SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF Opening ceremony of Sahakar Bharati 8th National Conference at Amritsar on December 6, 2024
- by Admin
- 2024-12-07 17:00
सहकार भारती के 8वें राष्ट्रीय अधिवेशन के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 07.12.2024, शनिवार समयः सुबह 10:00 बजे स्थानः अमृतसर
सभी को नमस्कार!
आज सहकार भारती के इस तीन दिवसीय 8वें ‘राष्ट्रीय अधिवेशन’ में उपस्थित होना मेरे लिए गर्व और प्रसन्नता का विषय है।
“बिना संस्कार नहीं सहकार” इस घोष वाक्य के साथ सहकारिता क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत, सहकार भारती एक स्वयंसेवी संगठन है।
वर्ष 1979 में स्थापित सहकार भारती सहकारी क्षेत्र में सबसे बड़े अखिल भारतीय संगठन के रूप में विकसित हो चुका है। इसी वर्ष 11 जनवरी को इस संगठन ने अपना 45वां स्थापना दिवस मनाया है।
सहकार भारती जैसे संगठन सहकारी आंदोलन को मजबूत करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। आपका संगठन सहकारिता के विचारों को न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुंचाने का कार्य कर रहा है।
सहकारिता, जिसे ‘‘सामूहिकता की शक्ति’’ कहा जाता है, भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है। यह सम्मेलन न केवल सहकारी क्षेत्र की प्रगति का आकलन करने का अवसर है, बल्कि सहकारिता के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने का एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
सहकारिता हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर है। “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” यह सदियों पुराने मंत्र को क्रियान्वयन करने का सामर्थ्य केवल सहकारिता आंदोलन में ही है। अपने देश के गरीब, निर्धन, दुर्बल, वंचित, असंघटित, दलित, शोषित तथा निम्न आर्थिक स्तर के नागरिकों का स्थायी आर्थिक विकास करने का सहकारिता एकमात्र साधन हो सकता है।
हर्ष का विषय है कि वर्तमान में सहकार भारती 28 प्रदेशों में तथा 650 से अधिक जिला केंद्रों में कार्यरत है। पूरे भारतवर्ष से 2500 चिन्हित और दायित्ववान कार्यकर्ताओं की उपस्थिति वाले इस अधिवेशन में सहकार भारती के कार्यों का प्रभाव, प्रचार प्रसार तथा संगठनात्मक कार्य विस्तार आदि विषयों के बारे में गंभीरता से चिंतन मनन होगा।
सहकार भारती की दूरदर्शिता और लक्ष्यों की बात करें तो इनमें प्रमुख रूप से -
1. सहकार आंदोलन के लाभ समाज को अवगत कराना,
2. लोगों को राष्ट्रीय, राज्य, जिला, तहसील तथा प्राथमिक स्तर पर विविध प्रकार की सहकारी समितियाँ गठन करने के लिये प्रोत्साहित करना,
3. विद्यमान सहकारी समितियों की समस्या समाधान का प्रयास करना,
4. सहकारी संस्थांओं को उनकी स्थापना, प्रगती तथा संचालन से जुडी बातें लेकर सहकार विभाग, राज्य, केंद्रशासन, रिज़र्व बैंक और ऐसी राज्य या केंद्र स्तर की अन्य संस्थाओं में समन्वय स्थापित करना एवं नेतृत्व देने का प्रयास करना,
5. विविध क्षेत्रों में, विशेष कर सामाजिक, आर्थिक तथा सहकार क्षेत्र में अनुसंधान हेतु प्रोत्साहित करना,
6. सहकारी समितियों को तकनीकी सेवा प्रदान करना,
7. ग्रामीण तथा जनजातीय क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिती में सुधार हेतु सर्वेक्षण, अध्ययन तथा ऐसे प्रकल्पों को सहायता प्राप्त करने हेतू सहयोग करना,
8. सहकारिता क्षेत्र में नवाचार प्रारंभ करने हेतु प्रयास करना,
9. सहकारिता के माध्यम से रोजगार सृजन करना, देश को स्वावलंबन के मार्ग पर स्थायीत करना,
10. सेमिनार, वार्तालाप, सभा, शिविर, व्याख्यान आदि के आयोजन द्वारा सहकार क्षेत्र से जुड़े लोगों का प्रबोधन करना,
11. सभी प्रकार के सहकारी संस्थाओं के संचालक अधिकारी वर्ग, कर्मचारी व सभासद आदि को प्रशिक्षण देना तथा उनकी क्षमता का विकास करना आदि शामिल हैं।
देवियो और सज्जनों,
राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद नई दिल्ली और सहकार भारती के बीच 23 जनवरी 2023 को नई दिल्ली में समझौता ज्ञापन हुआ जिसके तहत दोनो पक्ष संयुक्त रुप से देश और विदेशों में भारतीय सहकारिता आंदोलन के हित में क्षमता विकास, अनुसंधान, प्रकाशन, प्रसार, जागरुकता सृजन, वीर योजना निर्माण, प्रबंधन, निगरानी और मुल्यांकन, निती वकालत, सलाह आदि की सुविधा प्रदान करेंगे।
जानकर खुशी हुई है कि Securities Exchange Board of India (SEBI) ने सहकारी समितियों को शासन प्रतिमिती में निवेश करने की अनुमती बहाल कर दी है।
इसके अलावा ‘नेशनल अर्बन को-ऑपरेटिव फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ ¼NUCFDC½ का उद्घाटन 2 मार्च 2024 को दिल्ली में हुआ है। यह संस्था शहरी सहकारी बैंकों के लिये अंब्रेला संगठन के रुप में काम करेगी। शहरी सहकारी बैंकों के लिये विशिष्ठ सेवाएं इस संस्था के माध्यम से प्रदान की जायेंगी।
साथियों,
सहकारिता आंदोलन हमारे देश की ग्रामीण और सामाजिक संरचना को सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण आधार है। सहकारिता आंदोलन ने न केवल आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत 1904 में हुई, जब ब्रिटिश शासन के दौरान सहकारी समितियों के लिए पहला कानून बना। यह आंदोलन कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था। स्वतंत्रता के बाद सहकारी समितियों को विशेष महत्व दिया गया और इन्हें पंचवर्षीय योजनाओं में शामिल किया गया।
इस आंदोलन की सफलता के परिणामस्वरूप अमूल मॉडल, साख समितियां, सहकारी बैंकिंग और कृषि और खाद्यान्न अस्तित्व में आये। जहां गुजरात में अमूल डेयरी सहकारी समिति ने भारत को विश्व स्तर पर दुग्ध उत्पादन में अग्रणी बनाया है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों को किफायती दर पर ऋण उपलब्ध कराने में सहकारी साख समितियां प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।
इसके अलावा सहकारी बैंकों ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है और सहकारी संस्थाओं ने उर्वरक, बीज और अन्य कृषि उपकरणों की आपूर्ति में किसानों की मदद की है।
यहां मैं पंजाब में सहकारिता से जुड़े संस्थान ‘वेरका’, मार्कफैड और पंजाब एग्रो का विशेष उल्लेख करना चाहूंगा। जैसे वेरका के दूध और दूध उत्पाद, मार्कफैड की दालें, चावल, आचार, मुरब्बे आदि तथा पंजाब एग्रो के गुड़-शक्कर और अन्य ऑर्गैनिक उत्पादों की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। सहकारिता के इन तीनों संस्थानों के उत्पादों को अमूल जैसे स्तर पर ले जाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिएं।
भारत सरकार द्वारा ‘सहकार से समृद्धि’ नामक लक्ष्य निर्धारित किया है जिसका मकसद देश में समग्र समृद्धि हासिल करना है। इसके लिए, सरकार सहकारी समितियों को मज़बूत करने के लिए पारदर्शिता, आधुनिकीकरण, और प्रतिस्पर्धात्मकता लाने की योजना बना रही है।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने ‘सहकार से समृद्धि’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 6 जुलाई 2021 में सहकारिता मंत्रालय का गठन करके सहकारी आंदोलन को मजबूती प्रदान करने का जो कार्य किया है वह वास्तव में सराहनीय है।
सहकार से समृद्धि के लिए सरकार की योजनाओं में सहकारी समितियों को मज़बूत बनाने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी, और नीतिगत ढांचा तैयार करना, बहु-राज्य सहकारी समितियों के विकास को मज़बूत करना, सहकारी समितियों को कंप्यूटराइज़ करना, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को मज़बूत करना, बड़े पैमाने पर विकेन्द्रीकृत भंडारण क्षमता स्थापित करना, सहकारी समितियों की देशव्यापी मैपिंग के लिए राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस बनाना और नई सहकारी समितियों को 15 प्रतिशत के कर दर का फ़ायदा देना शामिल हैं।
सहकारिता भारतीय ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ है। लेकिन यह क्षेत्र लंबे समय से पारदर्शिता की कमी, वित्तीय समस्याएं, और प्रशासनिक जटिलताओं का सामना कर रहा था। अब यह मंत्रालय सहकारी संगठनों को आवश्यक संसाधन, दिशा और निगरानी प्रदान कर इन्हें सशक्त बनाने का कार्य कर रहा है।
इसके अलावा, सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, एनडीडीबी, एनएफडीबी और राज्य सरकारों के साथ मिलकर भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
सहकारिता क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की बात करें तो राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के अनुसार, 28.11.2024 तक देश में 25,385 महिला कल्याण सहकारी समितियां (डब्ल्यूडब्ल्यूसीएस) पंजीकृत हैं। इसके अलावा, देश में 1,44,396 डेयरी सहकारी समितियां हैं जहां काफी संख्या में ग्रामीण महिलाएं इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
सरकार ने सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की हैं, जिनमें:
(क) बहु-राज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 को एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिसमें एमएससीएस के बोर्ड में महिलाओं के लिए दो सीटों के आरक्षण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान किया गया, जिसे अनिवार्य कर दिया गया है।
एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना की गई है और इसने बहु-राज्य सहकारी समितियों के 70 चुनाव आयोजित किए हैं और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है।
(ख) सहकारिता मंत्रालय द्वारा प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) के लिए मॉडल उपनियम तैयार किए गए हैं और देश भर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए गए हैं। इसमें पैक्स के बोर्ड में महिला निदेशकों की आवश्यकता को अनिवार्य किया गया है। इससे 1 लाख से अधिक पैक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उनके द्वारा निर्णय लेना सुनिश्चित हो रहा है।
(ग) राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), सहकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत पिछले कई वर्षों से महिला सहकारी समितियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसने महिला सहकारी समितियों के लिए स्वयं शक्ति सहकारी योजना और नंदिनी सहकार योजना लागू की है।
मित्रों,
मुझे इस बात की खुशी है कि सहकार भारती ने सहकारिता के विभिन्न क्षेत्रों में अपने काम को पहुंचाया है, एक छोटा सा बीज जो बोया गया था वो आज वटवृक्ष बनकर देश में सहकारिता को सशक्त बनाने में अहम योगदान दे रहा है।
मोदीजी का मानना है कि सहकारिता के बगैर देश का समविकास असंभव है। हर व्यक्ति का समान विकास न कम्युनिस्ट न पूंजीवादी थ्योरी से हो सकता है यह सिर्फ सहकारिता से हो सकता है व इसी मॉडल को हमें आगे बढ़ाना है।
सहकारी संस्थानों के सामने आज कई चुनौतियां हैं, जैसे पारदर्शिता, प्रबंधन कुशलता, और तकनीकी संसाधनों की कमी। हमें इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए डिजिटल तकनीक, नवाचार, और युवा पीढ़ी की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा।
‘‘सहकार से समृद्धि’’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें एकजुट होकर कार्य करना होगा।
सहकारी संस्थानों को ग्रामीण विकास, कृषि, और लघु उद्योगों में अपनी उपस्थिति बढ़ानी चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
मुझे विश्वास है कि सहकारी आंदोलन न केवल आर्थिक विकास का माध्यम बनेगा, बल्कि यह सामाजिक समानता और सामूहिक प्रगति का आधार भी बनेगा। सहकारिता से सशक्त समाज और सशक्त भारत का सपना साकार होगा।
मुझे विश्वास है कि यह सम्मेलन सहकारिता क्षेत्र को एक नई दिशा देने में सहायक सिद्ध होगा।
‘‘सहकारिता ही विकास की कुंजी है।’’
आप सभी को इस आयोजन की सफलता के लिए शुभकामनाएं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!