SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF FOUNDATION DAY OF STATES OF MANIPUR, MEGHALAYA, TRIPURA, UTTAR PRADESH AND UT DADRA AND NAGAR HAVELI AND DAMAN AND DIU CELEBRATED AT PUNJAB RAJ
- by Admin
- 2025-01-24 20:25
विभिन्न राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के स्थापना दिवस के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 24.01.2025, शुक्रवार समयः शाम 04:00 बजे स्थानः पंजाब राजभवन
सभी को मेरा नमस्कार!
आज हम सब यहां उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव का स्थापना दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए हैं। इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर, मैं आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ।
यह दिन इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के इतिहास, संस्कृति, और इनकी उपलब्धियों को याद करने का अवसर है।
इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का स्थापना दिवस हमें उस गौरवशाली दिन की याद दिलाता है, जब ये राज्य अस्तित्व में आये। यह दिन केवल एक भौगोलिक सीमा का निर्माण नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर, समृद्ध परंपराओं और एकजुटता का प्रतीक है।
मित्रो,
भारत, जिसे ‘‘अनेकता में एकता’’ का प्रतीक माना जाता है, दुनिया का एक ऐसा देश है जहाँ भाषा, धर्म, संस्कृति, परंपराएँ, और जीवनशैली में अनगिनत विविधताएँ हैं।
यहाँ पग-पग पर भाषा, खान-पान और पहनावे में परिवर्तन देखने को मिलता है, फिर भी यह देश राष्ट्रवाद एकता के सूत्र में बंधा हुआ है।
इसी दृष्टिकोण से हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रीय एकता दिवस के उपलक्ष्य पर 31 अक्टूबर 2015को ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत” की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य मौजूदा सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में एकता को बढ़ावा देना है।
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना भारत की विविधता में एकता की अनूठी परंपरा का प्रतीक है। यह विचार हमारे देश की उस सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता को दर्शाता है जो हमें एकजुट रखती है। इस भावना को और मजबूती देने के लिए हर प्रदेश में ‘राज्य स्थापना दिवस’ मनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हर राज्य की अपनी अलग सांस्कृतिक धरोहर, परंपराएँ, भाषा, और लोक कला होती हैं। राज्य स्थापना दिवस के माध्यम से इन विशिष्टताओं का सम्मान किया जाता है और उन्हें एक व्यापक मंच प्रदान किया जाता है। यह स्थानीय लोगों को अपनी संस्कृति पर गर्व करने और उसे सहेजने की प्रेरणा देता है।
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को साकार करने के लिए राज्य स्थापना दिवस एक सशक्त माध्यम है। यह हमें अपनी सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाने और उसे सहेजने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही, यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमारी एकता ही हमारी असली ताकत है।
स्थापना दिवस का यह कार्यक्रम कला, संगीत, नृत्य, आदि जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने का काम कर रहा है, उनके बीच सांस्कृतिक और भाषाई आदान-प्रदान को बढ़ावा दे रहा है।
देवियो और सज्जनो,
भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं और 19,500 से अधिक बोलियाँ बोली जाती हैं जो इसे दुनिया का सबसे बहुभाषी देश बनाती हैं। हर राज्य का अपना एक सांस्कृतिक रंग है।
धर्म और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी भारत विश्व में अद्वितीय है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, और यहूदी समुदाय यहाँ सौहार्दपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। यह विविधता हमें सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश देती है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान समय तक, विविधता में एकता का दर्शन हमारी राष्ट्रीय एकता का मूल आधार रहा है। जब भी देश पर कोई संकट आया है, हर धर्म, जाति, और भाषा के लोग एक साथ खड़े हुए हैं।
भारत में हर धर्म और समुदाय के त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। दीवाली, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व, और बुद्ध पूर्णिमा जैसे त्योहारों का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि वे सभी के लिए एक साथ आने का अवसर प्रदान करते हैं।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा भारत एक है जो उस गुलदस्ते की भांति है जो अलग-अलग रंग और सुगंध के फूलों को समेटे हुए है।
आज जब हम उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का स्थापना दिवस मना रहे हैं, तो इनकी कुछ विशेषताओं से मैं आपको परिचित करवाना चाहूंगा।
उत्तर प्रदेशः
प्रतिवर्ष 24 जनवरी को ‘‘उत्तर प्रदेश दिवस’’ मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश का 4000 साल का समृद्ध इतिहास रहा है। यह राज्य गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जानी जाती है।
पहले यह राज्य ‘‘यूनाइटेड प्रॉविंस” के नाम से पहचाना जाता था। 1 अप्रैल 1937 को ब्रिटिश शासन के दौरान इसे संयुक्त प्रांत आगरा और अवध के रूप में स्थापित किया गया था। लेकिन 24 जनवरी 1950 में इसका नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश भारत का वह पवित्र भूभाग है, जहाँ मानवता, धर्म, और संस्कृति ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। यह भूमि रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की पृष्ठभूमि रही है। अयोध्या, काशी, और मथुरा जैसे पवित्र स्थलों ने इसे आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बनाया।
भगवान राम, भगवान कृष्ण, गौतम बुद्ध और भगवान महावीर के समय से, यह राज्य सांस्कृतिक और बौद्धिक प्रतिभा का केंद्र रहा है। यह राज्य वह स्थान है जहाँ से महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया और महावीर ने अपने संदेश का प्रसार किया।
इतिहास के पन्नों में देखें तो मुगल, ब्रिटिश और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तक, उत्तर प्रदेश ने हमेशा अपनी विशिष्टता बनाए रखी है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, मंगल पांडे और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिया।
बाबा विश्वनाथ की काशी, प्रभु श्रीराम की अयोध्या, योगेश्वर श्रीकृष्ण की मथुरा तथा भगवान बुद्ध के सारनाथ से निकलने वाली भारत की परंपराएं और भाव-धाराएं सभी देशवासियों को एक सूत्र में पिरोती हैं।
बाबा गोरखनाथ की तपस्थली गोरखपुर, संत कबीर की मुक्ति-स्थली मगहर तथा उत्तर प्रदेश के अनेक अत्यंत पवित्र स्थलों में भारत की आध्यात्मिक शक्ति का उत्कर्ष देखा गया है।
ऐसे पवित्र स्थानों की आध्यात्मिक ऊर्जा युगों-युगों तक हमारे देश को शक्ति प्रदान करती रहेगी।
अभी पिछले वर्ष ही आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अयोध्या में ’’श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा’’ की, जो न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि देशवासियों की गहरी आस्था और गौरव का प्रतीक भी है।
वर्ष 2017 में यूनेस्को ने प्रयागराज कुम्भ मेला को ^intangible cultural heritage of humanity*अर्थात विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की है।
प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर आयोजित होने वाला कुंभ मेला प्राचीनकाल से ही भारत का एक प्रमुख धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन रहा है। यह आयोजन न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपराओं और जीवन मूल्यों का एक अभूतपूर्व उत्सव भी है।
हाल ही में, मुझे भी प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। संगम में पवित्र स्नान करने और वहां की आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करने का यह एक अविस्मरणीय अनुभव रहा।
मेले में आयोजित प्रवचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और साधु-संतों की संगत ने न केवल मन को शांति दी, बल्कि हमारी प्राचीन परंपराओं और संस्कृति के महत्व को और गहराई से समझने का अवसर भी प्रदान किया।
यहाँ की शास्त्रीय संगीत परंपरा, विशेषकर बनारस घराना और लखनऊ घराना, विश्वभर में प्रसिद्ध है।
यह राज्य भारत की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य है और भारतीय राजनीति का केंद्र भी। देश में सबसे बड़ा कार्यबल और सबसे बड़ी युवा आबादी उत्तर प्रदेश में ही है।
उत्तर प्रदेश संस्कृति और साहित्य में समृद्ध राज्य है। यह वास्तुशिल्प, चित्रकारी, संगीत, नृत्यकला के लिए प्रसिद्ध है।
यह राज्य हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता का धरोहर है। उत्तर प्रदेश के अनेक आश्रमों में वैदिक साहित्य, मंत्र, मनुस्मृति, और महाकाव्य-रामायण एवं महाभारत के उल्लेखनीय हिस्से आज भी जीवंत रूप में अध्ययन और अध्यापन का केंद्र हैं।
उत्तर प्रदेश की भूमि ने गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य राम चन्द्र शुक्ल, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला, सुमित्रानंदन पंत, मैथलीशरण गुप्त, सोहन लाल द्विवेदी, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा, राही मासूम रजा, हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे महान साहित्यकारों और कवियों को जन्म दिया है, जिन्होंने भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है।
ऐसा नहीं कि राज्य में सिर्फ हिन्दी या संस्कृत साहित्य समृद्ध है। उत्तर प्रदेश के साथ उर्दू साहित्य के एक से बड़े एक नाम भी जुड़े हैं। फिराक़, जोश मलीहाबादी, अकबर इलाहाबादी, नज़ीर, वसीम बरेलवी, चकबस्त जैसे अनगिनत शायर उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश की शान हैं।
भारतीय नृत्य की बात करें तो 18वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश में वृन्दावन और मथुरा के मन्दिरों में भक्तिपूर्ण नृत्य के तौर पर विकसित शास्त्रीय नृत्य शैली “कथक” उत्तरी भारत की शास्त्रीय नृत्य शैलियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के लोकगीत काफी मशहूर हैं।
उत्तर प्रदेश में पर्यटकों के लिए अनेक दर्शनीय स्थल हैं। यहां ताजमहल जैसी अद्वितीय धरोहर है तो धार्मिक स्थलों में वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, वृंदावन, देवा शरीफ, प्रयाग, चित्रकूट, शाकम्भरीदेवी सहारनपुर, सोरों, विंध्याचल और नैमिषारण्य जैसे तीर्थ स्थान शामिल हैं।
मणिपुरः
मणिपुर, जिसे ‘भारत का गहना’ कहा जाता है, 21 जनवरी 1972 को भारतीय गणराज्य का बीसवाँ राज्य बना। यह ऐतिहासिक क्षण मणिपुर के लिए न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने राज्य के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के एक नए युग की शुरुआत भी की।
मणिपुर का अर्थ है मणि का प्रदेश। भले ही प्रदेश में मणियों की कोई खान न हो, किन्तु प्राकृतिक रूप से यह इतना सुन्दर प्रदेश है कि इसे मणियों का प्रदेश कहना गलत नहीं।
कभी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यहाँ का भ्रमण किया था और इस राज्य की सुन्दरता से प्रभावित होकर इसे ‘भारत का हीरा’ कहा था।
जब लॉर्ड इरविन यहाँ आए थे, तो उन्हें यह राज्य स्विट्जरलैंड जैसा सुन्दर लगा और उन्होंने इसे ‘पूरब का स्विट्जरलैंड’ की संज्ञा दी।
मणिपुर एक राज्य के रूप में आज जिस मुकाम पर पहुंचा है, उसके लिए यहां के लोगों ने अपना तप और त्याग किया है।
मणिपुर के बेटों और बेटियों ने खेल के क्षेत्र में देश व अपने प्रदेश का नाम रोशन किया है।
मेरीकोम, मीराबाई चानू, सरिता देवी, डिंको सिंह और दवेंद्रो सिंह जैसे बहुत से खिलाड़ी मणिपुर से ही हैं।
मेघालयः
मेघालय का निर्माण 1970 को असम के अंतर्गत एक स्वतंत्र राज्य के रूप में किया गया। लेकिन इसे पूर्ण राज्य का दर्जा 21 जनवरी 1972 में मिला। मेघालय दो शब्दों मेघ और आलय से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है बादलों का घर।
मेघालय, जिसे ‘बादलों का घर’ कहा जाता है, न केवल अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह दुनिया के लिए संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता का एक प्रेरणादायक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
मेघालय ने अपने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखते हुए प्रगति का एक मार्ग प्रशस्त किया है। यह राज्य न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा है कि कैसे प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण के साथ सतत विकास किया जा सकता है।
मेघालय के मेहनती किसानों ने अपनी लगन, पारंपरिक ज्ञान, और पर्यावरण के प्रति सम्मान से ‘ऑर्गेनिक स्टेट’ के रूप में राज्य की पहचान को मजबूत किया है। उनकी यह उपलब्धि न केवल राज्य के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह टिकाऊ कृषि और पर्यावरण संरक्षण के प्रति एक प्रेरणा भी है।
यहां का मॉलिनॉन्ग गांव देश का सबसे साफ गांव है जिसे ‘डिस्कवर इंडिया’ मैगज़ीन की ओर से 2003 में ‘एशिया का सबसे साफ गांव’ का खिताब मिला था।
आप में से शायद कुछ लोग जानते हों, आज देश जब जन सुविधाओं की डिलिवरी के लिए ड्रोन टेक्नॉलॉजी का बड़े स्तर पर उपयोग करने की तरफ बढ़ रहा है, तब मेघालय देश के उन शुरुआती राज्यों में शामिल हुआ है जिसने ड्रोन से कोरोना वैक्सीन्स को डिलीवर किया। ये बदलते मेघालय की तस्वीर है।
इस खूबसूरत प्रदेश में मंत्रमुग्ध कर देने वाले बहुत से पर्यटक आकर्षण हैं। इनमें भारी वर्षा और अद्भुत परिदृश्यों के लिए जाना जाता चेरापूंजी; भारत का सबसे ऊँचा ‘नोहकलिकाई झरना’ और यूनेस्को द्वारा घोषित कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर ‘नोकरेक नेशनल पार्क’ प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। इसके अलावा मावस्माई गुफाएँ और डैनथलेन झरना भी प्रमुख आकर्षण हैं।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मेघालय में ‘मातृवंशीय’ व्यवस्था है जिसने महिलाओं को प्रधानता का स्थान दिया है। इस व्यवस्था के पीछे की भावना यह है कि माँ ही वंश की स्रोत होती है, जो जीवन के लिए आवश्यक हर एक वस्तु प्रदान करती है।
त्रिपुराः
त्रिपुरा को भी पूर्ण राज्य का दर्जा 21 जनवरी 1972 में मिला। इस क्षेत्र का नाम राधाकृष्णपुर में स्थित त्रिपुरी सुंदरी के मंदिर के नाम पर रखा गया जिसे 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है।
त्रिपुरा अपनी जनजातीय संस्कृति, इतिहास, और लोक कथाओं के माध्यम से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का एक अद्वितीय उदाहरण है। इसकी अनोखी परंपराएँ और मान्यताएँ न केवल स्थानीय समुदायों को प्रेरित करती हैं, बल्कि बाहरी दुनिया को भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति आकर्षित करती हैं। यह राज्य वास्तव में ‘लघु भारत’ का सार प्रस्तुत करता है।
त्रिपुरा, जिसे कभी किरत देश के नाम से जाना जाता था, प्राचीन भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नक्शे पर अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। महाभारत और पुराणों में इसका उल्लेख इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है। यह राज्य न केवल अपने समृद्ध अतीत के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी परंपराएँ और जनजातीय संस्कृति आज भी भारत की सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध बनाती हैं।
त्रिपुरा का जनजातीय समाज न केवल प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन का प्रतीक है, बल्कि यह दुनिया को सिखाता है कि आधुनिकता और पारंपरिक मूल्यों के बीच संतुलन कैसे बनाया जा सकता है। उनकी जीवनशैली हमें यह समझने का अवसर देती है कि प्रकृति को संरक्षित करना केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह हमारी पहचान और अस्तित्व का मूल आधार है।
त्रिपुरा की जनजातीय संस्कृति इसकी आत्मा है। राज्य में कुल 19 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ हैं, जिनकी परंपराएँ और जीवनशैली प्रकृति के साथ सामंजस्य का अद्भुत उदाहरण हैं। त्रिपुरा का प्राकृतिक सौंदर्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। उज्जयंता पैलेस और नीरमहल जैसे ऐतिहासिक स्थल इसकी समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं।
ऊँचे-ऊँचे पहाड़, हरी-भरी घाटियाँ, और झरने यहाँ के प्रमुख आकर्षण हैं। त्रिपुरा के सिपाहीजला वन्यजीव अभयारण्य और रुद्रसागर झील न केवल पर्यावरणीय स्थिरता का प्रतीक हैं, बल्कि पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं।
यहाँ की बांस की शिल्पकला और हथकरघा उद्योग ने न केवल राज्य को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाया है, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है।
त्रिपुरा की बेटी दीपा करमाकर ने ओलंपिक में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से पूरे देश को गर्वित किया है।
दमन एवं दीव और दादरा एवं नगर हवेलीः
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि दमन एवं दीव और दादरा एवं नगर हवेली दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश थे। माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने सरकारी कामकाज की दक्षता को बढ़ाने के लिए 26 नवंबर 2019 को लोकसभा में दमन एवं दीव और दादरा एंव नगर हवेली के विलय के लिए विधेयक पेश किया था।
संसद द्वारा इस विधेयक को मंजूरी दे दी गई और 26जनवरी 2020 को इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का विलय हो गया। इसलिए 26 जनवरी को हम इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का स्थापना दिवस मनाते हैं। लेकिन कल गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों में व्यवस्तता के कारण हम आज इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का स्थापना दिवस मना रहे हैं।
इतिहास के दृष्टिकोण से देखें तो दोनों ही केंद्र शासित प्रदेशों पर लंबे समय तक पुर्तगाल का कब्जा रहा था। वर्ष 1961 में आजादी मिलने के बाद दमन व दीव वर्ष 1987 तक गोवा का हिस्सा रहा। 1987 में गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद वह अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया।
दो अगस्त 1954 को आजाद होने के बाद दादरा व नगर हवेली में वर्ष 1961 तक स्थानीय निकाय का प्रशासन रहा। वर्ष 1961 में भारत में विलय के बाद उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था।
पर्यटन की दृष्टि से ये दोनों केंद्र शासित प्रदेश अपने ऐतिहासिक और समृद्ध धरोहर, कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के मनमोहक वातावरण लोगों को आकर्षित करते हैं।
दमन मुख्य भूमि पर स्थित है, जबकि दीव भारत के पश्चिमी तट का ठण्डी हवाओं का एक छोटा और सुन्दर द्वीप है। यहाँ वर्ष भर रहने वाली सुखद जलवायु प्रत्येक मौसम में इसे पर्यटन का केन्द्र बनाती है।
अरब सागर की गोद में स्थित दीव में ऐतिहासिक पुर्तगाली स्मारक, स्वर्णिम समुद्र तट, प्रदूषण रहित नीला जल है, जिसके कारण वर्ष भर यह पर्यटन का केन्द्र बना रहता है। वहीं दमन गंगा नदी के मुहाने के निकट स्थित अरब सागर से मिलने वाला दमन आपके सपनों का पर्यटन स्थल हो सकता है। इसका प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों को अपने आकर्षण से यहाँ खींच लाता है।
इस संघ प्रदेश की राजधानी ‘सिलवासा’ है जो चंडीगढ़ के जैसे अब सर्वत्रवासी शहर हो गया है। जैसे चंडीगढ़ में देश के अन्य प्रांतों से आए लोग रह रहे हैं, व्यवसाय कर रहे हैं, उसी तरह भारत का कोई कोना ऐसा नहीं होगा जिसके लोग सिलवासा में न रहते हों।
यहां के लोगों को अपनी जड़ों से प्यार है लेकिन आधुनिकता को भी उतना ही अपनत्व देते हैं। यहां की घर-घर जाकर अपशिष्ट संग्रहण की सुविधा हो या फिर सौ प्रतिशत अपशिष्ट प्रसंस्करण, यह केन्द्र शासित प्रदेश, सभी राज्यों को प्रेरणा दे रहा है।
सेवाभाव यहां के लोगों की पहचान है। कोरोना काल में तो मेडिकल स्टूडेंट्स ने आगे बढ़कर लोगों की मदद की थी। कोरोना के उस समय में, जब परिवार में भी कोई एक दूसरे की मदद नहीं कर पाता था, तब यहां के स्टूडेंट्स गावों में मदद करने पहुंचे थे।
उन्होंने जो ‘ग्राम अंगीकरण कार्यक्रम’ चलाया था, उसका जिक्र तो माननीय प्रधानमंत्री जी ने ‘‘मन की बात’’ में भी किया था। विपुल प्राकृतिक संपदा से संपन्न, दादरा, नगर हवेली, दमन और दीव मंत्रमुग्ध कर देने वाली सुंदरता की भूमि है।
हरे-भरे जंगल, घुमावदार नदियाँ, अकल्पनीय समुद्र तट, कलकल बहते झरनों की मधुर ध्वनि, दूर-दूर तक फैली पर्वत श्रृंखलाएँ, विविध वनस्पतियों और जीवों का एक भव्य बहुरंगी परिदृश्य यहां मौजूद है।
इस केन्द्र शासित प्रदेश के पास देश के महत्वपूर्ण टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में उभरने का अच्छा सामर्थ्य है। यह शांति, एकांत और सुकून की तलाश करने वाले पर्यटकों के लिए स्वर्ग है। दमन और दीव की सुंदरता ऐसी है कि इसे कभी कीचड़ में कमल के रूप में जाना जाता था।
इस प्रकार, हर राज्य की अपनी विशेषता, संस्कृति और इतिहास है, और यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि इन राज्यों की यात्रा ने न केवल अपने निवासियों को सशक्त किया, बल्कि पूरे देश को एकता, विविधता और समृद्धि की दिशा में प्रगति करने की प्रेरणा दी। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश हमारे देश के गौरव का हिस्सा हैं, और इनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का स्थापना दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारी विविधता ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। अलग-अलग भाषाओं, परंपराओं, और संस्कृतियों के बावजूद, हम सभी एक भारत के नागरिक हैं।
मैं इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के युवाओं से विशेष रूप से अपील करता हूँ कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को बनाए रखें और अपनी ऊर्जा का उपयोग भारत के विकास और समृद्धि में करें।
इस अवसर पर, आइए हम सभी यह संकल्प लें कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजते हुए एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान देंगे।
अंत में, मैं आप सभी को पुनः शुभकामनाएँ देता हूँ और इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
जय भारत!
जय हिंद!