Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of Mahaveer Jayanti Mahotsav at Zirakpur on April 9, 2025.
- by Admin
- 2025-04-09 20:35
श्री महावीर जयंती महोत्सव सप्ताह आयोजन के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 09.04.2025, बुधवार
समयः सुबह 09:45 बजे
स्थानः जीरकपुर
नमस्कार!
आज एस.एस. जैन सभा, जीरकपुर द्वारा आयोजित महावीर जयंती महोत्सव सप्ताह के इस पवित्र और पुण्य अवसर पर आप सभी के मध्य उपस्थित होकर मैं स्वयं को अत्यंत गौरवान्वित और कृतार्थ अनुभव कर रहा हूँ। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानवता, करुणा और आत्मसाधना का पर्व है।
यह दिन न केवल जैन समाज के लिए, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक प्रेरणादायक पर्व है। महावीर स्वामी केवल एक धार्मिक गुरु नहीं थे, बल्कि वे एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और अहिंसा के अग्रदूत थे। उनका जीवन हमें सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अनेकांतवाद के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
भगवान महावीर का जन्म लगभग 2600 वर्ष पूर्व बिहार के क्षत्रिय कुंडग्राम में हुआ था। वे राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। बचपन से ही वे वैभव और समृद्धि से घिरे थे, लेकिन उन्हें सांसारिक सुखों से कोई लगाव नहीं था। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने राज-पाठ छोड़कर संन्यास ले लिया और आत्मज्ञान की खोज में तपस्या में लीन हो गए।
12 वर्षों की कठोर साधना के बाद उन्हें केवलज्ञान (कैवल्य) की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर बने। उन्होंने समस्त मानवता के कल्याण के लिए अपने उपदेश दिए और जैन धर्म के अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, पंच महाव्रतों को स्थापित किया।
इन सिद्धांतों का उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, बल्कि समाज में शांति, सह-अस्तित्व और नैतिकता को स्थापित करना था।
आज के युग में जब भौतिकवाद और हिंसा बढ़ रही है, तब महावीर स्वामी के ये सिद्धांत हमें एक आध्यात्मिक और संतुलित जीवन की ओर ले जाने वाले अमर प्रकाशस्तंभ हैं।
महावीर स्वामी का संदेश केवल धार्मिक स्तर तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक जीवन जीने की कला भी है। उन्होंने अनेकांतवाद का सिद्धांत दिया, जो हमें सिखाता है कि हर बात के कई पहलू हो सकते हैं और हमें दूसरों के दृष्टिकोण का भी सम्मान करना चाहिए।
आज के आधुनिक युग में, जब पूरी दुनिया हिंसा, लोभ, और तनाव से ग्रस्त है, महावीर स्वामी की शिक्षाएँ पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई हैं। अगर हम उनके बताए गए मार्ग को अपनाएँ, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में शांति प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि समाज और दुनिया को भी बेहतर बना सकते हैं।
देवियो और सज्जनो,
जैन धर्म भारत की प्राचीन और शाश्वत धार्मिक परंपराओं में से एक है। इसकी स्थापना पहले तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान जी द्वारा की गई थी। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकरों की परंपरा है, जिनमें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का नाम सबसे प्रसिद्ध है।
जैन धर्म एक ऐसा धर्म है जो न केवल मानवता के प्रति, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशीलता सिखाता है। अहिंसा के सिद्धांत के कारण जैन धर्म के अनुयायी वनस्पति, जल, वायु, और पृथ्वी को भी पवित्र मानते हैं। यह धर्म हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलने की शिक्षा देता है, जो आज के समय में पर्यावरण संकट से निपटने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और केंद्रीय सिद्धांत है अहिंसा। यह केवल मनुष्यों के प्रति हिंसा से बचने तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, और यहां तक कि अदृश्य सूक्ष्मजीवों के प्रति भी करुणा और सम्मान का भाव सिखाता है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि प्रत्येक जीवित प्राणी की आत्मा में समान दिव्यता होती है और इसे नुकसान पहुंचाना पाप के समान है।
आधुनिक युग में जैन धर्म के सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक हैं। बढ़ती हिंसा, भौतिकवाद, और पर्यावरणीय असंतुलन के इस दौर में जैन धर्म की अहिंसा, अपरिग्रह, और संयम जैसे सिद्धांत हमें एक बेहतर और संतुलित जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं।
जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को अमूल्य योगदान दिया है। इसका प्रभाव कला, साहित्य, वास्तुकला और शिक्षा में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जैन ग्रंथों में विज्ञान, गणित, और तर्कशास्त्र के महत्वपूर्ण सिद्धांत वर्णित हैं।
धर्म हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है, लेकिन यह ध्यान में रखना जरूरी है कि धर्म का उद्देश्य केवल व्यक्ति की आत्मा का उन्नयन नहीं है, बल्कि यह समाज में भाईचारे, समानता और शांति स्थापित करने का भी माध्यम है। हमारे महान संतों और धर्माचार्यों ने हमेशा यही सिखाया है कि धर्म का असली सार उस दिव्य शक्ति का आशीर्वाद पाने में नहीं, बल्कि मानवता की सेवा करने में है।
यह गर्व की बात है कि जैन समाज ने सदैव अहिंसा, शिक्षा, सेवा और सत्यनिष्ठा के मार्ग को अपनाते हुए देश और समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। जैन तीर्थस्थलों, शिक्षण संस्थानों और सेवा कार्यों ने इस महान परंपरा को यथार्थ रूप में जीवित रखा है। मैं इस अवसर पर जैन समाज के अनुकरणीय योगदान को हृदय से सराहता हूँ।
देवियो और सज्जनो,
जैन मुनियों ने पूरे देश को एक करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर से लेकर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला तक, बिहार के राजगीर से लेकर गुजरात के गिरनार तक हर जगह पैदल घूम कर अपने कर्मों से अपने त्याग का संदेश दिया।
भारत की संत परंपरा अत्यंत समृद्ध, गहन और व्यापक रही है। यह परंपरा केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत नहीं रही, बल्कि हर युग में राष्ट्र की आत्मा को जीवंत रखने वाली शक्ति बनकर उभरी है।
देश को जब जिस दिशा की आवश्यकता पड़ी, संतों ने उसी रूप में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने केवल धर्म का प्रचार नहीं किया, बल्कि समाज को जोड़ने का कार्य किया। उन्होंने ऊँच-नीच, जात-पात, भेदभाव की दीवारें तोड़ीं और ‘एक ही चेतना, एक ही आत्मा’ का संदेश दिया।
कबीर, रविदास, मीराबाई, नामदेव, गुरु नानक, तुलसीदास जैसे संतों ने न केवल भक्ति के माध्यम से जन-जन को जोड़ने का कार्य किया, बल्कि सामाजिक जागरण का भी बीड़ा उठाया।
संतों ने ज्ञान का सृजन किया, भाषाओं को समृद्ध किया, साहित्य को लोकभाषा में ढाला ताकि साधारण जन भी आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को समझ सके। उन्होंने मानवता को केंद्र में रखकर धर्म का पुनर्पाठ किया।
गुलामी के अंधकारमय कालखंड में जब देश की चेतना दब रही थी, तब संतों की वाणी ने आशा की लौ प्रज्वलित रखी। उन्होंने भक्ति को विद्रोह का माध्यम बनाया, ऐसा विद्रोह जो शांति से, प्रेम से, और आत्मबल से लड़ा गया।
उन संतों की वाणी, उनके भजन, उनकी पदावली और उनका जीवन दर्शन, जनमानस के लिए दीपक की लौ बनकर उभरा। उन्होंने केवल आध्यात्मिक मार्ग नहीं दिखाया, बल्कि जन-जन में आत्मसम्मान, आत्मबल और सांस्कृतिक गौरव का संचार किया। वे धर्म की आड़ में निष्क्रियता नहीं, बल्कि आत्मचेतना और जनजागरण के अग्रदूत बने।
संतों की यह वाणी ही वह अमृत थी, जिसने राष्ट्र की आत्मा को जीवित रखा। उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि यदि शरीर गुलाम हो भी जाए, तो आत्मा को कोई कैद नहीं कर सकता। यही विचार आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव बना, जहाँ भक्ति और आत्मबल के उस बीज ने सत्याग्रह और आत्मनिर्भरता के वटवृक्ष का रूप लिया।
उनकी रचनाएँ आज भी जीवित हैं, प्रेरणा देती हैं और यह स्मरण कराती हैं कि जिस राष्ट्र के संत जागरूक हों, वह राष्ट्र कभी भी पूरी तरह पराजित नहीं हो सकता।
देवियो और सज्जनो,
भारत की सबसे बड़ी विशेषता उसकी विविधता है। यह विविधता हजारों वर्षों से हमारे देश की शक्ति और पहचान रही है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, सभी धर्मों के अनुयायी इस धरती पर सदियों से साथ रहते आए हैं।
हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब इस बात की मिसाल है कि एक साथ रहते हुए अलग-अलग आस्थाओं, परंपराओं और जीवनशैलियों को सम्मानपूर्वक अपनाया जा सकता है। हमारे त्योहार, उत्सव और सामाजिक जीवन इस समरसता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
लेकिन यह विविधता तभी हमारी ताकत बनती है जब हम इसे समझने, अपनाने और सम्मान देने का भाव रखें। यदि हम इस विविधता को लेकर पूर्वाग्रह पालें या इसे भेदभाव और विवाद का कारण बना लें, तो यही विविधता सामाजिक तनाव और विघटन का कारण बन सकती है। अतः हमारी जिम्मेदारी है कि हम सभी धर्मों और समुदायों के प्रति सहिष्णुता, करुणा और संवेदना का भाव रखें।
सच्ची धार्मिकता तब है जब हम दूसरे की आस्था का उतना ही सम्मान करें जितना अपनी आस्था का करते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्र की एकता और अखंडता केवल संविधान से नहीं, बल्कि लोगों के आपसी प्रेम, विश्वास और साझे मूल्यों से बनती है।
आज के समय में, जब विश्व भर में धार्मिक असहिष्णुता और टकराव की घटनाएँ बढ़ रही हैं, भारत को दुनिया के सामने एक उदाहरण बनना चाहिए, एक ऐसा देश जहाँ विविधता को खतरा नहीं, बल्कि उत्सव समझा जाता है। हमारी संस्कृति, हमारी बहुलता, हमारी भाषाएँ, हमारे धर्म, ये सब भारत की आत्मा हैं। यही विशेषताएँ हैं जो भारत को वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से जोड़ती हैं।
देवियो और सज्जनो,
आज जब हम भगवान महावीर जयंती महोत्सव सप्ताह मना रहे हैं, तो इस पावन अवसर पर, हम सभी यह संकल्प लें कि महावीर स्वामी के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँगे और अहिंसा, सत्य, और प्रेम के मार्ग पर चलेंगे।
ऐसा करने से न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन शांत और संतुलित होगा, बल्कि हमारा समाज भी एक ऐसी दिशा में अग्रसर होगा जहाँ मानवता, सह-अस्तित्व और वैश्विक करुणा की भावना पुष्पित होगी।
मुझे आप सभी को बताते हुए भी प्रसन्नता हो रही है कि आज विश्व स्तरीय नवकार महामंत्र दिवस मनाया जा रहा है। मैं सभी से निवेदन करता हूँ कि हम भगवान महावीर के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हुए विश्व शांति के लिए अधिक से अधिक नवकार महा मंत्र का जाप करें।
यह मंत्र जैन धर्म का सबसे पवित्र मंत्र है, जो हमें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। इस मंत्र के उच्चारण से न केवल हमें आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह संपूर्ण जगत के कल्याण का भी संदेश देता है।
अंत में, मैं आप सभी को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। आइए, हम सब मिलकर भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ और एक शांतिपूर्ण, प्रेमपूर्ण और सद्भावनापूर्ण समाज का निर्माण करें।
‘‘जियो और जीने दो’’, यही महावीर स्वामी की सबसे बड़ी शिक्षा है, इसे अपने जीवन में अपनाएँ।
धन्यवाद,
जय हिन्द!