SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF 31st Annual Lecture organized by Panchnad Shodh Sansthan at Chandigarh on January 5, 2025.

‘‘भारत विभाजन के सच’’ के विषय पर कार्यक्रम में

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 05.01.2025, रविवारसमयः दोपहर 12:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

 

नमस्कार!

मुझे आज ‘पंचनद शोध संस्थान’ द्वारा ‘भारत विभाजन के सच’ नामक विषय पर आयोजित इस विशेष कार्यक्रम का हिस्सा बनकर अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है।

मुझे बताया गया है कि वर्ष 1984 में बुद्धिजीवियों के एक छोटे से समूह ने ‘पंचनद शोध संस्थान’ की स्थापना की। इन बुद्धिजीवियों में शिक्षाविद्, पत्रकार तथा विभिन्न व्यवसायों से जुड़े प्रबुद्ध लोग शामिल थे।

समाज में मत-मतांतरों के चलते विघटन की चिन्ता से इस संस्थान की स्थापना को बल मिला परन्तु इसकी स्थापना का मुख्य कारण यह एहसास था कि हमारे सृजनशील बुद्धिजीवियों की प्रतिभा मृतप्राय हो गई है और वे विदेशी विचारों और समाधानों को बिना सोचे विचारे आँख मूंदकर स्वीकार कर रहे हैं।

यह संस्थान बुद्धिजीवियों को ऐसे विषयों में अध्ययन और शोध के लिए प्रेरित करता है, जिनसे भारतीय जीवन-शैली और मूल्य-प्रणाली के अनुरूप समस्याओं के वैकल्पिक समाधान खोजे जा सकें। संस्थान द्वारा समसामयिक महत्त्व के विषयों तथा शाश्वत मूल्यों से जुड़े सामाजिक महत्त्व के विषयों पर शोध और अध्ययन करवाए गए हैं। संस्थान द्वारा सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक महत्त्व के विषयों पर गत 41 वर्षों में अनेक पुस्तकें प्रकाशित की गई है।

मुझे बताया गया है कि यह संस्थान प्रतिवर्ष एक शोध-पत्रिका का प्रकाशन करता है जिसमें विद्वान किसी एक विषय के विविध पक्षों पर लेख लिखते हैं। यह शोध पत्रिका उत्तर-पश्चिम भारत के सभी उच्च-शिक्षा संस्थानों में जाती है जिनमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, चण्डीगढ़, हरियाणा और दिल्ली के शिक्षा संस्थान शामिल हैं।

हर्ष का विषय है कि अब यह संस्थान उत्तर भारत में सभी प्रकार की विचारधाराओं और व्यवसायों से जुड़े बुद्धिजीवियों के लिए विचार मंथन का अग्रणी मंच बन गया है। इसके 40 से अधिक अध्ययन केन्द्रों में नियमित रूप से विचार-विमर्श, गोष्ठियों और भाषणों का आयोजन किया जाता है जिनमें सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर विचार होता है।

यह संस्थान न केवल प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास को उजागर करता है, बल्कि वर्तमान समय की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चुनौतियों पर भी गहराई से शोध करता है। ‘पंचनद शोध संस्थान’ न केवल एक संस्थान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और ज्ञान का एक प्रकाशस्तंभ है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और एक मजबूत और समृद्ध समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करता है।

संस्थान द्वारा प्रति वर्ष व्याख्यान-माला के रूप में एक गौरवशाली कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। प्रतिवर्ष चंडीगढ़ में किसी एक प्रबुद्ध बुद्धिजीवी द्वारा उसकी विशेषज्ञता के क्षेत्र से संबंधित व्याख्यान करवाए जाते हैं। इस गतिविधि को सर्व- समावेशी बनाने के लिए भाषण के अन्त में प्रश्नोत्तर का कार्यक्रम भी रखा जाता है। 1987 से अब तक संस्थान द्वारा 30 व्याख्यान करवाए जा चुके हैं।

इन व्याख्यान देने वालों में लेफ्टिनेंट जनरल एस० के० सिन्हा, न्यायमूर्ति डी० एस० तेवतिया, डॉ० मुरली मनोहर जोशी, श्री सोमदोंग रिनपोछे, श्री सोली सोराबजी, न्यायमूर्ति आर० एस० सरकारिया, न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह, प्रो० विष्णुकांत शास्त्री, श्री के० पी० एस० गिल, डॉ० सुभाष कश्यप, प्रो० देवेन्द्रस्वरूप एवं श्री मोहन भागवत के नाम प्रमुख हैं।

देवियो और सज्जनों,

आज के आयोजित इस 31वें व्याख्यान में उत्कृष्ट अध्येता, प्रखर चिंतक व सुप्रसिद्ध लेखक श्री प्रशान्त पॉल द्वारा ‘भारत विभाजन के सच’ विषय पर जो व्याख्यान दिया गया है वह अत्यंत जानकारीपूर्ण और ज्ञानवर्धक है।

मैं श्री प्रशान्त पॉल जी का आभार प्रकट करना चाहता हूं जिन्होंने अपने व्याख्यान के माध्यम से देश की स्वतंत्रता प्राप्ति का दिन यानि 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करवाया है, जिससे हर भारतीय को परिचित होना चाहिए।

श्री प्रशान्त पॉल जी द्वारा दिए गए व्याख्यान ने जो हमें भारत की स्वतंत्रता के तथ्यों, संघर्ष, और बलिदानों की गहराई को समझने का अवसर प्रदान किया है, वह वास्तव में सराहनीय है।

आपने व्याख्यान में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं की भूमिका पर प्रकाश डाला है। इन नेताओं के विचार, दृष्टिकोण, और उनके द्वारा लिए गए निर्णयों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को किस दिशा में आगे बढ़ाया, यह बात प्रभावशाली तरीके से समझाई गई है।

हम सभी जानते हैं कि विभाजन की उस त्रासदी के दौरान 10 से 15 लाख लोग मारे गये, सवा से डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हुए, महिलाओं को क्रूर अत्याचार का सामना करना पड़ा, भारत और पाकिस्तान दोनों में लाखों लोग शरणार्थी बने और तत्कालीन सबसे बड़ा राजनैतिक दल भी विभाजन के दौरान हुए दंगों की विभीषिका को रोकने में असफल रहा। यह एक बहुत ही विस्मयकारी और दुखदायी तथ्य है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की इस घटना ने न केवल हमारे देश का भूगोल बदला, बल्कि हमारे समाज, संस्कृति और संबंधों पर भी गहरा प्रभाव डाला।

1947 में, हमारा देश ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र तो हुआ, लेकिन यह स्वतंत्रता दर्द और विभाजन के साथ आई। भारत और पाकिस्तान के दो स्वतंत्र राष्ट्रों का गठन हुआ। यह भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की सबसे बड़ी और दर्दनाक घटनाओं में से एक थी। इस विभाजन के पीछे धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक कारण थे।

ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता के समय, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच बढ़ती असहमति और सांप्रदायिक तनाव ने विभाजन का आधार बनाया। मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए 1906 में स्थापित मुस्लिम लीग, जिसके नेता मोहम्मद अली जिन्ना थे, ने ‘मुस्लिम राष्ट्र’ पाकिस्तान की मांग की थी।

सन् 1930 में जिन्ना के ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ (ज्ूव.छंजपवद ज्ीमवतल) ने इस विभाजन को वैचारिक आधार प्रदान किया। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित था कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग धर्म, संस्कृति, और जीवनशैली के कारण एक साथ नहीं रह सकते। इस सिद्धांत का प्रचार मुस्लिम लीग ने किया और इसे पाकिस्तान के निर्माण का आधार बनाया।

1940 में लाहौर प्रस्ताव के माध्यम से मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण की औपचारिक मांग की। इस प्रस्ताव ने भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक विभाजन को और गहरा किया।

लेकिन 1946 में ‘कैबिनेट मिशन योजना’ के जरिए भारत को एकीकृत रखने का प्रयास किया गया, लेकिन यह असफल रही और 1947 में ‘माउंटबेटन योजना’ के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने विभाजन को अंतिम रूप दे दिया।

सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया में जल्दबाजी और उचित योजना की कमी ने विभाजन को और अधिक दर्दनाक बना दिया। भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं को निर्धारित करने के लिए रेडक्लिफ आयोग गठित किया गया। सीमांकन में जल्दबाजी और गलतियों ने पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में हिंसा को बढ़ावा दिया।

विभाजन के बाद से दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंध बन गये। इस विभाजन से कश्मीर विवाद का उदय हुआ, जो आज भी दोनों देशों के बीच संघर्ष का कारण है।

इस विभाजन से न केवल भौगोलिक परिस्थिति बदली बल्कि सांस्कृतिक विघटन के चलते परिवारों और समुदायों का बंटवारा भी हुआ, जो सदियों से एक साथ रह रहे थे।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यदि कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने आपसी समझौता किया होता, तो विभाजन टल सकता था। लेकिन कुछ नेताओं ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए विभाजन को स्वीकार किया। इस विभाजन के पीछे ब्रिटिश स्वार्थ को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता जिसने भारत को कमजोर और विभाजित करके अपनी सत्ता छोड़ी।

विभाजन ने भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था, और समाज पर स्थायी छाप छोड़ी है।

साथियो,

स्वतंत्रता हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसे बनाए रखना उतना ही चुनौतीपूर्ण है। आज के युग में हमारी स्वतंत्रता को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनसे निपटना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।

हमें समाज में धर्म और जाति के नाम पर घृणा फैलाने वाली विभाजनकारी रणनीति को असफल करना है। धार्मिक भावनाओं को भड़का कर समाज में हिंसा फैलाने के प्रयासों को रोकना है।

हमें कश्मीर में भारत की अखंडता को चुनौती देते अलगाववादी आंदोलन के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे नक्सलवाद को भी मात देनी होगी।

इसके लिए हमें मजबूत सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र को विकसित करने के साथ-साथ नागरिकों को सतर्कता और साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक करना होगा। आपसी संवाद और सहयोग के माध्यम से आंतरिक विवादों का समाधान खोजने होंगे।

आज हमें देश में जाति, धर्म, और क्षेत्रीय आधार पर सामाजिक विभाजन देखने को मिलता है। इसे दूर करने के लिए हमें समानता और समावेशिता को बढ़ावा देना होगा। साथ ही शिक्षा और रोजगार के अवसरों में समानता सुनिश्चित करने के साथ-साथ समाज में सहिष्णुता और एकता की भावना को भी मजबूत करना होगा।

इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, और आर्थिक असमानता के चलते आर्थिक स्वतंत्रता भी एक बड़ी चुनौती है। इसके समाधान के लिए हमें आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देना होगा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजन करने होंगे और आर्थिक योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना होगा।

हमारे लिए यह भी सबसे महत्वपूर्ण है कि हम हमारी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को और मजबूत करें। यदि पाकिस्तान से लगती सीमा की बात करें तो यहां आतंकवाद, घुसपैठ और सीमा पार से हथियारों और नशा तस्करी की घटनाएं लगातार चुनौती बनी रही हैं। पाकिस्तान के पास अब क्षमता नहीं है कि वह भारत से सीधा युद्ध लड़ सके इसलिए वह भारत को अस्थिर करने की ताक में रहता है।

इसके अलावा चीन से लगती सीमा की बात करें तो यहां विस्तारवादी नीतियां और अतिक्रमण का खतरा बना रहता है जिसका हमें मुंह तोड़ जवाब देना होगा। हम सीमा सुरक्षा बल, भारतीय सेना, और आईटीबीपी जैसे बलों को अत्याधुनिक प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों की प्रभावी ढंग से पैरवी कर सकते हैं।

साथ ही बांग्लादेश के साथ लगती सीमा पर अवैध प्रवासन, तस्करी और अन्य चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। पड़ोसी देशों के साथ संवाद और कूटनीति के माध्यम से ऐसे विवादों का समाधान किया जा सकता है।

हम सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी सीमाएं न केवल सुरक्षित हों, बल्कि हमारी प्रगति और समृद्धि का आधार भी बनें।

इसके लिए पंजाब के राज्यपाल द्वारा पंजाब के 6सीमावर्ती जिलों में ग्राम स्तर पर ग्राम रक्षा समितियों का गठन किया गया है जो सीमावर्ती इलाकों में संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने के साथ-साथ अवैध घुसपैठ, तस्करी, और आतंकवादी गतिविधियों की पहचान करके सुरक्षा बलों को आवश्यक सहायता प्रदान कर रही हैं और इसके हमें सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं।

मित्रों,

यदि हमें हमारी स्वतंत्रता को बनाए रखना है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहना होगा। उन्हें चाहिए कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लें। शिक्षा को अपने और समाज के सुधार का माध्यम बनाएं। जाति, धर्म, और वर्ग से ऊपर उठकर देश की एकता और अखंडता को बनाए रखें।

भारत का सबसे बड़ा गुण उसकी विविधता है। इसे विभाजनकारी ताकतों से बचाना हर नागरिक का कर्तव्य है। हमें समाज में जागरूकता बढ़ाते हुए विभाजनकारी विचारधाराओं को पहचानना और उन्हें खारिज करना है।

हमारी स्वतंत्रता बनाए रखना केवल सरकार का कर्तव्य नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यह आवश्यक है कि हम अपने देश के विकास, सुरक्षा, और सामाजिक एकता में सक्रिय भूमिका निभाएं।

आइए, हम सब मिलकर अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करें और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए और भी मजबूत बनाएं।

मैं एक बार फिर श्री प्रशांत पॉल जी को उनके महत्वपूर्ण एवं ज्ञानपूर्ण व्याख्यान के लिए धन्यवाद देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!