Speech of Hon’ble Governor of Punjab and Administrator of U.T., Chandigarh on the occasion of Mahan Nagar Kirtan ‘Dharam Bachao Yatra’ at Sri Guru Teg Bahadur Sahib Museum, Takht Sahib Chowk, Sri Anandpur Sahib, Ropar on 11.07.2025.
- by Admin
- 2025-07-12 10:50
आनंदपुर साहिब में ‘धर्म बचाओ यात्रा’ के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 11.07.2025, शुक्रवार समयः सुबह 9:15 बजे स्थानः आनंदपुर साहिब
सत श्री अकाल।
वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।
संगत साथियो,
जिस पवित्र भूमि पर हम आज खड़े हैं, यह केवल एक नगर नहीं, बल्कि हमारी आस्था, बलिदान और सेवा की जीवंत प्रतीक है। इस नगर की नींव स्वयं नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने अपने जीवनकाल में रखी थी।
यह उनके द्वारा बसाया गया एकमात्र नगर था, जिसे उन्होंने पहले अपनी पूजनीय माता जी ‘माता नानकी जी’ के सम्मान में चक माता नानकी नाम दिया, जो बाद में श्रद्धा और आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण होकर श्री आनंदपुर साहिब कहलाया।
यहाँ से ठीक 350 वर्ष पूर्व, भारत के इतिहास में धार्मिक स्वतंत्रता, मानवीय अधिकारों और अस्मिता के रक्षक बनकर ‘हिंद की चादर’ श्री गुरु तेग बहादुर जी ने एक ऐसी यात्रा की शुरुआत की थी, जो धर्म, सत्य और बलिदान की पराकाष्ठा बन गई।
यह ‘धर्म बचाओ यात्रा’, केवल इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं है। यह यात्रा है, हमारी आस्था की, हमारी संस्कृति की, और हमारे उत्तरदायित्व की।
संगत साथियो,
यह घटना सन् 1675 की है। उस समय भारत में मुगल सम्राट औरंगज़ेब का शासन था, जो जबरन लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित कराने की नीति पर चल रहा था। कश्मीर के पंडितों पर अत्याचार की सारी सीमाएँ पार हो चुकी थीं।
उन्हें या तो धर्म बदलने को कहा गया या फिर मृत्यु स्वीकार करने को। इन हालातों से व्यथित होकर पंडित कृपा राम जी के नेतृत्व में कश्मीर के 40 कश्मीरी पंडित श्री आनंदपुर साहिब पहुँचे।
पंडित कृपा राम जी ने गुरु तेग बहादुर जी से कहा, ‘‘हे सत्गुरु! हमें और हमारे धर्म को बचाइए, अन्यथा हमारी संस्कृति समाप्त हो जाएगी।’’
गुरु तेग बहादुर जी यह सुनकर गहन चिंतन में चले गए। तभी उनके पास उनके नौ वर्षीय पुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी उपस्थित हुए।
उन्होंने पिता से पूछा, “पिताजी, आप किस विषय में इतने विचारमग्न हैं?” गुरु तेग बहादुर जी ने उत्तर दिया, “धर्म पर संकट आया है। कोई ऐसा चाहिए जो धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे।”
गुरु गोबिंद सिंह ने तुरंत कहा, ‘‘इससे बड़ा पुण्य का कार्य और क्या हो सकता है? इस कार्य के लिए आपसे श्रेष्ठ और कौन हो सकता है?’’
यह सुनकर गुरु तेग बहादुर जी ने निश्चय कर लिया कि वे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देंगे।
तब गुरू जी ने उनकी रक्षा के लिए पांच सिखों के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। यह वह क्षण था जब गुरु जी ने धर्म, तिलक और जनेऊ के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का संकल्प लिया।
ठीक चार महीने की वह ऐतिहासिक यात्रा अपने पवित्र उद्देश्य में पूरी तरह सफल रही। जब औरंगजेब जैसे निरंकुश शासक ने गुरु तेग बहादुर जी को भयभीत करने के लिए तमाम अमानवीय प्रयास किए, तो गुरु जी ने न तो डर दिखाया, न ही विचलित हुए।
उनके साथ गए तीन महान सिख भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी ने भी धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए, पर अपनी आस्था से एक क्षण के लिए भी पीछे नहीं हटे।
जब गुरु साहिब से पूछा गया कि क्या वे अपना मत छोड़ देंगे, तो उनका उत्तर स्पष्ट, साहसी और अमर था, ‘‘मैं किसी से नहीं डरता, मैं किसी को नहीं डराता। हमारा पंथ ऐसा ही है, न डरता है, न डराता है।’’
गुरु जी ने धर्म की खातिर अपना शीश तो दे दिया, पर सिद्धांत नहीं छोड़ा। उन्होंने जुल्म की आंधी के सामने अडिग खड़े रहकर समूचे मानव समाज को यह सिखाया कि धर्म की रक्षा का मार्ग बलिदान से होकर जाता है, भय से नहीं।
गुरु साहिब ने यह सिद्ध कर दिया कि धर्म की रक्षा के लिए जीवन देना पवित्र कर्तव्य है।
संगत साथियो,
हम सब 1975 की इमरजेंसी को याद रखते हैं, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 1675 में भी एक ‘धार्मिक इमरजेंसी’ भारत पर थोपी गई थी, जब मूल अधिकारों, आस्था और अस्मिता को कुचला जा रहा था।
25 जून 1675 को जब कश्मीरी पंडित गुरु जी के चरणों में पहुंचे, और 11 जुलाई को पांच सिखों के साथ धर्म बचाने के लिए गुरु जी एक लंबी यात्रा पर दिल्ली रवाना हुए। वह गए तो तन पर शीश सुशोभित था, लौटे तो धड़ दिल्ली के चांदनी चौक पर दान करके-त्याग करके आए और केवल शीश आनंदपुर आया।
आज उसी स्मृति को पुनर्जीवित करते हुए, उस चार महीने की यात्रा की याद में हम चार दिन की यह ‘धर्म बचाओ यात्रा’ निकाल रहे हैं, जो न केवल नगर कीर्तन है, बल्कि आस्था की मशाल है, एक नैतिक घोषणा है।
आज भी यह यात्रा भाई जैता जी, जो गुरु जी का शीश लेकर चांदनी चौक से आनंदपुर के निकट ही श्री कीरतपुर साहिब तक आए, के बलिदान को पुनः जीवंत करती है। उनके महान कार्य को नमन करते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें कहा था, ‘‘रंगरेटा गुरु का बेटा।’’
आज यह यात्रा उसी पावन परंपरा को आगे बढ़ा रही है। पिछले 14-15 वर्षों से संगत के सहयोग से भाई मनजीत सिंह ‘‘शीश मार्ग यात्रा’’ वाले द्वारा अपने साथियों के साथ 9वें गुरु जी के शहीदी स्थल चांदनी चौक, दिल्ली से हर वर्ष शहीदी दिवस पर दिल्ली से श्री आनंदपुर साहिब तक नगर कीर्तन ‘‘शीश मार्ग यात्रा’’ का आयोजन किया जाता है।
यह पवित्र यात्रा उन ऐतिहासिक गुरुद्वारों और गुरु स्थलों से होकर गुजरती है, जिनका संबंध श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत से जुड़ा हुआ है। यही वह मार्ग है जिससे भाई जैता जी गुरु साहिब का पावन शीश अपने सिर पर उठाकर दिल्ली से श्री कीरतपुर साहिब तक पहुँचे थे।
इस दिव्य और साहसिक सेवा को निभाने में उन्हें लगभग 4 से 5 दिन लगे थे, लेकिन उनका यह बलिदान सिख इतिहास में अमर हो गया। यह यात्रा, आज भी उस ऐतिहासिक मार्ग की स्मृति को संजोए हुए, धर्म, साहस और श्रद्धा का प्रतीक बनकर हमारे सामने प्रस्तुत होती है।
संगत साथियो,
यह अत्यंत ही गर्व का विषय है कि भाई मनजीत सिंह जी और उनकी टीम न केवल ‘शीश मार्ग यात्रा’ को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि श्री गुरू नानक देव जी का संदेश, ‘‘पवन गुरू, पानी पिता, माता धरत महत’’ के मद्देनज़र पर्यावरण रक्षा के लिए ‘ग्रीन गंगा आंदोलन’ भी चला रहे हैं।
मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता और गर्व हो रहा है कि भाई मनजीत सिंह जी न केवल धर्म की रक्षा के इस पावन अभियान में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी निरंतर कार्यरत हैं। यात्रा के दौरान वे पेड़-पौधे वितरित करते हैं, जो प्रकृति के प्रति उनकी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का प्रतीक है।
उन्होंने एक प्रेरणादायी नारा दिया है, ‘‘पहले धर्म बचाया, अब धरती बचाओ’’ और इस कार्य को उन्होंने केवल अभियान नहीं, बल्कि युद्ध स्तर पर करने का आह्वान किया है।
आज, इस मंच से यह बताते हुए मुझे विशेष संतोष हो रहा है कि ‘ग्रीन गंगा आंदोलन’ के अंतर्गत भाई साहिब ने साढ़े तीन लाख पौधे लगाने और वितरित करने का संकल्प लिया है।
मैं विश्वास करता हूँ कि श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस के ये समारोह न केवल ऐतिहासिक सिद्ध होंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को धर्म, सेवा और प्रकृति के प्रति जागरूक करने वाले प्रेरणास्रोत भी बनेंगे।
अंत में मैं बस यही कहना चाहूंगा कि गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने हमें सिखाया कि धर्म वह दीपक है जो अंधकार को चीरकर राह दिखाता है। आज जब हम 350वीं वर्षगांठ पर धर्म बचाओ यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं, तो आइए हम सब यह संकल्प लें किः
हम धर्म, आस्था और मानवता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहेंगे।
हम आने वाली पीढ़ियों को इस गौरवशाली विरासत से जोड़ेंगे।
और हम गुरु जी की तरह, सत्य के लिए कभी समझौता नहीं करेंगे।
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को कोटि-कोटि नमन।
धन्यवाद,
जय हिंद!