SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF WORKSHOP ON ENVIRONMENT AT CHANDIGARH ON JUNE 11, 2025.

पर्यावरणीय विषयक तीन दिवसीय कार्यशाला के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 11.06.2025,  बुधवारसमयः सुबह 10:30 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

‘विद्या भारती उत्तर क्षेत्र’ एवं आयुष मंत्रालय भारत सरकार के ‘क्षेत्रीय औषधीय पादप बोर्ड जोगिन्दर नगर’ के संयुक्त तत्वावधान में पर्यावरण विषय पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला के आज के इस समापन सत्र में आप सभी के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है।

मैं मानता हूं कि यह आयोजन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक गहन प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह एक साझा संकल्प है, जो स्वच्छ, सुरक्षित और सतत भविष्य की दिशा में उठाया गया एक प्रभावशाली और दूरदर्शी कदम है।

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि इस तीन दिवसीय कार्यशाला में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से आए प्रधानाचार्यों, सीनियर लेक्चरर तथा प्रबंध समितियों के सदस्यों ने सक्रिय रूप से भाग लिया है। 

यह कार्यशाला, जिसमें पर्यावरण संरक्षण, औषधीय पौधों को बढ़ावा देना और शिक्षा के माध्यम से इसके संवर्धन पर विचार-विमर्श हुआ, निस्संदेह हमारे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, इसके लिए मैं विद्या भारती को बधाई देता हूँ।

हम सभी भलिभांति जानते हैं कि विद्या भारती वर्ष 1952 से निरंतर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रही है और भारतीय संस्कारों एवं सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप नवपीढ़ी के समग्र विकास हेतु सतत प्रयत्नशील है। 

यह संस्था केवल औपचारिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि चरित्र, राष्ट्रभक्ति और सामाजिक उत्तरदायित्व के भावों का भी संवर्धन करती है। वास्तव में, यह एक ऐसा आंदोलन है जो शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का सशक्त माध्यम मानता है। 

साथियो,

आज जब हम पर्यावरण संरक्षण पर आधारित इस तीन दिवसीय कार्यशाला के समापन सत्र में एकत्रित हुए हैं, यह एक सामूहिक संकल्प का आरंभ है।

यह कार्यशाला न केवल हमें प्रकृति के महत्व और उसकी समृद्ध जैव विविधता के प्रति सजग करती है, बल्कि यह भी स्मरण कराती है कि पृथ्वी का संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है।

हम सभी जानते हैं कि पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है। वर्तमान में, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्रदूषण जैसी समस्याएँ हमारे सामने गंभीर चुनौती बनकर खड़ी हैं। 

इन चुनौतियों का समाधान केवल सरकारों या संगठनों के प्रयासों से ही संभव नहीं है बल्कि इसके लिए समाज के हर वर्ग, विशेषकर शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है, जिसे आप बखूबी निभा रहे हैं। 

महात्मा गांधी जी ने कहा था, ‘‘पृथ्वी हर व्यक्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन देती है, लेकिन हर व्यक्ति के लोभ के लिए नहीं।’’ इस भावना को आत्मसात करना आज के युग की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

देवियो और सज्जनो,

शिक्षा वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बना सकते हैं। आप हमारे शिक्षकगण इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 

विद्यालयों और महाविद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है, ताकि छात्र न केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करें, बल्कि व्यवहारिक रूप से भी पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें। 

मुझे जानकारी मिली है कि विद्या भारती ने अपने विद्यालयों में हर्बल गार्डन तथा इको क्लब स्थापित किए हैं, वहीं अभिभावकों एवं समाज को भी इस हेतु निरंतर जागरूक कर रहे हैं। इसके लिए मैं विद्या भारती को हार्दिक बधाई देता हूँ। 

आप सभी शिक्षकगण समाज के निर्माता हैं। आपके प्रयासों से ही हम एक स्वच्छ, हरित, स्वस्थ तथा सतत् विकासशील भारत की कल्पना को साकार कर सकते हैं। 

देवियो और सज्जनो,

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को देवतुल्य स्थान प्राप्त है। प्राचीन ग्रंथों में पृथ्वी को ‘माता’ कहा गया है-“माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्या“ - जिसका अर्थ है, “पृथ्वी मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।“ 

वेदों में अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश को पंचमहाभूत के रूप में पूजा गया है, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में “पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत” का वर्णन है, ये सब हमारे जीवन के आधार हैं। 

हमारे पूर्वजों ने वृक्षों और नदियों की पूजा की है। पीपल, वट, तुलसी जैसे वृक्षों को पवित्र मानकर उनकी आराधना की जाती है। गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी नदियों को देवी का दर्जा दिया गया है। 

यह श्रद्धा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक प्रभावी पद्धति रही है। यही हमारी दृष्टि प्रदूषणमुक्त वातावरण निर्माण करके संसार को सुखी बनाने में सहायक होगी। 

भारत की परंपरा में पर्यावरण को केवल संसाधन नहीं, बल्कि जीवन का अंग माना गया है। हमारे ग्रंथों में ‘वृक्षो रक्षति रक्षितः’ अर्थात ‘जो वृक्षों की रक्षा करता है, उसकी प्रकृति रक्षा करती है’, जैसे सिद्धांत हमें प्रकृति के साथ सहअस्तित्व का बोध कराते हैं।

आज जब पर्यावरणीय संकट गहराते जा रहे हैं, भारतीय संस्कृति की पर्यावरणीय चेतना हमें समाधान का मार्ग दिखाती है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में प्रकृति के संरक्षण पर बल दिया गया है, जो आज के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है। 

साथियो,

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपना कार्यभार सँभालते ही प्रदूषण जैसे जहर की समस्या को अनुभव करते हुए स्वच्छ भारत की संकल्पना हमारे सामने रखी थी, जिसे देशवासियों ने भरपूर समर्थन दिया। धीरे-धीरे भारत स्वच्छता की ओर बढ़ रहा है तथा पर्यावरण के प्रति सचेत हो रहा है। 

हमें प्राकृतिक संसाधनों का भोग नहीं उपयोग करना ही होगा एवं जल, ऊर्जा की बचत करते हुए धरती माता को औषधीय एवं ऑक्सीजन देने वाले पौधों को लगाना तथा हरियाली को बढ़ावा देकर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना होगा।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था, “हम मनुष्य पृथ्वी पर केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि संरक्षक हैं।” हमें अपने बच्चों को यह सिखाना होगा कि पेड़ लगाना, जल बचाना और प्रकृति से जुड़ना केवल एक कार्य नहीं, बल्कि एक धर्म है।

विद्या भारती का यह प्रयास उल्लेखनीय है कि वह शिक्षा के माध्यम से संस्कारों, कर्तव्यों और प्रकृति-प्रेम को छात्रों में विकसित कर रही है। दूसरी ओर, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा स्थानीय वनस्पतियों, पारंपरिक ज्ञान और औषधीय पौधों के संरक्षण की दिशा में किया गया कार्य, न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन में भी अत्यंत उपयोगी है।

आज आवश्यकता है कि हम ‘‘पर्यावरण’’ को एक विषय नहीं, बल्कि एक आंदोलन के रूप में अपनाएं। यह कार्यशाला एक मंच है जहाँ शिक्षक, छात्र, वैज्ञानिक और नीति निर्माता मिलकर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और ठोस समाधान की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

अंत में, मैं आप सभी को इस कार्यशाला में सक्रिय सहभागिता के लिए धन्यवाद देता हूँ। आपके प्रयासों से ही हम पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। आप ने मुझे इस कार्यक्रम में पधारने का अवसर दिया, इसके लिए मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूँ।

मैं आशा करता हूँ कि यहां प्राप्त ज्ञान और अनुभव को हम केवल सैद्धांतिक रूप में न रखें, बल्कि उसे व्यवहार में लाकर पर्यावरणीय चेतना को जन-जन तक पहुँचाएँ। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा भविष्य गढ़ें, जहाँ हर पीढ़ी को शुद्ध वायु, स्वच्छ जल, और हरा-भरा परिवेश प्राप्त हो।

“पर्यावरण बचाओ, भविष्य सजाओ”, इस मूल मंत्र को लेकर हम आगे बढ़ें और पृथ्वी को पुनः संतुलन की ओर ले जाने में अपनी भूमिका निभाएं। 

धन्यवाद, 

जय हिन्द!