SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF OPENING CEREMONY OF MILITARY LITERATURE FESTIVAL AT CHANDIGARH ON NOVEMBER 30, 2024.
- by Admin
- 2024-11-30 16:40
‘8वें सैन्य साहित्य महोत्सव’ के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 30.11.2024, शनिवार समयः सुबह 10:30 बजे स्थानः चंडीगढ़
उपस्थित देवियो और सज्जनों!
इस दो दिवसीय आठवें सैन्य साहित्य महोत्सव चण्डीगढ़, 2024 के उद्घाटन समारोह के अवसर पर आप सबके बीच उपस्थित होकर बहूत खुशी हो रही है। यह महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारे देश के गौरवशाली सैन्य इतिहास, सैनिकों के बलिदान, और उनके अदम्य साहस को सलाम करने का एक अवसर है।
इस महोत्सव का आयोजन भारतीय सेना की पश्चिमी कमांड, पंजाब सरकार, यू.टी. चण्डीगढ़ प्रशासन और मिलटरी लिटरेचर फेस्टिवल ऐसोसिएशन द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। यह महोत्सव कारगिल की लड़ाई, जिसके 25 साल पूरे हो चुके हैं, की याद में किया जा रहा है।
पहला सैन्य साहित्य महोत्सव दिसंबर 2017 में आयोजित हुआ था। उसके बाद हर साल यह महोत्सव चण्डीगढ में आयोजित किया जा रहा है।
सन् 2019 और 2020 में कोविड की वजह से यह महोत्सव वर्चुअल मोड में किया गया। सन् 2023 के फरवरी महीने में और फरवरी 2024 में यह महोत्सव पटियाला में भी आयोजित किया गया था।
इस महोत्सव का उद्देश्य भारतीय सेना में शामिल पंजाब और उत्तर भारत के लोगों द्वारा युद्ध और कठिन परिस्थितयों में जो योगदान दिया गया है, उसके संबंध में क्षेत्रवासियों को अवगत करवाना है। इस महोत्सव में प्रसिद्ध लेखक, कलाकार, गीतकार, पत्रकार और सेवा निवृत्त सेना के अफसर शामिल होते हैं।
मुझे बताया गया है कि समारोह दौरान विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से युद्ध दौरान दुश्मन के खिलाफ वीरता का प्रदर्शन करने वाले सेना के योद्धाओं और शहीदों को याद किया जाता है। साथ ही क्षेत्र के युवाओं को सेना में भर्ती होने हेतु आकर्षित करने के लिये सेना के शस्त्रों का प्रदर्शन भी किया जाता है।
इस दो दिवसीय समारोह दौरान युद्धों के विषयों संबंधी विचार-विमर्श के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियों पर भी चर्चा की जाती है।
इस वर्ष का आठवां लिटरेचर महोत्सव पिछले सालों के मुकाबले कुछ अधिक खास है। इस वर्ष यह महोत्सव “Wars Under the Nuclear Umbrella” की थीम पर आधारित है। इसके अलावा इन दो दिनों में हमारे पड़ोसी देश रशिया, चाइना, नोर्थ कोरिया, इरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व अन्य देशों में हो रही गतिविधियों का क्या प्रभाव पड़ रहा है, उस पर भी कई पैनल चर्चाएं की जाएंगी।
इसके अलावा इस बार के आयोजन में युक्रेन की लड़ाई और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अशान्ति के विषय भी शामिल हैं। साथ ही पंजाबी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय सुरजीत पातर के अच्छे कार्यों पर विशेष चर्चा भी होगी।
भारत की सैन्य क्षमता, रणनीति और साहित्यिक समृद्धि को लेकर ये जो विषय चुने गये हैं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
देवियो और सज्जनों,
इस अवसर पर सबसे पहले मैं पंजाब की वीरता और युद्ध इतिहास की बात करना चाहूंगा। पंजाब का मार्शल इतिहास अति समृद्ध है। यहां वीरता, बहादुरी और सैन्य कौशल की परंपरा है। प्राचीन महाकाव्य महाभारत में पुराने पंजाब के कुरूक्षेत्र का युद्ध और इसके योद्धाओं का उल्लेख है जो अब हरियाणा में है।
पंजाब ने 326 ईसा पूर्व सिकंदर का आक्रमण देखा। विभिन्न राज्यों और राजा पोरस जैसे शासकों के उग्र प्रतिरोध ने क्षेत्र की मार्शल भावना को प्रदर्शित किया।
मौर्य और गुप्त साम्राज्य के दौरान पंजाब एक महत्वपूर्ण सीमा बना रहा, जिसने इन साम्राज्यों की सैन्य ताकत में सैनिकों और रणनीतियों, दोनों का योगदान दिया।
मुग़ल काल के दौरान, पंजाब एक महत्वपूर्ण प्रांत बन गया। गुरु हरगोबिंद और बाद में गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में सिखों ने खुद को एक मार्शल समुदाय (खालसा) में संगठित किया और मुग़ल उत्पीड़न का विरोध किया। महाराजा रणजीत सिंह के अधीन, खालसा सेना अपनी बहादुरी, अनुशासन और सैन्य कौशल के लिए प्रसिद्ध थी।
पंजाब ने दोनों विश्व युद्धों के दौरान भारतीय सेना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। क्षेत्र के सैनिकों ने विभिन्न मोर्चों पर असाधारण वीरता और बलिदान का प्रदर्शन किया।
भारत के विभाजन ने इस भूमि को खून से लथपथ कर दिया, परिवारों को उजाड़ दिया और संस्कृति को कुछ दशक पीछे धकेल दिया। फिर भी इस भूमि के लोगों ने अपने दुर्भाग्य से उभरकर भारत की अन्न की टोकरी बनाई और इसकी तलवार की भुजा भी बने।
पंजाब ने भारतीय सशस्त्र बलों के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों और अधिकारियों को तैयार करना जारी रखा है और देश की सीमाओं की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यहां कई नायक पैदा हुए हैं जो अपनी बहादुरी, वीरता और बलिदान के लिए जाने जाते हैं। हम में से कोई भी स्वर्गीय फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और एअर चीफ मार्शल अर्जुन सिंह के नेतृत्व को कभी नहीं भूल सकता, जिन्होंने हमारे देश के सैन्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय में उदाहरण पेश किया।
सूबेदार जोगिंदर सिंहः 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनके असाधारण नेतृत्व और साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्होंने भारी चीनी सेना के खिलाफ अपनी पलटन का नेतृत्व किया और अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे।
नायब सूबेदार बाना सिंहः 1987 में सियाचिन संघर्ष के दौरान उनकी बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। प्रतिकूल मौसम और दुश्मन की गोलाबारी के बावजूद एक रणनीतिक चौकी पर कब्जा करने के लिए एक टीम का नेतृत्व करते हुए, उन्होंने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया।
लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंहः 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपने नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने कुशलतापूर्वक भारतीय सेना की पश्चिमी कमान की कमान संभाली और असल उत्तर की लड़ाई में पाकिस्तानी आक्रमण को नाकाम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरीः वह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लोंगेवाला की प्रसिद्ध लड़ाई के नायक थे। चांदपुरी, जो उस समय एक मेजर थे, और उनके सैनिकों ने एक बहुत बड़ी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सफलतापूर्वक अपनी पोस्ट का बचाव किया।
पंजाब के ऐसे नायकों ने बलिदान और साहस की भावना को मूर्त रूप देते हुए भारतीय सेना के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी कहानियां भारतीय पीढ़ियों को प्रेरित करने का समर्थ्य रखती हैं। पर जरूरत है उन्हें लोगों तक पहुंचाने की।
भारत हमेशा से ही शांतिप्रय देश रहा हैः हम सभी जानते हैं कि भारत हमेशा से एक शांतिप्रिय देश रहा है, जिसने अपने इतिहास में कभी भी किसी अन्य देश के लोगों के प्रति आक्रामक रुख नहीं अपनाया है। जैसा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है, ‘‘भारत ने कभी किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया, बल्कि दूसरे देशों के लिए बलिदान दिया है। हमारा देश कभी भी जमीन का भूखा नहीं रहा। हमने कभी किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया। वास्तव में, भारत ने दूसरे देशों के लिए लड़ाई लड़ी है। इस देश ने दो विश्व युद्धों के दौरान दूसरे देशों के लिए डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जान कुर्बान की है।’’
लेकिन भारत उन लोगों को मुंहतोड़ जवाब देने में भी सक्षम है जो इसके प्रति आक्रामकता दिखाते हैं।
‘‘अहिंसा परमो धर्म’’ लेकिन अहिंसा का पालन करने की हमारी प्रतिबद्धता को कभी भी हमारी कमज़ोरी नहीं समझा जाना चाहिए। किसी भी विदेशी ‘आक्रमण’ या ‘दुस्साहस’ का हमेशा सबसे करारा जवाब मिलेगा। अशांति पैदा करने के अनगिनत दुर्भावनापूर्ण प्रयास हुए हैं, लेकिन हर बार आतंकवाद को मुँह की खानी पड़ी है।
अब हम रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। रक्षा बजट का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा अब देश में ही खरीद पर खर्च किया जा रहा है। यह आत्मनिर्भर भारत का संकल्प है। आज हमारे देश में अर्जुन टैंक और तेजस जैसे अत्याधुनिक लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट का निर्माण हो रहा है।
साथियो,
आज, जब तकनीकी प्रगति और वैश्विक चुनौतियां नई ऊंचाइयों पर हैं, यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि भारत आने वाले युद्धों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हो। भविष्य के युद्ध केवल हथियारों और सेनाओं तक सीमित नहीं होंगे। यह एक तकनीकी युद्ध होगा। हाल ही में हमने देखा है कि कैसे इज़रायल ने टेक्नोलॉजी के जरिए पेजर ब्लास्ट किए।
इसलिए, हमें हमारी सेना के तीनों अंगों में टेक्नोलॉजी के विकास पर सबसे अधिक जोर देना चाहिए क्योंकि भविष्य की लड़ाई जमीनी स्तर पर कम और टेक्नोलॉजी के बल पर ज्यादा लड़ी जाएगी।
इसके अलावा साइबर हमले किसी भी देश की अर्थव्यवस्था, संचार प्रणाली और सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए, भारत को अपनी साइबर सुरक्षा को मजबूत करना होगा। ड्रोन टेक्नोलॉजी, एंटीड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों को विकसित करते हुए हमें स्मार्ट युद्ध प्रणालियों को विकसित करना होगा।
भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना होगा। और ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत हमें स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि विदेशी आयात पर निर्भरता कम हो।
भविष्य के युद्ध में केवल हथियार नहीं, बल्कि प्रशिक्षित सैनिक और उनकी रणनीतिक व तकनीकी क्षमता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। सैनिकों को डिजिटल युद्ध और स्पेस वारफेयर में प्रशिक्षित करना होगा।
हमें सेना, नौसेना और वायुसेना के बीच तकनीकी आदान-प्रदान और तालमेल को भी मजबूत करना होगा। इसके अलावा बॉर्डर पर हो रही राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए हमें, बीएसएफ, राज्य के पुलिस बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के बीच भी बेहतर समन्वय स्थापित करना होगा।
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इसके अच्छे परिणाम पंजाब के बॉर्डर जिलों में देखने को मिल रहे हैं। जैसे कि आप सभी को पता है कि पाकिस्तान किसी न किसी तरह हमारे देश में अस्थिरता फैलाने की ताक में रहता है, क्योंकि अब उसके पास सीधी लड़ाई लड़ने की क्षमता नहीं है। अब जो हमारे बॉर्डर के 6 जिलों में पाकिस्तान द्वारा नई किस्म की अस्थिरता फैलाने की कोशिश की जा रही है। पाकिस्तान से पंजाब के सीमावर्ती गावों में ड्रोन के जरिए नशे की सप्लाई और हथियारों की सप्लाई की कोशिश की जा रही है।
इसको रोकने के लिए इन सीमावर्ती जिलों में केन्द्रीय और राज्य की सुरक्षा एजेंसियों को एक मंच प्रदान करके इस समस्या को बड़े स्तर पर हल करने का सफल प्रयास किया गया है। और मैं, इस प्रयास को आगे बढ़ाते हुए पूर्व सैन्य अधिकारियों और सुरक्षा बलों को निवेदन करता हूं कि वो इस कार्य के लिए आगे आएं ताकि पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को असफल किया जा सके।
अतः, भारत का भविष्य हमारी तैयारियों पर निर्भर करता है। हमें अपनी सेना, तकनीक और नागरिक समाज को एक साथ लाकर आने वाले किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
साथियों,
वास्तव में मेरा मानना है कि इस सैन्य साहित्य महोत्सव का दायरा केवल चंडीगढ़ तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। यदि हमें अपने युवाओं के भीतर मौजूद राष्ट्रप्रेम की भावना को सुदृढ़ करना है तो हमें इसका दायरा प्रदेश के गांव-गांव तक बढ़ाना होगा।
साथ ही, मैं इस महोत्सव के आयोजकों से कहना चाहूंगा कि वे हर वर्ष इस आयोजन से जुड़ी एक पत्रिका का प्रकाशन भी करें जो प्रदेश के हर गांव के हर बच्चे तक पहुंचे जिससे कि उन्हें भी इस आयोजन और हमारे देश की गौरवपूर्ण सैन्य विरासत के बारे में पता चल सके ताकि वे देश की रक्षा और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित हो सकें।
सेवानिवृत्त सेना अधिकारी हमारे समाज की अमूल्य धरोहर हैं। मैं चाहता हूं कि हमारे सेवानिवृत्त सैन्य अधिकरी मिशनरी के तौर पर गांव-गांव स्कूलों में बच्चों के बीच जाएं जिससे कि वे आपके अनुभवों, आपकी वीरता की कहानियों और अपकी वर्दी से प्रभावित होकर सेना में भर्ती और देश सेवा के लिए प्रेरित हों।
आज के युवा तेजी से बदलती दुनिया में भटकाव का शिकार हो सकते हैं। सेना अधिकारियों का मार्गदर्शन उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। उनकी जीवन कहानियां, संघर्ष और उपलब्धियां युवाओं में देशभक्ति और कर्तव्यपरायणता की भावना जगा सकती हैं।
देवियो और सज्जनों,
यहां पर मैं, पंजाब में युवा लड़कों और लड़कियों को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित और तैयार करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह प्रिपरेटरी इंस्टीट्यूट, मोहाली और सैनिक स्कूल कपूरथला जैसे संस्थानों की सराहना करना चाहूंगा, जो देशभक्त, अनुशासित और शारीरिक व मानसिक रूप से सशक्त युवाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं।
मित्रों,
इस महोत्सव का सबसे बड़ा संदेश यह है कि हमें अपने सैनिकों के त्याग और बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए। उनके योगदान के कारण ही हम आज स्वतंत्र और सुरक्षित जीवन जी रहे हैं। यह महोत्सव हमें न केवल प्रेरित करता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि साहित्य और कला के माध्यम से हम अपनी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को सहेज सकते हैं।
मैं लेफ्टिनेंट जनरल टी.एस. शेरगिल और उनकी पूरी टीम को बधाई देता हूं जिन्होंने विश्व स्तरीय महोत्सव का आयोजन किया है। मैं लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार जी.ओ.सी. पश्चिम कमांड को बधाई देता हूं जिन्होंने सैन्य उपकरण प्रदर्शनी लगाई और बहुत सारे प्रोग्राम आयोजित किये।
मुझे पश्चिम कमांड की उपलब्धियों पर बनाई गई फिल्म देखकर बहुत अच्छा लगा। मैं सचिव पर्यटन श्री एम.एस. जग्गी और निदेशक पर्यटन श्रीमती अमृत सिंह और उप-निदेशक श्रीमती हरजोत कौर को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने बहुत अच्छा योगदान दिया है। इसके अलावा यू.टी. चण्डीगढ के तमाम अफसर और स्टाफ भी बधाई के पात्र हैं।
मैं यहां पर इस महोत्सव के आयोजकों को अपील करना चाहूंगा कि वे देश के अन्य राज्यों में भी ऐसे उत्सव अयोजित करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार से मिलकर प्रयास करें।
इस तरह के आयोजन देश के नागरिकों और युवाओं को देश की सशस्त्र सेनाओं, उनके अनुशासन, संस्कृति, उनके बलिदान और विविधता में अद्वितीय एकता संबंधी जानकारी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
अंत में, मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि जब भी सैन्य साहित्य महोत्सव का आयोजन हो, उसमें अवश्य भाग लें। यह न केवल हमारे सैनिकों को सम्मान देने का एक अवसर है, बल्कि यह हमें अपने देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा भी देता है।
धन्यवाद, जय हिंद!