SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CELEBRATION OF RICH CULTURAL HERITAGE OF PUNJAB AND KAZAKHSTAN AT PUNJAB RAJ BHAVAN, CHANDIGARH ON JANUARY 20, 2025.
- by Admin
- 2025-01-21 12:45
पंजाब सरकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 20.01.2025, सोमवार समयः शाम 6:00 बजे स्थानः पंजाब राजभवन
सभी को मेरा नमस्कार!
आज की इस विशेष शाम के अवसर पर, मैं आप सभी के बीच उपस्थित होकर अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूं और पंजाब राजभवन में पहुंचने के लिए आप सभी का स्वागत भी करता हूं।
यह हमारे लिए अत्यंत गर्व एवं हर्ष का अवसर है कि पंजाब सरकार के तत्वावधान में यह सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया है, जहां हमें दो महान संस्कृतियों के अद्भुत संगम का अनुभव करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
हमारे देश भारत को विविधता में एकता के लिए जाना जाता है। यहां हर कोने में एक नई संस्कृति, परंपरा और भाषा मिलती है। यह हमारी सबसे बड़ी ताकत है। आज, इस सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से हम इस विविधता का उत्सव मना रहे हैं और इसे संसार के समक्ष साझा कर रहे हैं।
आज की यह सांस्कृतिक संध्या केवल एक कार्यक्रम नहीं है, अपितु यह भारत और कज़ाखस्तान के बीच गहरी मित्रता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी सम्मान एवं सहयोग का प्रतीक है।
आज के इस कार्यक्रम में दोनों देशों के कलाकारों द्वारा संगीत और नृत्य के माध्यम से अपनी-अपनी संस्कृतियों की जो अद्भुत झलक प्रस्तुत की गई, वह वास्तव में एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। यह न केवल कलात्मक अभिव्यक्ति का एक उत्कृष्ट उदाहरण था, बल्कि यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक ऐसा माध्यम बना, जिसने दोनों देशों के बीच आपसी समझ और संबंधों को और भी गहरा किया।
जहां एक ओर तुर्किस्तान (कज़ाखस्तान) के कलाकारों ने अपने राष्ट्रीय नृत्यों की अद्भुत प्रस्तुतियां देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, वहीं पंजाब के कलाकारों ने अपनी जीवंत परंपराओं का जोश और ऊर्जा पूरे कार्यक्रम में बिखेर दी।
कज़ाख कलाकारों द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय नृत्य ‘स्पिरिट ऑफ द स्टेप’ और ‘अपलिफ्ट’ ने स्टेपी मैदानों की अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत कर दिया। वहीं, कज़ाख लोक नृत्य ‘तंबा’ ने उनके समृद्ध इतिहास, परंपराओं और सामूहिकता का खूबसूरत प्रदर्शन किया। इन प्रस्तुतियों के माध्यम से कज़ाखस्तान की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं की गहराई का अनुभव हुआ और यह अनुभूति हमारे मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ गई है।
दूसरी ओर, पंजाब के कलाकारों ने अपने विश्वप्रसिद्ध भांगड़ा, लुड्डी, और गतका की प्रस्तुतियों से मंच पर ऊर्जा का संचार कर दिया। भांगड़ा ने जहां दर्शकों को अपनी ताल और जीवंतता से थिरकने पर मजबूर कर दिया, वहीं लुड्डी ने पंजाब की सांस्कृतिक समृद्धि और खुशी को प्रकट किया। गतका, जो शौर्य और आत्मरक्षा की प्राचीन कला है, ने दर्शकों के दिलों में साहस और गर्व का संचार किया।
देवियो और सज्जनो,
पंजाब, जोकि ‘पाँच नदियों की भूमि’ के रूप में विश्वविख्यात है, न केवल सभ्यता का उद्गम स्थल है, बल्कि एक ऐसा क्षेत्र भी है जो सांस्कृतिक जीवंतता का सार है। पंजाब अपनी सांस्कृतिक विविधता, संगीत, नृत्य और आतिथ्य सत्कार के लिए प्रसिद्ध है। यह धरती केवल इतिहास और सभ्यता का ही केंद्र नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी भूमि है, जहां पग-पग पर संस्कृति और परंपराएं जीवंत हैं।
यह एक ऐसी पावन धरा है जहाँ संगीत से लेकर भोजन तक और कला से लेकर धर्म तक, हमारी संस्कृति से जुड़ा हर एक पहलू पंजाबी लोगों की गर्मजोशी, प्रसन्न्ता और लचीलेपन को दर्शाता है।
पंजाब का संगीत हमारी संस्कृति की आत्मा है। ढोल की उमंग और जोश से भरी थाप से लेकर सितार की मधुर ध्वनि तक, हमारा संगीत हमारी भूमि, हमारे लोगों और हमारे इतिहास की कहानियाँ बयां करता है।
उल्लासपूर्ण भांगड़ा व गिद्दा, और मनमोहक लुड्डी केवल नृत्य नहीं हैं; ये आनंद, एकता, और जीवन के उत्सव की सजीव अभिव्यक्ति हैं। पीढ़ियों से चले आ रहे ये नृत्य पंजाब की जीवंत संस्कृति और उसकी आत्मा को संजोए हुए हैं, जो इसकी भावना को दूर-दूर तक फैलाते हैं।
पंजाब के गीत, चाहे वे पारंपरिक लोकगीत हों या समकालीन संगीत, अपने भीतर हमारे पूर्वजों की विरासत और समृद्ध इतिहास की ध्वनि को समेटे हुए हैं। यह संगीत न केवल पंजाब के लोगों के लिए, बल्कि दुनिया भर में इसे अपनाने वालों के लिए भी गर्व और आनंद का स्रोत रहा है।
इस अवसर मैं आज कज़ाखस्तान से आए सभी अतिथियों से यह कहना चाहूंगा कि अब जब आप पंजाब आए हैं, तो इस भूमि की जीवंत संस्कृति से पूरी तरह परिचित होने का अवसर प्राप्त करें। यदि आप धार्मिक आस्था के रूप में कहीं जाना चाहें तो पवित्र स्वर्ण मंदिर इसका सबसे उत्कृष्ट स्थल है, जहाँ आप न केवल आंतरिक शांति का अनुभव कर सकते हैं, बल्कि सिख धर्म की गहरी परंपराओं से भी जुड़ सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, आप श्री आनंदपुर साहिब स्थित विरासत-ए-खालसा का भी दौरा कर सकते हैं, जो सिख इतिहास और संस्कृति का एक अनुपम स्थल है। साथ ही, अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग का भी दौरा एक अविस्मरणीय अनुभव होगा। ये स्थल आपको पंजाब की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर से न केवल जोड़ेंगे, बल्कि आपको इस क्षेत्र के गौरवमयी अतीत की गहरी समझ भी प्रदान करेंगे।
और अगर आप यहाँ के सांस्कृतिक व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते हैं, तो सरसों का साग और मक्की की रोटी इसका सर्वोत्तम विकल्प है, जो पंजाब की ग्रामीण परंपराओं और स्वाद का आदान-प्रदान करता है। यह व्यंजन पंजाब की मिट्टी, खेती और संस्कृति की सजीव उदाहरण है।
देवियो और सज्जनो,
आज के इस सांस्कृतिक संगम में न केवल दोनों देशों की परंपराओं और कलाओं की झलक प्रस्तुत की गई है, बल्कि यह भी दर्शाया गया है कि संगीत और नृत्य जैसी अभिव्यक्तियां कैसे भाषा और सीमाओं से परे जाकर मानवता को जोड़ सकती हैं। यह मंच केवल कला का प्रदर्शन नहीं था, अपितु यह भारत और कज़ाखस्तान की गहरी सांस्कृतिक मित्रता का प्रतीक भी बन गया।
आज इस मंच के माध्यम से दोनों देशों के कलाकारों ने अपने-अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व किया है। इनके प्रदर्शन न केवल हमें मनोरंजन प्रदान किया, वरन् हमें उनकी संस्कृति, उनकी परंपराओं और उनकी जीवनशैली को निकट से समझने का अवसर भी प्रदान किया। साथ ही इस सांस्कृतिक मिलन ने दोनों देशों के संबंधों को और अधिक सशक्त और मधुर बनाने का कार्य भी किया है।
इन प्रस्तुतियों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि संगीत और नृत्य की भाषा सार्वभौमिक है। यह एक ऐसा माध्यम है, जो किसी अनुवाद की आवश्यकता नहीं रखता और सीधे हृदयों को छू जाता है। जब दर्शकों ने तालियों की गूंज से कलाकारों का उत्साह बढ़ाया, तो यह पूर्णरूपेण स्पष्ट हो गया कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सीमाओं और भाषाओं की कोई बाधा नहीं होती।
इस कार्यक्रम ने यह भी दिखाया कि कैसे सांस्कृतिक गतिविधियाँ न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं, बल्कि दो समाजों को एक दूसरे के करीब लाने का कार्य करती हैं। यह कार्यक्रम इस बात का स्पष्ट और उत्कृष्ट प्रमाण है कि कला और संस्कृति की शक्ति का उपयोग केवल अतीत को सम्मानित करने के लिए नहीं, अपितु भविष्य में मित्रता और सहयोग का मार्ग प्रशस्त करने के लिए भी किया जा सकता है।
गीत-संगीत और नृत्य हमें हमारी जड़ों की याद दिलाते हैं और हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गौरवान्वित अनुभव कराते हैं।
दोस्तो, इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं होते, वरन् ये हमें यह सिखाते हैं कि अनेकता में ही हमारी वास्तविक ताकत और सुंदरता छिपी है।
भारत और कज़ाखस्तान दोनों ही अपनी प्राचीन सभ्यताओं और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जाने जाते हैं। आज के इस मंच ने हमें एक-दूसरे की परंपराओं को समझने और उन्हें सम्मान देने का अनमोल अवसर प्रदान किया है।
मैं कज़ाखस्तान से आए हमारे सभी कलाकारों का विशेष धन्यवाद करना चाहता हूं, जिन्होंने इतनी दूर से आकर अपनी कला का प्रदर्शन करने का निर्णय लिया। उनकी मेहनत और समर्पण हमें प्रेरणा देता है।
साथ ही, मैं इस कार्यक्रम के आयोजकों, सभी प्रतिभागियों और यहां उपस्थित आप सभी का भी धन्यवाद करता हूं, जिनके सहयोग और समर्थन के बिना यह आयोजन संभव नहीं हो पाता।
तो आइए, हम इस सांस्कृतिक संध्या से प्रेरणा लेते हुए यह संकल्प लें कि भविष्य में भी ऐसे सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का आयोजन करते रहेंगे। इन आयोजनों के माध्यम से न केवल हम अपनी कला, संगीत और परंपराओं को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचा सकते हैं, अपितु अन्य देशों की सांस्कृतिक धरोहर को समझने और अपनाने का भी अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
भारत जैसे विविधतापूर्ण और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं वाले देश के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को न केवल संरक्षित करें, बल्कि उसे व्यापक स्तर पर बढ़ावा भी दें और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक प्रभावी रूप से पहुंचाएं। इससे न केवल भारत की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुदृढ़ होगी, बल्कि यह विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद, आदान-प्रदान और आपसी सम्मान को भी बढ़ावा देगा।
हमें अपने पारंपरिक कलाओं और मूल्यों को आधुनिक तकनीक और डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने की दिशा में भी ठोस कदम उठाने चाहिए, ताकि भारत की सांस्कृतिक विरासत विश्व में अपनी विशेष छाप छोड़ सके।
हमारी कला, संगीत, नृत्य, साहित्य, स्थापत्य, लोक परंपराएं और ऐतिहासिक धरोहरें हमारे अतीत की पहचान और गौरव का प्रतीक हैं। इन्हें संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस समृद्ध विरासत से प्रेरणा ले सकें।
आइए, हम यह संकल्प लें कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इस सफर को जारी रखते हुए, हम अपनी और अन्य संस्कृतियों के बीच की दूरी को कम करें। यह न केवल हमारी मित्रता और सहयोग को मजबूत बनाएगा, वरन् मानवीय मूल्यों को भी एक नई ऊंचाई देगा।
अंत में, मैं उन सभी कलाकारों और आयोजकों को पुनः बधाई देना चाहता हूं, जिन्होंने अपनी कला और कौशल के माध्यम से इस शाम को इतना यादगार बनाया।
धन्यवाद,
जय हिन्द!