Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of ATHARV BHARAT-2025 Summit in Chandigarh on April 25, 2025.
- by Admin
- 2025-04-25 18:20
समिट इंडिया द्वारा आयोजित ष^अथर्व भारत&2025* के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 25.04.2025, शुक्रवार
समयः सुबह 11:00 बजे
स्थानः चंडीगढ़
नमस्कार!
मैं ‘समिट इंडिया’ द्वारा ‘अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद’ (AICTE) के सहयोग से आयोजित इस ‘‘अथर्व भारत 2025’’ जैसे विचारोत्तेजक और राष्ट्र निर्माण की भावना से ओत-प्रोत आयोजन में सम्मिलित होकर अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ।
मैं ‘समिट इंडिया’ को इस उत्कृष्ट पहल के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ, जिसने भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को केंद्र में रखकर देश को आत्मनिर्भर और समरस समाज की ओर अग्रसर करने का संकल्प लिया है।
समिट इंडिया ने नीति-संवाद, समाज-संवर्धन और मूल्य-आधारित नेतृत्व के जिस वैचारिक पथ को प्रशस्त किया है, वह निश्चित ही वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय दृष्टि को यथार्थ रूप में मूर्त करने का दिव्य उपक्रम है।
मुझे बताया गया है कि समिट इंडिया की स्थापना 2020 में हुई थी जिसका संचालन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास, चिकित्सा, वित्त एवं वाणिज्य, कला एवं संस्कृति, न्यायपालिका, नीति और योजना जैसे क्षेत्रों से जुड़े समर्पित और समान विचारधारा वाले पेशेवरों के एक समूह द्वारा किया जाता है, जो राष्ट्र निर्माण की भावना से प्रेरित होकर कार्य कर रहे हैं।
यह ट्रस्ट न केवल नीति-निर्माण के स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाता है, बल्कि जमीनी स्तर पर भी सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
जानकर अत्यंत हर्ष हुआ कि ‘समिट इंडिया’ ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2022 में ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्-2022’’ नामक तीन महीनों तक चलने वाले दुनिया के सबसे लंबे डिजिटल कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें 1 लाख से अधिक प्रतिभागियों और 128 विशेषज्ञ वक्ताओं ने भाग लिया।
इसके अलावा, समिट इंडिया ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘इनोवेटिव इंडिया’ जैसे राष्ट्रीय अभियानों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ठोस, योजनाबद्ध और रचनात्मक प्रयास किए हैं। इन प्रयासों के माध्यम से संगठन ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब संकल्प, समर्पण और सृजनात्मकता एक साथ कार्य करते हैं, तब राष्ट्र निर्माण की दिशा में सार्थक परिवर्तन संभव हो पाते हैं।
मैं समिट इंडिया के समस्त सदस्यों को इस राष्ट्रहितकारी योगदान के लिए हृदय से बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह संस्था भविष्य में भी इसी तरह नवाचार, नीति और नागरिकों को जोड़ने का सेतु बनती रहेगी।
मित्रो,
आज हम ‘अथर्व भारत’ की उस अवधारणा को आलोकित करने की दिशा में अग्रसर हैं, जिसमें केवल भौतिक समृद्धि नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना, नैतिक अनुशासन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान भी समाहित है।
‘अथर्व भारत’ का भावार्थ है ऐसा भारत जो केवल आर्थिक व सैन्य दृष्टि से समृद्ध न हो, बल्कि जिसकी आत्मा धर्म, करुणा, समरसता और वैदिक ज्ञान परंपरा से ओतप्रोत हो।
‘‘न यः प्राज्ञः स विजयी, न यः धनवान स पूज्यः।
अपि तू यः धर्मात्मा स एव राष्ट्रस्य भूषणम्।।’’
अर्थात् - न वह व्यक्ति विजयी कहलाता है जो केवल बुद्धिमान हो, और न ही वह पूजनीय होता है जो केवल धनवान हो। वास्तव में जो धर्मात्मा है, वही राष्ट्र का सच्चा भूषण होता है।
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि किसी व्यक्ति का वास्तविक मूल्य उसकी बुद्धि या संपत्ति से नहीं, बल्कि उसके नैतिक चरित्र, धर्मपरायणता और सद्गुणों से आंका जाना चाहिए। एक धर्मात्मा व्यक्ति ही समाज और राष्ट्र की असली शान होता है, क्योंकि वही सत्य, न्याय और सेवा के मूल्यों को अपने आचरण से जीवंत करता है।
देवियो और सज्जनो,
हमारा देश केवल एक सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह विविधता, इतिहास और आधुनिकता का एक अद्वितीय संगम भी प्रस्तुत करता है। यहां की भूमि पर अनेक सभ्यताएं फली-फूली हैं, जिन्होंने हमें गहन आध्यात्मिकता, गहन विचार परंपराएं और कलाओं की अद्वितीय संपदा प्रदान की है। हर क्षेत्र, हर भाषा, हर परंपरा में भारत की बहुरंगी आत्मा का प्रतिबिंब दिखाई देता है।
इतिहास के सुनहरे पन्नों से लेकर आधुनिक तकनीकी प्रगति तक, भारत ने हर युग में खुद को नए रूप में ढाला है। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों की साधना, मौर्य और गुप्त जैसे साम्राज्यों की गौरवशाली विरासत, भक्ति आंदोलन की मधुर धारा, आज़ादी के आंदोलन की वीरता, और आज के डिजिटल इंडिया का नवाचार - ये सब मिलकर भारत की आत्मा को एक व्यापक, जीवंत और प्रेरणादायी रूप देते हैं।
भारत में आधुनिकता का विकास भी अपनी जड़ों से कटे बिना हुआ है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शिक्षा के क्षेत्र में भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, वहीं योग, आयुर्वेद, संगीत और वास्तुकला जैसी परंपरागत विधाओं का भी निरंतर संवर्धन हो रहा है। यही संतुलन भारत को विशिष्ट बनाता है, जहाँ अतीत का सम्मान और भविष्य की आकांक्षा एक साथ चलते हैं।
तकनीक, विज्ञान, शिक्षा, चिकित्सा और उद्यमिता के क्षेत्र में आज भारत वैश्विक मंच पर अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करा रहा है। डिजिटल क्रांति से लेकर अंतरिक्ष अनुसंधान तक, भारत ने यह साबित किया है कि परंपरा और प्रगति एक साथ चलते हुए भी राष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर पहुँचा सकते हैं।
देवियो और सज्जनो,
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी जड़ें गहराई से वेदों, उपनिषदों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में समाहित हैं। यह ग्रंथ न केवल हमारे धार्मिक विश्वासों के स्रोत हैं, बल्कि वे जीवन की उच्चतम विचारधाराओं, नैतिक मूल्यों और संतुलित जीवन जीने की कला के मार्गदर्शक भी हैं।
मैं समझता हूं कि ’’अथर्व भारत”’ का विचार इन मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का आह्वान है, जो हमें यह स्मरण कराता है कि भारत की प्रगति केवल आर्थिक संकेतकों, औद्योगिक विकास या तकनीकी उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
वास्तव में, हमारी विकास यात्रा तब ही पूर्ण मानी जाएगी जब वह संस्कृति के संरक्षण, जीवन के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण, समाज के प्रति सेवा-भाव, विज्ञान में आत्मनिर्भरता और जीवन में संतुलन के सिद्धांतों के साथ आगे बढ़े।
“अथर्व भारत” हमें उस प्राचीन भारत की ओर लौटने की प्रेरणा देता है जहाँ ऋषि-मुनियों का ज्ञान, जीवन की सरलता, प्रकृति के साथ तालमेल और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना समाज का मूल स्तंभ हुआ करती थी।
आज जब हम 2047 के विकसित भारत की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी जड़ों से जुड़ें, अपने सांस्कृतिक मूल्यों को समझें, और उस परंपरा को आधुनिक संदर्भों में पुनःपरिभाषित करें।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि ‘‘अथर्व भारत 2025’’ में युवाओं, शिक्षाविदों, धर्मगुरुओं, नीति-निर्माताओं और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक साझा मंच दिया गया है, जहाँ संवाद के माध्यम से समावेशी और टिकाऊ भारत की दिशा में सार्थक पहलें सामने आ रही हैं।
देवियो और सज्जनो,
हमारा देश दुनिया का सबसे युवा देश है, जहाँ की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। यह युवाशक्ति न केवल भारत की सबसे बड़ी संपदा है, बल्कि ‘विकसित भारत’ के निर्माण की सबसे सशक्त प्रेरणा भी है।
भारतीय युवा आज न केवल तकनीकी नवाचार, स्टार्टअप्स, विज्ञान, अंतरिक्ष और डिजिटल प्रगति में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि वे भारत की प्राचीन परंपराओं, आध्यात्मिक मूल्यों और सांस्कृतिक धरोहर को भी आधुनिक संदर्भ में आत्मसात कर, विश्व पटल पर प्रस्तुत कर रहे हैं।
आज का युवा ‘योग’, ‘आयुर्वेद’, ‘ध्यान’, और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जैसे सनातन विचारों को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर फैलाने का कार्य कर रहा है। वह यह सिद्ध कर रहा है कि आध्यात्मिक जड़ों से जुड़े रहते हुए भी हम आधुनिकता के शिखर पर पहुँच सकते हैं।
देवियो और सज्जनो,
आज के बदलते समय और प्रतिस्पर्धात्मक वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने युवाओं को केवल शिक्षित ही नहीं, बल्कि समयानुकूल कौशलयुक्त और सक्षम भी बनाएं।
आज का युग ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था का युग है, जहाँ पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी, व्यावसायिक, और व्यवहारिक कौशल भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो गए हैं। अब केवल किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं है, बल्कि युवाओं को डिजिटल साक्षरता, उद्यमिता, नवाचार, नेतृत्व क्षमता, और संवाद कौशल जैसे गुणों से भी सुसज्जित करना समय की माँग है।
इसके लिए स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और कौशल विकास संस्थानों को आपस में समन्वय स्थापित करते हुए ऐसी शिक्षा व्यवस्था तैयार करनी चाहिए जो सिद्धांत और व्यवहार दोनों का संतुलन रखे।
इस दिशा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक प्रभावशाली कदम है, जो शिक्षा को रोजगारोन्मुखी और व्यवहारिक ज्ञान से युक्त बनाने की दिशा में देश को आगे ले जा रही है। साथ ही, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम युवाओं को एक सशक्त भविष्य की ओर ले जाने में सहायक बन रहे हैं।
अंततः, अगर हम चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र विकसित भारत के सपने को साकार करे, तो हमें अपने युवाओं को वर्तमान की जरूरतों और भविष्य की संभावनाओं के अनुरूप प्रशिक्षित और सशक्त बनाना ही होगा। यही सच्ची राष्ट्र सेवा है।
देवियो और सज्जनो,
जब हम राष्ट्रीय उत्कृष्टता की बात करते हैं, तो उसका तात्पर्य केवल आँकड़ों, पुरस्कारों, या वैश्विक रैंकिंग्स की श्रृंखला से नहीं होता। यह एक ऐसी यात्रा है जो गहराई से मानवीय मूल्यों, नैतिक दृष्टिकोण और समग्र विकास की भावना से जुड़ी होती है।
राष्ट्रीय उत्कृष्टता का मूल आधार यह है कि देश का प्रत्येक नागरिक न केवल अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करे, बल्कि वह समाज और राष्ट्र की प्रगति में भी सहभागी बने।
जब हम इस प्रकार की समग्र उत्कृष्टता को अपनाते हैं, तो व्यक्ति केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह अपनी चेतना का विस्तार करता है-आत्म से समाज तक, और समाज से राष्ट्र तक।
राष्ट्रीय उत्कृष्टता का यह स्वरूप हमें सिखाता है कि सच्ची प्रगति वही है जिसमें आर्थिक विकास के साथ-साथ नैतिकता, करुणा, समर्पण और उत्तरदायित्व जैसे मूल्य भी समान रूप से विकसित हों। तभी हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर पाएंगे जो न केवल विश्वगुरु कहलाए, बल्कि विश्वमित्र भी बने, जो शक्ति के साथ-साथ सहिष्णुता और संवेदना का भी प्रतीक हो।
मैं समिट इंडिया को नमन करता हूँ जिसने इसी दिशा में अग्रसर होते हुए नीतिगत विमर्श, जनसंवाद, शोध-अधिष्ठान, और कर्तृत्वशील नेतृत्व के चार स्तंभों पर राष्ट्र के नव-निर्माण का शंखनाद किया है।
इस गौरवपूर्ण अवसर पर मैं सम्मानित किए गए उन सभी महान विभूतियों को हार्दिक अभिनंदन और शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ, जो अपने-अपने क्षेत्रों में अद्वितीय नवाचारों, दूरदर्शी दृष्टिकोण और समाजहितकारी कार्यों के माध्यम से एक नई दिशा प्रदान कर रहे हैं।
आप सभी उस ‘नवोदय भारत’ के प्रेरक प्रतीक हैं, जिसकी नींव ज्ञान, कर्म, और सेवा जैसे मूलभूत भारतीय मूल्यों पर टिकी है। आपका समर्पण, सृजनशीलता और समाज के प्रति आपकी प्रतिबद्धता वास्तव में उस भारत की रचना कर रही है, जो वैश्विक मंच पर सभ्यता, संवेदनशीलता और श्रेष्ठता का प्रतिनिधित्व करता है।
समापन में, मैं केवल इतना ही कहना चाहूँगाः
‘‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’’ अर्थात् तुम्हें कर्म करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि कर्म के फल पर। यह केवल श्लोक नहीं, बल्कि राष्ट्रधर्म का उद्घोष है और ‘अथर्व भारत’ उसी राष्ट्रधर्म की अखंड साधना का नाम है।
जयतु भारतम् । जयतु उत्कृष्टता। वन्दे मातरम्।
धन्यवाद,
जय हिंद!