Speech of Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri Gulab Chand Kataria on the occasion of Van Mahotsav 2025 at Chandigarh on July 5, 2025.
- by Admin
- 2025-07-06 15:50
‘वन महोत्सव 2025’ के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 05.07.2025, शनिवार
समयः सुबह 8:00 बजे
स्थानः चंडीगढ़
नमस्कार!
आज ‘वन महोत्सव 2025’ के इस पावन अवसर पर, हरियाली से भरपूर इस सुंदर शहर चंडीगढ़ में आप सभी पर्यावरण प्रेमियों, विद्यार्थियों, अधिकारियों, और समाज के जागरूक नागरिकों के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। यह आयोजन प्रकृति के प्रति हमारे समर्पण और उत्तरदायित्व का सजीव उदाहरण है।
मैं मानता हूँ कि वन महोत्सव केवल पेड़ लगाने का एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह हमारी धरती माता के प्रति सम्मान, संरक्षण और समर्पण की भावनाओं का प्रतीक है। यह महज एक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा हरित संकल्प है, जो हमें प्रकृति से अपने रिश्ते की याद दिलाता है।
देवियो और सज्जनो,
भारत में पहला राष्ट्रीय वृक्षारोपण सप्ताह 20 से 27 जुलाई 1947 तक आयोजित किया गया था। इसका आयोजन भारतीय इतिहासकार, सिविल सेवक और वनस्पति विज्ञानी श्री एम. एस. रंधावा द्वारा किया गया था।
श्री एम. एस. रंधावा जी केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के पहले चीफ कमिश्नर थे और शहर की योजना और इसकी सौंदर्यता को आकार देने में उनका योगदान अत्यंत उल्लेखनीय रहा। उनका दृष्टिकोण न केवल प्रशासनिक था, बल्कि एक दूरदर्शी शहरी नियोजनकर्ता के रूप में उन्होंने चंडीगढ़ को एक सुसंगठित, सुंदर और रहने योग्य शहर बनाने में अहम भूमिका निभाई।
उनके द्वारा शुरू की गई वृक्षारोपण सप्ताह की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 1950 में भारत सरकार के खाद्य एवं कृषि मंत्री श्री कनैयालाल माणिकलाल मुंशी ने इसे राष्ट्रीय स्तर की गतिविधि में बदल दिया। उन्होंने वृक्षारोपण सप्ताह को जुलाई के पहले सप्ताह में स्थानांतरित कर इसका नाम ‘‘वन महोत्सव’’ रखा, क्योंकि भारत में मानसून का आगमन इसी समय होता है।
इस महोत्सव का उद्देश्य लोगों को यह समझाना था कि पेड़ लगाना केवल एक पर्यावरणीय ज़रूरत नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है।
श्री मुंशी जी कहा करते थे कि ‘‘वृक्षों का अर्थ है जल, जल से गेहूँ और रोटी उपजती है, और रोटी से ही जीवन चलता है और टिकता है।’’
यदि वृक्ष और वन नहीं होंगे, तो इंद्र देवता के मेघ हमें आशीर्वाद नहीं देंगे। जल के बिना नदियाँ नहीं बहेंगी, और वर्षा-आधारित वनों का भी अस्तित्व नहीं रह जाएगा। हमें यह भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि इस धरती पर मानव जीवन का अस्तित्व वृक्षों और वनों के बिना संभव नहीं है।
भारत का वन क्षेत्र देश की कुल भौगोलिक सीमा का लगभग 25.17 प्रतिशत है, जबकि भारत विश्व की कुल भूमि का मात्र 2.4 प्रतिशत भाग ही घेरता है। इसके बावजूद, यह गर्व की बात है कि वन क्षेत्र के मामले में भारत विश्व के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। यह उपलब्धि भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता, संरक्षण की परंपरा और हरित विकास के प्रति समर्पण को दर्शाती है।
हाल ही में एक प्रसिद्ध पारिस्थितिकी विज्ञानी (ecologist) के अध्ययन के अनुसार, हर वर्ष विश्व भर में लगभग 15 अरब पेड़ नष्ट हो जाते हैं। इसका अर्थ है कि हर एक सेकंड में लगभग 40 फुटबॉल मैदान के बराबर वन क्षेत्र समाप्त होता जा रहा है। यह आँकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन की उस गंभीरता को भी उजागर करता है जिससे आज पूरी मानवता जूझ रही है।
ऐसी भयावह स्थिति में, वन महोत्सव 2025 केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह हमारी धरती माता की रक्षा, पारिस्थितिकी संतुलन की बहाली और भावी पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने की अनिवार्य आवश्यकता बन चुका है।
यह महोत्सव हमें याद दिलाता है कि वृक्षारोपण एक बार का कर्तव्य नहीं, बल्कि एक सतत जिम्मेदारी है, जो हमें अपने परिवेश, समाज और प्रकृति के प्रति निभानी है।
साथियो,
वृक्षारोपण के माध्यम से हम न केवल वनों की संख्या बढ़ाते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ वायु, शुद्ध जल और संतुलित पर्यावरण का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। यह उत्सव हमें सिखाता है कि जैसे माँ अपने बच्चों की देखभाल करती है, वैसे ही हमें भी अपनी धरती माँ की चिंता करनी चाहिए।
आज के समय में जब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों की कमी जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं, तो वन महोत्सव हमारे लिए एक चेतावनी भी है और एक अवसर भी, कि हम जागरूक बनें, जिम्मेदारी लें और हरित भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।
इसलिए, वन महोत्सव को केवल एक दिन का कार्यक्रम न मानें, बल्कि इसे एक सतत आंदोलन के रूप में अपनाएँ, जहाँ हर नागरिक, हर बच्चा, हर संस्था यह प्रण ले कि ‘‘एक पेड़ लगाना, एक जीवन बचाना है।’’
देवियो और सज्जनो,
भारत की परंपरा में वृक्षों को केवल प्रकृति का हिस्सा नहीं, बल्कि देवता स्वरूप माना गया है। हमारे वेदों और पुराणों में वृक्षों की पूजा की गई है। पीपल, बरगद, नीम, तुलसी जैसे वृक्ष न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि औषधीय और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए हैं।
हमारी जीवनशैली का मूल रहा है भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश का पंचामृत का सिद्धांत। इन पंचतत्त्वों का संतुलन वृक्षों और वनों के माध्यम से ही संभव है।
विशिष्ट वृक्षों की उपस्थिति वाली प्राचीन भारत की पंचवटी परंपरा इस संतुलन की प्रतीक थी। यह न केवल धार्मिक स्थान था, बल्कि समाज के पर्यावरणीय कर्तव्य का भी केंद्र था।
देवियो और सज्जनो,
51.54 प्रतिशत ग्रीन कवर के साथ चंडीगढ़ देश के सबसे स्वच्छ, हरित और पर्यावरण-संवेदनशील शहरों में अग्रणी रहा है। शहर का नियोजन, बाग-बगीचों और हरित पट्टियों की योजना ही इसका आधार रहा है। पिछले वर्षों में चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा किए गए वृक्षारोपण अभियानों, सिटी फॉरेस्ट्स, और हरित कॉरिडोर ने शहर को हरियाली की दिशा में एक आदर्श शहर के रूप में स्थापित किया है।
मुझे यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि इस वर्ष चंडीगढ़ में 5 लाख से अधिक पौधे रोपित किए जाएंगे, जिनमें से केवल आज ही 253 चिन्हित स्थलों पर 1 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया जा रहा है।
मैं इस उत्कृष्ट योजना के लिए वन विभाग एवं सभी हरित एजेंसियों को हार्दिक बधाई देता हूँ, जिन्होंने एक व्यापक और समग्र वृक्षारोपण योजना तैयार की है।
मुझे यह भी बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज हम ‘ग्रीनिंग चंडीगढ़ एक्शन प्लान’, ‘राज्य जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना’ एवं ‘चंडीगढ़ का ट्री मैप’ का लोकार्पण कर चुके हैं।
ये योजनाएँ न केवल हमारे शहर की हरित छवि को और सुदृढ़ करेंगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी नई दिशा देंगी।
मैं चंडीगढ़ प्रशासन और सभी संबंधित विभागों को इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए बधाई देता हूँ, जिन्होंने समग्र और प्रभावी योजनाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी है।
साथियो,
पेड़ न केवल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि मिट्टी का कटाव रोकते हैं, जलवायु को संतुलित करते हैं, और जैव विविधता को संरक्षित रखते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने कहा थाः ‘‘प्रकृति ही सबसे बड़ी गुरु है। जो उसे पढ़ना जानता है, वह जीवन का सार समझ सकता है।’’
स्वामी विवेकानंद ने प्रकृति को एक शिक्षक के रूप में देखा था, जो हमें जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखा सकती है। उनका मानना था कि प्रकृति के नियमों को समझने से, हम अपने जीवन को बेहतर ढंग से जी सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
आज जब हम एक पौधा लगाते हैं, हम केवल मिट्टी में बीज नहीं डालते, हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आशा का अंकुर बोते हैं।
जैसा कि हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने ‘विकसित भारत 2047’ का जो स्वप्न प्रस्तुत किया है, उसमें एक स्वच्छ, हरा-भरा और सतत विकास वाला भारत शामिल है। इस दिशा में चंडीगढ़ प्रशासन का संकल्प है कि हम 2030 तक शहर को Net Zero Emission की ओर अग्रसर करेंगे और वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन सुनिश्चित करेंगे।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पर्यावरण संरक्षण को केवल नीति का विषय नहीं, बल्कि जन आंदोलन बना दिया है।
उनकी प्रेरणादायक पहल “एक पेड़ माँ के नाम” केवल एक वृक्षारोपण अभियान नहीं, बल्कि मातृत्व और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त करने की एक सुंदर सामाजिक अभिव्यक्ति है।
हमें चाहिए कि हम सब मिलकर प्रधानमंत्री जी के इन प्रयासों में भागीदार बनें और पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का संकल्प बनाएं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, श्री गुरु नानक देव जी ने सदियों पहले ही पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझा और उसे अपने दिव्य उपदेशों में स्थान दिया। उन्होंने ‘‘पवन गुरू, पानी पिता, माता धरत महत’’ के माध्यम से हमें यह संदेश दिया कि प्राकृतिक स्रोत केवल संसाधन नहीं, बल्कि हमारे जीवन के आधार हैं, और उनके साथ हमारे रिश्ते पारिवारिक और आत्मिक होने चाहिएं।
आज जब हम पर्यावरणीय संकट की गंभीरता को देख रहे हैं, तो गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं हमें एक स्थायी और संतुलित जीवन की दिशा दिखाती हैं। ज़रूरत है कि हम अपनी संस्कृति और प्रकृति के प्रति ज़िम्मेदारी को फिर से पहचानें। वृक्ष लगाना और उनका संरक्षण आज के समय का सबसे बड़ा धार्मिक और सामाजिक यज्ञ है।
आज के इस अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हर व्यक्ति कम से कम एक पौधा लगाए, उसकी देखभाल करे, और दूसरों को भी प्रेरित करे। आपका एक छोटा कदम, पर्यावरण की बड़ी सेवा बन सकता है।
मैं समझता हूं कि केवल वृक्षारोपण करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह आवश्यक है कि हर पौधे को उसके बढ़ने तक संरक्षण और पोषण मिले ताकि वह स्वस्थ और मजबूत होकर हमारे पर्यावरण का आधार बन सके।
इसलिए, वृक्षारोपण के बाद नियमित निगरानी, जल प्रबंधन, और रोग-रहित स्थिति बनाए रखना हम सबका साझा दायित्व है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘पृथ्वी हर इंसान की जरूरत को पूरा कर सकती है, लेकिन हर इंसान के लालच को नहीं।’’
आज जब हम पेड़ लगाते हैं, हम प्रकृति से केवल लेना नहीं, बल्कि उसे लौटाना भी सीखते हैं।
अंत में, मैं पुनः सभी से अपील करता हूँ कि हम मिलकर अपने पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध हों।
यह हमारा साझा दायित्व है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ, हरित और स्वस्थ चंडीगढ़ छोड़ें।
वन महोत्सव का यह अवसर हमें याद दिलाता है कि वृक्ष ही जीवन हैं, और उनका संरक्षण ही हमारे अस्तित्व की गारंटी है।
आइए, हम सब मिलकर इस संकल्प को निभाएं और प्रकृति के साथ संतुलित जीवन की ओर कदम बढ़ाएं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!