SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CERTIFICATE DISTRIBUTION CEREMONY OF THE NAVRATTAN LEARNING PROGRAMME – 2025 AT CHANDIGARH ON JUNE 24, 2025.
- by Admin
- 2025-06-25 12:55
जौहरी एसोसिएशन, चंडीगढ़ द्वारा आयोजित ‘नवरत्न लर्निंग प्रोग्राम 2025’ - प्रमाण पत्र वितरण समारोह के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 24.06.2025, मंगलवार समयः शाम 8:00 बजे स्थानः चंडीगढ़
नमस्कार!
आज इस विशेष अवसर पर आप सबके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। यह समारोह केवल प्रमाण पत्र वितरित करने का आयोजन नहीं है, बल्कि यह उन प्रयासों, सपनों और संकल्पों का उत्सव है, जो हमारे देश के रत्न एवं आभूषण उद्योग को नए आयामों की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
मुझे बताया गया है कि यह प्रमाणपत्र उन 30 प्रतिभागियों को प्रदान किए गए हैं, जिन्होंने जौहरी एसोसिएशन चंडीगढ़ द्वारा आयोजित एक विशेष प्रशिक्षण कोर्स में भाग लिया।
16 से 21 जून 2025 तक आयोजित यह छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम नौ बहुमूल्य रत्नों की पहचान और उनके तकनीकी पहलुओं की गहन जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था, जिसमें 9 वर्ष से लेकर 65 वर्ष की आयु तक के प्रतिभागी शामिल हुए।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पारंपरिक जौहरियों और नए इच्छुक प्रतिभागियों दोनों को नव रत्नों के तकनीकी, रत्नविज्ञान संबंधी और व्यावसायिक ज्ञान से सुसज्जित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। ये रत्न न केवल व्यावसायिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक संदर्भ में भी अत्यधिक महत्व रखते हैं।
मुझे बताया गया है कि जौहरी एसोसिएशन, चंडीगढ़ की स्थापना वर्ष 2001 में इस उद्देश्य से की गई थी कि रत्न और हीरे के व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों को उनके व्यवसाय में आने वाली समस्याओं से मुक्त किया जा सके और उन्हें एक सशक्त मंच प्रदान किया जा सके।
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इस एसोसिएशन के सदस्य न केवल चंडीगढ़, बल्कि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों से भी हैं, जो रत्न और हीरा व्यापार से जुड़े हुए हैं।
जानकर खुशी हुई कि यह एसोसिएशन व्यापारिक गतिविधियों के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है। रक्तदान शिविरों का आयोजन करना और समाज के वंचित एवं निर्धन वर्ग के लोगों के लिए वस्त्र उपलब्ध कराना एक अत्यंत सराहनीय और मानवीय प्रयास है।
साथियो,
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आभूषणों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं मानव सभ्यता का। यदि हम हमारे महाकाव्य रामायण और महाभारत की ओर दृष्टि डालें, तो पाएंगे कि उस युग में भी आभूषण न केवल सौंदर्य का प्रतीक थे, बल्कि वे सम्मान, संस्कृति और सामाजिक प्रतिष्ठा के भी प्रतीक थे।
भगवान श्रीराम हों या माता सीता, श्रीकृष्ण हों या माता रूक्मिणी, हर एक चरित्र के साथ जुड़े आभूषणों का उल्लेख हमें यह स्पष्ट रूप से बताता है कि आभूषण केवल शरीर की शोभा नहीं बढ़ाते थे, बल्कि उनके माध्यम से एक विशेष भाव, मर्यादा और दिव्यता भी प्रकट होती थी।
रामायण में जब माता सीता अपनी पहचान हेतु हनुमान जी को अपना चूड़ामणि सौंपती हैं, तो वह आभूषण केवल धातु का टुकड़ा नहीं था, बल्कि उसमें स्नेह, विश्वास और पहचान की भावना समाहित थी।
श्रीकृष्ण का मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि और कर्णफूल, ये सभी आभूषण उन्हें केवल सुंदर नहीं बनाते, बल्कि उनकी ईश्वरीय आभा को उजागर करते हैं।
इसके अलावा, जब हम विश्व इतिहास की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं की ओर दृष्टि डालते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि आभूषणों का प्रयोग केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि हर सभ्यता में आभूषणों का विशेष स्थान रहा है।
आज तक मिस्र की नील नदी घाटी सभ्यता, मेसोपोटामिया की सभ्यता, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सिंधु-सरस्वती सभ्यता, चीन की यांग्शाओ सभ्यता, रोमन और यूनानी सभ्यताएं, जिन-जिन पुरातात्विक स्थलों की खुदाई हुई है, उनमें आभूषणों के प्रमाण अवश्य मिले हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि आभूषणों का प्रयोग कोई आधुनिक प्रवृत्ति नहीं, बल्कि अनादिकाल से मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रहा है।
आज के समय में भी, चाहे वह कोई पारंपरिक उत्सव हो या आधुनिक फैशन मंच, आभूषणों की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण बनी हुई है।
साथियो,
क्योंकि भारत सदियों से रत्नों और आभूषणों की भूमि रहा है, फिर भी हमारी सभ्यता की चमक केवल सोने-चाँदी और हीरे-जवाहरात तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसमें समाहित रही है एक ऐसी कला, परंपरा और भावनात्मक गहराई, जो पीढ़ियों से हस्तांतरित होती रही है।
विश्व के बाजारों में ‘मेड इन इंडिया ज्वेलरी’ की जो प्रतिष्ठा है, वह केवल रत्नों की चमक से नहीं, बल्कि उसमें निहित भारतीय कारीगरों की आत्मा, बारीकी और सौंदर्यबोध से है।
हमारी उत्कृष्ट कारीगरी, शुद्धता और सांस्कृतिक वैभव ने सदैव भारत को एक विशिष्ट पहचान दिलाई है, चाहे वह मुग़लकालीन राजसी ज़ेवर हों, दक्षिण भारत की मंदिर ज्वेलरी, या फिर राजस्थान की कुंदन व मीनाकारी की परंपरा।
लेकिन आज, जब हम 21वीं सदी के वैश्विक, तकनीक-आधारित और अत्यंत प्रतिस्पर्धी बाज़ार में खड़े हैं, तब केवल पारंपरिक ज्ञान और कौशल पर्याप्त नहीं है।
आज ज़रूरत है, तकनीकी समझ की, ताकि हम जेमोलॉजी, रत्न परीक्षण, कटिंग-पॉलिशिंग जैसी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं में दक्ष हो सकें। आज जरूरत है, प्रमाणिकता की, ताकि हर रत्न और आभूषण की सत्यता उपभोक्ता तक पहुँचे, जिससे ग्राहक का विश्वास बना रहे।
और सबसे बढ़कर, विश्वास के निर्माण की, क्योंकि आज का उपभोक्ता केवल आभूषण नहीं, बल्कि भरोसा खरीदता है।
जब तक हमारे कारीगर, विक्रेता और व्यापारी तकनीक, प्रमाणिकता और पारदर्शिता के साथ अपने व्यवसाय को नहीं अपनाते, तब तक वैश्विक मंच पर नेतृत्व की भूमिका निभाना कठिन होगा।
इसलिए अब आवश्यकता है कि हमारी पारंपरिक विरासत को आधुनिक प्रशिक्षण, प्रमाणन प्रणाली, और डिजिटल कौशल से जोड़ा जाए ताकि भारत न केवल ‘‘रत्नों की भूमि’’ कहलाए, बल्कि विश्व का भरोसेमंद जेम्स और ज्वेलरी हब भी बन सके। हमें अब अपने रत्न व्यापार को केवल परंपरा से नहीं, बल्कि प्रगति और प्रोफेशनलिज़्म से आगे बढ़ाना होगा।
इसी आवश्यकता को समझते हुए जौहरी एसोसिएशन, चंडीगढ़ ने ‘नवरत्न लर्निंग प्रोग्राम’ के रूप में एक अद्वितीय शैक्षिक अभियान आरंभ किया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उन सभी इच्छुक प्रतिभागियों को प्रशिक्षित करना है जो नौ प्रमुख रत्नों के बारे में गहन और तकनीकी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।
यह कार्यक्रम इस सोच पर आधारित है कि परंपरागत जौहरी केवल व्यापारी होते हैं, जिन्हें खरीदना और बेचना आता है परंतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण और रत्नों की सही पहचान का ज्ञान सीमित होता है।
इस लर्निंग प्रोग्राम के माध्यम से जौहरियों को यह सामर्थ्य मिलेगा कि वे अपने ग्राहकों को रत्नों के बारे में सटीक, प्रमाणिक और व्यावसायिक जानकारी दे सकें।
इससे न केवल बाज़ार में फैलने वाली भ्रामक जानकारी पर रोक लगेगी, बल्कि रत्न उद्योग को एक तकनीकी और प्रोफेशनल दिशा भी प्राप्त होगी। और मैं समझता हूं कि यह कार्यक्रम रत्न व्यापार को केवल लाभ कमाने का माध्यम नहीं, बल्कि गुणवत्ता आधारित सेवा और भरोसे के व्यवसाय के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा प्रारंभ की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उद्देश्य भारत को एक कुशल, सक्षम और आत्मनिर्भर निर्माण और सेवा केंद्र के रूप में विकसित करना है।
यह कार्यक्रम उसी लक्ष्य का एक अंग है, जहाँ पारंपरिक व्यापारियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रमाणिक जानकारी से जोड़ा गया है, ताकि वे केवल व्यापारी न रहकर प्रशिक्षित, प्रमाणित और प्रोफेशनल जौहरी बन सकें।
मुझे प्रसन्नता है कि इस प्रोग्राम को इंडियन डायमंड इंस्टिट्यूट, सूरत से शैक्षिक सहयोग प्राप्त हुआ है, जो भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रायोजित एक राष्ट्रीय संस्थान है तथा जैम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल द्वारा समर्थित है। इंडियन डायमंड इंस्टिट्यूट का तकनीकी योगदान इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर स्थापित करता है।
मैं इंडियन डायमंड इंस्टिट्यूट की टीम को विशेष धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने चंडीगढ़ जैसे उत्तर भारत के शहर में इस प्रकार का गुणवत्ता-सम्पन्न प्रशिक्षण संभव बनाया।
मैं विशेष रूप से जौहरी एसोसिएशन, चंडीगढ़ की पूरी टीम की सराहना करता हूँ जिनके अथक प्रयासों से यह कार्यक्रम साकार हो पाया है। आपके संयुक्त प्रयासों ने अनेकों प्रतिभागियों को नवगठित ज्ञान और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया है, जो आने वाले समय में इस क्षेत्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाएंगे।
मैं आज सभी प्रमाण पत्र प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को दिल से बधाई देता हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस ज्ञान से सुसज्जित होकर आप अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा, सटीक जानकारी और प्रामाणिक उत्पाद प्रदान कर पाएंगे।
जानकर अत्यंत हर्ष हुआ है कि यह चंडीगढ़ का पहला ऐसा रत्न एवं आभूषण प्रशिक्षण कार्यक्रम है, जो शैक्षिक दृष्टि से इतने व्यापक स्तर पर आयोजित हुआ है।
मेरा विश्वास है कि यह प्रयास केवल चंडीगढ़ तक सीमित न रहकर, पूरे भारत के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकता है।
प्रिय प्रतिभागियो,
आप सभी को प्रमाण पत्र की बहुत-बहुत बधाई। यह केवल एक काग़ज़ नहीं, बल्कि आपकी सीखने की ललक, व्यवसाय के प्रति ईमानदारी, और उच्च गुणवत्ता की सेवा का प्रतीक है। आपने यह सिद्ध किया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, और ज्ञान ही वह पूंजी है जो कभी समाप्त नहीं होती।
मैं आशा करता हूं कि आप इस ज्ञान को अपने व्यवसाय में लागू करेंगे और भारत को वैश्विक रत्न एवं आभूषण बाजार में नेतृत्व की भूमिका में लाने का कार्य करेंगे।
अंत में, मैं यही कहना चाहूंगा कि “रत्नों की असली चमक उनकी शुद्धता में नहीं, बल्कि उन्हें परखने वाले जौहरी की दृष्टि में होती है।”
आइए, हम मिलकर ऐसा भारत बनाएं जहाँ प्रामाणिकता, गुणवत्ता और पारदर्शिता रत्न उद्योग की पहचान हो।
एक बार फिर जौहरी एसोसिएशन, चंडीगढ़ और सभी सहभागियों को हार्दिक बधाई।
धन्यवाद,
जय हिन्द!