के संस्थापक पंडित प्रेम चंद मार्कंडा, पंडित धर्मपाल दादा, सेठ रुप चंद बुधिया और लाल शिव नाथ खन्ना ने जिस संस्थान का सपना देखा था, वह आज जीवंत रूप में आपके समक्ष है। उन्होंने शिक्षा को महिला सशक्तिकरण का मार्ग माना और आज उनकी वह दृष्टि साकार हो रही है।
परंपरा और आधुनिकता को एस.डी. महिला महाविद्यालय ने पूरी गरिमा के साथ अपनाया है, जहां अत्याधुनिक पाठ्यक्रम, सुविधाएं और एक ऐसा शैक्षिक वातावरण प्रदान किया जाता है, जो नवाचार और स्वतंत्र विचारों को प्रोत्साहित करता है।
आज की तीव्र गति से बदलती दुनिया में यह आवश्यक है कि युवा पीढ़ी तकनीकी प्रगति और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहर के संरक्षण के बीच एक संतुलन बनाए रखे।
केवल इस संतुलित दृष्टिकोण के साथ ही हमारे युवा ऐसे संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं, जो नवाचार और बुद्धिमत्ता के साथ नेतृत्व कर सकें और एक ऐसी दुनिया में सार्थक योगदान दे सकें जो प्रगति को महत्व देती है, लेकिन अपनी सांस्कृतिक पहचान को नहीं खोती।
महाविद्यालय का सबसे बड़ा योगदान इसकी किफायती शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता में निहित है, जिससे उन युवा महिलाओं के लिए भी दरवाजे खुलते हैं, जो अन्यथा पीछे रह सकती थीं।
स्वामी विवेकानंद के इस उद्धरण का सार महाविद्यालय के मिशन में परिलक्षित होता हैः ‘‘पहले अपनी महिलाओं को शिक्षित करो और उन्हें अपने आप छोड़ दो; तब वे खुद बताएंगी कि उन्हें कौन से सुधार चाहिए।’’
पीसीएम एस.डी. महिला महाविद्यालय इस विश्वास को आत्मसात करता है और न केवल शैक्षणिक बल्कि समग्र विकास के माध्यम से महिलाओं को सशक्त करता है, ताकि वे अपने भविष्य को आकार देने के लिए आवश्यक कौशल और आत्मविश्वास से लैस हों।
महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘शिक्षा वह हथियार है जिससे हम समाज की असमानताओं और अन्याय का सामना कर सकते हैं।’’ अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज तरक्की करे, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा का द्वार सभी के लिए समान रूप से खुला हो। जाति, धर्म, पंथ या रंग का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
महिला शक्ति के बिना एक स्वस्थ, सशक्त और विकसित समाज की परिकल्पना संभव ही नहीं है। हम धरती और भारतभूमि को माता के रूप में संबोधित करते हैं। विद्या, धन और बल के लिए हम मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की उपासना करते हैं।
प्राचीन काल से आधुनिक भारत तक हमारा इतिहास महिलाओं के योगदान की गाथाओं से भरा हुआ है। गार्गी, मैत्रेयी, रोमशा और अपाला जैसी विदुषियों से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होलकर, रानी वेलु नचियार और रानी चेनम्मा जैसी वीरांगनाओं के योगदान के उल्लेख के बिना हमारा इतिहास अधूरा है।
आधुनिक भारत की बात करें तो हमारे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल और वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पदस्थ होकर महिलाओं की गरिमा को बढ़ाया है।
इसके अलावा देश का गौरव बढ़ाने वाली अन्य महिलाओं में:
• महान एथलीट पी.टी. उषा ने 1980 के दशक में अपनी अद्वितीय तेज गति और धावक कौशल से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया।
• मैरी कॉम ने रिकॉर्ड छह बार विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियन बनकर भारत को गौरवान्वित किया, और ओलंपिक में मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली देश की पहली महिला बनीं।
• 2015 में विश्व बैडमिंटन रैंकिंग में, साइना नेहवाल नंबर 1 स्थान हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
• अरुणिमा सिन्हा 2013 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला बनीं।
• अंतरिक्ष यात्री और इंजीनियर, कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थीं।
• दीपा मलिक 2016 ग्रीष्मकालीन पैरालिंपिक में पैरालिंपिक खेलों में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं।
• भारतीय स्प्रिंट धावक हिमा दास आईएएएफ विश्व यू20 चैंपियनशिप में ट्रैक इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट हैं।
• 2012 में, राधिका मेनन मर्चेंट नेवी में पहली भारतीय महिला कप्तान बनीं।
• किरण बेदी 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने के बाद, भारत की पहली महिला पुलिस अधिकारी बनीं।
• बछेंद्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
हमारी बेटियां रक्षा बलों में शामिल होकर पुरूषों केसाथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की रक्षा में महत्वपूर्णयोगदान दे रही हैं। फिर चाहे लड़ाकू विमान उड़ाना हो याफिर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में तैनातहोकर अपना कर्तव्य निभाना हो, हमारी बेटियां पूर्णकर्तव्यनिष्ठा के साथ देश की सेवा कर रही हैं।
मित्रों,
महिलाओं को बराबरी का अधिकार और सम्मान देना तो भारतीयता का मूल-भाव रहा है। भारत में मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति इन सभी महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं विश्व के कई विकसित देशों की तुलना में पहले से ही आसीन रही हैं।
नारी का सम्मान हमारी संस्कृति का आधार रहा है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’, यह हमारा सूत्र वाक्य रहा है। अर्थात् जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
समाज को ‘पढ़ो और बढ़ो’ की सोच के साथ बेटियों का साथ देना चाहिए। सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाली हमारी बेटियाँ अपनी इच्छा-शक्ति और कठिन परिश्रम के बल पर glass ceilings रूपी अदृश्य दीवार को तोड़ते हुए खेल, संगीत, कला, विज्ञान और रक्षा जैसे सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं।
हम सबको मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाना है, जहां सभी महिलाएं सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में पूरी तरह से भाग ले सकें और अपना भरपूर योगदान दे सकें।
हमारा समाज सदियों से लड़कों को अधिक महत्व देता आया है। इसका परिणाम यह हुआ कि कन्या भ्रूण हत्या, बालिका शिक्षा में कमी और महिलाओं के प्रति भेदभाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गईं। बेटियों को जीवन के हर क्षेत्र में पीछे रखा गया और उनकी शिक्षा और विकास पर ध्यान नहीं दिया गया। इसी गंभीर स्थिति को बदलने के लिए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने 2015 में ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ योजना की शुरुआत की।
इस अभियान का उद्देश्य दो मुख्य बातों पर केंद्रित हैः बेटियों की सुरक्षा और उनकी शिक्षा। सबसे पहले, बेटियों को जीवन का अधिकार देना और फिर उन्हें उचित शिक्षा प्रदान कर उनके आत्मनिर्भर बनने के अवसर प्रदान करना।
हम सभी जानते हैं कि जब एक बेटी शिक्षित होती है, तो वह न केवल अपने परिवार को, बल्कि पूरे समाज को शिक्षित करती है। एक शिक्षित महिला देश के विकास में अहम भूमिका निभाती है।
हमारी बेटियों में अपार क्षमता है। यदि उन्हें सही दिशा दी जाए और उन्हें उचित शिक्षा और सुरक्षा प्रदान की जाए, तो वे किसी भी क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू सकती हैं।
आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि बेटियां बोझ नहीं हैं, बल्कि वे समाज की नींव हैं। हमें उन्हें पढ़ाने और उनके सपनों को उड़ान देने की जरूरत है।
देवियों और सज्जनों,
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष हो रहा है कि यह संस्थान विभिन्न क्षेत्रों में महिला नेतृत्व को निरंतर विकसित करता आ रहा है - चाहे वह शिक्षा हो, व्यवसाय, कला या खेल।
विशेष रूप से, गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी सी-ज़ोन ज़ोनल यूथ फेस्टिवल में हर वर्ष शानदार उपलब्धियाँ हासिल करना और 53वीं गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी एथलेटिक मीट में कॉलेज की छात्राओं का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए ओवरऑल ट्रॉफी प्राप्त करना गर्व का विषय है।
मुझे महाविद्यालय की अग्रगामी पहलों से भी प्रेरणा मिली है, विशेष रूप से स्वावलंबी भारत अभियान में 500से अधिक छात्रों का पंजीकरण। इस योजना के द्वारा यह संस्थान न केवल नौकरी चाहने वालों को तैयार कर रहा है, बल्कि नौकरी देने वालों को भी विकसित कर रहा है, जिससे आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान हो रहा है।
स्वर्ण जयंती के इस अवसर पर, मैं महाविद्यालय के प्राध्यापकों, प्रशासन और प्रबंध समिति के सदस्यों को शुभकामनाएँ देता हूँ, जिन्होंने आपकी कड़ी मेहनत और समर्पण से इस संस्थान को एक सच्चे ज्ञान और सशक्तिकरण के प्रकाश स्तंभ के रूप में स्थापित किया है जहां से निकलने वाले छात्र केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि सेवा, करुणा और नेतृत्व की भावना भी लेकर जाते हैं।
मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों में, यह संस्थान और भी ऊँचाइयों को छुएगा। मैं शिक्षकों और छात्रों से आग्रह करता हूँ कि वे नवाचार करें, नए विचारों का अन्वेषण करें और बहु-विषयक दृष्टिकोणों को अपनाएं।
इस स्वर्णिम अवसर पर हम केवल पिछले पचास वर्षों का उत्सव नहीं मना रहे हैं, बल्कि अगले पचास वर्षों के लिए एक सशक्त नींव रख रहे हैं।
मैं इस महाविद्यालय की अद्वितीय यात्रा में योगदान देने वाले सभी लोगों को हार्दिक बधाई देता हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रेम चंद मारकंडा एस.डी. महिला महाविद्यालय आने वाले समय में और भी चमकेगा और समाज में अपनी अमूल्य छाप छोड़ता रहेगा।
धन्यवाद,
जय हिंद!