Speech of Hon’ble Governor of Punjab and Administrator, U.T. Chandigarh on the occasion of the “Sanatan Rattan Sammaan Samaroh ” at Hyatt Centric, Sector -17, Chandigarh, on 19th September, 2025.

विश्व सनातन धर्म सभा के वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 19.09.2025, शुक्रवारसमयः दोपहर 12:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

आज के इस अवसर पर, जब ‘विश्व सनातन धर्म सभा’अपने वार्षिक अधिवेशन का आयोजन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के जन्मदिन सप्ताह को समर्पित कर रही है, मैं आप सभी को हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। 

मुझे बताया गया है कि विश्व सनातन धर्म सभा की स्थापना वर्ष 2023 में श्री अश्वनी सेखड़ी द्वारा की गई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य ब्राह्मण, राजपूत, खत्री, अरोड़ा आदि अन्य सनातनी समाजों को एक सूत्र में बाँधना है। 

यह संगठन भारतीय समाज में “राष्ट्र प्रथम’’ की भावना को सर्वोत्तम रूप में जागृत करने और सनातन संस्कृति के शाश्वत मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए सतत कार्य कर रहा है।

विश्व सनातन धर्म सभा के संयोजक श्री श्रीनिवासलू मंथरी तथा अध्यक्ष अश्वनी सेखड़ी ने अपने साथियों के साथ मिलकर पूरे पंजाब के लगभग 100 शहरों में जागृति लाने का सराहनीय कार्य किया है।

सभा ने पंजाब के विभिन्न शहरों के प्रमुख प्राचीन मंदिरों का इतिहास अपनी वेबसाइट पर प्रस्तुत कर पूरे विश्व को पंजाब के इन महान तीर्थस्थलों से जोड़ने का सराहनीय प्रयास किया है। 

इसके अतिरिक्त, वेबसाइट पर भारत के प्रतिष्ठित तीर्थ धाम जैसे माता वैष्णो देवी, अमरनाथ धाम, वृंदावन धाम, सिद्धिविनायक मंदिर, केदारनाथ धाम और तिरुपति बालाजी की लाइव आरती देखने की विशेष व्यवस्था भी की गई है, जिससे श्रद्धालु देश-विदेश में कहीं से भी इन पवित्र स्थलों का दिव्य अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।

साथ ही, सभा ने पंजाब के विभिन्न प्रमुख शहरों में भगवान श्रीराम के पावन स्मरण हेतु भजन महासंध्या का आयोजन करके हजारों श्रद्धालुओं और सनातन धर्मावलंबियों को राम नाम का सामूहिक गुणगान करने का जो अद्भुत अवसर प्रदान किया गया है, वह वास्तव में अत्यंत सराहनीय और प्रेरणादायक है।

मुझे बताया गया है कि सभा ने जरूरतमंद परिवारों के प्रतिभाशाली बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए एक सराहनीय पहल की भी शुरूआत की है। इस अनूठे कार्यक्रम के अंतर्गत एक सक्षम एवं समृद्ध सनातनी परिवार, आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च वहन करता है, जिससे कि इन बच्चों को उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होने का अवसर मिल सके।

प्रिय सनातनियो, 

आज विश्व सनातन धर्म सभा द्वारा सनातन समाज के 13 विशिष्ट व्यक्तित्वों को “सनातन रत्न” सम्मान से अलंकृत किया गया है। मैं इन सभी सम्मानित लोगों को इस सम्मान के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। यह सम्मान उस निस्वार्थ भावना का प्रतीक है, जिसके माध्यम से इन विभूतियों ने समाज के उत्थान, सेवा और सनातन मूल्यों के संरक्षण में अद्वितीय योगदान दिया है।

आज विश्व सनातन धर्म की कोर कमेटी द्वारा लगभग 100 शहरों के अध्यक्षों की विधिवत नियुक्ति पर मैं सभी अध्यक्षों को बधाई और आशीर्वाद देता हूँ। और मुझे पूरा यकीन है कि आप सब लोग पंजाब के अपने अपने शहरों और जिलों में सनातन की महान परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए पुरजोर प्रयत्न करेंगे और नई पीढ़ी को महान सनातन धर्म की परंपराओं से अवगत कराने का कार्य करेंगे।

प्रिय सनातनियो,

आज हम उस पवित्र और शाश्वत परंपरा पर चर्चा कर रहे हैं, जिसका आधार हमारे भारतीय समाज के प्रत्येक हिस्से का निर्माण करता है और वह है, सनातन धर्म।

सनातन धर्म भारतवर्ष की आत्मा, सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत का मूल स्रोत है। हजारों वर्षों से यह न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में बल्कि समस्त विश्व में अपने सार्वभौमिक मूल्यों, गहन आध्यात्मिक सिद्धान्तों तथा जीवनदर्शिता के लिए जाना जाता रहा है। 

“सनातन” शब्द का अर्थ है - “शाश्वत’’, यानी जो सदा से है और सदा रहेगा। जबकि “धर्म”का अर्थ है - धारण करने योग्य, अर्थात् जो सृष्टि, समाज और व्यक्ति का आधार हो। सनातन धर्म केवल धार्मिक प्रथाओं का संग्रह नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक समग्र, संतुलित और नैतिक दृष्टि है। सनातन धर्म कभी सीमाओं में बंधता नहीं, इसमें लचीलापन और समावेशिता है; यह सभी मनुष्यों, सभी जीवों, सभी विचारों को स्वीकारता है और उनमें एकता खोजता है।

सनातन धर्म का मूल दर्शन ‘सत्व’, ‘रज’ और ‘तम’ रूपी ‘त्रिगुण’ के सिद्धांत पर आधारित है। ‘सत्व’, सत्य, प्रकाश और संतुलन का प्रतीक है; ‘रज’, कर्म, आकांक्षा और परिवर्तनशीलता का; जबकि ‘तम’, अज्ञान और जड़ता को दर्शाता है। जीवन का उद्देश्य इन तीनों गुणों में संतुलन साधकर सत्य और धर्म की उच्चतम चेतना तक पहुँचना है। 

कर्म, अर्थात कार्य, सनातन धर्म की आत्मा है। हिन्दू दर्शन में कर्म का अर्थ केवल बाहरी कार्य नहीं, बल्कि उसके पीछे की भावना, उद्देश्य और परिणाम की जिम्मेदारी भी है। “जैसा करोगे, वैसा फल पाओगे’’, यह सिद्धांत वेद, पुराण, उपनिषद और गीता सभी में प्रतिपादित है। कर्म का संदेश है कि आज की परिस्थितियाँ हमारे पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम हैं, और आज किए गए कर्म हमारे भविष्य का निर्धारण करेंगे। 

सनातन धर्म की जड़ें वैदिक काल, लगभग पाँच से सात हजार वर्ष पूर्व के ऋग्वैदिक युग तक जाती हैं। नंद, मौर्य, गुप्त, चोल जैसे राजवंशों के समय यह भारतीय सभ्यता के साथ फलता-फूलता रहा। उपनिषद, महाभारत, रामायण और पुराणों ने इसके विचारों को गहराई दी, पर इसकी मूल अवधारणा सदैव यही रही कि धर्म समयानुसार परिवर्तित होते हुए भी अपने “सनातन’’ स्वरूप में निरंतर प्रवाहित रहता है।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद सनातन धर्म के चार वेद हैं, जो ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कर्मकांड, समाज, शिक्षा और चिकित्सा आदि के मूल स्रोत हैं। वेदों को “श्रुति’’ अर्थात ईश्वर-प्रकाशित ज्ञान कहा जाता है। वेदों में ब्रह्मांड, प्रकृति, दैविक शक्तियाँ, मानव धर्म, समाज और ज्ञान-विज्ञान के तात्त्विक विचार सम्मिलित हैं। 

700 श्लोकों की गीता को “सनातन धर्म का सार’’ कहा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता की सबसे बड़ी देन है कि यह हर परिस्थिति में सकारात्मक, कर्मठ, निस्वार्थ, और समत्वयोगी जीवन जीने का मार्ग दिखाती है। गीता में स्पष्ट निर्देश है, “यद्यदाचरति श्रेष्ठः तत्तदेवेतरो जनः।‘’ यानी श्रेष्ठ पुरुष जैसा करता है, समाज उसका अनुसरण करता है। 

सनातन धर्म, ‘धर्म’ (कर्तव्य व नैतिकता), ‘अर्थ’ (साधन-संपन्नता), ‘काम’ (इच्छाएं), और ‘मोक्ष’ (आत्ममुक्ति) रूपी “चार पुरुषार्थों” के माध्यम से जीवन का समग्र उद्देश्य दिखाता है। यह विचारधारा जीवन के हर चरण, समस्या व महत्वाकांक्षा के लिए स्पष्ट रूपरेखा देती है। इन चारों का संतुलित समावेश ही आदर्श मानव जीवन का आधार माना गया है। 

जन-मानस में अकसर धार्मिकता को जड़ता और अंधविश्वास के साथ जोड़ कर देखा जाता है, परंतु सनातन धर्म की असली शक्ति उसकी वैज्ञानिकता, तर्कशीलता, खुला दृष्टिकोण, और संशय-अधिकार में निहित है। वेद और उपनिषद ने सदा तर्क, संवाद, और अनुभव को स्थान दिया; “नेति-नेति” (यह नहीं, वह नहीं) जैसी अवधारणाएं नवीन विचारों और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए खुलेपन का प्रतीक हैं। 

सनातन धर्म विविधता में एकता के सिद्धांत को आधार मानता है। इसका ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का विचार वैश्विक भाईचारे का आधार है। वह किसी मत, सम्प्रदाय, जाति, लिंग, भाषा, या क्षेत्र में बंधा नहीं; सबको धर्म और मोक्ष पाने का समान अधिकार देता है। यही समावेशन और सहिष्णुता आज के संघर्षरत समाज में अत्यावश्यक बन गया है।

सनातन धर्म सृष्टि के प्रत्येक जीव, वृक्ष, नदी, पर्वत, वायु, अग्नि और पृथ्वी को पूजनीय मानता है। वर्तमान वैश्विक पर्यावरण संकट एवं जैव-विविधता के संरक्षण में यह सोच अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध हो रही है।

प्राचीन भारत की तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, उज्जैनी जैसे विश्वविद्यालय; चरक, सुश्रुत, पतंजलि, आर्यभट, भास्कर, कनाद जैसे विज्ञानियों का योगदान; और नाट्य, व्याकरण, खगोल, गणित, आर्किटेक्चर, योग, आयुर्वेद की वैश्विक परंपरा, ये सब सनातन धर्म की शिक्षाप्रणाली, नवाचार और तर्कशीलता का अद्भुत प्रमाण हैं। 

हाल के दशकों में औद्योगिकीकरण, उपभोक्तावाद, आस्था संकट, आप्रवासन, पश्चिमी मॉडल्स के प्रभाव ने भारतीय समाज को अनेक चुनौतियां दी हैं। इसके बावजूद, योग, ध्यान, आत्म-साक्षात्कार, प्राकृतिक चिकित्सा, भारतीय न्यायशास्त्र, सांप्रदायिक संवाद, तथा सर्वसमावेशिता के कारण सनातन धर्म आज पुनरुज्जीवन की ओर अग्रसर है। 

अनेक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, स्वास्थ्य संगठनों, योग केंद्रों में सनातन दर्शन, आयुर्वेद, योग मेडिटेशन, श्रीमद्भगवद्गीता का पठन-पाठन और अनुसंधान हो रहा है। 

“अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” (21 जून) इसकी वैश्विक स्वीकृति का सबसे बड़ा उदाहरण है। हॉलीवुड, ओपरा विन्फ्रे, स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग, आदि अनेक अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने गीता, ध्यान, सनातन उक्ति को आत्मसात कर नई चेतना फैलाई है। 

आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जब मानव समाज नैतिक संकट, पर्यावरणीय संकट, युद्ध, डिजिटल परिवर्तन, जीवनशैली असंतुलन, अकेलापन, और मानसिक अवसाद से जूझ रहा है, सनातन धर्म के सिद्धांत नवीनतम प्रकाश पुंज बनकर उपस्थित हो रहे हैं। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, स्कूल-विश्वविद्यालयों, टेक कंपनियों, व्यवस्थापकों, आंदोलनों, से लेकर व्यक्तिगत विकास विशेषज्ञों, मेडिकल साइंटिस्ट्स, एनवायरमेंट एक्टिविस्ट्स, सोशल इंजीनियर्स, मीडिया-सब में सनातन विचारधारा की प्रासंगिकता बढ़ी है। 

साथियो,

आज जब विश्व में मानसिक तनाव, व्यक्तिगत टकराव और नैतिक संकट बढ़ रहे हैं, तब सनातन धर्म का शाश्वत संदेश पहले से भी अधिक प्रासंगिक है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सनातन धर्म हमें संयम, विवेक और गहरे आत्मबोध की ओर प्रेरित करता है। यह धर्म आधुनिकता के साथ तालमेल बैठाते हुए आत्म-सुधार, सह-अस्तित्व और वैश्विक भाईचारे की शिक्षा देता है।

अतः, सनातन धर्म भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह सत्य, करुणा, शांति और स्नेह का मार्ग है। यही हमारे संविधान, समाज और राष्ट्रवाद की असली जड़ है। हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस परंपरा से जुड़े हैं जो लाखों वर्षों से मानवता को दिशा देती रही है।

आइए, हम सब अपने जीवन में सनातन धर्म के सत्य, धर्म, करुणा और आत्म-ज्ञान के मूल सिद्धांतों को अपनाएँ और भारत व सभ्य समाज के सशक्त निर्माण में सहभागी बनें।

धन्यवाद,

जय हिंद!