SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION VIRAT SARV DHARM SANGAM AT JALANDHAR ON 29.09.2024.

दिनांक 29.09.2024  स्थानः जालंधर
जैन सभा के ‘‘सर्व धर्म संगम’’ के अवसर पर
श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

 

सभी आदरणीय जनों को मेरा नमस्कार!

आज मैं श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा द्वारा एक अद्भुत और महत्वपूर्ण विषय ‘‘सर्व धर्म संगम’ पर अयोजित इस समारोह में उपस्थित होकर अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूं।

आज जब पूरा विश्व अशांति के अभूतपूर्व दौर से गुज़र रहा है, यह विषय आज की दुनिया में शांति, एकता और मानवता के मूल्यों को समझने और उनका पालन करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसलिए मैं इस आयोजन के लिए श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा की सराहना करता हूं।

‘‘सर्व धर्म संगम’’ का अर्थ है विभिन्न धर्मों का एक महान संगम, एक ऐसा मंच जहाँ सभी धर्मों के लोग अपने-अपने मत, विश्वास और आस्थाओं को साथ लेकर एकता और सौहार्द के भाव से मिलते हैं। 

आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज तथा उनके सुशिष्य राष्ट्र संत वाचनाचार्य श्री मनोहर मुनि जी महाराज संतों की मणिमाला में सुमेर, जैसे महापुरूष थे जिन्होंने संयम, तप, त्याग के द्वारा आत्म कल्याण करने के साथ नैतिक, सुसंस्कारी, चरित्रनिष्ठ समाज सृजन में भी अमूल्य योगदान देकर मानवता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम अंकित किया।

इन महापुरूषों ने सामाजिक कुरीतियों तथा बुराईयों के विरूद्ध जनता को जागृत कर सात्विक, सदाचारी, धर्म-अध्यात्म की मर्यादाओं के अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा देकर मानव मात्र पर अनुपम उपकार किया है। आपसी भेदभाव तथा सामाजिक दूरियों को दूर कर समाज को एक सूत्र में पिरोने की दिशा में दिया गया आपका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।

आपकी इस समृद्ध विरासत को आपके शिष्य सर्व धर्म दिवाकर भारत संत गौरव श्री पीयूष मुनि जी महाराज आगे बढ़ाते हुए सद्भाव, समन्वय एंव सेवा का अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं। 

सर्व धर्म संगम का यह आयोजन आपकी अनूठी पहल है जिसमें विभिन्न परंपराओं की संत विभूतियों की एक मंच पर उपस्थित विभिन्नता के बावजूद एकता तथा परस्पर सम्मान का मूल्यवान संदेश दे रही है। 

हमारे देश भारत की पहचान ही इसकी विविधता में निहित एकता है। यहाँ सैकड़ों सालों से विभिन्न धर्म शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ एकजुट होकर रहते हैं। 

आज जैन धर्म की शिक्षाएं विश्व के लिए पहले से कई अधिक प्रासंगिक हैं। भारत द्वारा जैन धर्म पूरे विश्व को एक अनमोल देन है जिसने हमेशा शांति, अहिंसा और समन्वय का प्रचार-प्रसार किया है।

जहां एक ओर सभी धर्म मानव कल्याण की बात करते हैं वहीं जैन धर्म मानव कल्याण के साथ-साथ इस पृथ्वी पर मौजूद हर प्राणी, पेड़़, पक्षी आदि के प्रति अहिंसा, प्रेम और स्नेह का संदेश देता है।

आज जहां विश्व भर में प्राकृतिक संसाधनों को इकट्ठा करने की लूट मची हुई है, वहीं जैन धर्म कम से कम प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके जीवन यापन के लिए प्रेरित करता है।

धर्म ने विश्व समाज, संस्कृति और राजनीति को सदियों से प्रभावित किया है। धर्म न केवल मनुष्य को उसके जीवन के उद्देश्य और अर्थ का बोध कराता है, बल्कि जीवन की जटिलताओं को समझने में भी सहायता करता है। सभी धर्म आत्मा को ऊंचा उठाने और इसे विकारों की दलदल से बाहर निकालने की प्रेरणा देते हैं।

देवियो और सज्जनो,

शांति, प्रेम, पवित्रता और सच्चाई जैसे मौलिक आध्यात्मिक मूल्य ही हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं। समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सहिष्णुता, एक-दूसरे का सम्मान और सौहार्द के महत्व को समझना आवश्यक है। 

एक सुनहरा नियम है-दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा व्यवहार आप दूसरों से चाहते हैं। जब हम इस मानदंड को ध्यान में रखते हुए कार्य करेंगे, तब हम दूसरों के प्रति सहानुभूति रखना और उनका सम्मान करना सीखेंगे। 

प्रत्येक मानव आत्मा स्नेह और सम्मान की पात्र है। अपने आप को पहचानना, अपने मूल आध्यात्मिक गुणों के अनुरूप जीवन जीना और ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध रखना ही सांप्रदायिक सद्भाव और भावनात्मक एकीकरण का सहज साधन है।

देवियो और सज्जनो,

प्रेम और करुणा के बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती। आज मनुष्य के भीतर, मनुष्यों के बीच, तथा मनुष्यों और प्रकृति के बीच संघर्ष चल रहा है। जहाँ कहीं भी दुःख है, वहाँ प्रेम का अभाव है। इसका मूल कारण है कि हम भूल गए हैं कि हम कौन हैं। हम बाहरी सुख की तलाश में लगे हुए हैं। हम अपने संकल्पों और व्यवहार से जो शांति, प्रेम, और खुशी का अनुभव कर सकते हैं, उसे छोड़ कर मृगतृष्णाओं के पीछे दौड़ रहे हैं। 

हम दूसरों से अपनी तुलना करते हैं और जब हम देखते हैं कि वे हमसे ज्यादा खुश हैं, तो हम असंतुष्ट या ईर्ष्यालु हो जाते हैं। उनके पास जो कुछ है उसे पाने की इच्छा करने लगते हैं। इससे परायेपन का और संघर्ष का भाव पैदा होता है।

देवियो और सज्जनों,

वर्तमान समय में विभिन्न राष्ट्रों द्वारा अपनी क्षेत्रीय सीमाओं एवं नियंत्रण को बढ़ाने की प्रबल लालसा एवं महत्त्वाकांक्षा के निरन्तर संपोषण के चलते विश्वयुद्ध जैसी गम्भीर परिस्थितियों को जन्म दिया जा रहा है, जिसके कारण सम्पूर्ण विश्व को आर्थिक अस्थिरता, विस्थापन जैसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

वैश्विक शांति की आधारशिला शांति के तीन आयामों में निहित है - आंतरिक शांति, राष्ट्रों के बीच शांति और प्रकृति के साथ शांति। इसलिए हमें भीतर, बाहर और प्रकृति के साथ शांति की आवश्यकता है। एक समृद्ध अतीत वाले वैश्विक देश के रूप में, भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की कुंजी रखता है।

हमारे देश की विशेषता है कि यहाँ विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। यह तभी संभव हो पाया है, जब हम सबने एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहिष्णुता की भावना रखी। 

देवियो और सज्जनों,

आज के युग में, जहाँ हम देखते हैं कि धर्म के नाम पर कई बार हिंसा और असहिष्णुता फैलाई जाती है, ‘‘विराट सर्व धर्म संगम’’ जैसे विचार अत्यंत प्रासंगिक हो जाते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि धर्म हमें बाँटने के लिए नहीं, बल्कि हमें एक-दूसरे से जोड़ने के लिए हैं। 

महात्मा गांधी ने भी सर्वधर्म समभाव का सिद्धांत दिया था, जिसमें वे मानते थे कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर जाते हैं, बस उनके रास्ते अलग-अलग होते हैं। उन्होंने कहा था कि ‘‘धर्म का काम मानवता को जोड़ना है, न कि उसे अलग करना।’’

आज का यह आयोजन हमें यह प्रेरणा देता है कि हम किसी भी धर्म, जाति, या भाषा के हों, हमें एकजुट होकर एक बेहतर समाज का निर्माण करना चाहिए। इसमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जाती है जहाँ नफरत और असहिष्णुता का कोई स्थान न हो, और हर व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति प्रेम और आदर की भावना रखे।

आध्यात्मिक मूल्यों के अनुरूप जीवन, समाज में एकता और सद्भाव का आधार है। जब विभिन्न धर्मों के लोग सद्भावना-पूर्ण एक साथ रहते हैं तब समाज और देश का सामाजिक ताना-बाना मजबूत होता है। यह मजबूती देश की एकता को और सुदृढ़ करती है और प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। 

आप सब जानते हैं कि वर्ष 2047 तक हमने भारत को एक विकसित देश के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबका साथ जरूरी है। सभी लोगों के सहयोग से ही भारत समग्र रूप से सशक्त राष्ट्र बन पाएगा। 

अंत में, मैं आपसे यही कहना चाहूँगा कि अगर हम सभी इस विराट सर्व धर्म संगम की भावना को अपनाएँ और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ, तो यह न केवल हमारे देश बल्कि पूरी दुनिया को एक बेहतर और शांतिपूर्ण स्थान बना सकता है।

 

धन्यवाद,

जय हिन्द!