SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF NATIONAL LEVEL SEMINAR ON SHRIMANT SHANKARDEV TITLES ‘UNDERSTANDING SHRIMANT SHANKARDEV A MULTI-FACETED GENIUS’ AT PANJAB UNIVERSITY CHANDIGARH

दिनांकः 08.10.2024स्थानः पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़
‘श्रीमंत शंकरदेव चेयर’  द्वारा सेमिनार का आयोजन
श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

 

         पंजाब विश्वविद्यालय के उप-कुलपति, प्रशासनिक अधिकारी गण, संकाय सदस्य, कर्मचारी गण, छात्र, विशिष्ट अतिथि गण तथा देवियो और सज्जनों,

पंजाब विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत ही गौरवमयी है जो लगभग 150 वर्ष पुरानी संस्था है। अविभाजित भारत के लाहौर शहर में, सन् 1882 में स्थापित इस विश्वविद्यालय की समृद्ध शैक्षणिक और वैचारिक परंपरा रही है। विभाजन के बाद 1956 में यह विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में स्थानान्तरित कर दिया गया। 

यह विश्वविद्यालय उस क्षेत्र में स्थित है जो पांच नदियों का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे राज्य का नाम पंज-आब, जिसका अर्थ पांच नदियों की धरती है। उसी के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नाम रखा गया है जो इस क्षेत्र की संस्कृतिक को अपने नाम में समेटे हुए है।

इस महान संस्था में महापुरूष श्रीमंत शंकरदेव के नाम पर चेयर स्थापित करना एक सराहनीय उद्यम है, जिसकी स्थापना असम सरकार की आर्थिक सहायता के माध्यम से वर्ष 2019 में हुई।

‘‘सर्वगुणाकर’’-महापुरूष श्रीमंत शंकरदेव के नाम से स्थापित चेयर द्वारा आयोजित सेमिनार के इस शुभ अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

देवियों और सज्जनों,

असम का भारत से जुड़ाव दिल से है, आत्मा से है। असम श्रीमंत शंकरदेव जी के संस्कारों को जीता है। श्रीमंत शंकरदेव जी कहते हैं-

 

कोटि-कोटि जन्मांतरे जाहार, कोटि-कोटि जन्मांतरे जाहार

आसे महा पुण्य राशि, सि सि कदाचित मनुष्य होवय, भारत वरिषे आसि!!

यानि जिस व्यक्ति ने अनेक जन्मों से निरंतर पुण्य कमाया है, वही व्यक्ति इस भारत देश में जन्म लेता है। ये भावना असम के कोने-कोने में, असम के कण-कण में, असम के जन-जन में है। इसी भावना के चलते भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर भारत के नवनिर्माण में असम ने अपना खून और पसीना बहाया है।

इस श्रीमंत शंकरदेव चेयर को स्थापित करने का उद्देश्य भारत के कोने-कोने तथा भारत की सीमाओं से भी परे शंकरदेव, उनकी शिक्षाओं और भक्ति आंदोलन पर अध्ययन और शोध का विस्तार करना है। 

अगर इस चेयर उद्देश्यों संबंधी विस्तार में बात करें तोः-

शंकरदेव और उनके अनुयायियों के जीवन, शिक्षाओं और कार्यों के संदर्भ में असम के बाहर भक्ति आंदोलन पर अध्ययन और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना। समकालीन भारतीय स्थिति का अध्ययन करना और भारतीय संदर्भ में शंकरदेव और उनके आंदोलन का पता लगाना।

असम के बाहर छात्र और शोधकर्ता तैयार करना जो असम के इतिहास, साहित्य और संस्कृति पर अध्ययन और शोधकार्य करेंगे, विशेष रूप से भक्ति आंदोलन के ऐतिहासिक संदर्भ में।

भक्ति आंदोलन के बदलते संदर्भ के साथ समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन, भक्ति के दौरान गुरु नानक जैसे विभिन्न समकालीन संतों के जुड़ाव पर शोध, श्रीमंत शंकरदेव की शिक्षाओं तथा उनसे संबंधित शास्त्रों/साहित्य का डिजिटलीकरण, सोशल मीडिया तथा प्रौद्योगिकी के माध्यम से उनके संदेशों का प्रसार करना भी इस चेयर के उद्देश्यों में शामिल है।

इस चेयर के अन्तर्गत पिछले ढाई वर्षों में श्रीमंत शंकरदेव के योगदान के महत्व संबंधी विशेष व्याख्यान कार्यक्रम, उनके काव्य एवं सामाजिक योगदान पर व्याख्यान, श्रीमंत शंकरदेव के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भाषण प्रतियोगिता, राष्ट्रीय सेमिनार, असमिया संस्कृति पर कार्यशाला आदि गतिविधियां की गई हैं। 

इसके अलावा इस चेयर के अधीन श्रीमंत शंकरदेव रिसर्च प्रोजेक्ट करने के लिए फेलोशिप कार्यक्रम, ‘श्रीमंत शंकरदेव और गुरू नानक देवः एक तुलनात्मक दृष्टिकोण’ पर विशेष व्याख्यान, विभिन्न सत्रों हेतु प्रोफेसरों द्वारा असम का दौरा किया गया।

मित्रों,

श्रीमंत शंकरदेव जी एक महान संत, समाज सुधारक, और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका नाम भारतीय संस्कृति और असम की वैष्णव भक्ति परंपरा में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

शंकरदेव का जन्म 1449 ईस्वी में असम के वर्तमान नगांव जिले के बोरदोवा के पास अलीपुखुरी में शिरोमणि भूना परिवार में हुआ था। उन्होंने भारतीय धर्म, संस्कृति और भक्ति आंदोलन में एक अनोखा योगदान दिया। उनकी शिक्षा से प्रेरित होकर लाखों लोग आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार की दिशा में आगे बढ़े हैं।

शंकरदेव जी ने ‘‘एक शरण’’ धर्म की स्थापना की, जिसका मूल सिद्धांत था कि केवल एक ईश्वर की शरण में आना चाहिए, जो कि भगवान विष्णु हैं। उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास और धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव का विरोध किया। उनका उद्देश्य एक समतामूलक समाज की स्थापना करना था।

उन्होंने असम में वैष्णव धर्म को नया आयाम दिया और इसे जन-जन तक पहुँचाया। उनके द्वारा शुरू किया गया सत्रिया नृत्य आज भी असम की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विश्वविख्यात है। 

इसके अलावा, उन्होंने ‘‘अंकिया नाटक’’ नामक नाट्य शैली की शुरुआत की, जो धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं को सरल तरीके से प्रस्तुत करने का माध्यम बना।

शंकरदेव न केवल एक धार्मिक गुरु थे, बल्कि एक महान कवि और लेखक भी थे। उन्होंने कई काव्य रचनाएं कीं, जिनमें कीर्तन-घोष उनकी सबसे उत्कृष्ट साहित्यिक कृति है। यह कीर्तन या भक्ति गीतों का एक संग्रह था, जो मुख्य रूप से सामूहिक प्रार्थनाओं के लिए लिखा गया था। 

उन्होंने अपने समय में समाज में व्याप्त बुराइयों, जैसे जातिवाद, अस्पृश्यता और धार्मिक कट्टरता का विरोध किया। उन्होंने लोगों को शिक्षा और आत्मनिर्भरता के महत्व को समझाया। उनके विचार आज भी समाज सुधारकों के लिए प्रेरणादायक हैं।

आज मैं इस अवसर पर महापुरूष श्रीमंत शंकरदेव की एक प्रसिद्ध उक्ति का उल्लेख करना चाहता हूं -

‘‘ब्राह्मणर चांडालर निविचारी कुल। दातात चोरत जेन दृष्टि एक तुल।।

निचत साधुत जार भैल एक ज्ञान। ताहा केसे पंडित बुलिया सर्वजान।।

अर्थात - जिसे ब्राह्मण और चांडाल (अछूत) का कोई जाति भेद नहीं है, जिसकी दानी और चोर के लिए समान दृष्टि है, और जो निम्न और उच्च वर्ग के लिए बराबर भाव रखता है, ऐसा व्यक्ति विद्वान के रूप में पहचाना जाता है।

वेदांत पर आधारित शंकरदेव की शिक्षाओं ने ‘भक्ति’ का उपदेश दिया, जो मानवीय मूल्यों पर आधारित है। ‘ईश्वर’ और ‘जीव’ की अपनी अवधारणा के साथ शंकरदेव ने सभी जाति, पंथ और धर्म के लोगों को बराबरी का दर्जा देते हुए सामाजिक परिवेश के हर पहलू में सामाजिक सुधार किए। 

सिद्धांत और व्यवहार दोनों में श्रीमंत शंकरदेव की बढ़ती प्रासंगिकता को इस प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा और अधिक मूर्त रूप दिया गया है जो बेहद सराहनीय है।

मानवता को ज्ञान देने के लिए समर्पित एक अत्यंत घटनापूर्ण जीवन जीने के बाद 1568 में इस महापुरुष ने 120 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।

मित्रों,

हमारा देश श्रीमंत शंकरदेव जैसे न जाने कितने ही महान संतों, गुरूओं और पीरों की भूमि है जिन्होंने समय-समय पर अवतरित होकर मानवता का मार्गदर्शन किया है। यह उनका ज्ञान और शिक्षा ही है जिसके चलते आज भारत महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है जिसके लिए हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और शिक्षाओं को साथ लेकर आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना होगा। 

हमारे देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू की गई है जिसकी बुनियाद हमारी पुरातन संस्कृति पर ही आधारित है। 

आइए, हम देश की प्रगति, एकता और समृद्धि के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें। हम सब मिलकर एक ऐसे भविष्य का निर्माण करें, जो कौशल विकास, औद्योगिक सम्बन्ध और रोजगार के साथ सामंजस्य स्थापित करके समग्र शिक्षा पर केन्द्रित हो।

अंत में इस सेमिनार में शामिल सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

आइए, हम सभी श्रीमंत शंकरदेव जी के आदर्शों और शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाएं और समाज में शांति, प्रेम और समर्पण का संदेश फैलाएं।

धन्यवाद,

 जय हिन्द!