SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF JAIN BHAGWATI DIKSHA SAMAROH AT DERABASSI DISTRICT SAS NAGAR MOHALI ON NOVEMBER 21, 2024.
- by Admin
- 2024-11-21 17:10
जैन भागवती दीक्षा समारोह के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 21.11.2024, गुरूवार | समयः दोपहर 12:00 बजे | स्थानः डेराबस्सी, मोहालीपरमश्रद्धेय
जपयोगी, तपयोगी, वचनसिद्ध महापुरूष पूज्य गुरुदेव श्री जिनेश मुनि जी महाराज, प्रज्ञा पुरुषोत्तम, उपप्रर्वतक डॉ० श्री सुव्रतमुनि जी महाराज, हिमगिरीरत्ना पूज्या साध्वी श्री महक जी महाराज एवं सिद्धशिला पर विराजित प्रभु महावीर के ही पाट को सुशोभित करने वाली सभी चारित्र आत्माओं के पावन चरणों में वंदन नमन।
आज इस पवित्र अवसर पर, जब हम जैन दीक्षा समारोह में एकत्र हुए हैं, मेरा हृदय अत्यंत आनंद और गर्व से भर गया है। यह अवसर केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक अध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है, जहां एक आत्मा संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
आज बहुत ही पावन पर्व है कि मुबारकपुर की पुण्य धरा पर मुमुक्षु मनीषा जैन संयम अंगीकार करने जा रही है। मैं अपने आपको भी सौभाग्यशाली समझता हूं कि मुझे इस महोत्सव की अनुमोदना हेतु मुबारकपुर श्री संघ द्वारा यहां पर आमंत्रित किया गया है।
समस्त आदरणीय जनों,
जैन धर्म में दीक्षा का अर्थ है सांसारिक मोह-माया को त्यागकर, साधु जीवन अपनाना और आत्मा की शुद्धि के मार्ग पर चलना। यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का साधन है। दीक्षा लेने वाला व्यक्ति अपने सभी सांसारिक सुखों, रिश्तों और संपत्ति का त्याग कर, एक साधु या साध्वी के रूप में जीवन जीने का व्रत लेता है।
दीक्षा का यह पावन कदम केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन का भी प्रतीक है। यह आत्मा की जागृति, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य, और ब्रह्मचर्य के पथ पर चलने का प्रण है। यह वह क्षण है जब व्यक्ति संसार के मोह से ऊपर उठकर अपनी आत्मा के असली स्वरूप को पहचानने की कोशिश करता है।
आज का यह अवसर हमें याद दिलाता है कि जीवन का असली उद्देश्य केवल सांसारिक सुखों में नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष प्राप्ति में है। दीक्षा लेने वाले साधु या साध्वी न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा बनते हैं।
जैन दीक्षा समारोह में चारों ओर धर्म की गूंज, गुरुजनों का आशीर्वाद और श्रद्धालुओं का उत्साह इस बात का प्रतीक है कि यह केवल एक व्यक्ति की यात्रा नहीं, बल्कि पूरी समाज की आध्यात्मिक उन्नति का पर्व है।
सम्मानित जनों,
हमारी भारतीय संस्कृति, जो कि दुनिया की सबसे पुरानी और समृद्ध संस्कृतियों में से एक है, अपने ऋषि-मुनियों और संतों के ज्ञान, तपस्या और विचारों से आलोकित हुई है। इन संतों और ऋषियों ने न केवल हमारे आध्यात्मिक जीवन का मार्गदर्शन किया है, बल्कि हमें नैतिकता, विज्ञान, और समाज के विकास की दिशा भी दिखाई है।
भारत की प्राचीन संस्कृति में ऋषियों और मुनियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ये वे लोग थे जिन्होंने अपना जीवन तप और ध्यान में व्यतीत किया और वेद, उपनिषद, पुराण जैसे महान ग्रंथों की रचना की। ऋषि वेदव्यास ने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की, ऋषि वाल्मीकि ने रामायण लिखी, और पतंजलि ने योग के सूत्रों का विकास किया।
हमारे ऋषि-मुनियों ने न केवल धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि विज्ञान और गणित जैसे विषयों में भी अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। आर्यभट्ट, चरक और सुश्रुत जैसे महान विद्वान हमारे ही सांस्कृतिक धरोहर के भाग हैं। उन्होंने खगोल विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र और गणित में अद्भुत कार्य किया।
मध्यकालीन भारत में संतों ने समाज सुधार का कार्य भी किया। संत कबीर, गुरु नानक, संत तुलसीदास और मीराबाई ने जातिवाद, अंधविश्वास और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने भक्ति आंदोलन के माध्यम से लोगों को प्रेम, एकता और मानवता का संदेश दिया।
आज, जब समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ रहा है, तो हमारे ऋषि-मुनियों और संतों की शिक्षाएं और भी प्रासंगिक हो गई हैं। उनकी शिक्षाएं हमें शांति, अहिंसा, और संतुलित जीवन का मार्ग दिखाती हैं।
देवियों और सज्जनों,
जैन धर्म भारत की प्राचीन और महान धर्म परंपराओं में से एक है। यह धर्म ‘‘अहिंसा परमो धर्मः’’ यानी अहिंसा को सर्वोच्च धर्म मानता है। जैन धर्म के संस्थापक भगवान ऋषभदेव को माना जाता है, लेकिन इसकी मुख्य परंपरा 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के माध्यम से प्रसिद्ध हुई।
हमारे देश की आत्मज्ञान की गौरवशाली परंपरा में भगवान महावीर का एक प्रमुख स्थान है। अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह के अपने दिव्य उपदेशों के माध्यम से उन्होंने लोगों के आध्यात्मिक उत्थान का लक्ष्य रखा।
उस समय के सामाजिक मुद्दों से गहराई से जुड़े भगवान महावीर ने ऐसे समाधान प्रस्तुत किए जिनसे जनसाधारण की समस्याओं को कम करने में मदद मिली।
भगवान महावीर स्वामी ने हमें पंच महाव्रतों का मार्ग दिखाया-
अहिंसाः किसी भी प्राणी को मन, वचन और कर्म से चोट न पहुंचाना।
सत्यः सत्य बोलना और सत्य का पालन करना।
अस्तेयः दूसरों की चीज़ों को बिना अनुमति के न लेना।
ब्रह्मचर्यः अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना।
अपरिग्रहः आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना।
भगवान महावीर के आध्यात्मिक पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए, सदियों से समय-समय पर जैन आचार्यों की एक श्रृंखला सामने आई। उन्होंने मौलिक और अनंत मूल्यों के साथ भारतीय संस्कृति को पोषित करने में मदद की।
जैन धर्म का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति है। इसके लिए ध्यान, तप, और संयम को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया गया है। जैन धर्म न केवल हमें व्यक्तिगत जीवन में नैतिकता सिखाता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराता है।
आज के समय में जब हिंसा और स्वार्थ चारों ओर व्याप्त है, जैन धर्म की शिक्षाएं हमें शांति और संतुलन की ओर ले जाने में मदद करती हैं।
यह धर्म हमें यह सिखाता है कि हमारे कर्म ही हमारे भविष्य को तय करते हैं, इसलिए अच्छे कर्म करें और हर प्राणी के प्रति दया का भाव रखें।
जैन धर्म की शिक्षाएं केवल जैन समाज के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए उपयोगी हैं। अगर हम सभी जैन धर्म के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएं, तो एक सुखी, शांतिपूर्ण और संतुलित समाज का निर्माण संभव है।
देवियों और सज्जनों,
कुछ समय पहले सहपत्नी पर्युषण महापर्व में दिनांक 4 सितम्बर को भी मेरा यहां आना हुआ और गुरूदेव श्री जी, साध्वी श्री जी के दर्शन लाभ एवं जिनवाणी सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ क्योंकि मैं खुद जैन अनुयायी हूँ और गुरू भगवंतो के प्रति श्रद्धा एवं आदर की भावना मेरे मन में सदैव विद्यमान रहती है।
इसलिए, मैं वैरागन बिटिया मनीषा जैन के लिए जिनशासन प्रभु के चरणों में यही मंगलकामना करता हूं कि यह बच्ची जिस संयमी जीवन को अंगीकार करने जा रही है उस पथ पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ती रहे और अपनी गुरूणी जी की आज्ञा का पालन करते हुए जैन धर्म की प्रभावना करती रहे।
इस पावन अवसर पर पधारे हुए माननीय मुख्यमंत्री महोदय, श्री श्री 1008 बाबा कालीदास स्वामी कृष्णानंद परमहंस, पदम विभूषित गुरू मैया श्री चंदनप्रभा जी महाराज, श्री आल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अविनाश जी चोरड़िया जैन, श्री पारस जी मोदी जैन एवं पूर्व प्रमुख मार्गदर्शक श्री रामकुमार जी जैन (श्रमणशाल) आप सभी का स्वागत करता हूँ कि आप इस पावन दिवस के साक्षी बने।
विशेष धन्यवाद श्री विमल जी जैन अंबाला, श्री अशोक जी जैन मोहाली, श्री विजय जी जैन, श्री सुरेन्द्र जी जैन, श्री प्रमोद जी जैन, श्री संदीप जी जैन एवं समस्त मुबारकपुर श्री संघ के समस्त सदस्यों का कि आप सभी के सुन्दर प्रयास से इस दीक्षा महोत्सव का यह आयोजन सम्पन्न हो रहा है।
अंत में, मैं मुमुक्षु मनीषा जैन को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं और प्रार्थना करता हूं कि उनका यह आध्यात्मिक मार्ग उन्हें मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर करे। साथ ही, हम सभी को यह प्रेरणा मिले कि हम भी अपने जीवन में जैन धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर, अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!