SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SANATAN TRIVENI MAHOTSAV AT CHANDIGARH ON MARCH 23, 2025.

सनातन त्रिवेणी महोत्सव के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 23.03.2025,  रविवारसमयः सुबह 11:15 बजे    स्थानः चंडीगढ़

    

नमस्कार!

मैं स्वयं को अत्यंत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि आज ‘‘सनातन त्रिवेणी महोत्सव’’ (श्रीमद् भागवत, श्रीमद् गीता और श्रीरामायण) के इस पावन अवसर पर उपस्थित होकर आप सभी से संवाद स्थापित करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। 

यह महोत्सव हमारी सनातन संस्कृति, आध्यात्मिक चेतना और हिंदू सभ्यता के गौरवशाली स्वरूप को पुनः जागृत करने का एक अनुपम अवसर है। मैं इस आयोजन के लिए विश्व हिंदू परिषद, चंडीगढ़ के समस्त पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को हृदय से बधाई देता हूँ।

आज इस पावन अवसर पर उपस्थित होकर मैं सर्वप्रथम विश्व वंदनीय धर्माचार्य परम पूज्य गोस्वामी श्री द्वारकेश लालजी महाराज श्री को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूँ।

यह अत्यंत गर्व और आनंद का विषय है कि श्री अरविंद मोदगिल, अध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद, चंडीगढ़ द्वारा प्रथम बार आयोजित ‘सनातन त्रिवेणी महोत्सव’ को वैष्णवी परंपरा के महान धर्माचार्य, परम पूज्य गोस्वामी श्री द्वारकेश लालजी महाराज श्री की दिव्य वाणी से सुवासित किया जा रहा है। 

मुझे बताया गया है कि परम पूज्य गोस्वामी श्री द्वारकेश लालजी महाराज जी षष्ठपीठ वडोदरा में पीठाधीश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो श्री विट्ठल नाथ जी गुसाईंजी के द्वारा स्थापित सात पीठों में से एक है।

बहुत ही कम उम्र से पूज्य श्री ने एक प्रेरणादायक धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नेतृत्व किया है। आप युवाओं और बुजुर्गों के लिए मार्गदर्शक शक्ति होने के साथ-साथ समाज के वंचित वर्गों के लिए एक मजबूत सहारा बने हुए हैं।

इनको कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 2015 का प्रतिष्ठित ग्लोरी ऑफ गुजरात, लोकरत्न पुरस्कार, गुजरात गौरव पुरस्कार आदि पुरस्कार शामिल हैं। सन् 2000 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व शांति के लिए आयोजित धर्मसभा सम्मेलन का हिस्सा बने।

पूज्य श्री आज भी पूरे विश्व में अथक परिश्रम और अटूट उत्साह के साथ यात्रा कर रहे हैं, ताकि हिंदू धर्म और पुष्टिमार्ग के सिद्धांतों को संरक्षित और प्रचारित किया जा सके। वे धार्मिक संस्थानों, आध्यात्मिक प्रवचनों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, मानव सेवा परियोजनाओं और शिक्षा के माध्यम से समाज को आध्यात्मिक जागृति प्रदान कर रहे हैं। उनके इस महान कार्य के लिए मैं उनका हृदय से नमन एवं कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।

देवियो और सज्जनो,

विश्व हिंदू परिषद की बात करें तो इसकी स्थापना 29 अगस्त 1964 को की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज की एकता, संस्कृति की रक्षा और धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ाना था। यह संगठन संपूर्ण विश्व में हिंदू धर्म, संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत है।

इस संगठन की बुनियाद ‘‘धर्मो रक्षति रक्षितः’’ के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ है, जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। हिंदू समाज को संगठित करना, उसकी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करना और धर्मांतरण जैसी चुनौतियों से बचाने के लिए यह संगठन निरंतर प्रयासरत है।

हमें गर्व होना चाहिए कि यह संगठन ‘‘वसुधैव कुटुंबकम्’’ के विचार को आगे बढ़ाते हुए पूरी दुनिया को एकता, प्रेम और मानवता का संदेश दे रहा है। परिषद केवल हिंदू समाज के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में शांति और सद्भावना स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

मैं यही कहना चाहूँगा कि विश्व हिंदू परिषद केवल एक संगठन नहीं, बल्कि यह हिंदू संस्कृति, धर्म और मूल्यों की पुनर्स्थापना का एक अभियान है। हमें इसे और अधिक सशक्त बनाना है और समाज में इसकी भूमिका को और प्रभावी बनाना है। यदि हम सभी संगठित होकर आगे बढ़ेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को एक सशक्त, गौरवशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत सौंप सकेंगे।

देवियो और सज्जनो,

इस सनातन त्रिवेणी महोत्सव के माध्यम से श्रद्धालुजनों और समुदाय को हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख स्तंभ माने जाते श्रीमद् भागवत, श्रीमद् भगवद् गीता और रामायण की गूढ़ शिक्षाओं से अवगत कराया जाएगा। इन पवित्र ग्रंथों में न केवल धर्म और आध्यात्म का ज्ञान निहित है, बल्कि वे जीवन के आदर्श मूल्यों, कर्तव्यों और सदाचार का भी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

भगवान विभिन्न अवतारों में प्रकट होकर मानवता की रक्षा करते हैं और अधर्म का नाश कर धर्म की पुनः स्थापना करते हैं।

श्रीमद् भागवत, जिसे महर्षि वेदव्यास ने रचित किया, भगवान की विविध लीलाओं और उनकी भक्ति मार्ग की महिमा का वर्णन करता है। यह ग्रंथ हमें प्रेम, भक्ति और परमात्मा से जुड़ने का मार्ग दिखाता है।

श्रीमद् भगवद् गीता, जो महाभारत का एक महत्वपूर्ण अंश है, में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म, धर्म और ज्ञान का दिव्य उपदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य को निष्काम कर्मयोग का पालन करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।

रामायण, जिसे महर्षि वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी दिव्य वाणी से अमर कर दिया, भगवान श्रीराम के जीवन का आदर्श प्रस्तुत करता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने सत्य, कर्तव्य, सेवा, त्याग और आदर्श शासन का सर्वोत्तम उदाहरण स्थापित किया।

भगवान श्रीराम ने अपने जीवन द्वारा यह सिद्ध किया कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि एक उच्च जीवन पद्धति है। उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग, जाति और वर्ण के बीच समरसता और समानता स्थापित करने का कार्य किया।

इस महोत्सव के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि सनातन धर्म केवल उपदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की वह कला है, जो सत्य, प्रेम, सदाचार, और करुणा पर आधारित है।

इन सभी विषयों पर परम पूज्य महाराज श्री के मननीय प्रवचन आप सभी प्रबुद्ध श्रोतागण सुनकर आनंद प्राप्त कर उसका अनुसरण करें।

देवियो और सज्जनो,

भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक सनातन जीवनशैली है। यह भूमि ऋषियों, मुनियों और अवतारों की रही है, जिन्होंने अपने तप, ज्ञान और साधना से पूरी मानवता को सत्य, धर्म और करुणा का मार्ग दिखाया। सनातन धर्म वह शाश्वत ज्योति है, जो युगों-युगों से सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशमान करती आई है।

हमारी संस्कृति ‘‘सत्यमेव जयते’’ की संस्कृति है। यह वह संस्कृति है, जिसने ‘‘वसुधैव कुटुंबकम्’’ का उद्घोष कर समस्त विश्व को एक परिवार मानने का संदेश दिया। यह वह संस्कृति है, जिसने योग, ध्यान, वेदांत, उपनिषद, गीता, रामायण और महाभारत के माध्यम से संपूर्ण मानवता को आध्यात्मिकता, नैतिकता और आत्मबोध का मार्ग दिखाया।

इस महोत्सव का नाम ‘‘सनातन त्रिवेणी महोत्सव’’ अत्यंत सार्थक और प्रेरणादायक है। त्रिवेणी संगम की तरह, सनातन धर्म भी धर्म, अध्यात्म और राष्ट्रभक्ति के तीन महत्वपूर्ण मूल्यों पर आधारित है।

धर्मः हमारे जीवन का आधार धर्म है। धर्म का अर्थ केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि कर्तव्य, नैतिकता और सत्य के मार्ग पर चलना है। यह केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे आचरण, व्यवहार और जीवन मूल्यों से जुड़ा है।

अध्यात्मः सनातन संस्कृति हमें सिखाती है कि मनुष्य केवल शरीर नहीं, बल्कि आत्मा है। जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष की प्राप्ति है। हमारी संस्कृति ने योग, ध्यान और भक्ति के माध्यम से आत्मविकास का मार्ग प्रशस्त किया।

राष्ट्रभक्तिः सनातन धर्म ने हमें यह सिखाया है कि राष्ट्र सर्वोपरि है। श्रीराम, श्रीकृष्ण, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, स्वामी विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस जैसे महान विभूतियों ने धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया। आज हमें उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है।

आज जब विश्व भौतिकवाद और उपभोक्तावाद की ओर तेजी से बढ़ रहा है, तब सनातन धर्म की शिक्षाएँ और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं। यह धर्म हमें संतुलित जीवन जीने, प्रकृति का सम्मान करने, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और आत्मज्ञान की प्रेरणा देता है।

विज्ञान और तकनीकी उन्नति के इस युग में भी यदि हमें मानसिक शांति और स्थायी सुख की प्राप्ति करनी है, तो हमें अपने आध्यात्मिक मूल्यों की ओर लौटना होगा। श्रीमद् भगवद्गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन प्रबंधन का अद्वितीय मार्गदर्शन है।

आज पूरा विश्व भारतीय ज्ञान और संस्कृति की ओर आशाभरी दृष्टि से देख रहा है। योग, आयुर्वेद, वेदांत, ध्यान और भारतीय दर्शन को पूरे विश्व ने अपनाना शुरू कर दिया है। यह हमारी संस्कृति की महानता का प्रमाण है। हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस सनातन परंपरा के वाहक हैं, जिसने संपूर्ण मानवता को शांति, सहअस्तित्व और समभाव का मार्ग दिखाया है।

आज जब भारत विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है, तब हमें हमारे ग्रंथों में निहित शिक्षाओं को अपनाते हुए अपने कर्तव्यपथ पर अडिग रहना होगा। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैः

‘‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।’’

अर्थात, इस संसार में ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र चीज नहीं है।

इसलिए हमें ज्ञान प्राप्त करने, इसे जीवन में उतारने और अपने कर्मों द्वारा समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए समर्पित होने की आवश्यकता है।

आज हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने सनातन मूल्यों और विरासत को न केवल स्वयं अपनाएँगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक इसे पहुँचाने का कार्य भी करेंगे। 

इसके लिए हमें अपने धर्मशास्त्रों, ग्रंथों और उपनिषदों का अध्ययन करना होगा। अपनी संस्कृति के प्रति गौरव और सम्मान की भावना जागृत करनी होगी। भारतीय मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में आत्मसात करना होगा। संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रभक्ति को अपने बच्चों तक पहुँचाना होगा।

‘‘सनातन त्रिवेणी महोत्सव’’ हमें धर्म, अध्यात्म और राष्ट्रभक्ति के इस पावन संगम में स्नान करने का अद्भुत अवसर प्रदान कर रहा है। मैं एक बार फिर विश्व हिंदू परिषद, चंडीगढ़ को इस महान पहल के लिए बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह आयोजन हमारी सनातन चेतना को और अधिक प्रबल बनाएगा।

आइए, हम सभी मिलकर अपने सनातन धर्म और संस्कृति को न केवल संरक्षित करें, बल्कि इसे विश्वभर में फैलाने का संकल्प लें।

धन्यवाद,

जय हिन्द!