SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR OF PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF ANNUAL CONVOCATION OF PUNJAB AGRICULTURAL UNIVERSITY LUDHIANA ON MARCH 5, 2025.

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 05.03.2025, बुधवारसमयः सुबह 11:00 बजेस्थानः लुधियाना

 

माननीय उपकुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल, आदरणीय संकाय सदस्यगण, सम्मानित अतिथि, गर्वित अभिभावकगण और सबसे महत्वपूर्ण, प्रिय स्नातक विद्यार्थीगण, आज मैं आप सभी को आपके शैक्षणिक उपलब्धियों के इस विशेष अवसर पर संबोधित करते हुए अत्यंत गर्व और हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। 

यह कुछ ही दिनों में दूसरा अवसर है जब मैं आप सभी के बीच इस प्रतिष्ठित संस्थान के एक और दीक्षांत समारोह में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ। इससे पहले, 8 फरवरी 2025 को आयोजित दीक्षांत समारोह में छात्रों को उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के प्रतीक स्वरूप डिग्रियां प्रदान की गई थीं। 

प्रिय छात्रो,

आज एक बार फिर, इसी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, हम अपने प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को उनके उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होते देख रहे हैं। 

मैं उन सभी विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देता हूँ जिन्हें आज उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए उपाधियाँ प्रदान की जा रही हैं। आपको यह सदैव याद रखना चाहिए कि आप उन गिने-चुने भाग्यशाली विद्यार्थियों में से हैं जिन्हें इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है। 

इस प्रतिष्ठित संस्थान की स्थापना तत्कालीन पंजाब के सेवार्थ वर्ष 1962 में की गई थी जिसका उद्घाटन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 8 जुलाई 1963 को किया था। विश्वविद्यालय के अन्तर्गत छह कॉलेजों का संचालन किया जा रहा है।

वर्तमान में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, अपने छह कॉलेजों में 32 विभागों और 3 स्कूलों के माध्यम से, लुधियाना और बाहरी स्थानों पर 11 स्नातक प्रोग्रामों के अलावा 43 मास्टर और 29 पीएचडी प्रोग्राम प्रदान करता है।

उस दिन भी मैंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का विस्तार से उल्लेख किया था और आज फिर से मैं उन उपलब्धियों को दोहरा रहा हूँ। इस संस्थान ने अब तक 950 से अधिक फसल किस्मों को विकसित किया है, कृषि यंत्रों में नवाचार किए हैं और स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा दिया है, जिससे भारतीय कृषि को वैश्विक स्तर पर नई ऊँचाइयाँ मिली हैं। 

यहाँ की ठोस शैक्षणिक संरचना, जिसमें स्नातक, परास्नातक और डॉक्टरेट कार्यक्रम शामिल हैं, छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के लिए ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव और अनुभवात्मक शिक्षण कार्यक्रम जैसी पहल से समृद्ध की गई है, जिससे वे उद्योग के लिए तैयार हो सकें। 

पी.ए.यू. का योगदान केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अनुसंधान, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, और प्रभावशाली बीज उत्पादन कार्यक्रम में भी अग्रणी रहा है। 2023-24 में विश्वविद्यालय ने 66 हजार क्विंटल बीज का उत्पादन किया, जिससे यह कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ। 

इसके अतिरिक्त, फसल अवशेष प्रबंधन में भी पी.ए.यू. ने क्रांतिकारी कदम उठाए हैं। इसके कृषि यंत्र भारत में उपलब्ध समाधानों का 45 प्रतिशत हिस्सा हैं। 

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) 2023 और 2024 में भारत के कृषि विश्वविद्यालयों में लगातार दो वर्षों तक पहले स्थान पर रहना इसकी निरंतर उत्कृष्टता को दर्शाता है। आपका यह संस्थान खेलों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है, जहाँ इसने कई ओलंपियन तैयार किए हैं। 

देवियो और सज्जनो, 

1970 का दशक पंजाब की कृषि के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस दौरान धान की खेती में 203 प्रतिशत की अप्रत्याशित वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण नीति-प्रोत्साहन और तकनीकी प्रगति थी। लेकिन इस बदलाव की कीमत भी चुकानी पड़ी- मक्का, बाजरा और मूंगफली जैसी पारंपरिक फसलें धीरे-धीरे कम हो गईं। हालाँकि, कपास क्षेत्र तुलनात्मक रूप से स्थिर रहा और 63.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जिसका श्रेय बेहतर नहर सिंचाई को जाता है। 

1980 का दशक इस प्रवृत्ति को और मजबूत करता चला गया। इस दौरान धान का रकबा 70.3 प्रतिशत बढ़ा, जबकि कपास क्षेत्र में केवल 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 1988-89 में यह 7.58 लाख हेक्टेयर के अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। 

1990 के दशक में नहर सिंचाई वाले क्षेत्रों में 42.3 प्रतिशत की भारी गिरावट आई, जिससे ट्यूबवेल सिंचाई पर निर्भरता 37.7 प्रतिशत तक बढ़ गई। धान की फसल की जलवायु सहनशीलता के कारण कपास की खेती और अधिक सीमित हो गई। 

इस दौर में धान-गेहूं फसल प्रणाली पूरी तरह स्थापित हो गई, जो निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और स्थिर सिंचाई सुविधाओं के कारण संभव हुआ। हालाँकि, इस एकतरफा खेती के चलते अब भूजल की कमी और मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

पंजाब में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। 1984 में जहाँ 45 प्रतिशत ब्लॉक भूजल दोहन की समस्या से जूझ रहे थे, वहीं 2022 तक यह आँकड़ा 76 प्रतिशत तक पहुँच गया। मानसा जिले के सरदूलगढ़ ब्लॉक में जलस्तर सबसे नीचे (68 मीटर) दर्ज किया गया, जबकि जलंधर ईस्ट ब्लॉक सबसे अधिक दोहनग्रस्त (400 प्रतिशत) है। पूरे राज्य के लगभग 45 प्रतिशत हिस्से में पानी का स्तर 20 मीटर से नीचे चला गया है। ये आँकड़े एक गंभीर जल संकट की ओर संकेत करते हैं, जिसके समाधान के लिए त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है। 

धान-गेहूं प्रणाली के कारण पंजाब की मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा तो बढ़ी है, लेकिन अन्य असंतुलन भी सामने आए हैं। जिंक सल्फेट के नियमित उपयोग से मिट्टी में जिंक की मात्रा बढ़ गई है, लेकिन गेहूं और बरसीम में मैंगनीज की कमी देखी जा रही है। एक और प्रमुख समस्या मिट्टी का गिरता चभ् स्तर है, जो अधिक नाइट्रोजन उर्वरक प्रयोग और कैल्शियम-मैग्नीशियम लीचिंग के कारण हो रहा है। 

इसके अलावा, धान की खेती में भारी मशीनों के उपयोग और पडलिंग पद्धति से मिट्टी में सख्ती और वायु संचार की कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। 

हालाँकि, इन चुनौतियों के बावजूद पंजाब की कृषि उत्पादकता उच्च स्तर पर बनी हुई है। 1960-61 में गेहूं की औसत पैदावार 12.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो 2000 के दशक में बढ़कर 48.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गई। इसी तरह, धान की पैदावार 15.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच गई है। 

लेकिन एक बड़ी समस्या केंद्रीय खरीद प्रणाली के माध्यम से मिट्टी से पोषक तत्वों का निरंतर बाहर जाना है। इससे भूमि की उर्वरता धीरे-धीरे घट रही है, जो पंजाब की कृषि के दीर्घकालिक भविष्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है।

देवियो और सज्जनो, 

एमएसपी आधारित खरीद प्रणाली पंजाब की कृषि की रीढ़ रही है, लेकिन इसके अलावा अन्य लाभदायक विकल्प भी मौजूद हैं। केवल एमएसपी पर निर्भर रहने से नवाचार और फसल विविधीकरण हतोत्साहित होता है। इसके अलावा, पंजाब की पारंपरिक भूमिका जो देश की खाद्य सुरक्षा में मुख्य योगदानकर्ता रही थी, अब धीरे-धीरे कम हो रही है। 

मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य गेहूं और धान के केंद्रीय भंडार में महत्वपूर्ण योगदान देने लगे हैं। उदाहरण के लिए, 2022-23 में पंजाब ने केंद्रीय गेहूं भंडार में 51 प्रतिशत योगदान दिया, जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कमजोर उत्पादन के कारण हुआ। लेकिन यह बढ़त भविष्य में बनी रहेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। 

इसके अलावा, पंजाब में सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में से एक पराली जलाना है, जो वायु प्रदषणू को बढ़ाता है और नाइट्रोजन और सल्फर जैसे मूल्यवान पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है। सरकार ने 2018 से अब तक पराली प्रबंधन के लिए 3 हजार 6 सौ 23 करोड़ खर्च किए हैं, जिसमें से 46 प्रतिशत धनराशि पंजाब को दी गई। लेकिन तेजी से अप्रचलित होती मशीनरी के कारण कई हिस्से कबाड़खानों में बदल रहे हैं। पराली जलाने के टिकाऊ और किफायती विकल्पों को प्राथमिकता देना आवश्यक है ताकि इस गंभीर समस्या का समाधान किया जा सके । 

साथ ही, धान-गेहूं जैसी सघन खेती प्रणाली ने पंजाब की जैव विविधता को बुरी तरह प्रभावित किया है। कभी खेतों में आमतौर पर दिखने वाले बगुले, कौवे और गौरैया अब बहुत कम दिखाई देते हैं, क्योंकि उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। शिवालिक, मंद और बीर जैसे पारिस्थितिक क्षेत्र गंभीर संकट में हैं। यदि फसल विविधीकरण को दोबारा अपनाया जाए, तो इकोलॉजिकल संतुलन बहाल किया जा सकता है और प्राकृतिक संपदा को बचाया जा सकता है। 

देवियो और सज्जनो,

मैं समझता हूं कि पंजाब की कृषि समस्याओं का सबसे प्रभावी समाधान फसल विविधीकरण है। यह कोई नई मांग नहीं है। पहली बार 1980 के दशक में इसे उठाया गया था, जब धान की खेती तीन गुना बढ़ गई थी। तब से लेकर अब तक 1986 की विशेषज्ञ समिति, 2002 की जौहल समिति, 2006 का पंजाब राज्य किसान आयोग, और 2014 की केंद्र सरकार की योजना जैसी कई रिपोर्टों ने इसकी आवश्यकता को रेखांकित किया है। लेकिन वित्तीय सीमाओं और गेहूं-धान की सुनिश्चित एमएसपी व्यवस्था ने वास्तविक प्रगति को बाधित किया है। 

सफल विविधीकरण के लिए मांग-आधारित दृष्टिकोण जरूरी है। केवल सरकारी सहायता पर निर्भर रहने के बजाय, किसान-नेतृत्व वाली सहकारी संरचना को विकसित करना होगा। अब कृषि व्यवसाय को शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार कार्य के साथ चौथा स्तंभ माना जाना चाहिए। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो 30 से अधिक कृषि उद्यमों में कौशल-आधारित प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है और 330 से अधिक कृषि-प्रसंस्करण इकाइयों का समर्थन कर रहा है। 

पंजाब में फसल विविधीकरण का सबसे सफल उदाहरण बासमती चावल का विस्तार है। बासमती का निर्यात भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में 48 हजार करोड़ का योगदान देता है। पंजाब में बासमती क्षेत्र 2022 में 4 लाख 94 हजार 500 हेक्टेयर से बढ़कर 2024 में 6 लाख 71 हजार हेक्टेयर हो गया है। इसका प्रमुख विस्तार अमृतसर, मुक्तसर, फाजिल्का, तरनतारन और संगरूर जिलों में हुआ है। 

यह सफलता दिखाती है कि कम लागत, अधिक मूल्य वाली फसलें न केवल टिकाऊ होती हैं, बल्कि किसानों के लिए भी लाभकारी होती हैं। बासमती कम पानी की जरूरत, प्रत्यक्ष बुवाई की अनुकूलता और कम पराली उत्पादन जैसी विशेषताओं के कारण एक उत्कृष्ट विकल्प है। 

प्रिय छात्रो,

आज, जब आप इस प्रतिष्ठित संस्थान से स्नातक हो रहे हैं, आप इस महान विरासत के उत्तराधिकारी बन रहे हैं और आगामी परिवर्तन की अगुवाई करने के लिए तैयार हैं। 

महात्मा गांधी जी ने कहा था, “भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप आज क्या करते हैं।“ आज जो भी निर्णय आप लेंगे, चाहे वह अनुसंधान, कृषि व्यवसाय, नीति निर्माण या जमीनी स्तर की खेती हो, वे खाद्य सुरक्षा, सतत विकास और ग्रामीण समृद्धि का भविष्य तय करेंगे।

हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग ने सही कहा था, “आप खाली पेट और मानव पीड़ा पर शांतिपूर्ण दुनिया का निर्माण नहीं कर सकते।“ एक कृषि विशेषज्ञ के रूप में आपकी भूमिका यह सुनिश्चित करने की है कि यह नवाचार हर किसान तक पहुंचे, जिससे वे संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर सकें, उत्पादन बढ़ा सकें और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम कर सकें। 

प्राकृतिक संसाधनों की घटती उपलब्धता, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण के बढ़ते संकट के बीच, सतत कृषि अब एक विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन गई है। 

हमने जाने-अनजाने में अधिक कमाने के लालच में अपने प्राकृतिक संसाधनों को अंधाधुंध लूटा है, लेकिन आज गुरु नानक देव जी के संदेश ‘पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत’ की ओर ध्यान देने की जरूरत है, जिसमें गुरू साहिब जी ने पवन को गुरू, पानी को पिता और धरती को माता का दर्जा दिया था। 

इसलिए, आपको ऐसी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना होगा जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखें, जल उपयोग दक्षता को बढ़ाएं और जैव विविधता को संरक्षित करें। 

प्रसिद्ध मृदा वैज्ञानिक डॉ. रतन लाल हमें याद दिलाते हैं, “मिट्टी, पौधों, जानवरों, मनुष्यों और पृथ्वी का स्वास्थ्य, ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।“ भूमि के संरक्षक के रूप में, आपकी जिम्मेदारी है कि आप पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करें। 

मित्रो,

मुझे इस बात की खुशी है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय भविष्य की ओर देखते हुए, पी.ए.यू. सटीक कृषि, जलवायु अनुकूल खेती और तकनीकी नवाचारों को अपनाकर सतत कृषि को बढ़ावा दे रहा है। डिजिटल कृषि पार्क और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित कृषि शिक्षा जैसे नए प्रयासों के माध्यम से, पी.ए.यू. सतत कृषि के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 

प्रिय छात्रो,

दुनिया आपके योगदान की प्रतीक्षा कर रही है। आगे बढ़ें और एक सुनहरा भविष्य विकसित करें! 

जब कृषि समृद्ध होगी, तो भारत न केवल एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरेगा, बल्कि ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ की दिशा में भी मजबूती से आगे बढ़ेगा। 

आपकी सफलता की अनंत शुभकामनाएं! 

धन्यवाद,

जय हिंद!