Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of Stree Samarthya Summit-2025 on March 28, 2025.

नवजीवन संगठन द्वारा आयोजित ‘स्त्री सामर्थ्य’ समारोह के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 28.03.2025, शुक्रवार

समयः शाम 5:00 बजे

स्थानः चंडीगढ़

 

नमस्कार!

सर्वप्रथम, मैं इस प्रेरणास्पद आयोजन, “स्त्री सामर्थ्य सम्मेलन”, के लिए आयोजक मंडल को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।  

मैं आज सम्मान पाने वाली सभी महिलाओं को हार्दिक बधाई देता हूँ जिन्होंने न केवल अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया, बल्कि अपने अद्वितीय साहस, संघर्ष और समर्पण से पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं।

लेकिन, इतिहास के पन्नों में केवल कुछ ही नाम दर्ज हो पाते हैं, जबकि समाज के हर कोने में ऐसी अनगिनत नारी शक्तियाँ हैं जो अपने अदम्य साहस से न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे राष्ट्र को गौरवान्वित कर रही हैं। 

मैं डॉ. मोनिका सूद जी, को नारीशक्ति से जुड़े इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए विशेष बधाई देता हूँ। यह सम्मेलन केवल एक मंच नहीं, यह एक चेतना का स्वरूप है। यह एक जागरण की प्रक्रिया है, जो नारी शक्ति को केवल पहचानता नहीं, बल्कि उसे अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित करता है। 

देवियो और सज्जनो,

हमारे धर्म और संस्कृति में नारी को देवी माना गया है। वेदों से लेकर उपनिषदों तक, नारी को ज्ञान, शक्ति, और करुणा का स्वरूप माना गया है। माता सीता की सहनशीलता, रानी लक्ष्मीबाई और माई भागो की वीरता, मीरा की भक्ति, मदर टेरेसा की सेवा, हर युग में स्त्री ने समाज को दिशा दी है।

‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः।’’

अर्थात्, जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है।

परंतु, एक कटु सत्य यह भी है कि जब हम आधुनिक भारत की ओर दृष्टि डालते हैं, तो पाते हैं कि यह स्त्री, जिसे हमने देवी कहा, वह अनेक बार अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती रही है, कभी शिक्षा के लिए, कभी रोजगार के लिए, और कभी सम्मान के लिए।

अब तक, समाज में स्त्री को प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा गया, एक ऐसी शक्ति जो परिवार, समाज और राष्ट्र को ऊर्जा और दिशा देती है। 

यदि हम किसी राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं, तो उस राष्ट्र की स्त्रियों को सशक्त बनाना अनिवार्य है। क्योंकि स्त्री केवल एक व्यक्ति नहीं है, वह एक संस्कारशाला है, परिवार का आधार है, संस्कृति की वाहक है, और समाज की निर्माता है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘किसी भी समाज की प्रगति का मूल्यांकन वहाँ की महिलाओं की स्थिति से किया जा सकता है।’’

देवियो और सज्जनो,

आज भारत की महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। विज्ञान में वे नई खोज कर रही हैं, सेना में देश की रक्षा के लिए सीमाओं पर तैनात हैं, उद्यमिता में स्टार्टअप्स की अगुवाई कर रही हैं, अंतरिक्ष मिशनों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं, राजनीति में निर्णायक फैसले ले रही हैं, और खेल जगत में विश्व स्तर पर देश का मान बढ़ा रही हैं। 

लेकिन इस सफलता को व्यापक और समावेशी बनाने के लिए केवल व्यक्तिगत उपलब्धियाँ पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि हमें समाज की व्यवस्था, दृष्टिकोण और नीतियों में स्थायी परिवर्तन लाने होंगे। दृष्टिकोण में बदलाव लाना सबसे महत्वपूर्ण है। समाज को महिलाओं को सिर्फ ‘सक्षम’ मानने के बजाय ‘सक्षम और नेतृत्वकर्ता’ के रूप में स्वीकार करना होगा। 

परिवारों को बेटियों की महत्वाकांक्षा को उतना ही समर्थन देना होगा जितना बेटों को मिलता है। इसके साथ ही, कार्यस्थलों पर लैंगिक भेदभाव को खत्म करने और महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करने के लिए एक नई सोच विकसित करनी होगी।

नीति निर्माण में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता है। मातृत्व और पितृत्व अवकाश की नीतियाँ अधिक उदार होनी चाहिए ताकि महिलाएँ करियर और परिवार में संतुलन बना सकें। 

महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विशेष ऋण योजनाएँ और अनुकूल व्यावसायिक नीतियाँ बनाई जानी चाहिए। खेल और विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए सुविधाओं और अनुदानों में वृद्धि करनी होगी।

यदि हम इन तीन स्तंभों - व्यवस्था, दृष्टिकोण और नीति - में सकारात्मक और स्थायी परिवर्तन लाने में सफल होते हैं, तो महिलाओं की प्रगति केवल कुछ व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह एक सामाजिक क्रांति का रूप लेगी। 

हमें महिलाओं की शिक्षा, सुरक्षा, और आर्थिक सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देना होगा। महिलाओं को प्रारंभिक स्तर से ही विज्ञान, तकनीक, उद्यमिता और नेतृत्व के अवसरों से जोड़ा जाए। 

कानूनी ढांचे को और अधिक प्रभावी बनाकर कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। साथ ही, महिला उद्यमियों को पूंजी और बाजार तक आसान पहुंच मिले, ताकि वे आत्मनिर्भर बनकर देश के आर्थिक विकास में योगदान दे सकें।

जब व्यवस्था सशक्त होगी, दृष्टिकोण प्रगतिशील होगा, और नीति समावेशी होगी, तब न केवल महिलाएँ बल्कि पूरा समाज आगे बढ़ेगा, और भारत एक सशक्त, समृद्ध और समानता आधारित राष्ट्र के रूप में स्थापित होगा।

देवियो और सज्जनो,

शिक्षा स्त्री सशक्तिकरण की पहली सीढ़ी है। यदि हम महिलाओं को शिक्षित करते हैं, तो हम केवल एक व्यक्ति नहीं, एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित करते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बेटी स्कूल जाए। हर युवती उच्च शिक्षा प्राप्त करे। हर स्त्री को डिजिटल और व्यावसायिक शिक्षा मिले। हमें स्कूलों में करियर परामर्श, मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता, आत्मरक्षा, डिजिटल साक्षरता और वित्तीय समझ जैसे विषयों को भी जोड़ना होगा।

मैं समझता हूं कि आर्थिक आत्मनिर्भरता स्त्री की असली शक्ति है। एक महिला जब आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती है, तब वह अपने जीवन के निर्णय स्वयं ले सकती है। 

वह आत्मविश्वासी बनती है, समाज को प्रेरणा देती है, और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में योगदान देती है। सरकार ने मुद्रा योजना, स्टैंड-अप इंडिया, और महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बहुत सराहनीय प्रयास किए हैं। लेकिन इन योजनाओं को केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित न रखकर, ग्राम पंचायतों, जनजातीय क्षेत्रों और सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुँचाना होगा।

इसके अलावा, ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ से महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें मिलेंगी। यह अधिनियम महिलाओं का जीवन स्तर सुधारने के लिए, क्वालिटी ऑफ लाइफ बेहतर करने के लिए, देश में महिला नेतृत्व-आधारित विकास का नया युग लाने के लिए अहम कदम है।

इसके अलावा, हाल ही में पंजाब में हुए पंचायती चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया, जिससे महिला सशक्तिकरण को नई गति मिली है। यह निर्णय न केवल महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देगा, बल्कि उन्हें नेतृत्व और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी सशक्त बनाएगा।

अत्यंत हर्ष और गर्व का विषय है कि नवजीवन संगठन ने आयुर्वेद और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें उद्यमिता की राह दिखाई है। यह एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे स्थानीय ज्ञान और वैश्विक दृष्टिकोण को जोड़कर महिलाओं को आगे बढ़ाया जा सकता है।

स्त्री शक्ति केवल बाहरी नहीं होती, बल्कि वह अंतरतम से आती है, लेकिन आज मानसिक स्वास्थ्य, विशेषकर महिलाओं में, सबसे उपेक्षित विषय बना हुआ है। 

एक गृहिणी, जो हर दिन अपने परिवार के लिए खड़ी रहती है, अक्सर स्वयं को भूल जाती है। एक कामकाजी महिला, जो ऑफिस और घर दोनों की जिम्मेदारी उठाती है, समाज की अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाती है। वहीं, एक किशोरी आत्म-संकोच में खुद से सवाल पूछती रहती है। 

महिलाओं की इस आंतरिक शक्ति को बनाए रखने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि मन की शक्ति, मन की स्थिरता ही स्त्री सामर्थ्य की नींव है। इसलिए, स्कूलों, कार्यस्थलों और सामुदायिक केंद्रों में मेंटल हेल्थ काउंसलिंग, मेडिटेशन, योग और संवाद सत्रों को अनिवार्य किया जाना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

आज का युग डिजिटल इंडिया का है, जहाँ तकनीक ही शक्ति है, और जो इसे अपनाता है, वही आगे बढ़ता है। इसलिए हमें स्त्रियों को तकनीक से जोड़ना होगा, ताकि वे इस बदलते दौर में आत्मनिर्भर बन सकें। 

हमें चाहिए कि उन्हें एआई, डेटा साइंस, कोडिंग, डिज़ाइन और साइबर सुरक्षा जैसे उभरते हुए क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जाए। डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स के माध्यम से उनके स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिले, जिससे वे आर्थिक रूप से सशक्त बन सकें। 

जब महिलाएँ तकनीक को अपनाएंगी, तो वे न केवल अपने जीवन में बदलाव लाएँगी, बल्कि पूरे समाज की प्रगति में अहम भूमिका निभाएँगी। डिजिटल स्त्री ही 21वीं सदी की सशक्त स्त्री है।

यदि हम सच में भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हमें गाँव की स्त्री को शक्ति देनी होगी। उन्हें कृषि आधारित उद्योगों में प्रशिक्षित करने सहित कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्प, हथकरघा को नए बाज़ारों से जोड़ना होगा। 

हर पंचायत स्तर पर महिला उद्यमिता केंद्र बनाए जाने चाहिएं क्योंकि जब एक ग्राम की स्त्री आत्मनिर्भर होती है, तो पूरा गाँव स्वावलंबी हो जाता है।

इसके अलावा, सुरक्षा और न्याय भी स्त्री सशक्तिकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलु हैं। कानून बने हैं, लेकिन ज़रूरत है सक्रिय क्रियान्वयन की। जरूरत है कि पुलिस थानों में महिला अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाए। हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट और लीगल अवेयरनेस क्लिनिक्स हों। साइबर अपराधों से महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए। सिर्फ कानून बनाने से नहीं, मानसिकता बदलने से समाज बदलता है।

देवियो और सज्जनो,

जब एक माँ कार्यस्थल पर जाती है, तो वह केवल एक कर्मचारी नहीं होती, बल्कि एक संपूर्ण प्रणाली को चलाती है। हमें चाहिए कि महिलाओं के लिए कार्यस्थलों पर क्रेच सुविधाएँ हों, मैटरनिटी और पेरेंटल लीव को और प्रगतिशील बनाया जाए, वर्क फ्रॉम होम और फ्लेक्सिबल शेड्यूल को प्रोत्साहित किया जाए।

राजनीति, प्रशासन, सेना, विज्ञान, मीडिया, कानून, चिकित्सा, शिक्षा, हर क्षेत्र में स्त्री नेतृत्व अब विकल्प नहीं, आवश्यकता बन गया है। हमें स्त्रियों को नेतृत्व का मंच, साधन और समर्थन देना होगा। उनके विचार, संवेदना और नेतृत्व कौशल को पहचानना और सम्मान देना होगा।

आज का भारत जहाँ आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, वहीं हमें अपनी संस्कृति की जड़ों से भी जुड़े रहना है। स्त्री इस कड़ी की प्रमुख वाहक है। वह संगीत, नृत्य, चित्रकला, कथा, और साहित्य को अगली पीढ़ी तक पहुँचाती है। हमें स्त्रियों को सांस्कृतिक नेतृत्व में आगे लाना होगा, जहाँ वे संस्कृति की प्रहरी बन सकें।

मित्रो,

स्त्री सशक्तिकरण एक कर्तव्य है। यह एक आंदोलन है। यह एक नव चेतना है जो भारत को नई दिशा देने वाली है।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस सम्मेलन से जो विचार, संवाद और संकल्प निकलेंगे, वे भारत को उस दिशा में ले जाएँगे जहाँ बेटियाँ कभी सपने देखने और उन्हें पूरा करने से नहीं डरेंगी, महिलाएँ आत्मबल से भरी होंगी, और भारत एक ‘‘स्त्री समृद्ध राष्ट्र’’ के रूप में उभरेगा।

आज का यह आयोजन ‘‘स्त्री सामर्थ्य’’ न केवल एक उत्सव है, बल्कि एक संदेश भी है कि नारी शक्ति असीम है। हर लड़की, हर महिला, हर माँ, हर बहन, सभी को यह विश्वास होना चाहिए कि वे कुछ भी कर सकती हैं।

मैं इस मंच से उन सभी महिलाओं को हृदय से बधाई देता हूँ जिन्होंने अपनी मेहनत, संघर्ष और दृढ़ संकल्प से समाज में बदलाव लाने का कार्य किया है। मैं आयोजकों को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस महत्वपूर्ण विषय पर इतना भव्य और प्रेरणादायक आयोजन किया।

आइए, हम सभी संकल्प लें कि नारी सशक्तिकरण की इस यात्रा को और आगे बढ़ाएँगे, महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अवसर और सम्मान दिलाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे।

इसी भावना के साथ, मैं आप सभी को शुभकामनाएँ देता हूँ और कामना करता हूँ कि ‘‘स्त्री सामर्थ्य’’ का यह अभियान निरंतर आगे बढ़ता रहे।

धन्यवाद, जय हिन्द!