SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF INAUGURATION OF FREE AMBULANCE SEWA WITHIN TRICITY FOR DEAD BODY AND BPL PATIENTS AT CHANDIGARH ON JUNE 12, 2025.
- by Admin
- 2025-06-12 12:45
पीजीआई में ‘निःशुल्क एंबुलेंस सेवा’ के उद्घाटन के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 12.06.2025, गुरूवार समयः सुबह 9:30 बजे स्थानः पीजीआई चंडीगढ़
गुरू समक्ष जुड़ बैठी साध-संगत!
वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतह!
आज मुझे श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर “नोफल एक उम्मीद चैरिटेबल ट्रस्ट” द्वारा संचालित गुरुद्वारा पीजीआई में पहुँचकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। इस पावन अवसर पर मैं यहाँ उपस्थित समस्त साध-संगत को श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई देता हूँ।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी, सिखों के छठे गुरु थे, जिनका जन्म 19 जून 1595 को वडाली गाँव, अमृतसर में हुआ था। वे मात्र 11 वर्ष की आयु में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए, जब उनके पिता, गुरु अर्जन देव जी, ने धर्म की रक्षा हेतु बलिदान दिया।
अपने पिता की शहादत से प्रेरित होकर उन्होंने सिख धर्म को नए स्वरूप में ढालते हुए उसमें वीरता, आत्म-संरक्षण और धर्म रक्षा के तत्व जोड़े। उन्होंने सिखों को यह सिखाया कि आध्यात्मिक जीवन के साथ-साथ अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना भी उतना ही आवश्यक है।
गुरु साहिब जी ने हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के समक्ष अकाल तख्त की स्थापना की, जो आज भी सिख धर्म की सर्वोच्च धार्मिक और नैतिक पीठ के रूप में प्रतिष्ठित है।
उन्होंने मीरी (दुनियावी सत्ता) और पीरी (आध्यात्मिक सत्ता) दो तलवारें धारण कीं, जो बताती हैं कि सच्चा धर्म वही है जो संसारिक कर्तव्यों और आध्यात्मिक साधना दोनों का समन्वय करे। उन्होंने धर्म, न्याय और मानवता की रक्षा के लिए अनेक संघर्ष किए, लेकिन उनका प्रत्येक कार्य दया, साहस और अनुशासन से प्रेरित था।
आज जब हम उनके प्रकाश पर्व को मना रहे हैं, तो यह केवल एक ऐतिहासिक स्मृति नहीं, बल्कि सेवा, साहस और समर्पण के जीवनमूल्यों को पुनः आत्मसात करने का अवसर है।
गुरू रूप साध-संगत,
मैं स्वयं को सौभाग्शाली मानता हूं कि मुझे आज के इस पावन अवसर पर “नोफल एक उम्मीद चैरिटेबल ट्रस्ट” द्वारा पीजीआई गुरुद्वारा परिसर से प्रारंभ की जा रही इस निःशुल्क एंबुलेंस सेवा का लोकार्पण करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
मोहाली, खरड़, पंचकूला, कालका और परवाणू जैसे क्षेत्रों में शुरू की गई यह एंबुलेंस सेवा उन ज़रूरतमंदों के लिए एक संवेदनशील पहल है, जो इलाज के दौरान अपनी सारी पूंजी खर्च कर देते हैं और उनके पास घर लौटने तक के किराये के पैसे भी नहीं बचते या फिर अंतिम समय में अपनों को घर या श्मशान तक ले जाने का साधन नहीं होता। यह सेवा संकट की घड़ी में मानवता और करुणा का एक सजीव उदाहरण है।
“नोफल एक उम्मीद चैरिटेबल ट्रस्ट” का यह कार्य न केवल सराहनीय है, बल्कि अनुकरणीय भी है। पीजीआई जैसे बड़े चिकित्सा संस्थान से इस सेवा की शुरुआत यह दर्शाती है कि जब गुरुद्वारों की लंगर परंपरा और सेवा भाव आधुनिक चिकित्सा जरूरतों से जुड़ते हैं, तब एक नया सामाजिक नवाचार जन्म लेता है।
इस सेवा की उपलब्धता बिना किसी भेदभाव के हर जरूरतमंद को उपलब्ध होगी। यह हमें गुरु नानक देव जी की उस शिक्षाप्रद बात की याद दिलाती हैः ‘‘सेवा करो, परोपकार ही सच्चा धर्म है।’’
गुरू रूप साध-संगत,
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ कि ‘नोफल एक उम्मीद’ चौरिटेबल ट्रस्ट’ वर्ष 2012 से गुरुद्वारे एवं साध-संगत के सहयोग से सेवा कार्यों में निरंतर समर्पित है।
संस्था द्वारा हिमाचल प्रदेश के कैंसर अस्पताल आईजीएमसी, शिमला में नियमित लंगर सेवा चलाई जा रही है, साथ ही पूरे हिमाचल में निःशुल्क शव वाहन की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। कैंसर मरीजों को दवाएँ प्रदान करना भी इस सेवा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह जानकर अत्यंत प्रेरणा मिली कि इस गुरुद्वारे में प्रतिदिन 10 हजार से 15 हजार लोगों के लिए लंगर तैयार किया जाता है और 3 हजार से अधिक व्यक्तियों के ठहरने की व्यवस्था यहाँ की जाती है।
संस्था ने अब तक 400 से अधिक बेटियों के विवाह कराए हैं, 85 महिलाओं को सिलाई मशीनें देकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा गया है, और लगभग 7 सरकारी स्कूलों को गोद लेकर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की यूनिफॉर्म, कंप्यूटर और फीस की व्यवस्था भी की जा रही है।
इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के कठिन काल में संस्था ने एक वर्ष से भी अधिक समय तक निरंतर जरूरतमंदों की सेवा की, और 2023 में हिमाचल प्रदेश में आई भीषण बाढ़ और त्रासदी के समय, शिमला जिले में प्रतिदिन 10 हजार राहत कर्मियों और जवानों के लिए भोजन और आश्रय की समुचित व्यवस्था की गई।
यह सभी कार्य मानवता, सेवा और करुणा के वास्तविक उदाहरण हैं, जो इस संस्था को सच्चे अर्थों में एक प्रेरणास्रोत बनाते हैं।
गुरू रूप साध-संगत,
भारतवर्ष की परंपरा सदियों से ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की रही है। हमारी संस्कृति ने हमें सिखाया है कि दूसरे के दुख में शामिल होना ही सच्ची मानवता है। परोपकार का कार्य केवल दान देना नहीं है, बल्कि किसी ज़रूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान लाने की ईमानदार कोशिश है।
पंजाब की मिट्टी ने गुरुओं, संतों और शहीदों को जन्म दिया है, जिन्होंने परोपकार को केवल उपदेश नहीं, जीवन का आचरण बनाया। गुरु नानक देव जी ने ‘नाम जपो, कीरत करो, और वंड छको’ का जो संदेश दिया, वह परोपकार की भावना का शाश्वत स्वरूप है।
आज जब हम समाज में असमानता, बीमारी, विपत्ति और अकेलेपन जैसी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, तो परोपकार का महत्व और भी बढ़ जाता है। मुझे गर्व है कि पंजाब और देशभर में अनेक संस्थाएँ, ट्रस्ट और सेवाभावी व्यक्ति निर्बलों, रोगियों, विधवाओं, अनाथ बच्चों, और आपदा-पीड़ितों के जीवन में आशा की लौ जला रहे हैं।
चैरिटी का अर्थ केवल आर्थिक सहायता नहीं होता; समय देना, सहानुभूति देना, शिक्षित करना, किसी वृद्ध का हाथ पकड़कर सड़क पार करवाना या किसी पीड़ित को सुन लेना भी उतना ही बड़ा परोपकार है।
मुझे विश्वास है कि हम सब मिलकर इस भावना को और अधिक व्यापक बना सकते हैं। आज आवश्यकता है कि परोपकार हमारे समाज की प्रवृत्ति बने, न कि केवल परिस्थिति में उठाया गया कदम।
अंत में मैं “नोफल एक उम्मीद चैरिटेबल ट्रस्ट” के सभी सदस्यों को, विशेष रूप से इस योजना को मूर्त रूप देने में लगे सेवाभावी कार्यकर्ताओं को, तहे दिल से बधाई देता हूँ। आप सभी का यह समर्पण एक प्रेरणा है, एक उम्मीद है, जो आज के समाज को और अधिक करुणामयी और न्यायपूर्ण बना रही है।
आइए, हम सभी मिलकर यह संकल्प लें कि जहाँ भी पीड़ा हो, वहाँ हम सहायता के लिए उपस्थित हों; जहाँ भी अंधकार हो, वहाँ हम आशा की रोशनी लेकर जाएँ।
आप सभी को पुनः मेरी शुभकामनाएँ।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतह!