Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of foundation stone for a 250-bed Super Speciality Ayurveda Hospital at Shri Dhanwantri Ayurvedic College, Chandigarh on April 20, 2025.

आयुर्वेद अस्पताल के शिलान्यास समारोह के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 20.04.2025,  रविवारसमयः सुबह 11:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

सबसे पहले, मैं श्री धन्वंतरि आयुर्वेदिक कॉलेज एवं अस्पताल को 250 बिस्तरों वाले सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद अस्पताल के शिलान्यास के इस अवसर के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ। 

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि यह सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद अस्पताल, जिसे ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ के रूप में विकसित किया जा रहा है, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा प्रदान की गई लगभग 10 करोड़ रुपये की अनुदान राशि की सहायता से साकार हो रहा है।

इसे आयुरस्वस्थ्य योजना के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ¼COE½ घटक के तहत रीढ़ विकारों ¼Chronic Spine Disorders½ के आयुर्वेदिक प्रबंधन और देखभाल के लिए ‘‘उत्कृष्टता केंद्र’’ के रूप में उन्नत किया जाएगा। 

मैं समझता हूं कि यह केवल एक आधारशिला नहीं, बल्कि आधुनिक अवसंरचना और प्राचीन चिकित्सा विज्ञान के संगम का प्रतीक है। इस परियोजना का उद्देश्य न केवल रोगियों को उत्तम आयुर्वेदिक उपचार उपलब्ध कराना है, बल्कि यह अस्पताल शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार का भी एक सशक्त मंच बनेगा। 

ऐसी पहलें यह दर्शाती हैं कि सरकार पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित करने के लिए प्रतिबद्ध है, और यह संस्थान उस उद्देश्य की ओर एक दृढ़ कदम है।

देवियो और सज्जनो,

मुझे बताया गया है कि ‘‘श्री धन्वंतरि एजुकेशनल सोसाइटी’’ की स्थापना 2 अगस्त 1975 को हुई थी जिसने उसी वर्ष ‘‘श्री धन्वंतरि आयुर्वेदिक कॉलेज एवं अस्पताल’’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य भारतीय चिकित्सा पद्धति, विशेष रूप से आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने और भावी पीढ़ियों तक इसकी समृद्ध परंपरा को पहुँचाने के लिए एक मजबूत शैक्षिक आधार तैयार करना था। 

मैं समझता हूं कि यह केवल एक संस्थान की शुरुआत नहीं थी, बल्कि यह भारतीय चिकित्सा दर्शन के पुनर्निर्माण की एक आध्यात्मिक और शैक्षणिक यात्रा की नींव थी।

इस कॉलेज का नाम आदिकाल से चिकित्सा जगत के आराध्य और आयुर्वेद के जनक माने जाने वाले भगवान धन्वंतरि के नाम पर रखा गया। भगवान धन्वंतरि न केवल आयुर्वेद के प्रतीक हैं, बल्कि वे उपचार, स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन के मार्गदर्शक भी हैं।

यह संस्थान शुरू से ही गुणवत्तापूर्ण आयुर्वेदिक शिक्षा, नैतिक चिकित्सा सेवा, और अनुसंधान की दिशा में समर्पित रहा है, जिससे छात्रों को चिकित्सक से अधिक एक संवेदनशील और सामाजिक रूप से जिम्मेदार ‘चिकित्सा-सेवक’ बनने का अवसर प्राप्त हो।

मुझे बताया गया है कि कॉलेज ने अब तक 2500 से अधिक सुप्रशिक्षित स्नातक तैयार किए हैं जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मानवता की सेवा कर रहे हैं और सरकारी संस्थानों में या उनके निजी उद्यमों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं।

वर्तमान में यह संस्थान 64 अनुभवी संकाय सदस्यों और 200 से अधिक समर्पित कर्मचारियों की सशक्त टीम के साथ कार्यरत है। 

संस्थान में इस समय 500 से अधिक अंडर ग्रेजुएट छात्र आयुर्वेद के विभिन्न पहलुओं में ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, जबकि 72 पोस्ट ग्रेजुएट विद्यार्थी गहन अनुसंधान, विशिष्ट चिकित्सा पद्धतियों और विशेषज्ञता के क्षेत्रों में अध्ययनरत हैं। 

मुझे बताया गया है कि इस संस्थान ने ‘कलाम एक्सप्रेस-पहियों पर स्कूल’ परियोजना के तहत बसों के माध्यम से दिव्यांग बच्चों को स्मार्ट क्लास, डिजिटल लाइब्रेरी, योग और चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। 

हर्ष का विषय है कि यह संस्थान निःशुल्क प्रसव सेवाएं प्रदान कर रहा है, और आज से यहाँ एंटी रेबीज वैक्सीनेशन की सुविधा और  नवजात शिशुओं की देखभाल हेतु आधुनिक एन.आई.सी.यू.(NICU - Neonatal Intensive Care Unit) सेवाएं भी रियायती दरों पर उपलब्ध करवाई जाएंगी जोकि आम आदमी के लिए बहुत उपयोगी होंगी।

मुझे बताया गया है कि कॉलेज में जेरियाट्रिक मेपिंग ¼Geriatric Mapping½ की शुरुआत भी की गई है, जिसके तहत कॉलेज के छात्र सेक्टर-46 के वरिष्ठ नागरिकों को अडोप्ट करेंगे। वे समय-समय पर उनके घर जाकर उनका सामान्य स्वास्थ्य परीक्षण करेंगे और यदि आवश्यकता होगी, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की व्यवस्था भी करेंगे। यह पहल वरिष्ठ नागरिकों के समग्र स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

साथ ही यहां, बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए ‘स्वर्णप्राशन कार्यक्रम’ का भी समय-समय पर आयोजन किया जाता है। यह कार्यक्रम बच्चों की संपूर्ण स्वास्थ्य वृद्धि, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और मानसिक विकास में सहायक होता है। 

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि इस महाविद्यालय में वैदिक, वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक परंपराओं के अनुरूप स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने हेतु प्रतिदिन हवन का आयोजन किया जाता है। 

हवन में प्रयुक्त औषधीय द्रव्यों से उत्पन्न धुआं न केवल वातावरण को शुद्ध करता है, बल्कि उसमें मौजूद फाइटोकेमिकल्स और एंटीमाइक्रोबियल गुण हानिकारक सूक्ष्मजीवों का नाश करने में भी सहायक होते हैं। यह पहल पर्यावरणीय शुद्धता और रोग निवारण की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।

देवियो और सज्जनो,

सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद अस्पताल की यह आधारशिला, न केवल भौतिक इमारत का आरंभ है, बल्कि यह हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति को आधुनिक आवश्यकताओं के साथ जोड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

इस परियोजना से न केवल चंडीगढ़ के नागरिकों को लाभ होगा, बल्कि आसपास के राज्यों और दूरदराज़ से आने वाले मरीज़ों को भी विशेषज्ञ उपचार सुलभ होगा। विशेष रूप से कैंसर, मधुमेह, अस्थमा, त्वचा रोग, और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के लिए आयुर्वेद ने कई प्रभावी समाधान प्रस्तुत किए हैं। 

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इस अस्पताल में न केवल इलाज की व्यवस्था होगी, बल्कि अनुसंधान, शिक्षण और नवाचार को भी विशेष प्राथमिकता दी जाएगी।

मैं इस बात की भी सराहना करता हूँ कि यह संस्थान समाज के वंचित वर्गों को भी गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। आयुर्वेद, जिसकी जड़ें गाँवों और जनमानस में गहराई से जुड़ी हैं, जब इस प्रकार की सुपर स्पेशलिटी सेवाओं के माध्यम से जनसामान्य तक पहुँचेगा, तब यह ‘‘जन-चिकित्सा’’ का सच्चा माध्यम बन सकेगा।

देवियो और सज्जनो,

भारत में चिकित्सा की परंपरा एक गहरी, समृद्ध और समग्र दृष्टिकोण से परिपूर्ण रही है। आयुर्वेद का मूल सिद्धांत, ‘‘स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं’’ अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के रोगों का शमन करना, हमें यह सिखाता है कि चिकित्सा केवल तब शुरू नहीं होती जब रोग हो जाए, बल्कि उसका उद्देश्य पहले से ही व्यक्ति को रोग-मुक्त, संतुलित और समरस बनाए रखना है।

आयुर्वेद न केवल रोगों के उपचार का माध्यम है, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है, एक ऐसी जीवनशैली, जो प्रकृति के अनुरूप है, जो शरीर और मन के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देती है।

आयुर्वेद में दिनचर्या ¼Daily Routine½, ऋतुचर्या ¼Seasonal Regimen½, सत्व Mental Strength½, अन्नपान ¼Diet½, और योग एवं प्राणायाम जैसे विषय केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षण को स्वस्थ, सात्विक और समृद्ध बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

इसके अलावा, आयुर्वेद रोग के मूल कारण को पहचान कर उसकी जड़ से चिकित्सा करता है, न कि केवल लक्षणों को दबाने का कार्य करता है। यह वात, पित्त, कफ दोषों के संतुलन के माध्यम से न केवल रोगों को नियंत्रित करता है, बल्कि व्यक्ति को दीर्घकालिक स्वास्थ्य और संतुलन की ओर अग्रसर करता है।

आज जब दुनिया प्राकृतिक चिकित्सा, वेलनेस, और होलिस्टिक हीलिंग की ओर देख रही है, तब भारत का आयुर्वेद एक वैश्विक प्रकाशस्तंभ बन सकता है। आयुर्वेद केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य की चिकित्सा पद्धति भी है।

इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि चिकित्सक, शिक्षाविद, नीति-निर्माता और समाज की भागीदारी के साथ हम सभी मिलकर इस अमूल्य ज्ञान को पुनर्जीवित करें, आधुनिक संदर्भ में विकसित करें, और इसे भारत सहित सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए समर्पित करें।

इसी दिशा में केंद्र सरकार द्वारा भी प्रभावशाली कदम उठाए जा रहे हैं। केंद्रीय बजट 2025-26 में आयुष मंत्रालय को 3,992.90 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है, जो कि पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान 3,497.64 करोड़ रुपये की तुलना में 14.15 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।

यह बढ़ा हुआ आवंटन सरकार की इस प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि वह भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों - आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी - को न केवल संरक्षण देना चाहती है, बल्कि उन्हें आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ जोड़कर जनसामान्य के लाभ के लिए अधिक प्रभावी बनाना चाहती है।

देवियो और सज्जनो,

प्राचीन भारत में आयुर्वेद अपने स्वर्णिम युग में न केवल एक चिकित्सा पद्धति के रूप में, बल्कि एक समग्र जीवन दर्शन के रूप में प्रतिष्ठित था। तक्षशिला और नालंदा जैसे महान विश्वविद्यालयों में आयुर्वेद की गहन शिक्षा दी जाती थी, जहाँ देश-विदेश से छात्र अध्ययन के लिए आते थे, जो यह दर्शाता है कि आयुर्वेद उस समय वैश्विक स्तर पर भी ज्ञान और चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

हालांकि, मध्यकालीन भारत में राजनीतिक अस्थिरता और विशेषकर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान आयुर्वेद की प्रगति को गंभीर झटका लगा। पाश्चात्य चिकित्सा प्रणाली को प्राथमिकता दी गई, और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को उपेक्षित किया गया, जिसके कारण आयुर्वेद की सामाजिक और शैक्षणिक स्वीकार्यता में गिरावट आई।

फिर भी, यह हमारी सांस्कृतिक दृढ़ता और परंपरा की जड़ों की शक्ति थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत ने आयुर्वेद को पुनः सशक्त करने का संकल्प लिया। भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय की स्थापना कर इस प्राचीन विद्या को संस्थागत समर्थन प्रदान किया, जिससे आयुर्वेद न केवल फिर से लोकप्रिय हुआ, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उसकी स्वीकार्यता बढ़ी। 

आज आयुर्वेद अपने पुनरुत्थान के एक ऐसे महत्वपूर्ण चरण में है, जहाँ वह केवल पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के रूप में सीमित नहीं रह गया है, बल्कि आधुनिक अनुसंधान, उन्नत शिक्षा प्रणाली और नवीनतम तकनीकी संसाधनों के साथ एकीकृत होकर जनस्वास्थ्य की दिशा में प्रभावी योगदान दे रहा है।

आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आयुर्वेदिक औषधियों और उपचार विधियों का मूल्यांकन हो रहा है, जिससे इनकी प्रमाणिकता और प्रभावशीलता को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता मिल रही है। देश-विदेश में अनेक अनुसंधान केंद्र और आयुष यूनिवर्सिटीज़ इस दिशा में कार्य कर रही हैं, जो न केवल आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ढाल रहे हैं, बल्कि नवाचारों के माध्यम से इसे अधिक व्यावहारिक और सुलभ बना रहे हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में भी आयुर्वेदिक संस्थानों में नवीन पाठ्यक्रम, शोध आधारित अध्ययन और आधुनिक चिकित्सा तकनीकों के समावेश से छात्रों को एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल हेल्थ टेक्नोलॉजी, टेलीमेडिसिन, और आयुष ग्रिड जैसी पहलों ने आयुर्वेद को तकनीकी रूप से सशक्त बनाकर दूर-दराज़ तक इसकी पहुँच सुनिश्चित की है।

जनमानस में भी अब यह जागरूकता बढ़ी है कि आयुर्वेद न केवल रोगों के उपचार के लिए, बल्कि जीवनशैली सुधार, रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और दीर्घकालिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए अत्यंत उपयोगी है। 

 देवियो और सज्जनो,

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने सदियों से विश्व को योग, आयुर्वेद और अध्यात्म का मार्ग दिखाया है। 

मैं इस अवसर पर कॉलेज प्रशासन, चिकित्सकों, परियोजना से जुड़े सभी विशेषज्ञों, और यहाँ अध्ययनरत छात्रों को बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह अस्पताल न केवल एक चिकित्सा केंद्र बने, बल्कि यह ‘स्वास्थ्य, संवेदना और संस्कार’ का तीर्थस्थान भी हो।

अंत में, मैं यही प्रार्थना करता हूँ कि भगवान धन्वंतरि की कृपा इस संस्थान पर सदैव बनी रहे, और यह पहल मानवता की सेवा में एक स्वर्णिम अध्याय लिखे।

धन्यवाद,

जय हिन्द!