Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of Inauguration of the 11th Annual All-Women Artists’ Art Exhibition 2025 at Punjab Kala Bhawan, Chandigarh on April 25, 2025.

आर्टस्केप्स द्वारा आयोजित ‘आर्ट एग्ज़ीबीशन-2025’ के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 25.04.2025, शुक्रवार

समयः शाम 5:00 बजे

स्थानः चंडीगढ़

नमस्कार!

आज “आर्टस्केप्स” द्वारा आयोजित ‘11वें ऑल वूमन आर्टिस्ट्स आर्ट एग्ज़ीबिशन’ के इस प्रेरणादायी आयोजन का हिस्सा बनना मेरे लिए अत्यंत गर्व और हर्ष का विषय है। यह मंच न केवल भारतीय कला की विविधता और समृद्ध परंपरा का प्रतीक है, बल्कि यह नारी सशक्तिकरण का भी सशक्त माध्यम बन चुका है।

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि 25 अप्रैल से 2 मई तक आयोजित की जा रही इस कला प्रदर्शनी में देश और विदेश की लगभग 150 प्रतिभाशाली महिला कलाकारों की विविध कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जा रहा है। 

विशेष उल्लेखनीय है कि इनमें वे 12 विशिष्ट महिला कलाकार भी शामिल हैं, जिन्हें आज उनकी उत्कृष्ट कलात्मक अभिव्यक्ति और रचनात्मक योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयासों की सराहना है, बल्कि समूचे महिला कलाकार समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। मैं इन सभी विजेता महिला कलाकारों को हार्दिक बधाई देता हूं।

देवियो और सज्जनो,

इस आयोजन की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि यह सिर्फ एक प्रदर्शनी भर नहीं है, बल्कि यह महिला कलाकारों की भावनाओं, विचारों और दृष्टिकोण को एक स्वर और पहचान देने का कार्य कर रहा है। यहां प्रस्तुत हर एक कलाकृति न केवल रचनात्मकता की मिसाल है, बल्कि यह हमारी सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक विरासत और महिला सशक्तिकरण की गहराई को भी दर्शाती है।

अत्यंत हर्ष और गर्व का विषय है कि 2011 में अपनी स्थापना के बाद से आर्टस्केप्स ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय कला और कलाकारों की गरिमा को बढ़ाया है। यह संगठन महिलाओं की रचनात्मकता को पहचानने, उन्हें स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने और उन्हें सशक्त बनाने का एक सशक्त माध्यम बन चुका है।

विशेष रूप से यह जानकर गर्व होता है कि आर्टस्केप्स एक स्वयं वित्त पोषित कला संस्था है, जो महिला कलाकारों के सशक्तिकरण के लिए समर्पित रहा है। 

आर्टस्केप्स संस्था ने यह सिद्ध कर दिया है कि कला केवल सौंदर्य का विषय नहीं होती, बल्कि यह समाज परिवर्तन का एक प्रभावी साधन भी बन सकती है।

यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता होती है कि यह संगठन देश भर की महिला कलाकारों को एक ऐसा मंच प्रदान कर रहा है जहाँ वे बिना किसी भेदभाव के अपनी प्रतिभा को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सकती हैं। 

यह विभिन्न कला कार्यक्रमों, कार्यशालाओं, सेमिनारों, सामूहिक प्रदर्शनियों और वार्षिक प्रदर्शनियों के माध्यम से अवसर प्रदान करके महिला कलाकारों की कला को बढ़ावा देने हेतु कई तरह की गतिविधियों का आयोजन करती है।

देवियो और सज्जनो,

मेरा मन महिला कलाकारों द्वारा बनाई गईं कलाकृतियों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुआ है। इन रचनाओं में न केवल रंगों की सौंदर्यता है, बल्कि उनमें आत्मा की गहराई, संवेदनाओं की ऊष्मा और सोच की परिपक्वता भी दिखाई देती है। हर चित्र, हर रेखा, हर रंग एक कहानी कहता है। 

यह देखकर आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है कि हमारी महिला कलाकार न केवल कला के माध्यम से अपने आप को व्यक्त कर रही हैं, बल्कि समाज को भी एक नई दृष्टि और सोच दे रही हैं। ये कलाकृतियाँ नारी सशक्तिकरण का सजीव प्रमाण हैं।

कला केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह वह सेतु है जो मनुष्य के अंतर्मन को समाज से जोड़ती है। यह विचारों, भावनाओं, अनुभवों और संवेदनाओं को रूप और दिशा देने की शक्ति रखती है। 

हर कला रूप अपने आप में एक समृद्ध और गूढ़ संवाद है। चाहे वह नृत्य हो, जो शरीर की हर लय में भावना को संप्रेषित करता है; संगीत हो, जो सुरों के माध्यम से हृदय की गहराईयों को छूता है; चित्रकला हो, जो रंगों और रेखाओं में जीवन की विविधता को समेटती है; साहित्य हो, जो शब्दों के माध्यम से यथार्थ और कल्पना की सीमाएं तोड़ता है; या रंगमंच हो, जो जीवन के संघर्षों और संदेशों को जीवंत रूप देता है।

कला व्यक्ति को भीतर से समृद्ध करती है और समाज को संवेदनशील, विचारशील और संतुलित बनाती है। 

देवियो और सज्जनो,

चित्रकला की कला का सबसे प्राचीन और सशक्त प्रमाण हमें गुफा चित्रों के रूप में प्राप्त होता है। यह चित्र न केवल मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति का आरंभिक रूप हैं, बल्कि उसके विचार, जीवनशैली, आस्था और प्रकृति के साथ संबंध को भी दर्शाते हैं।

हजारों वर्षों पहले जब न तो भाषा विकसित हुई थी और न ही लेखन की कोई विधा, तब मनुष्य ने अपनी भावनाओं और अनुभवों को पत्थरों की दीवारों पर उकेरना शुरू किया।

इन गुफा चित्रों के आश्रय स्थल, जिन्हें हम ‘रॉक शेल्टर्स’ कहते हैं, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और भारत सहित विश्व के कई भागों में पाए गए हैं। ऑस्ट्रेलिया के अबोरिजिनल रॉक आर्ट, फ्रांस की ‘लास्को गुफाएं’ और भारत के ‘भीमबेटका रॉक शेल्टर्स’ इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इन चित्रों में शिकार के दृश्य, नृत्य, जानवरों की आकृतियाँ, और दैनिक जीवन की झलक मिलती है, जो उस युग के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की सजीव छवि प्रस्तुत करते हैं।

इसके अलावा भारत में प्राचीन चित्रकला की समृद्ध परंपरा का एक अद्वितीय उदाहरण अजंता और एलोरा की गुफा चित्रकला है, जो लगभग 2000 से 2500 वर्ष पूर्व के हैं। ये चित्र न केवल हमारे देश की कलात्मक विरासत को दर्शाते हैं, बल्कि यह सिद्ध करते हैं कि उस समय भारत न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध था, बल्कि कला, स्थापत्य और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में भी विश्व के अग्रणी देशों में से एक था।

अजंता और एलोरा की गुफाएं भारतीय चित्रकला, मूर्तिकला और स्थापत्य की प्राचीन और समृद्ध विरासत का जीवंत प्रमाण हैं। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म से जुड़ी हैं और बुद्ध के जीवन व जातक कथाओं को भावपूर्ण चित्रों के माध्यम से दर्शाती हैं, जबकि एलोरा की गुफाएं हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों की कलात्मक अभिव्यक्ति का संगम हैं। आज भी ये गुफाएं भारत की सांस्कृतिक धरोहर और विश्व कला जगत की अनुपम धरोहर हैं।

इन चित्रों की सबसे खास बात यह है कि इनमें न केवल सौंदर्यबोध झलकता है, बल्कि यह कला, इतिहास और मानव सभ्यता के विकास का प्राचीनतम दस्तावेज भी हैं। 

देवियो और सज्जनो,

आज की महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना रही हैं, और चित्रकला व दृश्य कला भी इससे अछूता नहीं है।

परंतु, आरंभिक काल में स्थिति इतनी अनुकूल नहीं थी। कला के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति बहुत सीमित रही, और इसका प्रमुख कारण समाज की पारंपरिक मानसिकता रही है। विशेषकर भारतीय परिवारों में महिलाओं की भूमिका को लंबे समय तक घरेलू दायरे तक सीमित रखा गया।

 कला एक ऐसा माध्यम है जो खुली सोच, स्वतंत्रता और आत्म-अभिव्यक्ति की मांग करता है। इसमें विचारों की उड़ान, संवेदनाओं की गहराई और समाज के प्रति सजग दृष्टि आवश्यक होती है। 

लेकिन जब महिलाएं सामाजिक बंधनों, मर्यादाओं और अपेक्षाओं में जकड़ी हों, तो उनके लिए इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना आसान नहीं होता। कई प्रतिभाशाली महिलाएं केवल इसलिए सामने नहीं आ सकीं क्योंकि उन्हें मंच, प्रोत्साहन और स्वीकृति नहीं मिली। 

हालांकि आज स्थितियाँ बदल रही हैं, लेकिन यह स्वीकार करना आवश्यक है कि महिलाओं के कला जगत में सक्रिय योगदान के पीछे एक लंबा संघर्ष और सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया रही है। 

भारतीय कला जगत में अमृता शेरगिल, अनजोली एला मेनन, अरपिता सिंह, बी. प्रभा, नलिनी मलानी, माया बर्मन और सीमा कोहली जैसी महिला कलाकारों ने अपनी रचनात्मकता, सामाजिक चेतना और गहरी संवेदनशीलता से कला को एक नया दृष्टिकोण दिया है।

इन कलाकारों ने यह सिद्ध किया है कि महिलाएं न केवल सौंदर्य रचती हैं, बल्कि अपने चित्रों के माध्यम से समाज, संस्कृति और मानवता के विभिन्न पहलुओं को भी प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती हैं। 

भारतीय महिला कलाकार आज कल्पनाशीलता और संवेदना की नई सीमाएं रच रही हैं, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की कला-संस्कृति को गौरव दिला रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

मेरा मानना है कि कला केवल सौंदर्य की अनुभूति नहीं, बल्कि भावनाओं, विचारों और सामाजिक यथार्थ की सबसे प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। यह एक ऐसा माध्यम है जो शब्दों से परे जाकर आत्मा को छूता है, जो न केवल कलाकार की अंतरात्मा को उकेरता है, बल्कि समाज को भी उसके वास्तविक रूप में प्रतिबिंबित करता है।

चाहे वह शौक के रूप में हो या पेशे के रूप में, कला हमेशा से ही एक रचनात्मक और परिवर्तनशील ऊर्जा का स्रोत रही है। इसमें मानव संवेदनाओं की सूक्ष्मता, समाज के तानों-बानों की जटिलता, और संस्कृति की आत्मा को पकड़ने की अद्भुत शक्ति होती है।

आज की महिलाएं न केवल अपनी कला के माध्यम से आत्म-अभिव्यक्ति कर रही हैं, बल्कि वे नए सामाजिक विमर्श को जन्म दे रही हैं। वे रंगों, आकृतियों और प्रतीकों के माध्यम से भविष्य की सोच, समावेशी दृष्टिकोण और संवेदनशीलता को आकार दे रही हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाओं की यह कलात्मक उपस्थिति आने वाले कल की दशा और दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगी। उनके भीतर की संवेदना, संघर्ष और सृजनशीलता मिलकर एक ऐसे भविष्य की रचना करेंगी जो सौंदर्य और संतुलन दोनों से परिपूर्ण होगा।

देवियो और सज्जनो,

कला समाज का दर्पण होती है, और जब इसमें महिलाओं की सोच, दृष्टिकोण और संवेदनाएं जुड़ती हैं, तो वह और भी अधिक समृद्ध और जीवंत बन जाती है। 

आर्टस्केप्स ने वर्षों से जो कार्य किया है, वह केवल कला को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि कलाकारों को आत्मविश्वास, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नवाचार के लिए मंच प्रदान करना है। 

यह देखकर अत्यंत संतोष होता है कि किस प्रकार यह संगठन कला को समाज और समय की नब्ज से जोड़कर एक जीवंत संवाद स्थापित कर रहा है।

मैं इस अवसर पर भारत के विभिन्न प्रांतों से आए सभी विजेताओं और महिला कलाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ। आप सभी ने अपनी कला के माध्यम से नारी चेतना की शक्ति, सृजनात्मकता और संवेदनशीलता को समाज के समक्ष प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया है। 

मैं आर्टस्केप्स के आयोजकों को भी बधाई देता हूँ जिन्होंने इस अभियान को निरंतर आगे बढ़ाया और महिलाओं को रचनात्मकता के क्षेत्र में सशक्त प्रयास प्रदान किया। 

आपने एक ऐसी परंपरा स्थापित की है जो भारतीय कला जगत में स्त्री स्वर को मज़बूती से स्थापित करने में अहम भूमिका निभा रही है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह मंच आगे भी और अधिक महिला कलाकारों को प्रेरित करेगा, सशक्त बनाएगा और भारतीय कला की गरिमा को वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगा।

अंत में, मैं सभी दर्शकों से यही आग्रह करता हूँ कि वे इन कलाकृतियों को केवल रंगों और रूपों के रूप में न देखें, बल्कि एक संवेदना, एक दृष्टिकोण और एक सामाजिक संदेश के रूप में अनुभव करें। यही सच्ची कला है, जो मन को जोड़ती है, विचारों को प्रज्वलित करती है और समाज में बदलाव का आधार बनती है।

आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद,

जय हिंद!