SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CHANDIGARH COMMISSION FOR PROTECTION OF CHILD RIGHTS (CCPCR) ORGANISED AN AWARENESS PROGRAM ON THE TOPIC OF “DRUGS AND SUBSTANCE ABUSE” AT TAGO

‘नशीले पदार्थों और मादक द्रव्यों के सेवन के दुष्परिणामों’ संबंधी आयोजित जागरूकता कार्यक्रम के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 08.07.2025, मंगलवारसमयः दोपहर 12:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

    

नमस्कार!

आज ‘नशीले पदार्थों और मादक द्रव्यों के सेवन के दुष्परिणामों’ के इस जागरूकता कार्यक्रम में शामिल होकर मैं स्वयं को कर्तव्यनिष्ठ और प्रतिबद्ध अनुभव कर रहा हूँ। 

मैं इस कार्यक्रम के आयोजन हेतु ‘चंडीगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने इस अत्यंत गंभीर और सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषय को केंद्र में रखकर हम सबको एकजुट किया है।

इस कार्यक्रम के पीछे का दृष्टिकोण एक ऐसा चंडीगढ़ और वास्तव में एक ऐसा राष्ट्र बनाना है, जहां हर बच्चा और नागरिक सुरक्षित, संरक्षित और नशे के चंगुल से मुक्त जीवन जीने के लिए सशक्त हो। यह दृष्टिकोण ना केवल हमारे बच्चों का एक मौलिक अधिकार है, बल्कि हमारे समाज की एक सामूहिक जिम्मेदारी है।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों और जनता को मादक पदार्थों के सेवन के खतरों और परिणामों के बारे में शिक्षित बनाने के साथ-साथ इस खतरे से निपटने के सामूहिक उपायों पर चर्चा करना है।

आज मादक पदार्थों की लत केवल एक व्यक्ति की समस्या नहीं रह गई है; यह एक पूरे समाज, परिवार और राष्ट्र को प्रभावित करने वाली चुनौती बन चुकी है। 

युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति हमारे भविष्य की नींव को खोखला कर रही है। यह न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि शिक्षा, रोजगार, कानून व्यवस्था और पारिवारिक तानेबाने को भी छिन्न-भिन्न कर देता है।

साथियो, 

नशीली दवाएं वे पदार्थ होते हैं जो शरीर के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं, जिससे व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके में बदलाव आता है। 

इन्हें मुख्य रूप से उनके प्रभावों के आधार पर कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है, उदाहरण के तौर पर डिप्रेसेंट (Depressants), स्टिमुलेंट (Stimulants), मतिभ्रमक (Hallucinogens), ओपिओइड ; (Opioids), कैनबिनोइड्स (Cannabinoids), डिसोसिएटिव (Dissociatives), इनहेलेंट्स (Inhalants)। 

यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी भी प्रकार की नशीली दवा का दुरुपयोग स्वास्थ्य और जीवन पर गंभीर और स्थायी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि नशे की चपेट में अब बच्चे और किशोर भी बड़ी तेजी से आ रहे हैं, जो न केवल समाज की नैतिक संरचना को चुनौती देता है, बल्कि शासन और नीति-निर्माताओं के लिए भी एक गंभीर चेतावनी और जिम्मेदारी बनकर उभरता है।

हमारे युवा इस राष्ट्र की रीढ़ हैं। उनकी ऊर्जा, रचनात्मकता और दृढ़ संकल्प भारत के उज्ज्वल भविष्य को आकार देने की क्षमता रखते हैं। हालांकि, वे नशे की लत के प्रति बेहद संवेदनशील भी हैं, जो अक्सर साथियों के दबाव, तनाव, जिज्ञासा और गलत जानकारी के प्रभाव में विकसित होती है।

देवियो और सज्जनो,

जब कोई बच्चा नशे के संपर्क में आता है, तो केवल उसका स्वास्थ्य ही नहीं, उसकी मासूमियत, उसका आत्मबल, उसका भविष्य भी संकट में पड़ जाता है। 

नशे की गिरफ्त में आया बच्चा शोषण, हिंसा और अपराध की ओर आसानी से धकेला जा सकता है। ऐसे में यह हमारा नैतिक और संवैधानिक दायित्व बनता है कि हम हर बच्चे को सुरक्षित और संरक्षित वातावरण दें, उन्हें नशे से दूर रखने के लिए विद्यालयों, परिवारों और संस्थाओं के बीच समन्वय स्थापित करें, और नशे के प्रति 'Zero Tolerance' की नीति को अपनाएं।

मुझे इस बात का संतोष है कि चंडीगढ़ प्रशासन नशे के खिलाफ सख्त कार्रवाई और व्यापक जन-जागरूकता को अपनी प्राथमिक प्राथमिकताओं में शामिल कर रहा है। यह केवल एक प्रशासनिक दायित्व नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक उत्तरदायित्व भी है, जिसे प्रशासन पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ निभा रहा है।

यहां पर मैं यह भी कहना चाहूंगा कि विद्यालयों को चाहिए कि वे न केवल शिक्षा दें, बल्कि जीवन-मूल्यों की भी शिक्षा दें। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन को सतर्कता से देखें और संवाद बनाए रखें। और सबसे अहम, समाज को चाहिए कि वह नशे को शर्म का विषय नहीं, बल्कि सहायता और उपचार का विषय माने।

जैसा कि कहते हैं कि Prevention is better than cure. इसलिए, हमें अपने बच्चों को प्यार, उद्देश्य और दिशा देनी होगी। खेल, कला, संगीत, साहित्य और सामुदायिक सेवा जैसी रचनात्मक गतिविधियाँ बच्चों को नकारात्मक प्रवृत्तियों से दूर रखने में मदद कर सकती हैं।

देवियो और सज्जनो,

बच्चों में नशो की लत को रोकने के लिए महिलाएं सबसे पहली लाईन ऑफ डिफेंस होती हैं। नशे के खिलाफ लड़ाई में उनकी भूमिका सिर्फ मार्गदर्शक की नहीं, बल्कि प्रेरणा, सहारा और समाधान की होती है। यदि महिलाएँ परिवार में सजग और सक्रिय भूमिका निभाएँ, तो नशामुक्त समाज का सपना साकार हो सकता है।

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद करें, उन्हें सुनें, और अच्छे संस्कार दें। संयुक्त परिवारों की तरह यदि आज भी परिवार में निगरानी और भावनात्मक सुरक्षा का माहौल बना रहे, तो बच्चों को नशे से दूर रखना संभव है।

बच्चों में नशे की प्रवृत्ति के शुरुआती संकेतों को सबसे पहले माता-पिता ही पहचान सकते हैं, विशेषकर माताएं। सतर्कता, संवाद और सहयोग के माध्यम से बिना किसी औषधीय हस्तक्षेप के भी उन्हें बचाया जा सकता है।

देवियो और सज्जनो,

आज इस अवसर पर मैं ‘सुरक्षित बचपन, उज्ज्वल भविष्य - नशामुक्त समाज की ओर’ नामक पुस्तिका जारी करने के लिए आयोग की सराहना करता हूं, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से बच्चों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जनता को मादक पदार्थों के हानिकारक प्रभाव संबंधी जागरूक बनाना है। 

 

यह पुस्तिका आपको नशे के विभिन्न प्रकार, नशीले पदार्थ के दुरुपयोग के लक्षण, मनोवैज्ञानिक भ्रांतियों, मनो-सक्रिय पदार्थों के उपचार के लिए साक्ष्य-आधारित मनोसमाजिक हस्तक्षेप आदि के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करेगी। 

इसके अलावा, यह पुस्तिका सामाजिक मीडिया की भूमिका, नारकोटिक्स नियंत्रण और विनियमन में सरकारी एजेंसियों और राज्य तथा केंद्र सरकारों द्वारा की गई विभिन्न पहलों जैसी उपयोगी जानकारी भी प्रदान करेगी, जिसमें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 पर भी चर्चा की जाएगी।

मेरा मानना है कि हमारी युवा पीढ़ी को नशों से दूर रखने के लिए आयोग द्वारा यह पुस्तक जारी करना निःसंदेह एक महत्वपूर्ण पहल है।

इसके साथ ही, मैं आयोग से यह भी आग्रह करता हूँ कि इस पहल को एक सतत अभियान में परिवर्तित किया जाए, जिसमें नियमित रूप से ड्रग-प्रिवेंशन सेमिनार्स, काउंसलिंग कैंप्स और वॉलिंटियर नेटवर्क का आयोजन हो।

साथ ही, पुनर्वास केंद्रों और स्कूलों के बीच एक परामर्श सहयोग मॉडल स्थापित किया जाए, ताकि प्रभावित बच्चों को समय रहते सही मार्गदर्शन और सहयोग मिल सके।

इसके अतिरिक्त, ड्रग विक्रेताओं और नेटवर्क्स पर सतत निगरानी और कार्रवाई भी अनिवार्य है, ताकि नशे का यह जाल हमारी अगली पीढ़ी तक पहुँच ही न सके। केवल जागरूकता नहीं, बल्कि समन्वित प्रयास ही इस सामाजिक बुराई पर निर्णायक प्रहार कर सकते हैं। 

साथियो,

मादक पदार्थों के सेवन की इस विकट चुनौती के बीच, अपार आशा निहित है। और वह आशा हमारी सामूहिक शक्ति, हमारी साझा प्रतिबद्धता और हमारे अटूट दृढ़ संकल्प में निवास करती है। 

नशाखोरी के खतरे पर अंकुश लगाने और विकसित भारत-2047 के राष्ट्रव्यापी दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों, प्रशासनिक अधिकारियों, निवासी कल्याण संगठनों और प्रत्येक नागरिक की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है।

आइए, हम अथक प्रयास करें जब तक कि वह दिन न आ जाए जब चंडीगढ़ और वास्तव में हमारे राष्ट्र का हर कोना, वास्तव में नशामुक्त हो और हर बच्चा और नागरिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और असीमित संभावनाओं के वातावरण में पनप सके।

एक जागरूक, स्वस्थ और नशा-मुक्त बचपन ही विकसित भारत की सशक्त नींव है। आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि किसी भी बच्चे को नशे की अंधेरी राह पर भटकने नहीं देंगे और हम हर घर, हर स्कूल, हर गली को सुरक्षित और समर्थ बनाएंगे।

क्योंकि जब बच्चा सुरक्षित होता है, तब भविष्य सुरक्षित होता है।

मैं पुनः आयोग को बधाई देता हूँ और सभी प्रतिभागियों, विशेषकर बच्चों, से अपील करता हूँ कि वे इस अभियान के वाहक बनें, नशे से लड़ें और ‘ड्रग-फ्री चंडीगढ़, ड्रग-फ्री इंडिया’ के निर्माण में भागीदार बनें।

धन्यवाद,

जय हिन्द!