SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF COMMEMORATE THE 125TH BIRTH ANNIVERSARY OF DR. SYAMA PRASAD MOOKERJEE AT CHANDIGARH ON JULY 6, 2025.
- by Admin
- 2025-07-07 12:55
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 06.07.2025, रविवार समयः शाम 6:00 बजे स्थानः चंडीगढ़
नमस्कार!
यह मेरे लिए अत्यंत सम्मान और गर्व का विषय है कि आज हम सभी भारत माता के महान सपूत, राष्ट्रनायक, प्रखर राष्ट्रवादी, प्रज्ञावान विचारक और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती के पावन अवसर पर एकत्रित हुए हैं।
6 जुलाई 1901 को कलकत्ता में जन्मे इस महान विभूति ने न केवल तत्कालीन भारत की राजनीतिक धारा को एक नई दिशा दी, बल्कि स्वतंत्र भारत की चेतना, अखंडता और सांस्कृतिक आत्मसम्मान को नये सिरे से परिभाषित किया। आज का दिन केवल स्मरण का नहीं, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक ऐसे अद्भुत नेता थे, जिनमें अध्यापक की गहराई, वकील की तर्कशक्ति, सांसद की वाकपटुता और देशभक्त की प्रखरता एक साथ समाहित थी। मात्र 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने, और यह उस युग की बात है जब भारत ब्रिटिश राज के अधीन था।
वे देश के पहले उद्योग मंत्री बने और राष्ट्रीय एकता, औद्योगिक विकास, शिक्षा और स्वदेशी आंदोलन के प्रबल समर्थक रहे।
संविधान सभा के सदस्य और बाद में भारत के उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में देश की औद्योगिक नींव को मजबूत करने और संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वर्ष 1948 में उन्होंने भारत का पहला औद्योगिक नीति प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो देश के औद्योगिक विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित हुआ। यह नीति भारत में संगठित उद्योगों की स्थापना, नियोजन आधारित विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता के आधार स्तंभ के रूप में उभरी।
उनका योगदान न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप देने में भी अत्यंत प्रेरणादायक रहा है।
देवियो और सज्जनो,
उनका मानना था कि भारत की आत्मा उसकी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय एकता में बसती है। उन्होंने कभी तुष्टिकरण की राजनीति नहीं की, बल्कि सदा ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ को ही अपने चिंतन और कर्म का आधार बनाया।
‘‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान - नहीं चलेंगे’’
यह उद्घोष केवल एक नारा नहीं था, यह उस समय की विसंगतिपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध एक उद्घोषणा थी। जब जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान और अलग व्यवस्था लागू थी, तब डॉ. मुखर्जी ने पूर्ण एकता की बात करते हुए कहा था कि, ‘‘जहाँ हम आज़ादी की बात कर रहे हैं, वहाँ किसी राज्य में दो विधान, दो निशान, और दो प्रधान कैसे स्वीकार्य हो सकते हैं?’’
इसी भावना से प्रेरित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1953 में “एक देश - एक संविधान - एक प्रधान - एक निशान” के सिद्धांत को लेकर बिना अनुमति जम्मू-कश्मीर गए। उस समय जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिए प्रवेश परमिट लेना पड़ता था, जो कि स्वतंत्र भारत में एक विचित्र व्यवस्था थी। उन्होंने इसे संविधान और राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध मानते हुए उसका दृढ़ता से विरोध किया और एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ दिया।
जब वे जम्मू-कश्मीर पहुँचे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और श्रीनगर की जेल में नजरबंद रखा गया। वहीं, 23 जून 1953 को उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई, जिसने समूचे राष्ट्र को झकझोर कर रख दिया। उनका यह बलिदान केवल एक नेता की मृत्यु नहीं थी, यह भारत की एकता के लिए दी गई आहुति थी। उनके अंतिम शब्दों की तरह आज भी यह उद्घोष गूंजता हैः
‘‘मैं मरते दम तक भारत की एकता के लिए लड़ता रहूंगा।’’
उनका यह संकल्प वर्षों तक राष्ट्रवादी चेतना के केंद्र में रहा। और अंततः, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाकर उस ऐतिहासिक संकल्प को पूर्ण किया। यह निर्णय न केवल डॉ. मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि था, बल्कि यह भारत के संविधान, संप्रभुता और एकात्मता को पूर्ण रूप से स्थापित करने की दिशा में एक युगांतरकारी कदम था।
यह निर्णय बताता है कि सत्य, संघर्ष और बलिदान की परंपरा कभी व्यर्थ नहीं जाती। आज जम्मू-कश्मीर में एक राष्ट्र, एक संविधान, एक न्याय प्रणाली लागू है। अनुच्छेद 370 का हटना केवल एक संवैधानिक परिवर्तन नहीं था, यह देश की आत्मा के पुनः एकीकरण की प्रक्रिया थी, जिसे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दशकों पहले अपने साहसिक संकल्प और बलिदान से शुरू किया था।
साथियो,
अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करने के ऐतिहासिक निर्णय के बाद जम्मू-कश्मीर अब राष्ट्रीय मुख्यधारा का अभिन्न अंग बन चुका है। वहाँ नए निवेश के द्वार खुले हैं, बुनियादी ढांचे का विकास तेज़ी से हो रहा है, और प्रशासनिक पारदर्शिता व सुरक्षा की भावना लोगों के जीवन में स्थायित्व ला रही है। अब वहाँ के युवाओं को वही अवसर, वही अधिकार और वही संसाधन प्राप्त हो रहे हैं जो देश के किसी भी अन्य भाग में उपलब्ध हैं।
इस क्षेत्र को इस बात पर गर्व है कि चिनाब नदी पर 359 मीटर ऊँचा दुनिया का सबसे ऊँचा और 1315 मीटर लंबा तकनीकी रूप से अद्वितीय रेलवे पुल का निर्माण किया गया है जिसका हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उद्घाटन किया है। यह पुल न केवल भारतीय इंजीनियरिंग की श्रेष्ठता का प्रतीक है, बल्कि जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि भी है।
मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर न केवल एक शांति और स्थायित्व का प्रतीक बनेगा, बल्कि शिक्षा, पर्यटन, चिकित्सा और तकनीकी क्षेत्र का एक उभरता हुआ केंद्र भी होगा। वहाँ की युवा शक्ति, जो वर्षों तक अस्थिरता और असमानता से जूझती रही, अब राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदार बन रही है।
डॉ. मुखर्जी का सपना केवल राजनीतिक एकीकरण तक सीमित नहीं था, वह आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण की भी कल्पना करते थे। और आज जो प्रगति हम जम्मू-कश्मीर में देख रहे हैं, वह उनके उसी व्यापक दृष्टिकोण का परिणाम है।
इसलिए, यह हम सबका दायित्व है कि हम इस परिवर्तन की भावना को और अधिक सशक्त बनाएं, स्थानीय युवाओं को सशक्त करें, और जम्मू-कश्मीर को ‘‘नए भारत की आत्मा’’ का हिस्सा बनाने में सक्रिय भूमिका निभाएं। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान तभी पूर्ण अर्थों में सार्थक होगा जब हम एक समावेशी, शिक्षित, और विकसित जम्मू-कश्मीर का निर्माण करेंगे।
इसलिए आज जब हम उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं, तो हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि जो बीज उन्होंने बोया था, वह आज ‘विकसित भारत’ के संकल्प में एक विशाल वटवृक्ष बनकर खड़ा है। यह हम सभी के लिए प्रेरणा है कि यदि उद्देश्य राष्ट्रहित हो, तो प्रत्येक संघर्ष एक दिन ऐतिहासिक परिवर्तन का कारण बनता है।
देवियो और सज्जनो,
डॉ. मुखर्जी का राष्ट्रवाद केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। उन्होंने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, एक ऐसा दल, जिसने राष्ट्रभक्ति, सांस्कृतिक अस्मिता, सुशासन और स्वदेशी नीति को अपनी विचारधारा का मूल आधार बनाया। आज का भारतीय जनता पार्टी उन्हीं सिद्धांतों की विकसित और विस्तारशील अभिव्यक्ति है।
उन्होंने यह संदेश दिया कि सत्ता केवल शासन करने के लिए नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने के लिए है।
आज जब भारत ‘‘विकसित भारत 2047’’ के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचार और आदर्श पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
- वे शिक्षा में भारतीयता और विज्ञान का संतुलन चाहते थे।
- वे औद्योगिक आत्मनिर्भरता के पक्षधर थे।
- वे तुष्टिकरण की बजाय समान नागरिक अधिकारों के समर्थक थे।
- वे चाहते थे कि भारत की आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक नीतियाँ भारतीय मूल्यों पर आधारित हों।
आज जब हम ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’’ की ओर बढ़ रहे हैं, तो डॉ. मुखर्जी की दूरदृष्टि हमारे लिए एक दिशासूचक प्रकाश की तरह है।
साथियो,
आज की युवा पीढ़ी को डॉ. मुखर्जी से यह सीख लेनी चाहिए कि आदर्श और सिद्धांतों के लिए किया गया संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता। उन्होंने दिखाया कि देशहित में उठाया गया हर कदम, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो, अंततः राष्ट्र को सशक्त बनाता है।
‘‘जो सत्य के लिए जीते हैं, उनका नाम इतिहास नहीं, युगों-युगों तक स्मरण रखता है।’’
अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी केवल एक राजनेता नहीं थे, वे भारत की आत्मा के सजग प्रहरी थे। उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि राष्ट्र को मजबूत करने के लिए केवल विचारों की नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति और त्याग की आवश्यकता होती है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन साहस, सिद्धांतों के प्रति अटल निष्ठा और ‘‘एक राष्ट्र, एक संविधान’’ के सिद्धांत में अडिग विश्वास का एक शाश्वत प्रतीक बना हुआ है।
आज उनकी 125वीं जयंती पर, आइए हम सब यह संकल्प लें:
- कि हम भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करेंगे।
- कि हम राष्ट्रवाद को केवल विचार नहीं, आचरण बनाएंगे।
- कि हम अपने कर्तव्यों के प्रति उतने ही प्रतिबद्ध होंगे जितने अपने अधिकारों के प्रति।
इस आशा के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!