SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CELEBRATION OF NATIONAL GIRLS CHILD DAY 2025 AT CHANDIGARH ON JANUARY 24, 2025.

‘राष्ट्रीय बालिका दिवस 2025’ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 24.01.2025,  शुक्रवारसमयः दोपहर 12:15 बजेस्थानः चंडीगढ़

     

सभी को मेरा नमस्कार!

आज राष्ट्रीय बालिका दिवस 2025 के इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सभी को संबोधित करना मेरे लिए एक सम्मान की बात है। यह दिन हमें हर बालिका को सशक्त, संरक्षित और पोषित करने की हमारी साझा जिम्मेदारी की याद दिलाता है, ताकि वे एक अधिक न्यायपूर्ण और समान समाज में अपना सही स्थान प्राप्त कर सकें।

आज हम न केवल हमारी बेटियों की अपार संभावनाओं का जश्न मना रहे हैं, बल्कि उनके विकास और प्रगति के लिए उपलब्ध अवसरों पर भी चिंतन कर रहे हैं। यह अवसर हमें यह याद दिलाता है कि हमें मिलकर चुनौतियों का समाधान करना होगा और हमारी बेटियों के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना होगा।

इस मिशन के अनुरूप, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि ‘सहयोग’ (SAHYOG: Social Assistance and Help for Your Overall Guidance) नामक पुस्तिका का अनावरण किया जा रहा है, जो सामाजिक कल्याण विभाग द्वारा एक प्रशंसनीय पहल है। यह पुस्तिका विभाग द्वारा प्रदान की जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान करती है, जो वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, दिव्यांग व्यक्तियों और बच्चों के लाभ के लिए डिज़ाइन की गई हैं।

 ‘सहयोग’ पुस्तिका हमारी सामाजिक कल्याण प्रयासों का सार प्रस्तुत करती है। यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी पात्र नागरिक उपलब्ध सहायता से अनभिज्ञ न रहे। वित्तीय सहायता से लेकर कौशल विकास के अवसरों तक, ये योजनाएं लोगों को गरिमा और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन जीने में सक्षम बनाती हैं। यह सरकार की पहल और उनकी जरूरतों के बीच सेतु का काम करती है, ताकि कोई भी वंचित न रहे।

 मुझे यह बताते हुए भी प्रसन्नता हो रही है कि महिला सशक्तिकरण के लिए समाज कल्याण विभाग द्वारा इस वित्तीय वर्ष से शगुन योजना की शुरुआत की गई है। यह योजना समाज के कमजोर वर्गों की बेटियों के विवाह के समय आर्थिक सहायता प्रदान कर उनके सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। इसके तहत, लाभार्थियों को 31 हजार रुपए की राशि प्रदान की जाती है। 

देवियो और सज्जनो,

हमारे देश की संस्कृति और परंपरा में नारी को शक्ति, सृजन और करुणा का प्रतीक माना गया है। यह अवधारणा केवल धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे समाज की दैनिक जीवनशैली और मूल्यों में भी गहराई से समाई हुई है। 

भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति का प्रतीक मानते हुए देवी दुर्गा, काली और लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ये देवियां इस बात का प्रतीक हैं कि नारी केवल कोमलता और संवेदनशीलता का ही नहीं, बल्कि अदम्य शक्ति और साहस का भी स्वरूप है। 

जब समाज में कोई संकट आता है, तो नारी अपने धैर्य, सामर्थ्य और संकल्प से कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होती है। यह केवल पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि आज भी हर घर, हर समाज में महिलाएं अपनी शक्ति से परिवार, समुदाय और राष्ट्र को सशक्त बनाती हैं।

नारी को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है, जो जीवन के सृजन की आधारशिला है। एक मां के रूप में वह न केवल संतान को जन्म देती है, बल्कि उसके पालन-पोषण और संस्कारों के माध्यम से समाज के भविष्य को भी आकार देती है।

महिलाओं का सृजनात्मक पक्ष केवल जीवन निर्माण तक सीमित नहीं है; वे अपने कौशल, ज्ञान और नेतृत्व के माध्यम से समाज और देश को प्रगति के पथ पर ले जाती हैं। उनका योगदान साहित्य, कला, विज्ञान, और विभिन्न क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

नारी की संवेदनशीलता और करुणा उसे दूसरों से अलग बनाती है। उसकी ममता, सहनशीलता और दूसरों की भावनाओं को समझने की क्षमता न केवल परिवार को जोड़ने का काम करती है, बल्कि समाज को भी मानवता का संदेश देती है। एक मां की करुणा, एक बहन का प्रेम, एक पत्नी का समर्पण और एक बेटी का आदर-यह दर्शाता है कि नारी किस प्रकार मानवता के मूल्यों को सजीव रखती है।

लेकिन फिर भी, यह कटु सत्य है कि आधुनिक युग में भी हमारे समाज में बालिकाओं को भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य न केवल इन चुनौतियों पर विचार करना है, बल्कि इन्हें समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाना भी है।

देवियो और सज्जनो,

हमारे देश की नारी शक्ति का सम्मान रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। माता सीता का धैर्य, द्रौपदी का साहस, गार्गी और मैत्रेयी का ज्ञान, रानी लक्ष्मीबाई का शौर्य-ये सभी इस बात के प्रमाण हैं कि भारतीय संस्कृति में नारी को सदैव एक प्रेरणादायक शक्ति के रूप में देखा गया है।

इसके अलावा भक्ति आंदोलन की प्रमुख कवयित्री और कृष्ण भक्त मीरा बाई, मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर, दिल्ली की पहली और एकमात्र महिला सुल्तान रजिया सुल्तान, भारत की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू, भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर आदि को कौन भुला सकता है।

देवियो और सज्जनो,

आज भी नारी को शक्ति, सृजन और करुणा का प्रतीक मानते हुए समाज में उनकी भूमिका को और मजबूत किया जा रहा है। महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, विज्ञान और खेल सहित हर क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। उनकी करुणा समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाती है, उनकी सृजनात्मकता नए अवसर पैदा करती है, और उनकी शक्ति हर बाधा को पार कर एक नई कहानी लिखती है।

आधुनिक भारत की बात करें तो हमारे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल और वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पदस्थ होकर महिलाओं की गरिमा को बढ़ाया है। 

इसके अलावा देश का गौरव बढ़ाने वाली अन्य महिलाओं में:

  • महान एथलीट पी.टी. उषा ने 1980 के दशक में अपनी अद्वितीय तेज गति और धावक कौशल से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया। 
  • मैरी कॉम ने रिकॉर्ड छह बार विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियन बनकर भारत को गौरवान्वित किया, और ओलंपिक में मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली देश की पहली महिला बनीं।
  • 2015 में विश्व बैडमिंटन रैंकिंग में, साइना नेहवाल नंबर 1 स्थान हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
  • अरुणिमा सिन्हा 2013 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला बनीं।
  • अंतरिक्ष यात्री और इंजीनियर, कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला थीं।
  • दीपा मलिक 2016 ग्रीष्मकालीन पैरालिंपिक में पैरालिंपिक खेलों में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं।
  • भारतीय स्प्रिंट धावक हिमा दास आई.ए.ए.एफ. विश्व यू20 चैंपियनशिप में ट्रैक इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट हैं।
  • 2012 में, राधिका मेनन मर्चेंट नेवी में पहली भारतीय महिला कप्तान बनीं।
  • किरण बेदी 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने के बाद, भारत की पहली महिला पुलिस अधिकारी बनीं।
  • बछेंद्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

हमारी बेटियां रक्षा बलों में शामिल होकर पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। फिर चाहे लड़ाकू विमान उड़ाना हो या फिर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में तैनात होकर अपना कर्तव्य निभाना हो, हमारी बेटियां पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा के साथ देश की सेवा कर रही हैं।

मित्रों,

महिलाओं को बराबरी का अधिकार और सम्मान देना तो भारतीयता का मूल-भाव रहा है। भारत में मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति इन सभी महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं विश्व के कई विकसित देशों की तुलना में पहले से ही आसीन रही हैं। 

नारी का सम्मान हमारी संस्कृति का आधार रहा है। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’, यह हमारा सूत्र वाक्य रहा है। अर्थात् जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।

समाज को ‘पढ़ो और बढ़ो’ की सोच के साथ बेटियों का साथ देना चाहिए। सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाली हमारी बेटियाँ अपनी इच्छा-शक्ति और कठिन परिश्रम के बल पर आगे बढ़ते हुए खेल, संगीत, कला, विज्ञान और रक्षा जैसे सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

हमारा समाज सदियों से लड़कों को अधिक महत्व देता आया है। इसका परिणाम यह हुआ कि कन्या भ्रूण हत्या, बालिका शिक्षा में कमी और महिलाओं के प्रति भेदभाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गईं। बेटियों को जीवन के हर क्षेत्र में पीछे रखा गया और उनकी शिक्षा और विकास पर ध्यान नहीं दिया गया। इसी गंभीर स्थिति को बदलने के लिए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने 2015 में ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ योजना की शुरुआत की।

इस अभियान का उद्देश्य दो मुख्य बातों पर केंद्रित हैः बेटियों की सुरक्षा और उनकी शिक्षा। सबसे पहले, बेटियों को जीवन का अधिकार देना और फिर उन्हें उचित शिक्षा प्रदान कर उनके आत्मनिर्भर बनने के अवसर प्रदान करना। 

देवियो और सज्ज्नो,

आज, दस वर्षों बाद, हम गर्व से कह सकते हैं कि इस योजना ने देशभर में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। जहां पहले बेटियों के जन्म को लेकर समाज में चिंता और असमानता थी, वहां अब कई राज्यों में लिंगानुपात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। 

जब एक बेटी शिक्षित होती है, तो वह न केवल अपने परिवार को, बल्कि पूरे समाज को शिक्षित करती है। एक शिक्षित महिला देश के विकास में अहम भूमिका निभाती है।

बालिकाओं की शिक्षा में केवल नामांकन बढ़ाना ही काफी नहीं है, बल्कि उनकी उच्च शिक्षा और कौशल विकास पर भी ध्यान देना होगा। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में इस योजना का प्रभाव और गहराई तक पहुंचाना होगा। यह योजना सरकार की अकेले की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। शिक्षक, माता-पिता, सामाजिक कार्यकर्ता, और प्रशासनिक अधिकारियों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बेटी को उसका अधिकार मिले।

मैं सभी से यह आग्रह करता हूं कि ‘‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’’ योजना को एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाएं। इसे केवल 10 वर्षों की उपलब्धि के रूप में न देखें, बल्कि इसे भविष्य की एक सतत यात्रा बनाएं। 

हमारा कर्तव्य है कि हम बेटियों को वह वातावरण दें, जिसमें वे सुरक्षित, शिक्षित और सशक्त महसूस करें। आइए, हम सभी मिलकर यह संकल्प लें कि हम बेटियों को समान अधिकार, सम्मान और अवसर प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे।

देवियो और सज्जनो,

आज का दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारी बेटियां केवल परिवारों की शोभा ही नहीं हैं, बल्कि वे समाज और राष्ट्र के निर्माण में बराबर की सहभागी हैं। उनके अधिकारों की रक्षा करना, उन्हें समान अवसर प्रदान करना, और उनकी क्षमताओं को प्रोत्साहन देना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।

आज मैं सभी माता-पिता से यह आग्रह करता हूं कि अपनी बेटियों के सपनों को पंख दें। उनके अधिकारों और सम्मान की रक्षा करें। शिक्षकों से मेरा अनुरोध है कि वे बालिकाओं को एक ऐसा माहौल प्रदान करें, जहां वे निडर होकर अपनी क्षमताओं का विकास कर सकें।

इस अवसर पर, मैं उन सभी व्यक्तियों, संगठनों और संस्थानों को भी धन्यवाद देता हूं, जो बालिका सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहे हैं। आपका योगदान न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन का माध्यम भी है।

राष्ट्रीय बालिका दिवस के इस अवसर पर, आइए, हम मिलकर एक ऐसा भारत बनाएं, जहां हर बेटी को उसकी पूर्ण क्षमता तक पहुंचने का अवसर मिले। यही हमारी बेटियों के लिए सच्चा सम्मान और राष्ट्रीय बालिका दिवस का वास्तविक उद्देश्य होगा।

अंत में, मैं सामाजिक कल्याण विभाग, डब्ल्यूसीडी को उनके समर्पण और प्रयासों के लिए हार्दिक प्रशंसा व्यक्त करता हूं। साथ ही, मैं सामुदायिक नेताओं, हितधारकों, और प्रत्येक नागरिक से आग्रह करता हूं कि इन कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा दें और सुनिश्चित करें कि वे समाज के हर कोने तक पहुंचें।

 आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा भविष्य बनाएं जहां हर व्यक्ति गरिमा, उद्देश्य और सशक्तिकरण के साथ जीवन जी सके।

धन्यवाद।

जय हिंद!