SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF MAYO COLLEGES 150TH YEARS CELEBRATION AT CHANDIGARH ON 30.03.2025.

मायो कॉलेज अजमेर के 150 वर्ष पूरे होने पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 30.03.2025, रविवार

समयः शाम 08:30 बजे

स्थानः चंडीगढ़

नमस्कार!

आज इस ऐतिहासिक अवसर पर, आप सभी के समक्ष खड़े होकर मायो कॉलेज के 150 गौरवशाली वर्षों का उत्सव मनाना मेरे लिए अत्यंत गर्व और सौभाग्य की बात है। मैं स्कूल के नेतृत्व को उनकी दूरदर्शिता के लिए बधाई देता हूँ, जिनकी वजह से यह संस्थान निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।

मायो कॉलेज, जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक पब्लिक स्कूलों में से एक है, की स्थापना 1875 में हुई थी। 1870 में, तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मायो ने अजमेर में ‘राजकुमार कॉलेज’ की स्थापना का विचार प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य शाही परिवारों के युवराजों को उच्च स्तरीय शिक्षा देना था। इस प्रतिष्ठित संस्थान के पहले छात्र अलवर के महाराजा मंगल सिंह थे, और इसके पहले प्रधानाचार्य के रूप में सर ओलिवर सेंट जॉन नियुक्त किए गए।

हर्ष का विषय है कि आज, यह संस्थान न केवल आधुनिक सुविधाओं के साथ उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि अपने छात्रों को नेतृत्व, अनुशासन और सर्वांगीण विकास के लिए प्रेरित करता है, जिससे वे वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकें।

मैं समझता हूं कि यह केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति और नेतृत्व की विरासत है। एक ऐसा प्रकाश स्तंभ, जिसने पीढ़ी दर पीढ़ी अनेकों नेताओं, विद्वानों, दूरदर्शी व्यक्तियों और समाज के परिवर्तनकारी व्यक्तित्वों को गढ़ा है।

150 वर्षों की यह यात्रा केवल समय का माप नहीं, बल्कि संस्कारों, मूल्यों और उत्कृष्टता की परंपरा का सजीव उदाहरण है। मायो कॉलेज की नींव जिन आदर्शों पर रखी गई थी, वे आज भी इसकी हर ईंट में समाए हुए हैं। यह संस्थान न केवल शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि अपने विद्यार्थियों को चरित्र, अनुशासन, सेवा और नेतृत्व के गुणों से भी परिपूर्ण करता है।

यह गर्व का विषय है कि यहाँ के हर छात्र में साहस, संकल्प और आत्मविश्वास का बीज डाला जाता है, जो आगे चलकर एक विशाल वटवृक्ष बनता है, जिसकी छाया में समाज को एक नई दिशा मिलती है।

मायो कॉलेज परंपरा और आधुनिकता का संगम है, जहाँ विद्यार्थियों को न केवल अपनी संस्कृति और विरासत से जोड़कर रखा जाता है, बल्कि उन्हें नवाचार और वैश्विक दृष्टिकोण से भी सशक्त किया जाता है।

मायो कॉलेज ने देश को अनेकों महान व्यक्तित्व दिए हैं, जिन्होंने व्यापार, राजनीति, सेना, खेल, कला और अन्य क्षेत्रों में इतिहास रचा है। यहां सिखाई गई शिक्षाएं केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह विद्यार्थियों को चरित्र, दृष्टि और संकल्प की मजबूत नींव प्रदान करती हैं।

आज जब हम इस गौरवशाली संस्थान के 150 वर्षों की यात्रा पर नजर डालते हैं, तो हमें गर्व होता है कि यह संस्थान न केवल भारत के शैक्षिक परिदृश्य में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुका है। 

देवियो और सज्जनो,

मुझे इस बात का गर्व है कि मेरा नाती भी एक मायो छात्र है, और इसलिए, मैं इस संस्थान से गहरा जुड़ाव महसूस करता हूँ। यह देखकर अत्यंत हर्ष होता है कि वह भी ईमानदारी, नेतृत्व और अनुशासन के आदर्शों को आत्मसात कर रहा है, जो पिछले डेढ़ शताब्दी से मायो कॉलेज की पहचान रहे हैं।

इस विद्यालय के पूर्व छात्र (एलुमनाई) इसकी असली शक्ति हैं। उन्होंने न केवल आर्थिक सहयोग से बल्कि अपने अमूल्य समय और मार्गदर्शन से भी संस्थान को सशक्त किया है। उनके योगदान ने आधारभूत संरचना के विकास, छात्रवृत्ति सहायता और छात्रों के लिए एक समृद्ध शैक्षिक वातावरण तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी प्रेरणा से नए मायो छात्र बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने का साहस प्राप्त करते हैं।

मुझे बताया गया है कि 150वीं वर्षगांठ के इस विशेष अवसर पर, पूर्व छात्र आर्थिक सहायता के साथ-साथ अपने समय और अनुभव से भी योगदान दे रहे हैं। उन्होंने चंडीगढ़ में इस आयोजन को भव्य बनाने के लिए जो समर्पण, ऊर्जा और संसाधन लगाए हैं, वह सराहनीय है। इसी तरह, दुनिया भर में हर मायो एलुमनाई चैप्टर इस ऐतिहासिक वर्ष को हर्षोल्लास से मना रहा है।

देवियो और सज्जनो,

भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहाँ शिक्षा का इतिहास संपूर्ण मानव सभ्यता के विकास से जुड़ा हुआ है। हमारी शिक्षा प्रणाली की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं, और यह न केवल ज्ञान के प्रचार-प्रसार का माध्यम रही है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपराओं और समाज के मूल्यों की संरक्षक भी रही है।

यदि हम प्राचीन भारत की बात करें, तो हमें विश्वप्रसिद्ध गुरुकुल प्रणाली का स्मरण होता है। गुरुकुलों में शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह एक व्यापक जीवनशैली थी, जहाँ शिष्य नैतिकता, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और जीवन कौशल सीखते थे।

तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान दुनिया के लिए ज्ञान के केंद्र थे। यहाँ न केवल भारत बल्कि विदेशों से भी छात्र अध्ययन के लिए आते थे। गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, राजनीति, युद्धशास्त्र, कला और दर्शन जैसे विषयों में उच्च स्तरीय शिक्षा दी जाती थी। यह वह समय था जब भारत विश्वगुरु कहलाता था और पूरी दुनिया यहाँ के ज्ञान से लाभान्वित होती थी।

लेकिन मध्यकालीन भारत में शिक्षा प्रणाली में कुछ बदलाव आए। मुग़लों और अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत की परंपरागत शिक्षा प्रणाली को कमजोर किया गया और पारंपरिक ज्ञान को हाशिए पर डाल दिया गया। 

हालाँकि, ब्रिटिश शासनकाल में ही भारतीय पुनर्जागरण की शुरुआत भी हुई, और राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, महात्मा फुले और अन्य समाज सुधारकों ने नारी शिक्षा और आधुनिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

देवियो और सज्जनो,

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी शिक्षा प्रणाली को नवाचार और वैज्ञानिक सोच के साथ विकसित करने का प्रयास किया है। 1968, 1986 और 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों ने शिक्षा प्रणाली में समानता, व्यावहारिकता और समावेशिता को बढ़ावा दिया।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIMs), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना हुई, जिससे भारत को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयाँ मिलीं।

देवियो और सज्जनो,

भारतीय संस्कृति और दर्शन का विश्व में बड़ा प्रभाव रहा है। वैश्विक महत्व की इस समृद्ध विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए न सिर्फ सहेज कर संरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था द्वारा उस पर शोध कार्य होने चाहिए, उसे और समृद्ध किया जाना चाहिए और नए-नए उपयोग भी सोचे जाने चाहिए।

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘‘शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे न केवल व्यक्ति अपना जीवन संवार सकता है, बल्कि पूरे विश्व में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।’’

यह कथन इस तथ्य को रेखांकित करता है कि शिक्षा केवल ज्ञान अर्जन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को जागरूक, आत्मनिर्भर और सशक्त बनाकर समाज में सार्थक परिवर्तन लाने की क्षमता प्रदान करती है। शिक्षा के माध्यम से हम रूढ़ियों को तोड़ सकते हैं, गरीबी को मिटा सकते हैं, और एक समावेशी व समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं। सही दिशा में प्रयुक्त शिक्षा न केवल व्यक्तिगत उन्नति का साधन है, बल्कि यह राष्ट्रों की प्रगति और वैश्विक शांति की नींव भी रखती है।

आज भारत वैश्विक शिक्षा क्षेत्र में बड़ी ताकत है। फिर भी वैश्विक शैक्षणिक नेतृत्व के शिखर पर पहुंचने के लिए भारत को ढेर सारी चुनौतियों से निपटने की जरूरत है। 

करीब 15 लाख स्कूलों, 40 हजार से ज्यादा कॉलेजों और 1 हजार से ज्यादा विश्वविद्यालयों वाले भारत का शिक्षा तंत्र करीब 30 करोड़ छात्रों की जरूरत पूरी करता है। इस तरह वह विश्व के सबसे बड़े शैक्षणिक तंत्र में से एक है।

संयोग से शिक्षा और कौशल विकास में फिर से जान फूंकने का ब्लूप्रिंट राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के रूप में सामने है। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा, संस्कृति और कौशल का सुमेल है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत सर्वांगीण शिक्षा, व्यावसायिक कौशल, मातृभाषा में शिक्षा और डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा दिया गया है, जिससे भविष्य में भारत को एक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाया जा सके।

देवियो और सज्जनो,

आज भारत दुनिया में सबसे युवा देश है, और हमारे युवाओं को यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सही मार्गदर्शन मिले, तो हम विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बन सकते हैं। हमें शिक्षा को सिर्फ अंक और डिग्रियों तक सीमित नहीं रखना है, बल्कि इसे रचनात्मकता, नवाचार और शोध से जोड़ना होगा।

आज के स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहलें तभी सफल होंगी, जब हमारी शिक्षा प्रणाली इन अभियानों का समर्थन करेगी।

देखा जाए तो, भारत की शिक्षा प्रणाली ने प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक एक लंबा सफर तय किया है। यह गर्व की बात है कि हमने अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक को एक साथ जोड़कर एक मजबूत शिक्षा प्रणाली बनाई है।

अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे और अधिक समावेशी, व्यावहारिक और नवाचारपूर्ण बनाएँ, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ केवल रोजगार पाने वाले नहीं, बल्कि रोजगार देने वाले बनें।

साथियो, शिक्षा ही सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र की नींव है। हमारे पुराणों में कहा गया हैः

‘‘विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।’’

अर्थात्, विद्या से विनम्रता आती है, विनम्रता से योग्यता, योग्यता से धन और धन से धर्म व अंततः सुख प्राप्त होता है।

इस श्लोक का सार यह है कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन को संवारने, चरित्र निर्माण करने, और अंततः समाज व राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित करने का एक साधन है।

यदि हम इस श्लोक को अपने जीवन में अपनाएं, तो हम न केवल व्यक्तिगत रूप से सफल होंगे, बल्कि एक सशक्त, संतुलित और समृद्ध समाज का निर्माण भी कर सकेंगे।

देवियो और सज्जनो,

आज, जब हम मायो कॉलेज के 150 वर्षों की सफलता का जश्न मना रहे हैं, तो यह मील का पत्थर हमें न केवल अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, बल्कि हमें एक उज्ज्वल भविष्य के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता का भी स्मरण कराता है।

हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम शिक्षा को केवल ज्ञान प्राप्ति का साधन न बनाकर, इसे राष्ट्र निर्माण का आधार बनाएँ।

इस ऐतिहासिक अवसर पर, हम सभी को मायो कॉलेज की इस समृद्ध परंपरा और उज्ज्वल भविष्य को संजोए रखने और इसे और भी ऊँचाइयों तक पहुँचाने का संकल्प लेना चाहिए। 

यह 150 वर्षों की उपलब्धियाँ न केवल अतीत की गाथाएं हैं, बल्कि भविष्य के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन भी हैं।

मैं इस प्रतिष्ठित संस्थान के समस्त सदस्यों को इस महत्वपूर्ण अवसर पर हार्दिक बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि मायो कॉलेज आने वाले वर्षों में भी शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयाँ छूता रहेगा। 

धन्यवाद, 

जय हिन्द!