SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF 6TH RAJESHWARI KALA UTSAV AT JALANDHAR ON APRIL 2, 2025.
- by Admin
- 2025-04-03 12:20
6वें राजेश्वरी कला महोत्सव के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 02.04.2025, बुधवार समयः शाम 5:30 बजे स्थानः जालंधर
नमस्कार!
आज इस ‘राजेश्वरी कला महोत्सव’ के 6वें संस्करण और ‘राजेश्वरी कला संगम एवं एपीजे कॉलेज आफ फाइन आर्ट्स जालंधर’ की स्वर्ण जयंती के शुभ अवसर पर आने का अवसर मिला जिसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं।
2 से 5 अप्रैल तक चलने वाला यह महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय कला, संस्कृति और सृजनात्मकता का उत्सव है। मैं इस अवसर पर इस प्रतिष्ठित संस्थान को बधाई देता हूँ, जिसने कला के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है और युवा पीढ़ी को उनके रचनात्मक और कलात्मक सपनों को साकार करने के लिए एक मंच प्रदान किया है।
मुझे बताया गया है कि राजेश्वरी कला संगम की स्थापना स्वर्गीय डॉ. सत्यपाल जी ने अपनी धर्मपत्नी स्वर्गीय श्रीमती राजेश्वरी पॉल जी की स्मृति में वर्ष 1975 में की थी।
डॉ सत्यपाल जी ने नई सोच वाले कलाकारों की कल्पना को एक खुला आकाश देने हेतु एक ही छत के नीचे टेक्नोलॉजी और ललित कलाओं के संगम की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए एपीजे सत्या यूनिवर्सिटी सोहना गुरुग्राम की नींव डाली।
इसके अलावा, इस प्रतिष्ठित संस्थान के अन्तर्गत चरखी दादरी हरियाणा के छोटे से कस्बे में केवल महिलाओं के लिए खोला गया कॉलेज नारी सशक्तिकरण की गहन सोच को दर्शाता है।
मैं समझता हूं कि डॉ. सत्यपाल जी दूरदृष्टि वाले महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण, शिक्षा उत्थान और नारी सशक्तिकरण को दशकों पहले ही अपनी प्राथमिकता बनाया और एपीजे जैसी उच्च कोटि की संस्थाओं की स्थापना की।
उन्होंने एक तरफ शिक्षा जगत में विशिष्ट पहचान बनाई तो दूसरी तरफ एक सफल उद्यमी के रूप में राष्ट्र-निर्माण में भी अपना योगदान दिया।
ललित कलाओं को जनमानस तक पहुंचाने की उनकी गहन रुचि ने ही आज एपीजे संस्थाओं को फाइन आर्ट्स एवं परफॉर्मिंग आर्ट्स के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के योग्य बनाया है।
हर्ष व गर्व का विषय है कि आज, एपीजे ऐजूकेशन संगठन के अंतर्गत देशभर में लगभग 26 शिक्षण एवं अन्य क्षेत्रों से संबंधित संस्थान सक्रिय रूप से कार्यशील हैं। इन संस्थानों का संचालन डॉ. सत्यपाल जी की सुपुत्री, श्रीमती सुषमा पॉल जी के कुशल नेतृत्व में निरंतर सफलता की ओर अग्रसर है।
मुझे बताया गया है कि श्रीमती सुषमा पॉल जी के मार्गदर्शन में यह कॉलेज NAAC द्वारा 'A+' ग्रेड हासिल कर चुका है। यह संस्थान, ‘कॉलेज विद पोटेंशियल फॉर एक्सीलेंस (College With Potential for Excellence) और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन, (UGC) नई दिल्ली द्वारा ‘परामर्श योजना’ के अंतर्गत ‘मेंटर कॉलेज’ (Mentor College) के सम्मान से सम्मानित हो चुका है।
बात यहीं खत्म नहीं होती मैंने यह भी जाना की सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी करते हुए इस संस्था के विद्यार्थियों ने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में जोनल, इंटर जोनल की निरंतर 24 बार चैंपियनशिप ट्रॉफी पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है और इसके साथ ही गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करते हुए निरंतर 12 वर्ष राष्ट्रीय युवा महोत्सव में चैंपियनशिप ट्रॉफी जीत कर अपनी विजय का शंखनाद किया है।
हर्ष का विषय है कि यहां भारत सरकार की ‘दीनदयाल उपाध्याय कौशल केंद्र’ योजना के अंतर्गत रोजगार देने में समर्थ 10 कौशल आधारित कोर्सेज भी चलाए जा रहे हैं। जिस एनईपी 2020 के अंतर्गत आज शिक्षण संस्थानों में कौशल आधारित पाठ्यक्रमों को जोड़ने की बात की जा रही है वह एपीजे की मूल संरचना में पहले से ही समाहित है।
‘सॉरिंग हाई इज़ माई नेचर’ (ऊंची उड़ान भरना मेरा स्वभाव है) के जिस पावन उद्देश्य को लेकर विद्यार्थियों को अच्छा इंसान बनाने के साथ-साथ प्रोफेशनली सफल बनाने की जो प्रक्रिया चल रही है वह वास्तव में दूसरों को भी प्रेरणा देने वाली है।
देवियो और सज्जनो,
मैं समझता हूं कि ललित कलाओं एवं प्रदर्शन कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर ‘राजेश्वरी कला संगम’ के रूप में जिस पौधे को आरोपित किया गया था आज एपीजे कॉलेज आफ फाइन आर्टस के रूप में वह पुष्पित एवं पल्लवित हो रहा है। मुझे प्रसन्नता इस बात की है कि जो सोच इस संस्था के निर्माण की नींव बनी थी 50 वर्षों की स्वर्णिम यात्रा में वह सोच कहीं भी छूटी नहीं है।
जिस तरह अपनी स्वर्णिम यात्रा में एपीजे एजुकेशन सोसायटी ने ललित कलाओं को अपने शिक्षण संस्थानों में तो प्रचारित प्रसारित किया ही, इसके साथ ही ललित कला अकादमी, नई दिल्ली एवं अन्य कला-अकादमियों के सहयोग से एक विस्तृत पटल पर जन-जन एवं कण-कण तक इन कलाओं को पहुंचाने का जो प्रयास किया है, वह वास्तव में सराहनीय है।
मैं समझता हूं कि एपीजे एजुकेशन द्वारा डॉ सत्यपाल आर्ट गैलरी जालंधर की स्थापना का उद्देश्य ही ललित कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन है। इसके अलावा 100 से भी अधिक प्रतिष्ठित कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स, स्कल्पचर्स, म्यूरल्स, ड्राइंग्स आदि कला रूपों की डॉक्यूमेंटेशन देखकर मैं स्तंभित हूं।
निश्चित रूप से इसका पावन उद्देश्य इस धरोहर को जहां एक तरफ भावी पीढ़ी के लिए सहेज कर रखना है वहीं दूसरी तरफ कलाविशेष के शोधार्थियों के लिए भी यह डॉक्यूमेंटेशन रोशनी की किरण का कार्य करेगी।
छठे राजेश्वरी कला महोत्सव, राजेश्वरी कला संगम और एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स की स्वर्ण जयंती में लुप्त होती जा रही कलाओं वरलीआर्ट, गोंड आर्ट, मिनिएचर पेंटिंग, मधुबनी पेंटिंग, खरड़ वीविंग, पिपली, पॉटरी, टेराकोटा स्कल्पचर्स ब्लॉक प्रिंटिंग, वुड कार्विंग, एवं वुड इनले आदि को फिर से जीवंत करने का, युवा पीढ़ी को इसके महत्व से परिचित करवाने का और जनमन तक इसे पहुंचाने का जो सराहनीय प्रयास किया जा रहा है, उसकी तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।
मेरा मन यह जानकर भी उल्लास से भर उठा कि भारत भर के विभिन्न प्रदेशों जैसे उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, दिल्ली एवं हिमाचल से पद्मश्री जैसे श्रेष्ठ सम्मान से सम्मानित प्रख्यात कलाकार भी इस स्वर्ण जयंती समारोह का हिस्सा बनने जा रहे हैं।
एपीजे कॉलेज की स्वर्णिम यात्रा के सफर में यहां आये श्रेष्ठ कलाकारों की कलाकृतियों को जिस तरह सहेज कर यहां प्रदर्शनी लगाई गई है, वह वास्तव में प्रशंसनीय है।
दूसरी तरफ कॉलेज के प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों की जो प्रदर्शनी लगाई गई है, जिसे सेल के लिए रखा गया है, और उस आमदनी का प्रयोग दान के लिए किया जाएगा, यह बात मेरे मन को छू गई की एपीजे कॉलेज अपने सामाजिक सरोकारों को भी बहुत जिम्मेदारी से निभा रहा है।
इस चार दिवसीय अंतरराज्यीय क्राफ्ट मेले के बारे में मुझे जानकर बहुत उल्लास हुआ, निश्चित रूप से यह मेला महाकुंभ की भांति रहेगा जिसमें भारत भूमि के विभिन्न राज्यों की कलाओं का संगम होगा।
इस आर्ट एंड क्राफ्ट मेले में जहां एक तरफ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, कलात्मक धरोहर की झलकियां दिखेंगी वहीं दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी पुराने कलारूपों की सुंदरता को भी समझ सकेगी। इस अंतरराज्यीय क्राफ्ट मेले में निश्चित रूप में एपीजे की दूरदर्शिता की झलक मिल रही है।
राजेश्वरी कला संगम एवं एपीजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स जिस प्रकार 10 वर्ष से अधिक आयु के उभरते हुए कलाकारों के लिए मधुबनी, वरली, गोंडा, मिनिएचर पेंटिंग की वर्कशॉप लगा रहा है उसके लिए मैं आपको साधुवाद देना चाहता हूं।
यह भी हर्ष का विषय है कि पंजाब भर से कलाकारों के लिए आप गायन और नृत्य की प्रतियोगिताएं करवा रहे हैं जिसमें जीतने वाले प्रतिभागियों को नगद राशि और प्रमाण पत्र भी आप प्रदान करेंगे।
देवियो और सज्जनो,
भारत की पहचान उसकी समृद्ध कला और सांस्कृतिक धरोहर से होती है। ललित कलाएँ हमारे इतिहास, परंपरा और सभ्यता को एक अनोखे अंदाज में व्यक्त करती हैं। चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य, नाटक और साहित्य, ये सभी कला के ऐसे आयाम हैं जो न केवल हमें संवेदनशील बनाते हैं, बल्कि समाज को दिशा भी प्रदान करते हैं।
हमारी भारतीय संस्कृति में यह कहा गया हैः
‘‘साहित्य, संगीत, कला विहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छ विषाण हीनः।’’
अर्थात, जो व्यक्ति साहित्य, संगीत और कला से वंचित है, वह पशु के समान है। इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि कला केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि यह मानव जीवन को अर्थ और उद्देश्य प्रदान करती है।
आज का यह कला महोत्सव, उन युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने का एक सुनहरा अवसर है, जो अपनी सृजनात्मकता और कल्पनाशीलता के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का सामर्थ्य रखते हैं। मुझे विश्वास है कि यहाँ के विद्यार्थी, शिक्षक और कलाकार भारत की समृद्ध कला को आधुनिक युग के साथ जोड़ते हुए एक नई ऊँचाई तक ले जाने में सक्षम होंगे।
इस आयोजन के माध्यम से हम न केवल कला को प्रोत्साहित कर रहे हैं, बल्कि यह भी संदेश दे रहे हैं कि कला केवल कैनवास पर उकेरी गई आकृति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक शैली है। यह हमारी भावनाओं, विचारों और संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने का सबसे प्रभावी माध्यम है।
हमें न केवल हमारी प्राचीन कलाओं को संरक्षित करना है, बल्कि युवा कलाकारों को नए अवसर और मंच भी देने हैं, ताकि वे अपने कौशल का प्रदर्शन कर सकें और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकें।
देवियो और सज्जनो,
आज जब हम इस महोत्सव में कला और संस्कृति का उत्सव मना रहे हैं, यह आवश्यक है कि हम अपनी इन कलाओं की शक्ति को पहचानें और इसका उपयोग समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए करें।
इस महोत्सव का उद्देश्य न केवल कला और संस्कृति को बढ़ावा देना है, बल्कि इसके माध्यम से हम अपने आने वाली पीढ़ियों को अपनी समृद्ध धरोहर से जोड़ना चाहते हैं। आज, जब हम तेजी से बदलते युग में प्रवेश कर रहे हैं, यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूती से थामे रहें।
आज यहाँ आप सभी की उपस्थित इस बात का प्रमाण है कि पंजाब की सांस्कृतिक धारा में एक नवीन ऊर्जा का संचार हो रहा है, और मैं इससे अत्यंत प्रसन्न हूँ। इस तरह के प्रयास युवाओं में रचनात्मकता का संचार करते हैं और उनके भीतर छिपी प्रतिभाओं को उजागर करने का अवसर प्रदान करते हैं।
साथियो,
आज का भारत अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर तेजी से अग्रसर है। हम केवल आर्थिक या तकनीकी प्रगति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं। हमारे लक्ष्य भगवान शिव के त्रिशूल की तरह तीन मुख्य संकल्पों पर आधारित हैं - ‘विकसित भारत’, ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘विश्वगुरु भारत’।
ये तीन संकल्प केवल सरकार की नीतियों से ही नहीं, बल्कि हर नागरिक के सामूहिक प्रयासों से ही पूरे होंगे। स्वतंत्रता के 100वें वर्ष 2047 तक, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत विश्व मंच पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाए। इसके लिए हमें शिक्षा, नवाचार, तकनीकी विकास, उद्यमिता और सामाजिक समरसता को प्राथमिकता देनी होगी।
आइए, हम सभी मिलकर इन संकल्पों को साकार करने के लिए पूरी निष्ठा से कार्य करें और भारत को एक समृद्ध, आत्मनिर्भर और वैश्विक ज्ञान केंद्र बनाने की दिशा में योगदान दें। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति होगी!
अंत में मैं आपको स्वर्ण जयंती के अवसर की शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि आप इसी तरह अपनी प्लेटिनम जुबली भी इतने ही हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे और इसी तरह मानवीय मूल्यों की पताका फहराते हुए कलाओं के विकास में अपना योगदान देते रहेंगे और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।
मुझे विश्वास है कि यह उत्सव हमें एक नई दिशा देगा, और संस्कृति और कला के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगा।
इसी शुभकामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!