SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SEMINAR ON MAKING CHANDIGARH COLLEGES AUTONOMOUS AT PUNJAB RAJ BHAVAN CHANDIGARH ON MAY 22, 2025.

‘मेकिंग चंडीगढ़ कॉलेजिस अटोनॉमस’ पर सेमिनार के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 22.05.2025,  गुरूवारसमयः सुबह 10:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

यह वास्तव में गर्व और सम्मान की बात है कि आज हम सब यहाँ चंडीगढ़ के महाविद्यालयों/उच्च शिक्षा के विकास को एक नई दिशा देने हेतु एकत्र हुए हैं।

आज का यह आयोजन उच्च शिक्षा प्रणाली के परिप्रेक्ष्य में न केवल अत्यंत प्रासंगिक है, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को सशक्त, लचीला और भविष्य-उन्मुख बनाने की दिशा में एक ठोस कदम भी है।

संबद्धता की वर्तमान प्रणाली से स्वायत्तता की ओर बढ़ना मात्र एक प्रशासनिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह एक दूरदर्शी और साहसिक पहल है, जो हमारे महाविद्यालयों को अकादमिक उत्कृष्टता, अनुसंधान आधारित नवाचार और संस्थागत आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर करती है।

यह वह परिवर्तन है, जो आपको केवल व्यवस्थागत स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि अपनी शैक्षणिक पहचान को नए सिरे से गढ़ने का अवसर भी प्रदान करता है। 

यह वह क्षण है, जब आप अपने संस्थान के लिए देखे गए सपनों को मूर्त रूप देने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं, एक ऐसा संस्थान जो सिर्फ शिक्षण का केंद्र नहीं, बल्कि विचारों, खोजों और नेतृत्व का स्रोत बन सके।

स्वायत्तता का अर्थ केवल प्रशासनिक स्वतंत्रता नहीं होता, बल्कि यह शैक्षणिक नवाचार, अकादमिक स्वतंत्रता, जवाबदेही और गुणवत्ता की साझा जिम्मेदारी का एक समावेशी मॉडल है। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा थाः

‘‘शिक्षा वह नहीं है जो किताबों से मिलती है, बल्कि वह है जो जीवन को दिशा देती है।’’

स्वायत्त कॉलेजों को यह अवसर मिलता है कि वे अपने पाठ्यक्रमों को समय के अनुरूप बनाएं, नई शैक्षणिक तकनीकों को अपनाएं, और छात्रों को ऐसी शिक्षा दें जो न केवल डिग्री दे, बल्कि उन्हें जीवन के लिए सक्षम बनाए। 

देवियो और सज्जनो,

चंडीगढ़, जिसे हम सभी “सिटी ब्यूटीफुल” के नाम से जानते हैं, न केवल भौतिक रूप से सुंदर है, बल्कि यह बौद्धिक समृद्धि और शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है। 

पिछले कई दशकों से हमारे संबद्ध महाविद्यालयों ने चंडीगढ़ की शैक्षणिक पहचान को बौद्धिक, सामाजिक और व्यावसायिक सभी स्तरों पर गढ़ने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

इन संस्थानों ने न केवल इस शहर को ज्ञान और कौशल का केंद्र बनाया, बल्कि पूरे राष्ट्र को ऐसे प्रतिभाशाली युवा दिए हैं जो आज देश-विदेश में कुशल प्रशासक, संवेदनशील नीति निर्माता, उत्कृष्ट खिलाड़ी, वैज्ञानिक, उद्यमी और जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

हमारे कॉलेजों ने वर्षों से उत्कृष्टता की मिसाल कायम की है। अब समय आ गया है कि हम उन्हें स्वायत्तता प्रदान करके और अधिक आत्मनिर्भर बनाएं, ताकि वे देश और विश्व की प्रतिस्पर्धा में न केवल टिक सकें, बल्कि नेतृत्व कर सकें।

आज हम शिक्षा के एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ केवल अतीत की उपलब्धियों पर गर्व करना पर्याप्त नहीं है। हमें भविष्य की चुनौतियों को समझना होगा, और उनसे निपटने के लिए अपने संस्थानों को सजग, सक्षम और प्रतिस्पर्धी बनाना होगा। 

वैश्विक तकनीकी क्रांति, रोजगार के बदलते स्वरूप, और विद्यार्थियों की अपेक्षाओं में हो रहे तीव्र बदलावों के बीच अब यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने कॉलेजों को इस परिवर्तनशील परिदृश्य के अनुरूप ढालें और उन्हें और अधिक सशक्त, लचीला एवं नवाचार-केंद्रित बनाएं।

देवियो और सज्जनो,

योग्य महाविद्यालयों को स्वायत्तता प्रदान करने की प्रक्रिया, भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की दूरदर्शी सोच और उसमें निहित सिद्धांतों से प्रेरित है। 

यह नीति केवल शैक्षणिक सुधार का दस्तावेज नहीं, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण है, जो हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों को उत्कृष्टता, नवाचार, समावेशिता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के केंद्रों में रूपांतरित करने की परिकल्पना करती है।

स्वायत्तता का अर्थ यह नहीं कि कोई संस्थान शेष प्रणाली से कटकर, अलग-थलग कार्य करे। इसका सही आशय यह है कि प्रत्येक संस्थान को अपनी विशिष्ट पहचान, स्थानीय संदर्भों और वैश्विक मानकों को ध्यान में रखते हुए, स्वतंत्र रूप से अपने शैक्षणिक निर्णय लेने की शक्ति मिले। 

इसका मतलब यह है कि महाविद्यालय अपने विद्यार्थियों की ज़रूरतों और अपने क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम बना सकें, अपनी मूल्यांकन प्रणाली विकसित कर सकें, और अनुसंधान व नवाचार को प्राथमिकता दे सकें।

यह अकादमिक स्वतंत्रता का एक सशक्त माध्यम है, जो संस्थानों को जवाबदेही और नवाचार के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह कदम न केवल संस्थागत सशक्तिकरण को गति देगा, बल्कि विद्यार्थियों को एक समृद्ध और समकालीन शिक्षा अनुभव प्रदान करने में भी मील का पत्थर सिद्ध होगा।

देवियो और सज्जनो,

स्वायत्तता आप सभी कॉलेजों को न केवल प्रशासनिक और अकादमिक स्वतंत्रता प्रदान करेगी, बल्कि यह एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और गुणवत्ता की ओर अग्रसर होने का अवसर भी देगी। 

स्वायत्तता प्राप्त करने के पश्चात सभी कॉलेज कौशल-आधारित कार्यक्रमों की शुरुआत करने में अधिक सक्षम होंगे। वे विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान कर सकेंगे जो केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न हो, बल्कि उन्हें व्यावहारिक जीवन के लिए तैयार करे।

इसके साथ ही, अंतःविषय (interdisciplinary) अध्ययन की दिशा में भी हमारे शिक्षण संस्थान स्वतंत्र रूप से पहल कर सकेंगे, जहाँ विज्ञान, मानविकी, वाणिज्य और तकनीकी विषयों को एक-दूसरे के साथ जोड़कर समग्र शिक्षा का वातावरण तैयार किया जा सकेगा। 

यह न केवल छात्रों की सोच के दायरे को विस्तारित करेगा, बल्कि उन्हें जटिल समस्याओं को बहुआयामी दृष्टिकोण से हल करने की क्षमता भी प्रदान करेगा।

इसके अतिरिक्त, स्वायत्त संस्थान अपने पाठ्यक्रमों को उद्योगों की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप तेजी से अनुकूल बना सकेंगे और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी कर, संयुक्त परियोजनाओं, अनुसंधान एवं नवाचार कार्यक्रमों की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे।

मैं इस मंच से छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और व्यापक समुदाय के सभी हिस्सेदारों को यह पूर्ण विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि कॉलेजों को स्वायत्तता प्रदान करने की यह पहल केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक सशक्त और योजनाबद्ध परिवर्तन है, जिसे हर संभव सहायता और मार्गदर्शन के साथ लागू किया जाएगा।

इस परिवर्तन को लागू करने हेतु एक मज़बूत विनियामक ढांचा सुनिश्चित किया जाएगा, जिसमें संस्थानों को स्पष्ट दिशा-निर्देश, समयबद्ध सहायता और आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता दी जाएगी। इसके साथ ही, वित्तीय सहयोग के माध्यम से यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी योग्य संस्थान संसाधनों की कमी के कारण पीछे न रह जाए।

सरकार की यह प्रतिबद्धता है कि यह परिवर्तन न तो पहुँच (access) पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और न ही समानता के सिद्धांतों से कोई समझौता किया जाएगा। बल्कि, यह पहल गुणवत्ता, नवाचार और समावेशी विकास को एक नई ऊँचाई पर ले जाने का माध्यम बनेगी। 

हम एक ऐसा उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए संकल्पित हैं, जो हर विद्यार्थी को अपनी क्षमता का पूर्ण विकास करने का अवसर प्रदान कर सके।

मैं सभी संस्थानों के अकादमिक नेतृत्व से यह आग्रह करता हूँ कि वे इस स्वायत्तता के अवसर को केवल एक प्रशासनिक सुविधा के रूप में न देखें, बल्कि इसे एक दूरदर्शी बदलाव के रूप में आत्मसात करें। यह समय दूरदृष्टि, नवाचार और ज़िम्मेदारी से भरे नेतृत्व का है।

अब वह क्षण आ चुका है जब हम अपने संस्थानों को सिर्फ शिक्षा देने वाले केंद्र नहीं, बल्कि विचारों को जन्म देने वाले, रचनात्मकता को पंख देने वाले और समाज को दिशा देने वाले जीवंत परिसरों के रूप में विकसित करें।

आइए, हम मिलकर ऐसे संस्थानों का निर्माण करें जो केवल पाठ्यपुस्तकें न पढ़ाएँ, बल्कि विद्यार्थियों की जिज्ञासा को जगा सकें; जो केवल डिग्रियाँ न दें, बल्कि चरित्र और दृष्टिकोण गढ़ें। ऐसे संस्थान, जो ज्ञान के साथ-साथ मूल्य, विवेक और प्रेरणा भी प्रदान करें। 

हम सबका दायित्व है कि हम शिक्षा को केवल एक प्रणाली न मानें, बल्कि उसे एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में देखें, जो न केवल व्यक्ति को, बल्कि पूरे समाज को सशक्त बना सके।

मैं यह नहीं कह रहा कि आप सभी संस्थान कल ही स्वायत्तता प्राप्त करने के लिए आवेदन कर दें। लेकिन इतना अवश्य कहना चाहता हूँ कि हमें इस दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। हमें आत्मविश्लेषण करना होगा कि स्वायत्तता की राह में कौन-सी बाधाएँ हैं, और उन्हें दूर करने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।

हर संस्थान को यह प्रयास करना होगा कि वह प्रतिदिन कुछ ऐसा करे जो उसे स्वायत्तता के योग्य बनाए, चाहे वह अकादमिक ढाँचे में सुधार हो, आंतरिक मूल्यांकन की पारदर्शिता हो, या उद्योगों और अनुसंधान संस्थानों से मजबूत भागीदारी की दिशा में पहल हो। 

हमें अपने आसपास मौजूद स्वायत्त महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों से सीखना चाहिए, उनके अनुभवों, सफलताओं और चुनौतियों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

यह परिवर्तन हमारे छात्रों के भविष्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने का माध्यम बनेगा। उनको अधिक विकल्प मिलेंगे, अधिक व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलेगा और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा की तैयारी भी बेहतर होगी।

उन्नति का मार्ग स्वतंत्रता से होकर गुजरता है, लेकिन वह उत्तरदायित्व के साथ आता है।

जब किसी संस्थान या व्यक्ति को निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाती है, तो उससे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह उन निर्णयों के परिणामों के प्रति सजग और उत्तरदायी रहेगा। स्वतंत्रता हमें दिशा चुनने की शक्ति देती है, लेकिन उत्तरदायित्व ही उस दिशा को सार्थक परिणामों तक पहुँचाता है।

इसलिए जब हम अपने कॉलेजों को स्वायत्तता देने की बात करते हैं, तो उसका मूल उद्देश्य यही होना चाहिए कि वे अपनी स्वतंत्रता का उपयोग नवाचार, गुणवत्ता, समावेशन और जवाबदेही के साथ करें, ताकि वे न केवल अपने विद्यार्थियों का भविष्य संवारें, बल्कि राष्ट्र निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभा सकें।

यदि आज के इस संगोष्ठी के बाद हम सभी एक साझा सोच और स्पष्ट दिशा के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लें, तो निस्संदेह यही इस संगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

तो आइए, हम एकता, प्रतिबद्धता और विश्वास के साथ चंडीगढ़ के संस्थानों को अकादमिक उत्कृष्टता की ओर ले जाने की ओर साझा लक्ष्य के साथ आगे बढ़े।

धन्यवाद,

जय हिंद!