SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF INAUGURATION OF THE 14TH CHANDIGARH NATIONAL CRAFT MELA AT CHANDIGARH ON NOVEMBER 29, 2024.
- by Admin
- 2024-11-29 23:20
कलाग्राम क्राफ्ट मेले के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 29.11.2024, शुक्रवार | समयः शाम 6:00 बजे | स्थानः कलाग्राम, चंडीगढ |
सभी को नमस्कार!
मैं उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अध्यक्ष के रूप में इस क्राफ्ट मेले में आप सभी का स्वागत करता हूं।
भारत विविधताओं का देश है। यहाँ हर कोने में संस्कृति, परंपरा और कला की अनूठी छवि देखने को मिलती है। इस समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने 1986 में क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना की।
इन केंद्रों में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला; दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, तंजावुर; पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता; पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर; उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज; उत्तर पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, दीमापुर और दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर शामिल हैं जो देश की सांस्कृतिक एकता और विविधता को सशक्त बनाने के लिए काम करते हैं।
इन केंद्रों का मुख्य उद्देश्य स्थानीय कला, संगीत, नृत्य, नाटक, और परंपराओं को संरक्षित करना और देशभर में उन्हें प्रचारित करना है। साथ ही, यह विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
मित्रों,
आज हम सब यहां विविधतापूर्ण कौशलों को प्रदर्शित करने वाले इस दस दिवसीय ‘‘14वें चंडीगढ़ राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले’’ के अवसर पर एकत्रित हुए हैं।
मैं देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये हुये शिल्पकारों, दस्तकारों या फिर यूं कहूं कि कौशल कुबेरों का और कलाकारों का, इस सुनियोजित शहर, चंडीगढ़ में स्वागत करता हूँ।
मैं क्षेत्रवासियों से आह्वान करता हूं कि वे इस मेले में पधारकर विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन के साथ-साथ विभिन्न राज्यों के व्यंजनों का स्वाद भी ले सकते हैं। इसके अलावा इन दस दिनों के दौरान लोग विभिन्न राज्यों के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नृत्यों और संगीत का भी आनंद ले सकते हैं।
यह एक सुखद तथ्य है कि इस मेले का आयोजन उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र और चंडीगढ़ प्रशासन संयुक्त रूप से करता है और शहर की कई संस्थायें भी इसमें सहयोग करती हैं।
आज जबकि पश्चिम की अंधाधुंध दौड़ में हमारी नई पीढ़ी हमारी महान सांस्कृतिक विरासत से दूर हो रही है, ऐसे में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र का ये प्रयास बहुत दूरगामी प्रभाव रखता है। ये लोक कलाएं ही हैं जो हमारी सामूहिक पहचान को दर्शाती हैं। इन लोक कलाओं से ही हमारी शास्त्रीय कलाओं का विकास होता है।
मेरा ये दृढ़ विश्वास है कि संस्कृति ही एक ऐसा तत्व है जो दिलों को दिलों से जोड़ता है, जो हमें राष्ट्रीय पहचान देता है और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा को मज़बूती प्रदान करता है। हमारी संस्कृति के अनेक रंग हैं जो रंग बिरंगे फूलों की तरह हमारे महान देश को सुंदर बनाते हैं।
प्रिय मित्रों,
हम सभी जानते हैं, भारत त्योहारों और मेलों का देश है। इस मेले में शिल्पकारों और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों के पहनावों, लोक-कलाओं और लोक-व्यंजनों के अतिरिक्त, लोक-संगीत और लोक-नृत्यों का भी संगम होता है। इस मेले में भारत के गांव की खुशबू और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा के विविध रंग, यहां आने वालों को हमेशा आकर्षित करते हैं।
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का कहना था कि भारत का विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक हम भारत के गांवों का जमीनी स्तर तक विकास नहीं कर लेते। उन्होंने देश के समग्र विकास की प्रक्रिया में हमेशा ग्रामोद्योग अर्थात हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों की भूमिका की पुरजोर वकालत की।
हस्तशिल्प, जिसे हमारे कारीगर अपने हाथों से बनाते हैं, भारतीय कला और संस्कृति का प्रतिबिंब है। बंधेज, मधुबनी चित्रकला, पाषाण मूर्तियां, जरी-जरदोजी और लकड़ी पर नक्काशी जैसे हस्तशिल्प न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। ये वस्तुएं न केवल उपयोगी होती हैं बल्कि सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखती हैं।
कुटीर उद्योग की बात करें तो यह घर पर या छोटे स्तर पर चलने वाले उद्योग ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के प्रमुख साधन हैं। हथकरघा, बांस से बने उत्पाद, जैविक खाद्य पदार्थ, और दस्तकारी वाले कपड़े इस उद्योग के प्रमुख उदाहरण हैं।
यह क्षेत्र महिलाओं और पारंपरिक कौशल रखने वाले लोगों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करता है।
हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग केवल आर्थिक संपन्नता ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं का परिचय भी हैं। हमें इनका संरक्षण और संवर्धन करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी हमारी इस समृद्ध धरोहर का आनंद ले सकें।
भारत में कारीगरों और शिल्पकारों की एक विस्तृत श्रृंखला है और शानदार कला की विरासत है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार न केवल कारीगरों और शिल्पकारों को रोजगार के अवसर प्रदान कर उनका आर्थिक सशक्तिकरण कर रही है, बल्कि भारत की स्वदेशी पारंपरिक विरासत का संरक्षण और प्रफुलन भी कर रही है, जो एक समय पर विलुप्त होने की कगार पर थी।
क्राफ्ट मेले में प्रदर्शित स्वदेशी हस्तनिर्मित उत्पादों के ज़रीए ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान को मज़बूती मिलेगी और ‘स्वदेशी से स्वावलंबन’ की सोच प्रोत्साहित होगी।
‘‘वोकल फॉर लोकल’’ का उद्देश्य अपने स्थानीय उत्पादों, कुटीर उद्योगों और स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता देना, उन्हें बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना है। यह विचार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
इसका उद्देश्य न केवल देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है, बल्कि हमारे कारीगरों, किसानों और छोटे व्यवसायों को एक नई दिशा और समर्थन प्रदान करना है। जब हम अपने स्थानीय उत्पादों का समर्थन करेंगे, तो न केवल हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि हमारा गौरव और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
स्वदेशी की भावना को अपनाकर जब हम अपनी जरूरतों को अपने प्रयासों से पूरा करने में सक्षम हो जाते हैं, तो वही स्वावलंबन कहलाता है। सरकार ने ‘‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं के माध्यम से स्वदेशी और स्वावलंबन को बढ़ावा देने का कार्य किया है।
ये पहल छोटे और मध्यम उद्यमों, स्टार्टअप्स, और किसानों को मजबूत करने में सहायक हैं। स्वदेशी से स्वावलंबन केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक मिशन है। यह हमारे देश को आत्मनिर्भर, सशक्त और विश्व में अग्रणी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
देवियो और सज्जनों,
क्राफ्ट मेला न केवल हमारी संस्कृति और परंपराओं का एक अद्भुत दर्पण है, बल्कि यह हमारे देश के कारीगरों और उनकी कला के महत्व को भी दर्शाता है।
क्राफ्ट मेलों से ना केवल कलाकारों को प्रोत्साहन मिलता है बल्कि शिल्पकारों को भी अपने शिल्प के प्रदर्शन और विक्रय का एक अच्छा अवसर प्राप्त होता है।
आज के इस सोशल मीडिया के युग में जहाँ हर घटना को आभासिक/वर्चुअल रूप में देखने का चलन बढ़ गया है, कला और कलाकारों को रूबरू देखने का इस प्रकार का अवसर मिलना बहुत ही सुखद और रोमांचकारी है।
क्राफ्ट मेला एक ऐसा मंच है, जहाँ विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के शिल्पकार अपनी कला और हुनर को प्रदर्शित करते हैं और यह हमारी विविधता में एकता की भावना को भी प्रबल करता है। इसमें हस्तशिल्प, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की नक्काशी, हाथ से बुने कपड़े, और लोक संगीत जैसे अनेक आयाम देखने को मिलते हैं।
ऐसे मेलों के माध्यम से न केवल कारीगरों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है, बल्कि उनकी आजीविका को भी बढ़ावा मिलता है। इन मेलों से हमें यह भी समझने का अवसर मिलता है कि हमारे देश में किस प्रकार की अनमोल कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं।
इसके अलावा, क्राफ्ट मेला नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि शिक्षा का एक ऐसा केंद्र भी है, जो हमें हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति जागरूक करता है।
यह मेला केवल हस्तशिल्प का प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जहाँ शहरी और ग्रामीण संस्कृति का संगम होता है। यहाँ आने वाले लोग न केवल हस्तशिल्प के उत्पादों को खरीदते हैं, बल्कि उन्हें बनाने की प्रक्रिया और उनकी सांस्कृतिक महत्ता को भी समझते हैं।
हस्तशिल्प मेला छोटे व्यापारियों और कलाकारों को प्रोत्साहन देता है। यह उनके जीवन-यापन का साधन बनता है और उनके हुनर को नई पहचान देता है। साथ ही, पर्यटकों के लिए यह मेला हमारे देश की विविधता को करीब से जानने का अवसर प्रदान करता है।
मैंने अभी देखा कि अनेक राज्यों के शिल्पकार इस मेले में अपने उत्पाद लेकर आए हैं। इन शिल्पकारों में कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं तो कई राज्य स्तर पर अवॉर्डी हैं।
मैं इन शिल्पकारों का भी स्वागत करता हूं और आप लोगों से अपील करता हूं कि आप यहां आए हैं तो कुछ ना कुछ खरीद कर जरूर जाएं। इससे ना केवल इन शिल्पकारों को संबल मिलेगा बल्कि राष्ट्र के विकास में भी आपका योगदान सम्मिलित होगा।
देवियो और सज्जनो,
मुझे बताया गया है कि इस बार लगभग 22 राज्यों के 600 से अधिक लोक कलाकार इन 10 दिनों में अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। ये कलाकार अपने-अपने क्षेत्र और समुदाय की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिधिनित्व करते हैं और इनकी कला देखने पर ही हमें ज्ञात होता है कि भारत कितना विशाल और सांस्कृतिक धरोहर की दृष्टि से कितना समृद्ध राष्ट्र है।
हमारे यहां अलग अलग बोली, परिधान और खान पान होते हुए भी इन सबको एकसूत्र में पिरोने वाली एक सनातनी धारा है जो सबको जोड़ कर रखती है। इसको देखते हुए ही हम विविधता में एकता की बात करते हैं। ये विविधता में एकता की धारा ही उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक समान रूप से प्रवाहित है।
इन लोक कलाओं का महत्व तब और बढ़ जाता है जब हम सोशल मीडिया पर गैर जिम्मेदार लोगों के माध्यम से फैलाई जा रही कुरीति और कुसंस्कृति और उसके दुष्प्रभाव को देखते हैं।
इन कुरीतियों और कुसंस्कृति से यदि हमें अपनी आने वाली नस्लों को बचाना है तो हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना ही होगा। और इसमें हमारी सबसे अच्छी मददगार होंगी ये लोक कलाएं।
आइए, हम सभी इन लोक कलाकारों का स्वागत करें और आपसे मैं यही आग्रह करूंगा कि आप आज ही नहीं रोज़ यहां आएं हर दिन कुछ ना कुछ नया कार्यक्रम मिलेगा। यहां ना केवल स्वस्थ पारिवारिक मनोरंजन मिलेगा बल्कि हम हमारी अगली पीढ़ियों को अपनी वास्तविक विरासत भी सौंपेगे।
मित्रों,
यहां पर ललित कला अकादमी चंडीगढ़ की ओर से भी बहुत अच्छी प्रदर्शनी लगाई गई है साथ ही पंजाब के गांव का एक छोटा सा दृश्य भी सांस्कृतिक केंद्र की ओर से दिखाया गया है। मैं समझता हूं कि शहर के रहने वाले बच्चों के लिए इनको देखना बहुत सुखद होगा।
मुझे ये भी बताया गया है कि प्रतिवर्ष यहां पर पत्थरों की नई-नई आकृतियां उकेर कर दर्शकों के लिए प्रदर्शित की जाती हैं। इस बार बारह राशियों को अद्भुत कलाकृतियों के माध्यम से दर्शाया गया है। मैं इनको घड़ने वाले कलाकारों को धन्यवाद ज्ञापित करता हूं और मेरा मानना है कि ये मेले के आकर्षण में वृद्धि करेगा।
अंत में, मैं बधाई देना चाहता हूं उन लोक कलाकारों को जिन्हें आज यहां सम्मानित किया गया है। हमने इस वर्ष युवा कलाकारों हेतु दो पुरस्कार और भी जोड़े हैं। मैं सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक फुरकान जी को उनकी इस पहल के लिए शाबाशी देता हूं।
मुझे याद है हमारे उदयपुर के शिल्पग्राम उत्सव में भी इनकी पहल पर लोक कलाकारों को सम्मानित किया जाना प्रारंभ किया गया था। इस अवार्ड का नाम भी राजस्थान के प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ श्री कोमल कोठारी के नाम पर रखा गया था।
मैं कहना चाहूँगा कि क्राफ्ट मेले जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देना हमारी जिम्मेदारी है। हमें इन कलाकारों के योगदान को सराहना चाहिए और उनके कार्यों का सम्मान करना चाहिए।
आइए, हम सब मिलकर इस परंपरा को आगे बढ़ाएँ और अपने देश की गौरवशाली विरासत को बनाए रखें।
अंत में पधारे हुए सभी अतिथियों का, शिल्पकारों का, कलाकारों का और आप सभी दर्शकों का पुनः स्वागत करते हुए आह्वान करता हूं अधिक से अधिक लोगों तक इस मेले की जानकारी पहुंचाकर मेले को सफल बनाने में अपना योगदान दें।
मैं उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंन्द्र एवं चण्डीगढ़ प्रशासन के मेले से जुड़े हुए तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों की इस मेले को सफल बनाने के अथक प्रयासों की सरहाना करता हूँ तथा ट्राइसिटी के लोगों का आह्वान करता हूँ कि देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखने के लिए चण्डीगढ़ राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में जरूर आएं।
धन्यवाद,
जय हिंद!