SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF ANNUAL CELEBRATION OF RAMAKRISHNA MISSION ASHRAMA CHANDIGARH ON MARCH 23, 2025.

रामकृष्ण मिशन आश्रम के वार्षिक उत्सव के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 23.03.2025, रविवारसमयः शाम 06:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

 

नमस्कार!

चंडीगढ़ के रामकृष्ण मिशन आश्रम के इस वार्षिक उत्सव के तीसरे दिवस के समारोह में सम्मिलित होना मेरे लिए न केवल अपार हर्ष का विषय है बल्कि यह मेरे लिए एक गौरव की भी बात है। मुझे बताया गया है कि आज के दिन का कार्यक्रम श्रीरामकृष्ण परमहंस के संदेशों और जीवन पर केंद्रित है। 

मुझे बताया गया है कि रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद जी ने श्रीरामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से 1 मई 1897 को की थी और चंडीगढ़ शाखा की स्थापना 1956 में हुई।

मैं समझता हूं कि रामकृष्ण मिशन और रामकृष्णमठ विश्वव्यापी आध्यात्मिक आंदोलन के मूल आधार हैं। ये मानव के आत्मिक विकास, धर्मों की समन्वयता और निस्वार्थ मानव सेवा के प्रतीक ही नहीं बल्कि पर्याय भी बन चुके हैं। 

आप सब जानते ही होंगे कि जब-जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तब तब मिशन के कर्मठ सन्यासी और समर्पित स्वयंसेवक सबसे पहले अपनी निस्वार्थ सेवा देने पहुंच जाते हैं। 

आपको जानकर हर्ष होगा कि मिशन ने 2018 से एनवायरनमेंट एंड डिजास्टर मैनेजमेंट के मास्टर कोर्स को भी चला रखा है। सर्विस में भी प्रोफेशनलिज्म लाने का उनका प्रयास सचमुच सराहनीय है। 

आज दुनिया भर में रामकृष्ण मिशन की 280 से अधिक शाखाएं हैं और भारत में रामकृष्ण भाव धारा से जुड़े लगभग 1200 आश्रम हैं। ये आश्रम मानवता की सेवा के संकल्प की नींव के रूप में काम कर रहे हैं और चंडीगढ़ लंबे समय से रामकृष्ण मिशन के सेवा कार्यों का साक्षी रहा है।

प्रिय भक्तजनो,

भारत एक ऐसा देश है जो समृद्ध सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत से परिपूर्ण है। हमारी भूमि ऐसे महान लेखकों, विद्वानों, संतों और ऋषियों की जन्मस्थली रही है, जिन्होंने अपने विचारों को स्वतंत्र और निर्भीक रूप से व्यक्त किया। जब भी मानव सभ्यता ने ज्ञान के युग में प्रवेश किया, भारत ने मार्गदर्शन किया।

भारत की मिट्टी वह मिट्टी है, जहाँ से परिवर्तन की शुरुआत हुई। यह परिवर्तन हमारे संतों और महापुरुषों के भीतर से उत्पन्न हुआ, जिन्होंने समाज को सुधारने और उसकी बुराइयों को समाप्त करने के लिए व्यापक जन-आंदोलन चलाए। हम हमेशा नए विचारों के प्रति खुले रहे हैं, और इसी कारण हमारी सभ्यता ने सभी बाधाओं को पार कर एक मजबूत आधार बनाया।

जो सभ्यताएँ समय के साथ नहीं बदलीं, वे समाप्त हो गईं। हमारे संतों ने ऐसे कार्य किए, जो भले ही छोटे लगते हों, लेकिन उनका प्रभाव बहुत बड़ा था और उन्होंने हमारे इतिहास की दिशा बदल दी।

देवियो और सज्जनो,

आज का यह दिन न केवल एक साधारण उत्सव है, बल्कि यह उस दिव्य जीवन का उत्सव है जिसने संपूर्ण मानवता को आध्यात्मिकता, प्रेम, सेवा और त्याग का संदेश दिया।

भारत एक गहरे सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संकट से गुजर रहा था, जहाँ एक ओर धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास और जातिगत भेदभाव था, तो दूसरी ओर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारतीय मूल्यों पर प्रश्न उठाए जा रहे थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के नाम पर धर्म और आध्यात्मिकता को तिरस्कृत किया जा रहा था, जिससे समाज अपने मूल स्वरूप से भटक रहा था।

ऐसे कठिन समय में, भगवान श्रीरामकृष्ण परमहंस का अवतरण बंगाल के कामारपुकुर गांव में हुआ। उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं को पुनर्जीवित किया और यह सिद्ध किया कि सच्चा धर्म बाहरी आडंबर नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा और ईश्वर की अनुभूति का मार्ग है। विभिन्न धार्मिक साधनाएँ करके उन्होंने प्रमाणित किया कि सभी धर्म एक ही परम सत्य की ओर ले जाते हैं।

उनका जीवन साधना, त्याग और ईश्वरीय भक्ति का प्रतीक था। उन्होंने बाल्यकाल से ही दिव्य अनुभव प्राप्त किए और संसार की नश्वरता को समझकर अपना पूरा जीवन ईश्वर की आराधना और साधना में समर्पित कर दिया। 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी के रूप में रहते हुए उन्होंने माँ काली के साक्षात दर्शन किए और यह अनुभव किया कि ईश्वर केवल किसी विशेष मत या पंथ तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर हृदय में विद्यमान है।

उन्होंने समाज को सिखाया कि धार्मिक सहिष्णुता ही सच्ची आध्यात्मिकता है। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश थाः ‘‘यतो मत, ततो पथ’’, अर्थात सभी मत और मार्ग एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई साधना पद्धतियों का अनुसरण कर यह सिद्ध किया कि हर धर्म में वही एक परम सत्य समाहित है।

उनका प्रभाव केवल धार्मिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने आडंबर, अंधविश्वास और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई और सभी को प्रेम और समर्पण के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

श्रीरामकृष्ण जी का जीवन मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने भक्ति, ज्ञान व सेवा के माध्यम से यह सिद्ध किया कि ईश्वर-प्राप्ति संभव है और यही मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए।

भगवान श्रीरामकृष्ण परमहंस का जीवन एक ऐसा प्रकाशमान दीपस्तंभ है, जो सत्य, करुणा और भक्ति के प्रकाश से संपूर्ण विश्व को आलोकित कर रहा है। वे न केवल भारत की आध्यात्मिक धरोहर के संरक्षक थे, बल्कि उनके विचार और सिद्धांत संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं। 

भगवान श्रीरामकृष्ण सभी धर्मों की जीवंत प्रेरणा थे और सनातन सत्य की नवीन अभिव्यक्ति थे। वे बहुत सरल और मधुर भाषा में उपदेश देते थे, लेकिन उनके शब्दों में इतनी गहरी आध्यात्मिक शक्ति होती थी कि सुनने वालों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। 

उनके उपदेश सुनते ही श्रोताओं का संशय, संदेह और अविश्वास दूर हो जाता था और उनके मन में श्रद्धा जाग उठती थी। इस तरह, अपने अलौकिक ज्ञान और प्रेमपूर्ण उपदेशों से उन्होंने अनगिनत लोगों को आध्यात्मिक जीवन की राह दिखाई।

महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘रामकृष्ण परमहंस का जीवन हमें ईश्वर के साक्षात दर्शन कराता है। जो कोई भी उनके जीवन को पढ़ेगा, वह इस सत्य से इंकार नहीं कर सकता कि ईश्वर ही एकमात्र वास्तविकता हैं और शेष सब कुछ माया है।’’

प्रिय भक्तजनो,

हम सभी जानते हैं कि उनके महान शिष्य, स्वामी विवेकानंद ने उनके विचारों को पूरे विश्व में फैलाया और भारत को एक नए आध्यात्मिक जागरण की ओर अग्रसर किया।

मुझे नहीं पता कि आज की युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के भाषणों और लेखन को कितना पढ़ती है, लेकिन मैं यह जरूर कह सकता हूँ कि मेरी पीढ़ी के कई लोग उनसे गहराई से प्रभावित हुए थे। मुझे विश्वास है कि यदि वर्तमान पीढ़ी भी स्वामी विवेकानंद के लेखन और भाषणों को पढ़े, तो वे उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं और यह उनके लिए अत्यंत लाभकारी होगा।

यदि आप स्वामी विवेकानंद के लेखन और भाषणों को पढ़ें, तो एक दिलचस्प बात यह पाएंगे कि वे पुराने नहीं लगते। इसका कारण यह है कि उन्होंने जिन विषयों पर लिखा और बोला, वे जीवन और विश्व की मूलभूत समस्याओं से जुड़े थे। इसीलिए, उनके विचार कभी पुराने नहीं होते, बल्कि जब भी आप उन्हें पढ़ेंगे, वे आपको नवीन और ताज़गीपूर्ण ही लगेंगे।

स्वामी विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण की शिक्षाओं को कितनी सुंदरता से व्यक्त किया जब उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपने गुरु से सीखा कि दुनिया के विभिन्न धर्म परस्पर विरोधी या प्रतिकूल नहीं हैं। वे सभी केवल एक ही शाश्वत धर्म के विभिन्न रूप हैं।’’

यह मिशन आज भी स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं पर आधारित ‘‘नर सेवा ही नारायण सेवा है’’ के महान आदर्श को साकार कर रहा है। शिक्षा, चिकित्सा, गरीबों की सेवा, नैतिक उत्थान एवं आध्यात्मिक उन्नति के क्षेत्र में रामकृष्ण मिशन द्वारा किए गए कार्य अनगिनत लोगों के जीवन को संवार रहे हैं।

वृक्ष के फल की, उसके सामर्थ्य की पहचान उसके बीज से होती है। रामकृष्ण मठ ऐसा वृक्ष है, जिसके बीज में स्वामी विवेकानंद जैसे महान तपस्वी की अनंत ऊर्जा समाहित है। यही कारण है कि यह निरंतर विस्तार कर रहा है और मानवता पर इसकी छाया अनंत और असीमित है।

देवियो और सज्जनो,

आधुनिक समाज विज्ञान और तकनीकी विकास में तीव्र्र गति से आगे बढ़ रहा है, लेकिन इसके साथ-साथ नैतिक पतन, मानसिक तनाव, असंतोष और आत्मिक शून्यता भी बढ़ रही है। ऐसे समय में श्रीरामकृष्ण परमहंस के विचार और उनके आध्यात्मिक अनुभव हमें सही दिशा दिखाने का कार्य कर सकते हैं।

आज का समाज सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए भौतिक संसाधनों पर अत्यधिक निर्भर हो गया है। सफलता को केवल धन, पद और प्रतिष्ठा से मापा जाने लगा है। नैतिकता और आत्मिक संतोष पीछे छूटते जा रहे हैं।

श्रीरामकृष्ण परमहंस ने हमें यह सिखाया कि केवल बाहरी उपलब्धियाँ जीवन का वास्तविक लक्ष्य नहीं हो सकतीं। सच्ची खुशी और संतोष आंतरिक शांति में निहित हैं, जो केवल आध्यात्मिक चेतना और ईश्वर के प्रति समर्पण से प्राप्त हो सकती है। उन्होंने कहा थाः ‘‘धन, संपत्ति और भौतिक सुख अनित्य हैं, लेकिन आत्मा अमर है।’’

उनकी यह शिक्षा हमें याद दिलाती है कि यदि हम केवल भौतिक चीज़ों के पीछे भागेंगे और अपने भीतर झाँकने का प्रयास नहीं करेंगे, तो हम सच्चे आनंद से वंचित रह जाएँगे।

इसके अलावा, आज के समय में धार्मिक भेदभाव, असहिष्णुता और कट्टरता के कारण समाज में कई संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं। ऐसे में श्रीरामकृष्ण परमहंस की ‘‘सर्वधर्म समभाव’’ की शिक्षा अत्यंत प्रासंगिक है। वे कहा करते थेः ‘‘जैसे विभिन्न नदियाँ अलग-अलग मार्गों से बहती हुई अंततः समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही सभी धर्म एक ही परम सत्य की ओर ले जाते हैं।’’

उनका मानना था कि हर धर्म अपना अलग महत्व रखता है।  उसकी अपनी मान्यताएं हैं, उसकी अपनी महानताएं हैं और उसकी अपनी विलक्षणताएं हैं। इसलिए एक धर्म से दूसरे धर्म की तुलना ना करें। हर मत हर संप्रदाय हर धार्मिक मान्यता एक मार्ग है परंतु सभी धर्मों का तत्व एक ही है। मार्गों के बीच कैसा विद्वेष, कैसा तनाव, कैसा टकराव!

उनकी यह सीख आज भी हमें धार्मिक सहिष्णुता, प्रेम और भाईचारे की भावना को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।

आधुनिक जीवन का एक पहलु यह भी है कि आज के युग में लोग जीवन की जटिलताओं में उलझकर ईश्वर, आत्मा और आध्यात्मिकता से दूर होते जा रहे हैं। श्रीरामकृष्ण ने हमें सिखाया कि ईश्वर प्राप्ति किसी जटिल साधना या कठोर तपस्या से नहीं, बल्कि निष्कपट प्रेम और भक्ति से संभव है। वे कहते थेः ‘‘ईश्वर को कोई भी प्राप्त कर सकता है-एक किसान, एक गृहस्थ, एक निर्धन व्यक्ति या एक बालक। बस उसके प्रति प्रेम होना चाहिए।’’

उनका यह विचार उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो मानते हैं कि आध्यात्मिक जीवन केवल साधु-संतों के लिए ही संभव है। श्रीरामकृष्ण ने दिखाया कि संसार में रहते हुए भी हम ईश्वर के करीब जा सकते हैं, बशर्ते हम निष्कपट भक्ति और सच्चे प्रेम से उनकी आराधना करें।

आज के समय में, यदि हम उनके विचारों को अपनाएँ, तो हम न केवल अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं, बल्कि समाज और विश्व में भी शांति, प्रेम और नैतिक मूल्यों की स्थापना कर सकते हैं।

उनकी शिक्षाएँ आज की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई भी है और एक मार्गदर्शन भी है। आज भारत भौतिक विकास, आर्थिक उपलब्धियां और वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचारों में से अग्रणी राष्ट्र में स्थान रखता है। 

हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने की डगर पर निकला भारत इस लक्ष्य को और भी शीघ्रता से प्राप्त कर सकता है यदि हम और आप सभी और पूरा समाज श्रीरामकृष्ण परमहंस जी की अनुपम शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार लें।

इस शुभ अवसर पर, मैं रामकृष्ण मिशन से जुड़े सभी संन्यासियों, कार्यकर्ताओं, श्रद्धालुओं और विद्यार्थियों को अपनी ओर से हार्दिक बधाई देता हूँ और यह कामना करता हूँ कि यह मिशन श्रीरामकृष्ण परमहंस के दिव्य संदेश को जन-जन तक पहुँचाने में निरंतर सफल होता रहे।

 आइए, हम सभी उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें और एक सशक्त, जागरूक, और आध्यात्मिक भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।

धन्यवाद,

जय हिन्द!