Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of inauguration of the 6th Eat Right Food Summit in Chandigarh on April 25,2025.

‘ईट राइट फूड समिट’ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 25.04.2025, शुक्रवार

समयः सुबह 9:30 बजे

स्थानः चंडीगढ़

 

नमस्कार!

आज ‘ईट राइट फूड समिट’ के छठे संस्करण में आप सबके बीच उपस्थित होकर मैं अत्यंत प्रसन्नता और गर्व का अनुभव कर रहा हूँ।

यह एक ऐसा मंच है जो न केवल खाद्य सुरक्षा और पोषण जैसे जीवन के मूलभूत विषयों पर चिंतन-मनन करता है, बल्कि यह हमें यह भी स्मरण कराता है कि स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण केवल अस्पतालों से नहीं, बल्कि हमारे भोजन की थाली से शुरू होता है।

मैं इस आयोजन के लिए ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ (FSSAI), ‘खाद्य सुरक्षा प्रशासन’ एवं ‘चंडीगढ़ स्वास्थ्य विभाग’ को हार्दिक बधाई देता हूँ।

मुझे बताया गया है कि इस आयोजन को ‘हर्बालाइफ’ (Herbalife)  का सहयोग प्राप्त है, जिनका स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में योगदान सराहनीय है। साथ ही, मैं ‘द रेड कार्पेट वेंचर्स’ (The Red Carpet Ventures) की आयोजन व्यवस्था की सराहना करता हूँ, जिन्होंने इस कार्यक्रम को सुदृढ़ता एवं गरिमा के साथ सम्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

मैं समझता हूं कि इस प्रकार का आयोजन आज के समय की आवश्यकता है, जब स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, विशेषकर मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, जैसी जीवनशैली जनित बीमारियाँ, तेजी से बढ़ रही हैं।

मित्रो,

‘ईट राइट इंडिया’ अभियान केवल एक जागरूकता कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी प्रयास है, हमें यह समझाने का कि सही आहार हमारे जीवन और समाज दोनों के लिए कितना आवश्यक है। यह पहल विज्ञान, नीति और जन सहभागिता को एक मंच पर लाकर एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

‘ईट राइट’ केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो हर नागरिक को यह समझाने का प्रयास करता है कि हमारा भोजन केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवन के लिए होना चाहिए। जब हम ‘सही भोजन’ की बात करते हैं, तो उसमें खाद्य सुरक्षा, पोषण संतुलन, स्वच्छता और टिकाऊ उत्पादन प्रणाली, सभी समाहित होते हैं।

यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आज के कार्यक्रम में मोटापे पर संवाद, गर्भावस्था में पोषण, भविष्य की पोषण नीति, और स्वास्थ्य केंद्रित स्टार्टअप्स पर आधारित प्रस्तावित विषय न केवल वर्तमान समय की सबसे ज्वलंत स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को संबोधित करते हैं, बल्कि एक समग्र, वैज्ञानिक और दूरदर्शी दृष्टिकोण को भी प्रतिबिंबित करते हैं।

मोटापा, जो आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली और असंतुलित खानपान का परिणाम है, केवल एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य का विषय बन चुका है। इस पर गहन संवाद और समाधान की नितांत आवश्यकता है।

गर्भावस्था में पोषण का विषय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल एक महिला के स्वास्थ्य से जुड़ा है, बल्कि आने वाली पीढ़ी की शारीरिक, मानसिक और संज्ञानात्मक वृद्धि की नींव भी यही रखता है। एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण तभी संभव है जब हमारी माताएं और शिशु पोषित और सुरक्षित हों।

भविष्य की पोषण नीति पर विमर्श यह सुनिश्चित करेगा कि हम आने वाले वर्षों में पर्यावरण के अनुकूल, स्थायी, और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य प्रणाली की ओर बढ़ें, जो प्रत्येक नागरिक को सुलभ और संतुलित आहार प्रदान कर सके।

वहीं, स्वास्थ्य केंद्रित स्टार्टअप्स नवाचार, प्रौद्योगिकी और उद्यमशीलता के माध्यम से इस परिवर्तन को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ये स्टार्टअप्स न केवल सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करते हैं, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण और रोज़गार सृजन के अवसर भी प्रदान करते हैं।

इस प्रकार, आज के विषय केवल चर्चा के विषय नहीं हैं, बल्कि वे एक स्वस्थ, सशक्त और जागरूक भारत के निर्माण की दिशा में व्यापक सोच और ठोस कदमों का आह्वान हैं।

देवियो और सज्जनो,

मैं यह भी उल्लेख करना चाहता हूँ कि खाद्य सुरक्षा कोई एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, यह हम सबका सामूहिक दायित्व है, चाहे वह निर्माता हो, वितरक हो, उपभोक्ता हो या नियामक संस्था। यदि हम सच में ‘विकसित भारत’ की ओर अग्रसर होना चाहते हैं, तो हमें स्वस्थ भारत की नींव को भी मजबूत करना होगा।

आज भारत विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। यदि हमारे युवा पीढ़ी को हम सही आहार, स्वच्छ पेयजल और पौष्टिकता प्रदान करते हैं, तो हम उन्हें न केवल बीमारियों से बचा सकते हैं, बल्कि उन्हें सशक्त, ऊर्जावान और रचनात्मक भविष्य के लिए तैयार भी कर सकते हैं।

इस मंच के माध्यम से मैं यह अपील करता हूँ किः

खाद्य निर्माता प्राकृतिक और पोषणयुक्त विकल्पों को प्राथमिकता दें।

उपभोक्ता स्वयं जागरूक बनें और लेबल पढ़कर समझदारी से खरीददारी करें।

स्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में ‘ईट राइट क्लब्स’ की स्थापना कर विद्यार्थियों को स्वस्थ जीवनशैली के प्रति प्रेरित किया जाए।

मोटापे और जीवनशैली रोगों के नियंत्रण हेतु सामूहिक जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।

इस संदर्भ में, मैं एफ.एस.एस.ए.आई. द्वारा शुरू किए गए ‘ईट राइट इंडिया मूवमेंट’ और ‘ब्लिसफुल हाइजीन रेटिंग’ जैसी पहलों की भी सराहना करता हूँ। यह अभियान न केवल शहरी भारत में, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच बनाकर भारत को एक पोषित और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।

देवियो और सज्जनो,

तेजी से बदलती जीवनशैली और भागदौड़ भरे आधुनिक जीवन के इस दौर में कुपोषण, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी और मोटापा जैसी पोषण से जुड़ी समस्याएँ गंभीर और व्यापक चुनौती बन चुकी हैं। जंक फूड, अनियमित भोजन, तनावपूर्ण दिनचर्या और व्यायाम की कमी ने इन स्थितियों को और भी गंभीर बना दिया है।

ऐसे समय में यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि हम पुनः संतुलित, पौष्टिक और प्राकृतिक खानपान की ओर लौटें, जहां हमारे भोजन में आवश्यक विटामिन्स, प्रोटीन, फाइबर और मिनरल्स का समुचित समावेश हो।

सही खानपान न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है और समाज के हर वर्ग को सशक्त और सक्षम बनाता है।

अब समय आ गया है कि हम पोषण को प्राथमिकता दें, और व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर संतुलित आहार और जागरूकता को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। यही वह परिवर्तन है जो हमें एक स्वस्थ, सशक्त और ‘विकसित भारत’ की ओर ले जाएगा।

देवियो और सज्जनो,

मुझे यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि चंडीगढ़, जो सदैव अपनी सुव्यवस्थित नगर योजना, हरित वातावरण, और उत्कृष्ट नागरिक सुविधाओं के लिए एक आदर्श शहर के रूप में जाना जाता है, अब पोषण जागरूकता और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भी एक प्रेरणादायक मॉडल के रूप में उभर रहा है।

यह शहर केवल भौतिक ढांचे और प्रशासनिक दक्षता के लिए नहीं, बल्कि अब जनस्वास्थ्य, सामाजिक उत्तरदायित्व और सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में भी सजग और सक्रिय योगदान देने के लिए पहचाना जा रहा है।

‘ईट राइट इंडिया’ जैसे अभियानों को यहां जिस दृढ़ संकल्प, नीतिगत समर्थन और सामुदायिक भागीदारी के साथ अपनाया गया है, वह निःसंदेह अनुकरणीय है। चंडीगढ़ की यह पहल न केवल स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव ला रही है, बल्कि अन्य राज्यों और शहरों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही है।

यह अत्यंत ही हर्ष और गर्व का विषय है कि इस अभियान के अन्तर्गत वर्ष 2021 में चंडीगढ़ की मॉडल जेल को देश की पहली ‘ईट राइट जेल कैंपस’ घोषित किया जाना एक सराहनीय उपलब्धि है, जो जेल प्रशासन की प्रतिबद्धता और कैदियों के जीवन सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। 

यह देखकर गर्व होता है कि चंडीगढ़ जैसे प्रगतिशील शहर ने यह साबित कर दिया है कि स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए केवल योजनाएं ही नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति, जन-जागरूकता, और सार्थक क्रियान्वयन की भी आवश्यकता होती है।

देवियो और सज्जनो,

मैं समझता हूँ कि यदि हमें अपने भोजन के पोषण स्तर को बढ़ाना है और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनानी है, तो हमें मोटा अनाज, जिसे हम ‘मिलेट्स’ के नाम से भी जानते हैं, को अपने दैनिक आहार का अभिन्न हिस्सा बनाना होगा।

‘ईट राइट इंडिया’ मूवमेंट के अंतर्गत यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह अभियान केवल सुरक्षित और स्वच्छ भोजन को बढ़ावा देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें पारंपरिक, पौष्टिक और स्थानीय खाद्य विकल्पों की ओर लौटने के लिए भी प्रेरित करता है। मिलेट्स इस दृष्टिकोण में पूर्णतः फिट बैठते हैं।

मोटा अनाज जैसे रागी, ज्वार, बाजरा, कोदो और कुटकी न केवल पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, बल्कि ये हमारे शरीर में धीरे-धीरे पचते हैं, जिससे शुगर लेवल नियंत्रित रहता है और ऊर्जा लंबे समय तक बनी रहती है। ये अनाज ग्लूटेन-फ्री भी होते हैं, जो आज की जीवनशैली में एक बड़ा स्वास्थ्य लाभ है।

इसके साथ ही, मिलेट्स की खेती कम पानी, कम उर्वरक और कम संसाधनों में भी सफल होती है, जिससे यह न केवल स्वास्थ्य के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक टिकाऊ विकल्प बन जाता है। ये मानव जाति के लिए प्रकृति की देन हैं।

इसी महत्व को पहचानते हुए, हमारी सरकार ने मिलेट्स को पुनः जन-आहार का हिस्सा बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। वर्ष 2018 को राष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित करना और फिर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप में मनाना इस दिशा में निर्णायक प्रयास रहे हैं। 

यह हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की दूरदृष्टि और प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो एक ऐसी खाद्य प्रणाली की स्थापना चाहते हैं जो हमारे स्वास्थ्य, हमारे किसानों की आय और हमारी धरती के पर्यावरणीय संतुलन, तीनों के लिए अनुकूल हो।

‘ईट राइट इंडिया’ अभियान के अंतर्गत, अब समय आ गया है कि हम मिलेट्स को एक जनांदोलन के रूप में अपनाएं और स्कूलों, कॉलेजों, कैंटीनों, हॉस्टलों, कार्यालयों और घरों में इनका प्रयोग बढ़ाएं। 

हमें मिलेट्स को भोजन की थाली में सम्मानजनक स्थान देकर, एक स्वस्थ, संतुलित और आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाना होगा। यही ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान का असली उद्देश्य है।

देवियो और सज्जनो,

भारत की सांस्कृतिक विरासत जितनी प्राचीन और समृद्ध है, उतनी ही गहराई हमारी पाकशैली में भी देखने को मिलती है। हमारी रसोई केवल भोजन तैयार करने का स्थान नहीं है, बल्कि वह आयुर्वेद, परंपरा, मौसम विज्ञान और स्वास्थ्य का संगम रही है। यह एक ऐसी परंपरा है जो भोजन को ‘औषधि’ मानती है, जैसा कि हमारे ग्रंथों में कहा गया हैः ‘‘अन्नं ब्रह्म’’ - अन्न स्वयं ब्रह्म है।

यदि हम वैदिक काल की बात करें, तो उस समय भोजन को पंचमहाभूतों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, के संतुलन के आधार पर तैयार किया जाता था। आहार न केवल शरीर का पोषण करता था, बल्कि मानसिक और आत्मिक संतुलन को भी बनाए रखने का माध्यम होता था।

प्राचीन भारत में भोजन केवल स्वाद के लिए नहीं था, बल्कि उसे ऋतु, स्वास्थ्य, कार्य-शैली और जीवन दर्शन के अनुसार तैयार किया जाता था। उदाहरण के लिए, सात्त्विक आहार, जिसमें फल, सब्जियाँ, दूध, घी, और अनाज शामिल होते थे, को शांति, ध्यान और मानसिक स्पष्टता के लिए सर्वोत्तम माना जाता था। वहीं राजसिक और तामसिक आहारों की भी विशिष्ट परिभाषाएं थीं।

हमारे यहाँ अथर्ववेद और चरक संहिता जैसे ग्रंथों में भोजन के पौष्टिक गुणों, उसके प्रकार, और उसके सेवन के समय तक का अत्यंत विस्तृत वर्णन मिलता है।

भारत में अन्न की विविधता अद्भुत है। उत्तर में गेहूं, दक्षिण में चावल, पश्चिम में ज्वार-बाजरा और पूरब में मछली-भात सांस्कृतिक और पोषणात्मक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। हर क्षेत्र की अपनी अलग शैली, मसाले, विधि और रस्में हैं। यह विविधता, यह रंग-बिरंगी थाली, यही भारत की असली ताकत है।

भारतीय रसोईघर को अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो उसमें मसाले केवल स्वाद के लिए नहीं होते, बल्कि हर मसाले का एक औषधीय गुण होता है। हल्दी, जीरा, अजवाइन, हींग, इलायची, दालचीनी ये सब न केवल स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि शरीर को रोगों से बचाते हैं।

इतिहास साक्षी है कि भारत के मसालों की खुशबू ने ही व्यापारियों को यहाँ तक खींचा, और यह व्यापार कालांतर में सांस्कृतिक विनिमय में परिवर्तित हो गया। यही कारण है कि भारतीय व्यंजन आज पूरी दुनिया में सम्मान और रुचि के साथ देखे जाते हैं।

आज, जब फास्ट फूड संस्कृति तेजी से फैल रही है, तब प्राचीन भारतीय भोजन शैली की ओर लौटना आवश्यक हो गया है। यह केवल स्वाद की बात नहीं है, यह स्वास्थ्य, दीर्घायु और संतुलन की बात है। ‘ईट राइट इंडिया’ जैसे अभियानों के माध्यम से हम इस सांस्कृतिक धरोहर को पुनः जीवित कर सकते हैं। 

मैं यहाँ उपस्थित सभी युवाओं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, शिक्षकों, उद्यमियों और जागरूक नागरिकों से विनम्र आग्रह करता हूँ कि वे ‘ईट राइट’ अभियान को मात्र एक कार्यक्रम न मानें, बल्कि इसे अपने जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बनाएं। यह सिर्फ सही खानपान की पहल नहीं है, बल्कि एक ऐसी संस्कृति है जो हमारे स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण को एक नई दिशा दे सकती है। 

आइए, हम सभी मिलकर इसे एक जन-आंदोलन बनाएं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध भारत की नींव रखे।

मैं एक बार पुनः सभी आयोजक संस्थाओं, सहयोगी संगठनों एवं सहभागी जनों को हार्दिक बधाई देता हूँ और ईट राइट समिट 2025 की पूर्ण सफलता की कामना करता हूँ।

धन्यवाद,

जय हिन्द!