Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of Foundation day of Himachal Pradesh at Punjab Raj Bhavan, Chandigarh on April 18, 2025.

हिमाचल प्रदेश के स्थापना दिवस के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 18.04.2025,  शुक्रवारसमयः शाम 5:00 बजेस्थानः पंजाब राजभवन

     

नमस्कार!

आज हम यहां “एक भारत श्रेष्ठ भारत’’ के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश का स्थापना दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। इस कार्यक्रम में, मैं आप सभी का स्वागत करता हूं और आप सभी को 78वें हिमाचल प्रदेश दिवस की हार्दिक बधाई देता हूं।

आज का यह दिन हिमाचल प्रदेश के इतिहास, संस्कृति, और इसकी उपलब्धियों को याद करने का अवसर है।

इस राज्य का स्थापना दिवस हमें उस गौरवशाली दिन की याद दिलाता है, जब यह राज्य अस्तित्व में आया। यह दिन केवल एक भौगोलिक सीमा का निर्माण नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर, समृद्ध परंपराओं और एकजुटता का प्रतीक है।

देवियो और सज्जनो,

भारत, जिसे ‘‘अनेकता में एकता’’ का प्रतीक माना जाता है, दुनिया का एक ऐसा देश है जहाँ भाषा, धर्म, संस्कृति, परंपराएँ, और जीवनशैली में अनगिनत विविधताएँ हैं। 

यहाँ पग-पग पर भाषा, खान-पान और पहनावे में परिवर्तन देखने को मिलता है, फिर भी यह देश राष्ट्रवाद एकता के सूत्र में बंधा हुआ है। 

इसी दृष्टिकोण से हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रीय एकता दिवस के उपलक्ष्य पर 31 अक्टूबर 2015 को ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत” की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य मौजूदा सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में एकता को बढ़ावा देना है। 

‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना भारत की विविधता में एकता की अनूठी परंपरा का प्रतीक है। यह विचार हमारे देश की उस सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता को दर्शाता है जो हमें एकजुट रखती है। इस भावना को और मजबूती देने के लिए हर प्रदेश में ‘राज्य स्थापना दिवस’ मनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हर राज्य की अपनी अलग सांस्कृतिक धरोहर, परंपराएँ, भाषा, और लोक कला होती हैं। राज्य स्थापना दिवस के माध्यम से इन विशिष्टताओं का सम्मान किया जाता है और उन्हें एक व्यापक मंच प्रदान किया जाता है। यह स्थानीय लोगों को अपनी संस्कृति पर गर्व करने और उसे सहेजने की प्रेरणा देता है।

‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को साकार करने के लिए राज्य स्थापना दिवस एक सशक्त माध्यम है। यह हमें अपनी सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाने और उसे सहेजने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही, यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमारी एकता ही हमारी असली ताकत है। 

स्थापना दिवस का यह कार्यक्रम कला, संगीत, नृत्य, आदि जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने का काम कर रहा है, उनके बीच सांस्कृतिक और भाषाई आदान-प्रदान को बढ़ावा दे रहा है। 

देवियो और सज्जनो,

हिमाचल प्रदेश हिमालय की गोद में बसा एक बहुत ही सुन्दर राज्य है। हर साल 15 अप्रैल को ‘‘हिमाचल दिवस’’ के रूप में मनाया जाता है। लेकिन कुछ कारणों से हम 15 अप्रैल के बजाय आज ‘‘हिमाचल दिवस’’ मना रहे हैं। 

वैसे तो हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। प्राचीन काल में इस प्रदेश के आदि निवासी ‘दास’, ‘दस्यु’ और ‘निषाद’ के नाम से जाने जाते थे। 

सन 1857 तक यह प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह के शासन के अधीन पंजाब राज्य का हिस्सा था। जब अंग्रेज़ यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।

देश की आजादी के बाद राजा जोगेंद्र सेन की अगुवाई में 30 रियासतों का विलय हुआ और 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ। 26 जनवरी 1950 को भारत गणराज्य बना और हिमाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।

18 दिसंबर 1970 को संसद में हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम पारित हुआ और 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।

डॉ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल प्रदेश के निर्माता माने जाते हैं। उन्होंने न केवल राज्य के गठन में अहम भूमिका निभाई, बल्कि इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए भी अथक प्रयास किए। उन्होंने कांगड़ा और पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में शामिल कर राज्य की सीमाओं को विस्तृत किया।

हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने पहाड़ और पहाड़ी लोगों के हितों की सदैव रक्षा की। उनके कुशल नेतृत्व, दूरदर्शिता और राजनीतिक समझ ने हिमाचल को विकास की दिशा में अग्रसर किया।

अस्तित्व में आने से लेकर आज तक हिमाचल प्रदेश विकास की राह पर लगातार अग्रसर है। हर क्षेत्र में शून्य से शुरूआत करने वाले इस छोटे से पहाड़ी राज्य ने 77 सालों में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं।

1948 में हिमाचल प्रदेश में साक्षरता दर 7 प्रतिशत थी, जोकि आज 77 साल बाद लगभग 82.80 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। प्रदेश में तीन एयरपोर्ट हैं, जिनकी 1948 में संख्या शून्य थी।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी प्रदेश ने अग्रणी मुकाम हासिल किया है। हिमाचल में अब एक एम्स, एक सेटेलाइट पीजीआई सहित 5 मेडिकल कॉलेज, 5 डेंटल कॉलेज, कई नर्सिंग और फार्मेसी कॉलेज हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में हिमाचल के पास एक ट्रिपल आईटी, एक आईआईटी, तीन स्वायत इंजीनियरिंग संस्थान और दर्जनों इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। यहां पर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे राज्यों के छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।

देवियो और सज्जनो,

हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ ‘बर्फ़ीले पहाड़ों का प्रांत’ है। प्राकृतिक सुंदरता और मनमोहक पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश भारत के सबसे सुंदर, शांत और सुरम्य राज्यों में से एक है, जिसे देवताओं की भूमि भी कहा जाता है।

व्यापक बागों के साथ हिमाचल को देश का फलों का कटोरा भी कहा जाता है। इसकी कल-कल बहती नदियाँ, इसके हरे-भरे चरागाह और इसके जंगल अत्यंत मनमोहक हैं।

इसकी राजधानी शिमला सहित मनाली, धर्मशाला, कुफरी, डलहौजी, चंबा, खजियार, कुल्लू और कसौली जैसे हिल स्टेशन घरेलू और विदेशी दोनों पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्थान हैं। शिमला को पहाड़ों की रानी (Queen of the Hills) के रूप में सराहा जाता है।

चंडीगढ़ से शिमला की दूरी मात्र 100 किलोमीटर है, और यही निकटता इसे चंडीगढ़वासियों के लिए एक पसंदीदा सप्ताहांत गंतव्य बनाती है। गर्मियों की तपिश से राहत पाने और प्रकृति की गोद में कुछ सुकून के पल बिताने के लिए लोग अक्सर शिमला की सुरम्य वादियों की ओर रुख करते हैं। 

प्रकृति ने हिमाचल प्रदेश को प्रचूर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन प्रदान किए हैं और प्रसन्नता की बात है कि प्रदेश के लोगों ने इसकी भव्यता को बनाए रखा है।

हिमाचल प्रदेश में पांच शक्तिपीठ हैं, जो कि मां चामुंडा देवी, मां चिंतपूर्णी देवी, मां बज्रेश्वरी देवी, मां नैना देवी और मां ज्वाला जी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें से प्रत्येक का एक अनूठा इतिहास और महत्व है। इसके अलावा बैजनाथ मंदिर, लक्ष्मी नारायाण मंदिर, हिडिम्बा मंदिर, भीमकाली मंदिर, शंगचूल महादेव मंदिर, बिजली महादेव मंदिर और जाखू मंदिर आदि भी दर्शनीय धार्मिक स्थल हैं।

माना जाता है कि हिमाचल प्रदेश का हिन्दू पौराणिक कथाओं और धर्म के साथ मजबूत संबंध है। कई पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में हिमालय को भगवान शिव की आसन स्थली और देवताओं का निवास क्षेत्र माना गया है। इसलिए इसे ‘देवभूमि’ भी कहा जाता है। राज्य को व्यास, पराशर, वसिष्ठ, मार्कण्डेय और लोमश आदि ऋषियों के निवास स्थल होने का गौरव प्राप्त है।

हिमाचल अपनी साहसिक पर्यटन गतिविधियों जैसे शिमला में आइस स्केटिंग, सोलंग घाटी में पैराग्लाइडिंग, कुल्लू में राफ्टिंग, मनाली में स्कीइंग, बिलासपुर में नौकायन के लिए जाना जाता है। 

हिमाचल प्रदेश के लोगों के द्वारा विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। यहां विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा, चंबा का मिंजर, रेणुका जी मेला, लोहड़ी, हल्दा, फागली, लोसर और मंडी शिवरात्रि मेला जैसे त्योहार धूम धाम से मनाएं जाते हैं। यहां चंबा की मणिमहेश यात्रा, श्रद्धालुओं की पहली पसंद है।

हिमाचल अपने हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। कालीन, चमड़े के काम, कुल्लू शॉल, कांगड़ा पेंटिंग, चंबा रुमाल, स्टोल, कढ़ाई वाले घास के जूते (पुलन चप्पल), चांदी के आभूषण, धातु के बर्तन, बुने हुए ऊनी मोजे, पट्टू, बेंत और बांस की टोकरी (विकर और रतन) और लकड़ी का काम शामिल हैं।

विभिन्न रंगों की हिमाचली टोपियाँ भी प्रसिद्ध स्थानीय कला कृति हैं, और अक्सर इन्हें हिमाचली पहचान के प्रतीक के रूप में माना जाता है। हिमाचल प्रदेश की संस्कृति भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है।

नृत्य और संगीत के क्षेत्र में भी हिमाचल प्रदेश अपनी विशिष्ट पहचान बनाया हुआ है। किन्नौर में ‘लोसर शोना चुकसाम’, सिरमौर में ‘बुराह नृत्य’, लाहौल और स्पीति में ‘शुंटो’, कुल्लू में ‘नाटी’, चंबा में ‘दांगी’, राक्षस नृत्य, कायांग नृत्य, बकायंग नृत्य, रस नृत्य और झूर नृत्य आदि प्रदेश के कुछ लोकप्रिय नृत्य रूप हैं। यहां के लोकगीत धर्म, रीति- रिवाजों और फसल से जुड़े हुए हैं।

कहा जाता है कि हर साल यहां पर प्रदेश की जनसंख्या के समान या उससे भी ज्यादा पर्यटक आते हैं। सरकारी आंकड़ों के अुनसार वर्ष 2023 में हिमाचल में 1 करोड़ 60 लाख पर्यटक आए।

कुछ तो बात है इस भूमि में कि इतने लोग यहां खींचे चले आते हैं। महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस भूमि से आकर्षित होकर यहां पर प्रवास के लिए आए थे।

हिमाचल के लिए अटल जी ने कभी लिखा था- 

बर्फ ढंकी पर्वतमालाएं, नदियां, झरने, जंगल,

किन्नरियों का देश, देवता डोलें पल-पल!

हिमाचल की यह धरती तप और त्याग तथा अध्यात्म और धर्म की पावन भूमि है। इस धरती ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अनगिनत वीरों को जन्म दिया है।

मैं हिमाचल के नागरिकों को इस बात के लिए विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूँ कि उन्होंने कठिन परिस्थितियों और भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद निरंतर विकास और आत्मनिर्भरता की दिशा में कार्य किया है। यहाँ की जनता की सादगी, मेहनत और ईमानदारी पूरे भारत को एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि जब संकल्प मजबूत हो, तो हर बाधा अवसर बन जाती है।

हिमाचल की संस्कृति की विशेषता यह है कि यहाँ आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। यहाँ के मेले, लोकनृत्य, हस्तशिल्प और रीति-रिवाज़ आज भी उस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजे हुए हैं जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखती है।

हिमाचल न केवल पर्यटन के क्षेत्र में बल्कि जैविक कृषि, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन और शिक्षा के क्षेत्र में भी लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। मुझे विश्वास है कि राज्य सरकार और यहाँ की जनता मिलकर इसी तरह हिमाचल को प्रगति के नए शिखरों तक ले जाती रहेगी।

यहां के हर गांव में देवी-देवताओं का वास है; यहां शांति चारों ओर व्याप्त है, ऐसा है यहां का जीवन।

इस अवसर पर, मैं हिमाचल प्रदेश के सभी नागरिकों की सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और निरंतर प्रगति की कामना करता हूँ।

मेरा मानना है कि सभी राज्यों के बीच ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों में सांस्कृतिक एकता और आपसी समझ को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही यह राष्ट्र की संघीय ढांचे को भी मजबूती प्रदान करेगा। यह अभियान देश की विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं को पहचानने और उजागर करने में भी मदद करेगा।

एक बार फिर आप सभी को हिमाचल प्रदेश के स्थापना दिवस की बधाई।

धन्यवाद, 

जय हिन्द!