SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF COMMEMORATION OF ‘SAMVIDHAN HATYA DIWAS’ AT CHANDIGARH ON JUNE 25, 2025.
- by Admin
- 2025-06-26 15:35
‘संविधान हत्या दिवस’ के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 25.06.2025, बुधवार
समयः सुबह 10:00 बजे
स्थानः चंडीगढ़
नमस्कार!
आज हम एक ऐसे अध्याय की स्मृति में एकत्रित हुए हैं, जिसने भारतीय लोकतंत्र की नींव को गहराई से झकझोरा था, वह अध्याय है 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल का, जिसकी आज हम 50वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।
आज ही के दिन 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल घोषित किया गया था, जो लगभग 21 महीनों तक, अर्थात 21 मार्च 1977 तक प्रभावी रहा। इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने घोषित किया था।
मैं समझता हूं कि यह दिन, जिसे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में घोषित किया गया है, केवल अतीत की घटनाओं को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक चेतना को फिर से जागृत करने और संविधान की मूल भावना की रक्षा के प्रति अपने संकल्प को दोहराने का भी दिन है।
साथ ही, इस दिन को ‘‘लोकतंत्र की रक्षा में संघर्ष करने वालों’’ को श्रद्धांजलि अर्पित करने के रूप में भी मनाया जा रहा है। यह कार्यक्रम 25 जून 2025 से 25 जून 2026 तक एक वर्ष तक चलेगा, जिसमें देशभर में जन-जागरण, संवाद, संगोष्ठियाँ और प्रदर्शनी के माध्यम से लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त बनाने का कार्य किया जाएगा।
देवियो और सज्जनो,
मैं समझता हूं कि यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, एक स्मरण है, और एक प्रतिबद्धता है, यह याद रखने की कि जब सत्ता का दुरुपयोग चरम पर हो, जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरा लगाया जाए, जब संविधानिक मूल्यों को दबाया जाए, तो लोकतंत्र के प्रहरी, हमारे देशवासी, खामोश नहीं रहते।
यह केवल स्मृति का अवसर नहीं है, बल्कि यह हमारे संयुक्त उत्तरदायित्व को पुनः पुष्ट करने का भी क्षण है। चाहे वह सरकार हो, संस्थाएं हों या आम नागरिक, हम सबको संविधान में न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के निहित मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा को और दृढ़ करना होगा। ये केवल प्रास्तावना में अंकित शब्द नहीं हैं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की आधारशिलाएं हैं, जिनके संरक्षण के लिए सजगता और जिम्मेदारी आवश्यक है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 1975 से 1977 के बीच का आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का एक निर्णायक कालखंड था। यह वह समय था जब संवैधानिक मान्यताओं को निलंबित किया गया, नागरिक स्वतंत्रताओं पर अंकुश लगाया गया, और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा।
लेकिन इन तमाम परिस्थितियों के बीच भारत की जनता की संवैधानिक निष्ठा और लोकतांत्रिक मूल्यों की शक्ति अंततः विजयी हुई। आज का यह दिन उसी अटूट विश्वास, उस साहस, और उस आत्मबल का प्रतीक है जिसने संविधान के शासन को पुनः स्थापित किया।
साथियो,
आपातकाल का वह दौर, जब प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा, नागरिक अधिकारों का दमन हुआ, राजनीतिक असहमति को कुचला गया, भारतीय लोकतंत्र की सबसे कड़ी परीक्षा थी। लेकिन उसी कठिन समय में देशवासियों ने यह सिद्ध किया कि भारत की आत्मा लोकतांत्रिक है, और जब भी उसकी स्वतंत्रता पर हमला होगा, यह देश जागेगा, उठ खड़ा होगा और हर प्रकार की तानाशाही का विरोध करेगा।
मैं उन सभी व्यक्तियों को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ, जिन्होंने उस अंधेरे समय में अपनी आज़ादी, अपने करियर, अपने परिवार की चिंता किए बिना, लोकतंत्र की लौ को जलाए रखा। वे पत्रकार, नेता, समाजसेवी, छात्र, जो जेलों में बंद रहे और प्रताड़नाएं झेलीं, लेकिन झुके नहीं। उन्हीं की तपस्या से आज हमारा संविधान और अधिक मजबूत और हमारी लोकतंत्र की नींव और अधिक सुदृढ़ हुई है।
भविष्य की ओर देखें तो यह अवसर केवल स्मरण का नहीं, संकल्प का भी है, संकल्प यह किः
हम नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सजग रहेंगे।
हम कभी भी ऐसी किसी भी प्रवृत्ति को समर्थन नहीं देंगे जो लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करे।
हम हर पीढ़ी को यह शिक्षा देंगे कि लोकतंत्र केवल चुनाव नहीं, बल्कि एक चेतना है, जिम्मेदारी है और निरंतर जागरूकता की माँग करता है।
साथियो,
इस राष्ट्रीय पहल के तहत चंडीगढ़ प्रशासन को यह अवसर प्राप्त हुआ है कि वह टैगोर थिएटर में यह राज्य स्तरीय स्मृति कार्यक्रम आयोजित कर सके। इस आयोजन में समाज के विभिन्न वर्गों, जनप्रतिनिधियों, युवा स्वयंसेवकों, विद्यार्थियों या आम नागरिकों की उपस्थिति ने इस आयोजन को और अधिक सारगर्भित बना दिया है।
चंडीगढ़, एक संघ शासित प्रदेश और दो राज्यों की राजधानी होने के नाते, सदैव सुनियोजित शासन व्यवस्था और नागरिक जागरूकता के क्षेत्र में अग्रणी रहा है।
हमारी प्रशासनिक नीतियों का मूल उद्देश्य समावेशी विकास, विधिक उत्तरदायित्व और जनहित आधारित सेवा रहा है। इस दिवस के माध्यम से हम अपने उस दायित्व को पुनः स्मरण कर रहे हैं कि संविधान की भावना को व्यवहार में उतारना ही सुशासन का मूल है।
मैं संस्कृति विभाग और इस कार्यक्रम से जुड़े सभी विभागों, संस्थानों और स्वयंसेवकों की सराहना करता हूं, जिन्होंने चंडीगढ़ के 50 स्थानों पर इन आयोजनों का समन्वय किया है।
चाहे वह प्रदर्शनी हो, जनसंवाद, निबंध प्रतियोगिता या सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, इन सभी प्रयासों का उद्देश्य केवल समारोह करना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक चेतना को जागृत करना है, विशेषकर हमारे युवाओं में।
साथियो,
लोकतंत्र कोई स्थायी रूप से प्राप्त हो जाने वाली उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह एक सतत विकसित होने वाली जीवंत व्यवस्था है, जिसे हमें प्रत्येक दिन अपने विचारों, कार्यों, संस्थाओं और नागरिक आचरण के माध्यम से सींचना और सहेजना होता है।
केवल संविधान का अस्तित्व पर्याप्त नहीं है। हमें उसके मूल सिद्धांतों, जैसे स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुता को अपने जीवन में पूरी निष्ठा से अपनाना होगा।
यदि हम लापरवाह या निष्क्रिय हो जाएं, तो लोकतंत्र की आत्मा, जोकि संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, प्रेस की आज़ादी, न्यायपालिका की निष्पक्षता और नागरिकों की जागरूक भागीदारी में निहित है, धीरे-धीरे क्षीण हो सकती है। इतिहास गवाह है कि जब-जब नागरिकों की सजगता कमजोर हुई, लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा है।
इसलिए, यह आवश्यक है कि हम केवल मतदाता के रूप में चुनावों में भाग लेने तक सीमित न रहें, बल्कि अपने चारों ओर घटने वाली प्रशासनिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों के प्रति भी जागरूक और उत्तरदायी रहें।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि संवैधानिक नैतिकता का पालन हो, संस्थागत स्वतंत्रता अक्षुण्ण बनी रहे, और हर नागरिक अपनी भूमिका को सक्रिय रूप से निभाए।
सच्चा लोकतंत्र तभी फलता-फूलता है जब उसकी रक्षा केवल सरकार या अदालतें ही नहीं, बल्कि आम नागरिक भी अपनी चेतना और क्रियाशीलता से करते हैं। अतः यह हम सबकी साझी जिम्मेदारी है कि हम न केवल लोकतांत्रिक अधिकारों का उपभोग करें, बल्कि उनके संरक्षण और विस्तार में भी योगदान दें।
साथियो,
आज जब हम अतीत के एक कठिन अध्याय को स्मरण कर रहे हैं, तो यह हमारे लिए आवश्यक है कि हम भविष्य की ओर भी देखें, सजगता, विवेक और आशा के साथ।
हमें यह आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या हम लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को बनाए रखने हेतु पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं? क्या हम संवाद, असहमति और उत्तरदायित्व की संस्कृति को प्रोत्साहित कर रहे हैं? क्या हम अपने युवाओं को स्वतंत्रता के साथ-साथ कर्तव्य का भी महत्व सिखा रहे हैं?
जैसा कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा थाः “कोई भी संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग अच्छे नहीं हैं, तो वह संविधान बुरा भी सिद्ध हो सकता है। और कोई संविधान चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग अच्छे हैं, तो वह संविधान अच्छा भी सिद्ध हो सकता है।”
आइए, हम सभी इस उद्घोष को अपने आचरण और प्रशासन का मार्गदर्शक बनाएं। यह हमें स्मरण कराता है कि संविधान की आत्मा हमारे व्यवहार और निष्ठा में ही जीवित रहती है।
संविधान हत्या दिवस के इस अवसर पर, आइए हम फिर से यह संकल्प लें कि लोकतंत्र को कभी भी स्वाभाविक या स्थायी मानकर न चलें। हर दिन, हर कदम पर, हमें उसकी गरिमा की रक्षा करनी है, हर नागरिक के अधिकारों का सम्मान करना है, हर संस्था की स्वायत्तता को बनाए रखना है, और जनतंत्र की बुनियाद को सशक्त बनाना है।
आप सभी का इस महत्वपूर्ण अवसर पर उपस्थित होने के लिए मैं आभार प्रकट करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!