SPEECH OF GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA on the occasion of Convocation of Punjab Agriculture University, Ludhiana on February 8, 2025.

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 08.02.2025, शनिवार समयः दोपहर 12:00 बजे स्थानः लुधियाना

माननीय उप-कुलपति महोदय, विश्वविद्यालय के शिक्षकगण, अभिभावक, और सबसे बढ़कर, आज के इस गौरवशाली अवसर के मुख्य आकर्षण, हमारे प्रिय छात्र-छात्राएं,

आप सभी को इस वार्षिक दीक्षांत समारोह पर संबोधित करते हुए आज मुझे अत्यंत गर्व और खुशी हो रही है। यह दिन आपकी कठोर मेहनत, समर्पण, और दृढ़ता का उत्सव मनाने का है। साथ ही, यह अनंत संभावनाओं से भरे आपके नए सफर की शुरुआत का भी प्रतीक है।

देवियो और सज्जनो,

पंजाब वह राज्य है जिसने देश के कठिन समय में लाल बहादुर शास्त्री जी के ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को साकार करने में सबसे अग्रणी भूमिका निभाई।

विशेष रूप से पंजाब के किसानों ने न केवल अपने कृषि उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि की, बल्कि पूरे देश को खाद्यान्न संकट से उबारते हुए खाद्य भंडारण में आत्मनिर्भर बनाने में भी अहम योगदान दिया। कठिन से कठिन समय में भी पंजाब के किसानों ने अपनी मेहनत और समर्पण से देश के लिए खाद्य अधिशेष पैदा किया, जो उनके परिश्रम और कुशलता का प्रमाण है। जिसमें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना की प्रमुख भूमिका रही है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय भारतीय कृषि प्रगति का आधार स्तंभ रहा है। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत से लेकर आधुनिक खेती में स्थिरता को बढ़ावा देने तक, इसकी विरासत अद्वितीय है।

1960 और 1970 के दशकों में, जब भारत खाद्य संकट से जूझ रहा था, तब पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने नवीन अनुसंधान, प्रौद्योगिकी एवं कृषि नवाचारों के माध्यम से किसानों को उन्नत तकनीक और आधुनिक खेती की विधियाँ उपलब्ध कराईं।

इस प्रतिष्ठित संस्थान की स्थापना तत्कालीन पंजाब के सेवार्थ वर्ष 1962 में की गई थी जिसका उद्घाटन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 8 जुलाई 1963 को किया था।

विश्वविद्यालय के अन्तर्गत छह कॉलेजों का संचालन किया जा रहा है, जिनमें कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, पीएयू-कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर बल्लोवाल सौंकरी, कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कॉलेज ऑफ बेसिक सांईंसिस एंड ह्यूमैनिटीज़, कॉलेज ऑफ कम्युनिटी सांईंस और कॉलेज ऑफ होर्टीकल्चर शामिल हैं।

वर्तमान में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, अपने इन छह कॉलेजों में 32 विभागों और 3 स्कूलों के माध्यम से, लुधियाना और बाहरी स्थानों पर 11 स्नातक प्रोग्रामों के अलावा 43 मास्टर और 29 पीएचडी प्रोग्राम प्रदान करता है।

मुझे बताया गया है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने 950 से अधिक उच्च उपज वाली और जलवायु-अनुकूल फसलों की किस्में विकसित की हैं। इनमें कई ऐसी किस्में शामिल हैं जो कीट-रोग प्रतिरोधी हैं और कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं।

इसके अलावा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने कृषि यंत्रों के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व योगदान दिया है। यहां के शोधकर्ताओं ने ऐसे यंत्र विकसित किए हैं, जो किसानों के लिए कृषि कार्यों को आसान, सस्ता और अधिक कुशल बनाते हैं।

इनमें पराली जलाने की समस्या को रोकने और फसल अवशेषों को खेत में मिलाकर बुवाई हेतु ‘सुपर सीडर और हैप्पी सीडर’, धान की रोपाई को आसान बनाने और पानी की बचत करने वाला ’पैडी ट्रांसप्लांटर’ और एक ही मशीन से कई प्रकार की फसलों की गहाई करने वाली ‘मल्टी-क्रॉप थ्रेशर’ मशीनें शामिल हैं।

देवियो और सज्जनो,

भारत न केवल दुनिया की सबसे बड़ी कृषि अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, बल्कि यह लाखों किसानों और ग्रामीण श्रमिकों की आजीविका का आधार भी है। कृषि क्षेत्र देश की लगभग 60 प्रतिशत कार्यबल को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है, और यह इस बात का प्रमाण है कि भारत की आर्थिक स्थिरता और सामाजिक समृद्धि में कृषि का एक अनिवार्य योगदान है।

इसके अतिरिक्त, देश की लगभग 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जो मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। इस वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए, कृषि का विकास केवल आर्थिक वृद्धि के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक कल्याण और खाद्य सुरक्षा के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

भारत में कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का अभी तक पूर्ण रूप से दोहन नहीं किया गया है। आज भी, किसानों को जलवायु परिवर्तन, बाजार की अनिश्चितता, पारंपरिक खेती के तरीकों और सीमित तकनीकी संसाधनों जैसी अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

इसलिए, कृषि उत्पादन, उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाने के लिए बहुआयामी विकास को प्राथमिकता देना आवश्यक है। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर नवाचार, अनुसंधान और तकनीकी उन्नयन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि कृषि को अधिक लाभकारी, टिकाऊ और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाया जा सके।

कृषि क्षेत्र में उन्नत तकनीकों जैसे कि सटीक खेती, ड्रोन तकनीक, स्मार्ट सिंचाई प्रणाली और जैविक खेती को अपनाकर उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।

साथ ही, डिजिटल कृषि प्लेटफॉर्म, किसान बाजारों (e-NAM), और एग्री-बिजनेस स्टार्टअप्स को बढ़ावा देकर किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने और बिचौलियों की भूमिका को कम करने में सहायता मिल सकती है।

कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर और टिकाऊ बनाना राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि हम खाद्य सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और ग्रामीण रोजगार के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।

भारत सरकार और कृषि वैज्ञानिक संस्थान फसलीय विविधिकरण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्तरों पर काम कर रहे हैं। सरकार की कई योजनाएं और नीतियां इस दिशा में कार्य कर रही हैं, जिनमें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, ई-नाम (e-NAM) प्लेटफॉर्म आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। केन्द्र सरकार की इन योजनाओं का किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ लेना चाहिए।

जब कृषि समृद्ध होगी, तो भारत न केवल एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरेगा, बल्कि ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ की दिशा में भी मजबूती से आगे बढ़ेगा।

देवियो और सज्जनो,

सभ्यता की शुरुआत से ही किसान मानव समाज के असली इंजीनियर और वैज्ञानिक रहे हैं। उन्होंने न केवल खाद्य उत्पादन का आधार स्थापित किया, बल्कि प्रकृति की ऊर्जा और उपहारों का उपयोग करके संपूर्ण मानवता के कल्याण में भी योगदान दिया है।

जब आदिम मानव शिकारी और भोजन संग्राहक के रूप में जीवन यापन कर रहा था, तब कृषि की खोज ने उसे एक स्थायी और संगठित समाज की ओर अग्रसर किया। इसी खोज ने सभ्यता की नींव रखी और आगे चलकर विज्ञान, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक बनी।

किसानों ने सदियों से मौसम, मिट्टी, जल और बीजों के गहन अध्ययन के माध्यम से कृषि को विकसित किया है। उनके पारंपरिक ज्ञान और अनुभव ने कृषि में अनेक नवाचारों को जन्म दिया, जो आज भी वैज्ञानिक अनुसंधानों का आधार हैं।

उदाहरण के लिए, फसल चक्र मिश्रित खेती और जल संरक्षण की पद्धतियाँ जैसे कि बावड़ी और कुंओं का निर्माण, किसानों की नवाचारी सोच और प्रकृति की समझ का प्रमाण हैं।

आज विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में जो प्रगति हम देख रहे हैं, उसका मूल आधार भी किसानों की परंपरागत खोजों और प्रयोगों में निहित है। सिंचाई प्रणालियों का विकास, मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने की तकनीकें, प्राकृतिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग-ये सभी कृषि वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिन्हें किसानों ने हजारों सालों से अपनाया है। आधुनिक कृषि तकनीकों, जैसे ड्रिप सिंचाई और जैविक खेती, की जड़ें भी हमारे प्राचीन कृषि ज्ञान में ही हैं।

किसानों ने केवल भोजन उत्पादन तक सीमित रहकर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए अपनी भूमिका निभाई है। वे हमारे समाज को पोषण प्रदान करने वाले स्तंभ हैं, जो निस्वार्थ रूप से अपनी मेहनत से संपूर्ण जनसंख्या के लिए भोजन जुटाते हैं। उनकी खोजों और अनुभवों से न केवल कृषि, बल्कि आयुर्वेद, औषधीय पौधों का उपयोग और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की तकनीकें भी विकसित हुईं।

आज, जब आधुनिक विज्ञान और तकनीक ने कृषि को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है, तब भी किसानों की वैज्ञानिक दृष्टि को सम्मान देना आवश्यक है। वे आज भी मौसम परिवर्तन, मिट्टी की उर्वरता और जलवायु प्रभावों को समझकर अपने अनुभवों के आधार पर फैसले लेते हैं। उन्हें नए कृषि नवाचारों, स्मार्ट खेती तकनीकों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ने से ही हम एक समृद्ध और टिकाऊ कृषि प्रणाली विकसित कर सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

मुझे इस बात का गर्व है कि 1.53 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्रफल वाला पंजाब, केंद्रीय खाद्यान्न कोष में लगभग 60 प्रतिशत गेहूं और 45 प्रतिशत चावल का योगदान देता है। यह उल्लेखनीय उपलब्धि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अग्रणी अनुसंधान और नवाचारों का परिणाम है, जो किसानों के द्वार तक पहुंचने वाली विश्व स्तरीय शिक्षण और विस्तार सेवाओं द्वारा समर्थित है।

आपके इस संस्थान ने न केवल उन्नत फसल किस्में विकसित की हैं, बल्कि किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकों और सतत खेती पद्धतियों से अवगत कराकर उनकी उत्पादकता और आय में वृद्धि की है। यह संस्थान पंजाब के किसानों की सफलता का मुख्य आधार है और देश की खाद्य सुरक्षा में इसका योगदान अतुलनीय है।

जो कार्य पीएयू में फसल सुधार के रूप में शुरू हुआ था, वह एक विशाल बीज उत्पादन कार्यक्रम में बदल गया, जिसने 2023-24 के दौरान 66,334 क्विंटल फसल और सब्जी के बीज उत्पादन किए। आज, पंजाब राष्ट्रीय खाद्य भंडार का एक प्रमुख योगदानकर्ता है, जिसने केवल रबी विपणन सत्र 2022-23 में 51.3 प्रतिशत गेहूं केंद्रीय भंडार में प्रदान किया।

पीएयू समग्र उत्कृष्टता का ऐसा उदाहरण है, जो शैक्षिक कार्यों को खेलों और सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के साथ जोड़ता है। इसका इतिहास ओलंपियनों और अंतरराष्ट्रीय चैंपियनों को उत्पन्न करने का रहा है, विशेष रूप से हॉकी में।

संस्थागत सम्मान जैसे आईसीएआर (इंडियन कांउसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च) बेस्ट इंस्टिट्यूशन अवार्ड और सरदार पटेल आउटस्टैंडिंग आईसीएआर इंस्टिट्यूशन अवार्ड पीएयू के कृषि में नेतृत्व को प्रमाणित करते हैं। राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) 2023 और 2024 में भारत के कृषि विश्वविद्यालयों में लगातार दो वर्षों तक पहले स्थान पर रहना इसकी निरंतर उत्कृष्टता को दर्शाता है।

देवियो और सज्जनो,

आज इस मंच से मैं पंजाब की कृषि से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी बात करना चाहूंगा।

पंजाब की कृषि में 1970 के दशक से ही बड़े पैमाने पर बदलाव आए, जिसमें धान की खेती में 203 प्रतिशत तक की जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली, जो नीतिगत प्रोत्साहन और तकनीकी प्रगति का प्रतिफल था। इस बदलाव के साथ मक्का, बाजरा और मूंगफली जैसी पारंपरिक फसलें धीरे-धीरे पीछे छूटने लगीं।

वहीं, कपास का क्षेत्र अपेक्षाकृत स्थिर रहा, लेकिन नहर सिंचाई में सुधार के कारण इसमें भी 63.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 1980 के दशक में धान और कपास के रकबे में क्रमशः 70.3 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जिससे 1988-89 में कपास का क्षेत्रफल 7.58 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया।

1990 के दशक में नहर सिंचित क्षेत्रों में 42.3 प्रतिशत की तेज गिरावट  के कारण ट्यूबवेल सिंचाई पर निर्भरता में 37.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मौसम प्रतिरोधी धान की लोकप्रियता ने कपास की खेती को हाशिए पर धकेल दिया, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित चावल-गेहूं प्रणाली मजबूत हुई, परंतु इस एकतरफा खेती के चलते भूजल स्तर में गिरावट और मिट्टी की गुणवत्ता में कमी जैसी गंभीर चुनौतियाँ भी सामने आईं।

आज पंजाब में भूजल की स्थिति अत्यंत चिंताजनक हो गई है। 1984 में जहाँ अति-शोषित ब्लॉकों की संख्या 45 प्रतिशत थी, वहीं 2022 में यह बढ़कर 76 प्रतिशत हो गई है। राज्य के 45 प्रतिशत हिस्से में जलस्तर 20 मीटर से नीचे चला गया है, जो त्वरित सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता को दर्शाता है।

मिट्टी में जैविक अवशेष बढ़ने के बावजूद, नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक प्रयोग से कैल्शियम-मैग्नीशियम का क्षरण, जिंक सल्फेट के प्रयोग से जिंक स्तर में वृद्धि और मैंगनीज की कमी जैसी समस्याएँ उभर रही हैं। भारी मशीनरी और धान की पडलिंग तकनीक के कारण मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता में भी गिरावट आई है।

इन चुनौतियों के बावजूद, पंजाब ने उत्कृष्ट कृषि उत्पादकता बनाए रखी है। गेहूं और धान की पैदावार में काफी वृद्धि हुई है, पर केंद्रीय खरीद प्रणाली के माध्यम से पोषक तत्वों का आभासी निर्यात मिट्टी की उर्वरता को धीरे-धीरे कम कर रहा है।

अंततः, पंजाब अपनी कृषि यात्रा के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहाँ फसल विविधीकरण, संसाधन प्रबंधन और कृषि-व्यवसाय को प्राथमिकता देकर नवाचार, स्थिरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनने के नए अवसर प्राप्त हो सकते हैं।

मित्रो,

कृषि और पर्यावरण एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। आपसे अपेक्षा है कि आप दीर्घकालिक पारिस्थितिक संतुलन को प्राथमिकता देंगे। मृदा और जल संरक्षण को बढ़ावा दें। शून्य जुताई, ड्रिप सिंचाई और जैविक खेती जैसी तकनीकों का उपयोग करें। जलवायु परिवर्तन से लड़ें।

महात्मा गांधी जी ने सही कहा हैः “पृथ्वी हमारे पूर्वजों से विरासत में मिली संपत्ति नहीं है, बल्कि हमारे बच्चों के लिए उधार है।” इसका अर्थ है कि हमें पृथ्वी को कम से कम उतनी ही अच्छी स्थिति में अपने बच्चों को सौंपना चाहिए जैसी स्थिति में यह हमें मिली थी।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे किसान देश की कृषि व्यवस्था की रीढ़ हैं, और उनकी समृद्धि ही कृषि के सतत विकास का मूल आधार है। एक सशक्त और समृद्ध किसान न केवल अपनी व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति को सुधारता है, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता में भी योगदान देता है।

इसलिए यह आवश्यक है कि हम नीतिगत सुधारों और तकनीकी विकास के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाने पर विशेष ध्यान दें। सरकारों और निजी संस्थाओं को मिलकर ऐसे कार्यक्रम और योजनाएं विकसित करनी चाहिए जो किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाएं और उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने में सहायक हों।

इसके लिए सरकार और निजी संस्थाओं को मिलकर अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे सस्ती और प्रभावी तकनीकों का विकास किया जा सके। इसके अतिरिक्त, किसानों को ऐसी डिजिटल सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए जो उन्हें मौसम की सटीक जानकारी, बाजार प्रवृत्तियों और फसल स्वास्थ्य संबंधी वास्तविक समय में सूचनाएं प्रदान करें। इससे वे बेहतर निर्णय ले सकेंगे और जोखिमों को कम कर सकेंगे।

इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर ज्ञान साझा करना भी कृषि के सतत विकास के लिए आवश्यक है। सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, किसान मेलों और कृषि जागरूकता अभियानों के माध्यम से किसानों को नई कृषि विधियों, जैविक खेती, जल संरक्षण तकनीकों और अन्य नवाचारों की जानकारी दी जा सकती है। इससे न केवल उनकी उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि वे पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ कृषि को भी अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।

प्रिय छात्रो,

आज का यह दीक्षांत समरोह केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आपके लिए कर्तव्य का आह्वान है। कृषि सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। यह राष्ट्रों को भोजन प्रदान करता है, अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करता है, और पारिस्थितिकी तंत्र को पोषण देता है।

जलवायु परिवर्तन, खाद्य असुरक्षा, और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए आपका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। स्मरण रहेः जो किसान है, वही मानव समाज का पालनकर्ता है। उसके बिना न समाज है, न सभ्यता।

प्रिय छात्रो,

यहां से निकलने के बाद जब आप अपने पेशेवर जीवन की शुरूआत करें तो ध्यान रखें कि आप पूरी ईमानदारी और करुणा के साथ आगे बढ़ें। आज की दुनिया को ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो न केवल जानकार हों, बल्कि नैतिक और संवेदनशील भी हों।

आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप अपने पेशेवर जीवन दौरान अनुसंधान, नीतिगत निर्माण, और उद्यमशीलता में सच्चाई और पारदर्शिता बनाए रखें। सरकारों, निजी क्षेत्रों, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी करें। छात्रों और युवा शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक बनें। याद रहेः “सच्चा नेतृत्व दूसरों की सेवा करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने में निहित है।”

आज कृषि केवल खेती तक सीमित नहीं है। यह कृषि व्यापार, जैव इंजीनियरिंग, खाद्य प्रसंस्करण और जलवायु विज्ञान जैसी बहु-आयामी संभावनाओं से भरा है। लगातार सीखते रहें। उभरते हुए रुझानों के साथ खुद को अपडेट रखें।

प्रिय स्नातकों,

आप पीएयू परिवार का हिस्सा हैं, जिसने दृढ़ता, समर्पण, और नवाचार के माध्यम से असाधारण मील के पत्थर हासिल किए हैं। इस नए सफर की शुरुआत करने से पहले उन लोगों को धन्यवाद दें जिन्होंने आपको यहाँ तक पहुँचाने में मदद की है। आपके माता-पिता, शिक्षक, और सहपाठी आपके सबसे बड़े समर्थक रहे हैं।

विश्व आपको देख रहा है और आपसे नेतृत्व की अपेक्षा कर रहा है। कृषि में जो चुनौतियां हैं, वे बड़ी हैं, लेकिन असाध्य नहीं। आपने जो शिक्षा पीएयू में प्राप्त की है, वह आपको एक समृद्ध, स्थायी और न्यायसंगत भविष्य का निर्माण करने के लिए तैयार करती है।

आपकी मेहनत और लगन से भारत की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी, किसानों की आय बढ़ेगी और कृषि क्षेत्र नई संभावनाओं से भरा रहेगा। यही कारण है कि आप न केवल इस विश्वविद्यालय का गौरव हैं, बल्कि पूरे देश की आशा भी हैं।

आत्मविश्वास, साहस, और करुणा के साथ आगे बढ़ें।

आपकी सफलता की अनंत शुभकामनाएं!

धन्यवाद,

जय हिंद!