SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CELEBRATION OF FORGIVENESS DAY AT PUNJAB RAJ BHAVAN ON SEPTEMBER 21, 2025.

‘‘क्षमा पर्व’’ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 21.09.2025,  रविवारसमयः सुबह: 10:00  बजेस्थानः पंजाब राजभवन

 

नमस्कार एवं सादर प्रणाम,

आज “क्षमा पर्व” के इस पावन अवसर पर, पंजाब राज भवन में आप सभी श्रद्धेय जैन आचार्यगण, जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (JITO) के पदाधिकारी, गणमान्य अतिथि, सामाजिक कार्यकर्ता और उपस्थित सभी भाई-बहनों का मैं हृदय से स्वागत करता हूँ।

यह सचमुच सौभाग्य का क्षण है कि हमें जैन धर्म की महान परंपरा से जुड़े इस आयोजन में एकत्रित होने का अवसर प्राप्त हुआ है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि मानवता के लिए आपसी सद्भाव, सहिष्णुता, करुणा और क्षमा का गहन संदेश लेकर आता है।

मैं विशेष रूप से जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन को इस भव्य और अनुकरणीय आयोजन के लिए धन्यवाद देता हूँ। वर्ष 2007 में स्थापित यह संगठन न केवल व्यावसायिक क्षेत्र में उत्कृष्टता का परिचायक है, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों, शिक्षा, सेवा और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 

जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन एक सफल जैन व्यवसाय उद्यमियों और पेशेवरों का एक बहु-हितधारक समुदाय है, जो विकास, आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक सेवा के सामान्य उद्देश्य के लिए मिलकर काम करता है।

संगठन का नेटवर्क पूरे भारत में 9 जोनों में फैला हुआ है और इसमें 77 चैप्टर शामिल हैं। इसके अलावा, यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है, और 32 शहरों या स्थानों में अपनी गतिविधियों का विस्तार कर चुका है।

प्रिय श्रद्धालुजनो,

पर्युषण महापर्व के समापन पर मनाया जाने वाला क्षमा पर्व, वास्तव में जैन संस्कृति का आत्मिक शिखर है। जैन धर्म में इसे ’क्षमायाचना दिवस’ कहा जाता है, और आधुनिक भाषा में हम इसे "Forgiveness Day" भी कहते हैं। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन का वह संदेश है जो हमें अहंकार से ऊपर उठकर क्षमाशील बनने का मार्ग दिखाता है। 

क्षमा पर्व का मूल भाव यह है कि ‘मानव तो अशुद्धियों से पूर्ण होता है, किंतु क्षमा द्वारा ही वह आत्मशुद्धि की ओर अग्रसर हो सकता है।’ यह पर्व स्वयं की त्रुटियों को स्वीकार करने, अन्य के प्रति करुणा और परस्पर विश्वास का वातावरण निर्मित करता है।

क्षमा का अर्थ केवल किसी की भूल को माफ़ कर देना नहीं है। यह आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। जब हम “मिच्छामि दुक्कड़म्” कहते हैं, तो हम न केवल दूसरों से, बल्कि स्वयं से भी यह कहते हैं कि, यदि हमारे वचन, विचार या कर्म से किसी को कष्ट पहुँचा हो, तो हमें क्षमा करें।

क्षणिक जीवन में हम जाने या अनजाने में मन, वचन या काया से कई जीवों को कष्ट पहुँचा बैठते हैं। जैन दर्शन में यह माना गया है कि इन त्रुटियों से मोक्षमार्ग पर बाधा उत्पन्न होती है। क्षमा पर्व के माध्यम से हम अपने कृत्य, विचार, वाणी और व्यवहार में जो भी दोष हैं, उनका परिष्कार करते हैं; अपने अंदर दया, करुणा, अहिंसा व समभाव की ऊर्जा को जागृत करते हैं। क्षमा की प्रक्रिया में आत्ममंथन, पश्चाताप और परिवर्तन का बीज बोया जाता है, जो आध्यात्मिक उन्नति की राह को सुगम बनाता है।

जैन धर्म के अनुसार, क्षमा की भावना आत्मा की सबसे उच्च अवस्था का प्रतीक है। भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा है- “क्षमा वीरस्य भूषणम्”, अर्थात् क्षमा वीरों का आभूषण है। यह पर्व केवल लेने-देने का समझौता नहीं, बल्कि आत्मभाव की पूर्ण शुद्धि का पर्व है, जो जीव को उसके असली स्वरूप की ओर लौटने हेतु प्रेरित करता है।

वर्तमान समाज में द्वेष, मतभेद, ईर्ष्या, दुराव और संघर्ष जैसी नकरात्मक प्रवृत्तियाँ प्रचुर हैं। क्षमा पर्व हमें इन प्रवृत्तियों का उपचार करने की राह दिखाता है। जब व्यक्ति निश्छल मन से अपने परिचित, परिजन, मित्र, परिचारक अथवा अज्ञातजनों से क्षमा माँगता है और उन्हें क्षमा करता है, तभी वास्तविक सामाजिक समरसता, परस्पर विश्वास एवं शांति की स्थापना संभव होती है।

इस पर्व में परस्पर ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’, ‘उत्तम क्षमा’ एवं ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ जैसे भावों का संचार समाज को जोड़ने, रिश्तों में नई ऊर्जा, संवाद, एवं सहयोग को सशक्त करता है। यह पर्व पारस्परिक संवाद का श्रेष्ठ अवसर है, जिसमें वैर-भाव त्यागकर सामाजिक सौहार्द्र एवं समरसता को पुनर्संस्थान मिलता है।

समाज में, जब प्रत्येक व्यक्ति क्षमा को आत्मसात करता है, तो समाज सम्यक् दृष्टि, सद्भावना और परोपकार की ओर अग्रसर होता है। ‘असत्य से सत्य, हिंसा से अहिंसा, अहंकार से नम्रता एवं अज्ञान से ज्ञान की ओर’ ही क्षमा पर्व का मुख्य नैतिक संदेश है।

आज जब पूरा विश्व संघर्ष, असहिष्णुता और विभाजन की चुनौतियों से जूझ रहा है, क्षमा पर्व का यह संदेश अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। यदि समाज के हर व्यक्ति के हृदय में क्षमा का भाव जागृत हो, तो अनेक सामाजिक और पारिवारिक तनाव स्वतः समाप्त हो जाएँ।

प्रिय श्रद्धालुजनो,

हमारे संविधान की मूल भावना में शामिल न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना भी इसी क्षमाशील और सहिष्णु दृष्टिकोण से पुष्ट होती है। महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि “कमज़ोर कभी क्षमा नहीं कर सकता; क्षमा करना तो शक्तिशाली का गुण है।”

क्षमा केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि एक सशक्त समाज निर्माण का आधार है। चंडीगढ़ जैसे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक शहर में, यह संदेश हमें परस्पर सहयोग, आपसी सम्मान और सामूहिक प्रगति की प्रेरणा देता है।

जैन धर्म में केवल क्षमा पर्व ही नहीं, बल्कि ऐसे अनेकों पर्व और आयोजन शामिल हैं जो सम्पूर्ण मानवजाति के कल्याण का संदेश देते हैं। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, संयम और करुणा जैसे मूल सिद्धांतों पर आधारित जैन धर्म न केवल व्यक्तिगत जीवन को शुद्ध करता है, बल्कि समाज में नैतिकता, शांति और सह-अस्तित्व की संस्कृति को सुदृढ़ करता है।

जैन परंपरा का प्रत्येक पर्व हमें आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि और सभी जीवों के प्रति करुणा का संदेश देता है। पर्युषण पर्व, दसलक्षण पर्व, महावीर जयंती और आचार्य परंपरा से जुड़े विविध उत्सव हमें यह स्मरण कराते हैं कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और सार्वभौमिक करुणा में है। 

जैन धर्म ने ‘अहिंसा परमो धर्मः’ और ‘जीवो और जीने दो’ जैसे शाश्वत संदेशों के माध्यम से संपूर्ण विश्व की मानवता के लिए अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया है। 

जैन आचार्यों और तीर्थंकरों ने हमें यह सिखाया है कि जीवन का वास्तविक सौंदर्य तभी है जब हम सभी प्राणियों के अस्तित्व का सम्मान करें। अहिंसा केवल बाहरी हिंसा से बचने का उपदेश नहीं है, बल्कि यह विचारों, वाणी और व्यवहार में भी करुणा और संवेदना विकसित करने का संदेश देती है।

जैन दर्शन में ‘जीव दया’ और ‘सर्व जीवों में समानता’ की अवधारणा मानव मात्र के लिए प्रेरणास्रोत है। ‘अनेकांतवाद’ और ‘सापेक्षवाद’ का सिद्धांत हमें सहिष्णुता, परस्पर सम्मान और वैचारिक विविधता को स्वीकारने की सीख देता है। 

यही कारण है कि जैन धर्म केवल एक समुदाय की आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्पूर्ण विश्व को शांति, अहिंसा, क्षमा और सहअस्तित्व का मार्ग दिखाने वाला धर्म है। वास्तव में, जैन धर्म के ये आदर्श आज की वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

मैं इस अवसर पर जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन को विशेष बधाई देना चाहता हूँ। आपका प्रयास “क्षमा पर्व” जैसे उत्सव को व्यापक जनमानस तक पहुँचाने और समाज में सहिष्णुता एवं नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्रिय श्रद्धालुजनो, क्षमा को कमज़ोरी नहीं, बल्कि आत्मिक शक्ति के रूप में अपनाइए। यह शक्ति आपको आत्मविश्वासी, उदार और संतुलित बनाएगी। प्रतिस्पर्धा के इस युग में केवल ज्ञान और तकनीक से नहीं, बल्कि संस्कार और सहानुभूति से भी आप सशक्त बन सकते हैं।

आज का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में सच्ची विजय क्षमा में ही निहित है। आइए इस अवसर पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें, 

- कि हम क्रोध को धैर्य में बदलेंगे, 

- द्वेष को मैत्री में बदलेंगे, 

- और कटुता को मधुरता में बदलेंगे।

यही सच्ची क्षमायाचना होगी और यही हमारे जीवन का आभूषण।

यदि मेरे मन, वचन या कर्म से, जाने-अनजाने, किसी को भी दुःख पहुँचा हो, तो कृपया मुझे क्षमा करें। मिच्छामि दुक्कड़म्।

मैं सभी नागरिकों से भी यही आग्रह करता हूँ कि वे इस अद्भुत परंपरा से प्रेरणा लेकर आपसी सद्भाव, सहिष्णुता और क्षमाशीलता को अपने जीवन का आदर्श बनाएं।

एक बार पुनः, मैं जैन समाज और JITO परिवार को इस पुण्य अवसर के आयोजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई देता हूँ।

धन्यवाद!

जय हिन्द!